< भजन संहिता 90 >
1 १ परमेश्वर के जन मूसा की प्रार्थना हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिये धाम बना है।
“BOOK IV. A prayer of Moses, the man of God.” LORD! thou hast been our dwelling-place In all generations!
2 २ इससे पहले कि पहाड़ उत्पन्न हुए, या तूने पृथ्वी और जगत की रचना की, वरन् अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्वर है।
Before the mountains were brought forth, Or ever thou hadst formed the earth and the world, Even from everlasting to everlasting thou art God!
3 ३ तू मनुष्य को लौटाकर मिट्टी में ले जाता है, और कहता है, “हे आदमियों, लौट आओ!”
But man thou turnest again to dust, And sayst, “Return, ye children of men!”
4 ४ क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, जैसा कल का दिन जो बीत गया, या रात का एक पहर।
For a thousand years are, in thy sight, As yesterday when it is past, And as a watch in the night.
5 ५ तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं।
Thou carriest him away as with a flood; He is a dream; In the morning he springeth up like grass,
6 ६ वह भोर को फूलती और बढ़ती है, और साँझ तक कटकर मुर्झा जाती है।
Which flourisheth and shooteth up in the morning, And in the evening is cut down, and withered.
7 ७ क्योंकि हम तेरे क्रोध से भस्म हुए हैं; और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं।
For we are consumed by thine anger, And by thy wrath are we destroyed.
8 ८ तूने हमारे अधर्म के कामों को अपने सम्मुख, और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है।
Thou settest our iniquities before thee, Our secret sins in the light of thy countenance.
9 ९ क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, हम अपने वर्ष शब्द के समान बिताते हैं।
By reason of thine anger all our days vanish away; We spend our years like a thought.
10 १० हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ, तो भी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।
The days of our life are threescore years and ten, And, by reason of strength, may be fourscore years: Yet is the pride of them weariness and sorrow; For it vanisheth swiftly, and we fly away.
11 ११ तेरे क्रोध की शक्ति को और तेरे भय के योग्य तेरे रोष को कौन समझता है?
Yet who attendeth to the power of thine anger? Who with due reverence regardeth thine indignation?
12 १२ हमको अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएँ।
Teach us so to number our days, That we may apply our hearts to wisdom!
13 १३ हे यहोवा, लौट आ! कब तक? और अपने दासों पर तरस खा!
Desist, O LORD! How long—? Have compassion upon thy servants!
14 १४ भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें।
Satisfy us speedily with thy mercy, That we may rejoice and be glad all our days!
15 १५ जितने दिन तू हमें दुःख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे।
Make us glad according to the time in which thou hast afflicted us; According to the years in which we have seen adversity!
16 १६ तेरा काम तेरे दासों को, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो।
Let thy deeds be known to thy servants, And thy glory to their children!
17 १७ हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर।
Let the favor of the LORD our God be upon us, And establish for us the work of our hands; Yea, the work of our hands, establish thou it!