< तीतुस 1 >
1 १ पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के विश्वास को स्थापित करने और सच्चाई का ज्ञान स्थापित करने के लिए जो भक्ति के साथ सहमत हैं,
anantajIvanasyAzAto jAtAyA Izvarabhakte ryogyasya satyamatasya yat tatvajJAnaM yazca vizvAsa IzvarasyAbhirucitalokai rlabhyate tadarthaM (aiōnios )
2 २ उस अनन्त जीवन की आशा पर, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है, (aiōnios )
yIzukhrISTasya prerita Izvarasya dAsaH paulo'haM sAdhAraNavizvAsAt mama prakRtaM dharmmaputraM tItaM prati likhami|
3 ३ पर ठीक समय पर अपने वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रगट किया, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मुझे सौंपा गया।
niSkapaTa Izvara AdikAlAt pUrvvaM tat jIvanaM pratijJAtavAn svanirUpitasamaye ca ghoSaNayA tat prakAzitavAn|
4 ४ तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है: परमेश्वर पिता और हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और शान्ति होती रहे।
mama trAturIzvarasyAjJayA ca tasya ghoSaNaM mayi samarpitam abhUt| asmAkaM tAta IzvaraH paritrAtA prabhu ryIzukhrISTazca tubhyam anugrahaM dayAM zAntiJca vitaratu|
5 ५ मैं इसलिए तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारें, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर-नगर प्राचीनों को नियुक्त करे।
tvaM yad asampUrNakAryyANi sampUraye rmadIyAdezAcca pratinagaraM prAcInagaNAn niyojayestadarthamahaM tvAM krItyupadvIpe sthApayitvA gatavAn|
6 ६ जो निर्दोष और एक ही पत्नी का पति हो, जिनके बच्चे विश्वासी हो, और जिन पर लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं।
tasmAd yo naro 'nindita ekasyA yoSitaH svAmI vizvAsinAm apacayasyAvAdhyatvasya vA doSeNAliptAnAJca santAnAnAM janako bhavati sa eva yogyaH|
7 ७ क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मारपीट करनेवाला, और न नीच कमाई का लोभी।
yato hetoradyakSeNezvarasya gRhAdyakSeNevAnindanIyena bhavitavyaM| tena svecchAcAriNA krodhinA pAnAsaktena prahArakeNa lobhinA vA na bhavitavyaM
8 ८ पर पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो;
kintvatithisevakena sallokAnurAgiNA vinItena nyAyyena dhArmmikeNa jitendriyeNa ca bhavitavyaM,
9 ९ और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश दे सके; और विवादियों का मुँह भी बन्द कर सके।
upadeze ca vizvastaM vAkyaM tena dhAritavyaM yataH sa yad yathArthenopadezena lokAn vinetuM vighnakAriNazca niruttarAn karttuM zaknuyAt tad AvazyakaM|
10 १० क्योंकि बहुत से अनुशासनहीन लोग, निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं; विशेष करके खतनावालों में से।
yataste bahavo 'vAdhyA anarthakavAkyavAdinaH pravaJcakAzca santi vizeSatazchinnatvacAM madhye kecit tAdRzA lokAH santi|
11 ११ इनका मुँह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं।
teSAJca vAgrodha Avazyako yataste kutsitalAbhasyAzayAnucitAni vAkyAni zikSayanto nikhilaparivArANAM sumatiM nAzayanti|
12 १२ उन्हीं में से एक जन ने जो उन्हीं का भविष्यद्वक्ता है, कहा है, “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।”
teSAM svadezIya eko bhaviSyadvAdI vacanamidamuktavAn, yathA, krItIyamAnavAH sarvve sadA kApaTyavAdinaH| hiMsrajantusamAnAste 'lasAzcodarabhArataH||
13 १३ यह गवाही सच है, इसलिए उन्हें कड़ाई से चेतावनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएँ।
sAkSyametat tathyaM, ato hetostvaM tAn gADhaM bhartsaya te ca yathA vizvAse svasthA bhaveyu
14 १४ यहूदियों की कथा कहानियों और उन मनुष्यों की आज्ञाओं पर मन न लगाएँ, जो सत्य से भटक जाते हैं।
ryihUdIyopAkhyAneSu satyamatabhraSTAnAM mAnavAnAm AjJAsu ca manAMsi na nivezayeyustathAdiza|
15 १५ शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तुएँ शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं वरन् उनकी बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं।
zucInAM kRte sarvvANyeva zucIni bhavanti kintu kalaGkitAnAm avizvAsinAJca kRte zuci kimapi na bhavati yatasteSAM buddhayaH saMvedAzca kalaGkitAH santi|
16 १६ वे कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न माननेवाले हैं और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं।
Izvarasya jJAnaM te pratijAnanti kintu karmmabhistad anaGgIkurvvate yataste garhitA anAjJAgrAhiNaH sarvvasatkarmmaNazcAyogyAH santi|