< भजन संहिता 78 >

1 आसाप का मश्कील हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनों की ओर कान लगाओ!
قَصِيدَةٌ لِآسَافَ اِصْغَ يَا شَعْبِي إِلَى شَرِيعَتِي. أَمِيلُوا آذَانَكُمْ إِلَى كَلَامِ فَمِي.١
2 मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा; मैं प्राचीनकाल की गुप्त बातें कहूँगा,
أَفْتَحُ بِمَثَلٍ فَمِي. أُذِيعُ أَلْغَازًا مُنْذُ ٱلْقِدَمِ.٢
3 जिन बातों को हमने सुना, और जान लिया, और हमारे बापदादों ने हम से वर्णन किया है।
ٱلَّتِي سَمِعْنَاهَا وَعَرَفْنَاهَا وَآبَاؤُنَا أَخْبَرُونَا.٣
4 उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ्य और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगे।
لَا نُخْفِي عَنْ بَنِيهِمْ إِلَى ٱلْجِيلِ ٱلْآخِرِ، مُخْبِرِينَ بِتَسَابِيحِ ٱلرَّبِّ وَقُوَّتِهِ وَعَجَائِبِهِ ٱلَّتِي صَنَعَ.٤
5 उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हें अपने-अपने बाल-बच्चों को बताना;
أَقَامَ شَهَادَةً فِي يَعْقُوبَ، وَوَضَعَ شَرِيعَةً فِي إِسْرَائِيلَ، ٱلَّتِي أَوْصَى آبَاءَنَا أَنْ يُعَرِّفُوا بِهَا أَبْنَاءَهُمْ،٥
6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हें जानें; और अपने-अपने बाल-बच्चों से इनका बखान करने में उद्यत हों,
لِكَيْ يَعْلَمَ ٱلْجِيلُ ٱلْآخِرُ. بَنُونَ يُولَدُونَ فَيَقُومُونَ وَيُخْبِرُونَ أَبْنَاءَهُمْ،٦
7 जिससे वे परमेश्वर का भरोसा रखें, परमेश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें;
فَيَجْعَلُونَ عَلَى ٱللهِ ٱعْتِمَادَهُمْ، وَلَا يَنْسَوْنَ أَعْمَالَ ٱللهِ، بَلْ يَحْفَظُونَ وَصَايَاهُ.٧
8 और अपने पितरों के समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा परमेश्वर की ओर सच्ची रही।
وَلَا يَكُونُونَ مِثْلَ آبَائِهِمْ، جِيلًا زَائِغًا وَمَارِدًا، جِيلًا لَمْ يُثَبِّتْ قَلْبَهُ وَلَمْ تَكُنْ رُوحُهُ أَمِينَةً لِلهِ.٨
9 एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युद्ध के समय पीठ दिखा दी।
بَنُو أَفْرَايِمَ ٱلنَّازِعُونَ فِي ٱلْقَوْسِ، ٱلرَّامُونَ، ٱنْقَلَبُوا فِي يَوْمِ ٱلْحَرْبِ.٩
10 १० उन्होंने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इन्कार किया।
لَمْ يَحْفَظُوا عَهْدَ ٱللهِ، وَأَبَوْا ٱلسُّلُوكَ فِي شَرِيعَتِهِ،١٠
11 ११ उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे, उनको भुला दिया।
وَنَسُوا أَفْعَالَهُ وَعَجَائِبَهُ ٱلَّتِي أَرَاهُمْ.١١
12 १२ उसने तो उनके बापदादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे।
قُدَّامَ آبَائِهِمْ صَنَعَ أُعْجُوبَةً فِي أَرْضِ مِصْرَ، بِلَادِ صُوعَنَ.١٢
13 १३ उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया, और जल को ढेर के समान खड़ा कर दिया।
شَقَّ ٱلْبَحْرَ فَعَبَّرَهُمْ، وَنَصَبَ ٱلْمِيَاهَ كَنَدٍّ.١٣
14 १४ उसने दिन को बादल के खम्भे से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की।
وَهَدَاهُمْ بِٱلسَّحَابِ نَهَارًا، وَٱللَّيْلَ كُلَّهُ بِنُورِ نَارٍ.١٤
15 १५ वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था।
شَقَّ صُخُورًا فِي ٱلْبَرِّيَّةِ، وَسَقَاهُمْ كَأَنَّهُ مِنْ لُجَجٍ عَظِيمَةٍ.١٥
16 १६ उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।
أَخْرَجَ مَجَارِيَ مِنْ صَخْرَةٍ، وَأَجْرَى مِيَاهًا كَٱلْأَنْهَارِ.١٦
17 १७ तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।
ثُمَّ عَادُوا أَيْضًا لِيُخْطِئُوا إِلَيْهِ، لِعِصْيَانِ ٱلْعَلِيِّ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلنَّاشِفَةِ.١٧
18 १८ और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा की।
وَجَرَّبُوا ٱللهَ فِي قُلُوبِهِمْ، بِسُؤَالِهِمْ طَعَامًا لِشَهْوَتِهِمْ.١٨
19 १९ वे परमेश्वर के विरुद्ध बोले, और कहने लगे, “क्या परमेश्वर जंगल में मेज लगा सकता है?
فَوَقَعُوا فِي ٱللهِ. قَالُوا: «هَلْ يَقْدِرُ ٱللهُ أَنْ يُرَتِّبَ مَائِدَةً فِي ٱلْبَرِّيَّةِ؟١٩
20 २० उसने चट्टान पर मारकर जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमड़ चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?”
هُوَذَا ضَرَبَ ٱلصَّخْرَةَ فَجَرَتِ ٱلْمِيَاهُ وَفَاضَتِ ٱلْأَوْدِيَةُ. هَلْ يَقْدِرُ أَيْضًا أَنْ يُعْطِيَ خُبْزًا، أَوْ يُهَيِّئَ لَحْمًا لِشَعْبِهِ؟».٢٠
21 २१ यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के विरुद्ध उसकी आग भड़क उठी, और इस्राएल के विरुद्ध क्रोध भड़का;
لِذَلِكَ سَمِعَ ٱلرَّبُّ فَغَضِبَ، وَٱشْتَعَلَتْ نَارٌ فِي يَعْقُوبَ، وَسَخَطٌ أَيْضًا صَعِدَ عَلَى إِسْرَائِيلَ،٢١
22 २२ इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया।
لِأَنَّهُمْ لَمْ يُؤْمِنُوا بِٱللهِ وَلَمْ يَتَّكِلُوا عَلَى خَلَاصِهِ.٢٢
23 २३ तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के द्वारों को खोला;
فَأَمَرَ ٱلسَّحَابَ مِنْ فَوْقُ، وَفَتَحَ مَصَارِيعَ ٱلسَّمَاوَاتِ.٢٣
24 २४ और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया।
وَأَمْطَرَ عَلَيْهِمْ مَنًّا لِلْأَكْلِ، وَبُرَّ ٱلسَّمَاءِ أَعْطَاهُمْ.٢٤
25 २५ मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; उसने उनको मनमाना भोजन दिया।
أَكَلَ ٱلْإِنْسَانُ خُبْزَ ٱلْمَلَائِكَةِ. أَرْسَلَ عَلَيْهِمْ زَادًا لِلشِّبَعِ.٢٥
26 २६ उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्षिणी बहाई;
أَهَاجَ شَرْقِيَّةً فِي ٱلسَّمَاءِ، وَسَاقَ بِقُوَّتِهِ جَنُوبِيَّةً.٢٦
27 २७ और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया, और समुद्र के रेत के समान अनगिनत पक्षी भेजे;
وَأَمْطَرَ عَلَيْهِمْ لَحْمًا مِثْلَ ٱلتُّرَابِ، وَكَرَمْلِ ٱلْبَحْرِ طُيُورًا ذَوَاتِ أَجْنِحَةٍ.٢٧
28 २८ और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए।
وَأَسْقَطَهَا فِي وَسَطِ مَحَلَّتِهِمْ حَوَالَيْ مَسَاكِنِهِمْ.٢٨
29 २९ और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उसने उनकी कामना पूरी की।
فَأَكَلُوا وَشَبِعُوا جِدًّا، وَأَتَاهُمْ بِشَهْوَتِهِمْ.٢٩
30 ३० उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुँह ही में था,
لَمْ يَزُوغُوا عَنْ شَهْوَتِهِمْ. طَعَامُهُمْ بَعْدُ فِي أَفْوَاهِهِمْ،٣٠
31 ३१ कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया।
فَصَعِدَ عَلَيْهِمْ غَضَبُ ٱللهِ، وَقَتَلَ مِنْ أَسْمَنِهِمْ، وَصَرَعَ مُخْتَارِي إِسْرَائِيلَ.٣١
32 ३२ इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया।
فِي هَذَا كُلِّهِ أَخْطَأُوا بَعْدُ، وَلَمْ يُؤْمِنُوا بِعَجَائِبِهِ.٣٢
33 ३३ तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षों को घबराहट में कटवाया।
فَأَفْنَى أَيَّامَهُمْ بِٱلْبَاطِلِ وَسِنِيهِمْ بِٱلرُّعْبِ.٣٣
34 ३४ जब वह उन्हें घात करने लगता, तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर परमेश्वर को यत्न से खोजते थे।
إِذْ قَتَلَهُمْ طَلَبُوهُ، وَرَجَعُوا وَبَكَّرُوا إِلَى ٱللهِ،٣٤
35 ३५ उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान परमेश्वर हमारा छुड़ानेवाला है।
وَذَكَرُوا أَنَّ ٱللهَ صَخْرَتُهُمْ، وَٱللهَ ٱلْعَلِيَّ وَلِيُّهُمْ.٣٥
36 ३६ तो भी उन्होंने उसकी चापलूसी की; वे उससे झूठ बोले।
فَخَادَعُوهُ بِأَفْوَاهِهِمْ، وَكَذَبُوا عَلَيْهِ بِأَلْسِنَتِهِمْ.٣٦
37 ३७ क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे।
أَمَّا قُلُوبُهُمْ فَلَمْ تُثَبَّتْ مَعَهُ، وَلَمْ يَكُونُوا أُمَنَاءَ فِي عَهْدِهِ.٣٧
38 ३८ परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता; वह बार बार अपने क्रोध को ठंडा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता।
أَمَّا هُوَ فَرَؤُوفٌ، يَغْفِرُ ٱلْإِثْمَ وَلَا يُهْلِكُ. وَكَثِيرًا مَا رَدَّ غَضَبَهُ، وَلَمْ يُشْعِلْ كُلَّ سَخَطِهِ.٣٨
39 ३९ उसको स्मरण हुआ कि ये नाशवान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती।
ذَكَرَ أَنَّهُمْ بَشَرٌ. رِيحٌ تَذْهَبُ وَلَا تَعُودُ.٣٩
40 ४० उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया!
كَمْ عَصَوْهُ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ وَأَحْزَنُوهُ فِي ٱلْقَفْرِ!٤٠
41 ४१ वे बार बार परमेश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।
رَجَعُوا وَجَرَّبُوا ٱللهَ وَعَنَّوْا قُدُّوسَ إِسْرَائِيلَ.٤١
42 ४२ उन्होंने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उसने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था;
لَمْ يَذْكُرُوا يَدَهُ يَوْمَ فَدَاهُمْ مِنَ ٱلْعَدُوِّ،٤٢
43 ४३ कि उसने कैसे अपने चिन्ह मिस्र में, और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे।
حَيْثُ جَعَلَ فِي مِصْرَ آيَاتِهِ، وَعَجَائِبَهُ فِي بِلَادِ صُوعَنَ.٤٣
44 ४४ उसने तो मिस्रियों की नदियों को लहू बना डाला, और वे अपनी नदियों का जल पी न सके।
إِذْ حَوَّلَ خُلْجَانَهُمْ إِلَى دَمٍ، وَمَجَارِيَهُمْ لِكَيْ لَا يَشْرَبُوا.٤٤
45 ४५ उसने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हें काट खाया, और मेंढ़क भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया।
أَرْسَلَ عَلَيْهِمْ بَعُوضًا فَأَكَلَهُمْ، وَضَفَادِعَ فَأَفْسَدَتْهُمْ.٤٥
46 ४६ उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, और उनकी खेतीबारी टिड्डियों को खिला दी थी।
أَسْلَمَ لِلْجَرْدَمِ غَلَّتَهُمْ، وَتَعَبَهُمْ لِلْجَرَادِ.٤٦
47 ४७ उसने उनकी दाखलताओं को ओलों से, और उनके गूलर के पेड़ों को ओले बरसाकर नाश किया।
أَهْلَكَ بِٱلْبَرَدِ كُرُومَهُمْ، وَجُمَّيْزَهُمْ بِٱلصَّقِيعِ.٤٧
48 ४८ उसने उनके पशुओं को ओलों से, और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया।
وَدَفَعَ إِلَى ٱلْبَرَدِ بَهَائِمَهُمْ، وَمَوَاشِيَهُمْ لِلْبُرُوقِ.٤٨
49 ४९ उसने उनके ऊपर अपना प्रचण्ड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हें संकट में डाला, और दुःखदाई दूतों का दल भेजा।
أَرْسَلَ عَلَيْهِمْ حُمُوَّ غَضَبِهِ، سَخَطًا وَرِجْزًا وَضِيْقًا، جَيْشَ مَلَائِكَةٍ أَشْرَارٍ.٤٩
50 ५० उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया।
مَهَّدَ سَبِيلًا لِغَضَبِهِ. لَمْ يَمْنَعْ مِنَ ٱلْمَوْتِ أَنْفُسَهُمْ، بَلْ دَفَعَ حَيَاتَهُمْ لِلْوَبَإِ.٥٠
51 ५१ उसने मिस्र के सब पहिलौठों को मारा, जो हाम के डेरों में पौरूष के पहले फल थे;
وَضَرَبَ كُلَّ بِكْرٍ فِي مِصْرَ. أَوَائِلَ ٱلْقُدْرَةِ فِي خِيَامِ حَامٍ.٥١
52 ५२ परन्तु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया, और जंगल में उनकी अगुआई पशुओं के झुण्ड की सी की।
وَسَاقَ مِثْلَ ٱلْغَنَمِ شَعْبَهُ، وَقَادَهُمْ مِثْلَ قَطِيعٍ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ.٥٢
53 ५३ तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए।
وَهَدَاهُمْ آمِنِينَ فَلَمْ يَجْزَعُوا. أَمَّا أَعْدَاؤُهُمْ فَغَمَرَهُمُ ٱلْبَحْرُ.٥٣
54 ५४ और उसने उनको अपने पवित्र देश की सीमा तक, इसी पहाड़ी देश में पहुँचाया, जो उसने अपने दाहिने हाथ से प्राप्त किया था।
وَأَدْخَلَهُمْ فِي تُخُومِ قُدْسِهِ، هَذَا ٱلْجَبَلِ ٱلَّذِي ٱقْتَنَتْهُ يَمِينُهُ.٥٤
55 ५५ उसने उनके सामने से अन्यजातियों को भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप-मापकर बाँट दिया; और इस्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया।
وَطَرَدَ ٱلْأُمَمَ مِنْ قُدَّامِهِمْ وَقَسَمَهُمْ بِٱلْحَبْلِ مِيرَاثًا، وَأَسْكَنَ فِي خِيَامِهِمْ أَسْبَاطَ إِسْرَائِيلَ.٥٥
56 ५६ तो भी उन्होंने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उससे बलवा किया, और उसकी चितौनियों को न माना,
فَجَرَّبُوا وَعَصَوْا ٱللهَ ٱلْعَلِيَّ، وَشَهَادَاتِهِ لَمْ يَحْفَظُوا،٥٦
57 ५७ और मुड़कर अपने पुरखाओं के समान विश्वासघात किया; उन्होंने निकम्मे धनुष के समान धोखा दिया।
بَلِ ٱرْتَدُّوا وَغَدَرُوا مِثْلَ آبَائِهِمْ. ٱنْحَرَفُوا كَقَوْسٍ مُخْطِئَةٍ.٥٧
58 ५८ क्योंकि उन्होंने ऊँचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मूर्तियों के द्वारा उसमें से जलन उपजाई।
أَغَاظُوهُ بِمُرْتَفَعَاتِهِمْ، وَأَغَارُوهُ بِتَمَاثِيلِهِمْ.٥٨
59 ५९ परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उसने इस्राएल को बिल्कुल तज दिया।
سَمِعَ ٱللهُ فَغَضِبَ، وَرَذَلَ إِسْرَائِيلَ جِدًّا،٥٩
60 ६० उसने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बू को जो उसने मनुष्यों के बीच खड़ा किया था, त्याग दिया,
وَرَفَضَ مَسْكِنَ شِيلُوِ، ٱلْخَيْمَةَ ٱلَّتِي نَصَبَهَا بَيْنَ ٱلنَّاسِ.٦٠
61 ६१ और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया, और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया।
وَسَلَّمَ لِلسَّبْيِ عِزَّهُ، وَجَلَالَهُ لِيَدِ ٱلْعَدُوِّ.٦١
62 ६२ उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपने निज भाग के विरुद्ध रोष से भर गया।
وَدَفَعَ إِلَى ٱلسَّيْفِ شَعْبَهُ، وَغَضِبَ عَلَى مِيرَاثِهِ.٦٢
63 ६३ उनके जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाएँ गए।
مُخْتَارُوهُ أَكَلَتْهُمُ ٱلنَّارُ، وَعَذَارَاهُ لَمْ يُحْمَدْنَ.٦٣
64 ६४ उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएँ रोने न पाई।
كَهَنَتُهُ سَقَطُوا بِٱلسَّيْفِ، وَأَرَامِلُهُ لَمْ يَبْكِينَ.٦٤
65 ६५ तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो।
فَٱسْتَيْقَظَ ٱلرَّبُّ كَنَائِمٍ، كَجَبَّارٍ مُعَيِّطٍ مِنَ ٱلْخَمْرِ.٦٥
66 ६६ उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।
فَضَرَبَ أَعْدَاءَهُ إِلَى ٱلْوَرَاءِ. جَعَلَهُمْ عَارًا أَبَدِيًّا.٦٦
67 ६७ फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया; और एप्रैम के गोत्र को न चुना;
وَرَفَضَ خَيْمَةَ يُوسُفَ، وَلَمْ يَخْتَرْ سِبْطَ أَفْرَايِمَ.٦٧
68 ६८ परन्तु यहूदा ही के गोत्र को, और अपने प्रिय सिय्योन पर्वत को चुन लिया।
بَلِ ٱخْتَارَ سِبْطَ يَهُوذَا، جَبَلَ صِهْيَوْنَ ٱلَّذِي أَحَبَّهُ.٦٨
69 ६९ उसने अपने पवित्रस्थान को बहुत ऊँचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नींव उसने सदा के लिये डाली है।
وَبَنَى مِثْلَ مُرْتَفَعَاتٍ مَقْدِسَهُ، كَٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَسَّسَهَا إِلَى ٱلْأَبَدِ.٦٩
70 ७० फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया;
وَٱخْتَارَ دَاوُدَ عَبْدَهُ، وَأَخَذَهُ مِنْ حَظَائِرِ ٱلْغَنَمِ.٧٠
71 ७१ वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे-पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात् उसके निज भाग इस्राएल की चरवाही करे।
مِنْ خَلْفِ ٱلْمُرْضِعَاتِ أَتَى بِهِ، لِيَرْعَى يَعْقُوبَ شَعْبَهُ، وَإِسْرَائِيلَ مِيرَاثَهُ.٧١
72 ७२ तब उसने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुआई की।
فَرَعَاهُمْ حَسَبَ كَمَالِ قَلْبِهِ، وَبِمَهَارَةِ يَدَيْهِ هَدَاهُمْ.٧٢

< भजन संहिता 78 >