< भजन संहिता 74 >

1 आसाप का मश्कील हे परमेश्वर, तूने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआँ तेरी चराई की भेड़ों के विरुद्ध क्यों उठ रहा है?
قصیدۀ آساف. ای خدا، چرا برای همیشه ما را ترک کرده‌ای؟ چرا بر ما که گوسفندان مرتع تو هستیم خشمگین شده‌ای؟
2 अपनी मण्डली को जिसे तूने प्राचीनकाल में मोल लिया था, और अपने निज भाग का गोत्र होने के लिये छुड़ा लिया था, और इस सिय्योन पर्वत को भी, जिस पर तूने वास किया था, स्मरण कर!
قوم خود را که در زمان قدیم از اسارت بازخریدی، به یاد آور. تو ما را نجات دادی تا قوم خاص تو باشیم. شهر اورشلیم را که در آن ساکن بودی، به یاد آور.
3 अपने डग अनन्त खण्डहरों की ओर बढ़ा; अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्रु ने पवित्रस्थान में की हैं।
بر خرابه‌های شهر ما عبور کن و ببین دشمن چه بر سر خانهٔ تو آورده است!
4 तेरे द्रोही तेरे पवित्रस्थान के बीच गर्जते रहे हैं; उन्होंने अपनी ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है।
دشمنانت در خانهٔ تو فریاد پیروزی سر دادند و پرچمشان را به اهتزاز درآوردند.
5 वे उन मनुष्यों के समान थे जो घने वन के पेड़ों पर कुल्हाड़े चलाते हैं;
مانند هیزم‌شکنانی که با تبرهای خود درختان جنگل را قطع می‌کنند،
6 और अब वे उस भवन की नक्काशी को, कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से बिल्कुल तोड़े डालते हैं।
تمام نقشهای تراشیده را با گرز و تبر خرد کردند
7 उन्होंने तेरे पवित्रस्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है।
و خانهٔ مقدّس تو را به آتش کشیده با خاک یکسان نمودند.
8 उन्होंने मन में कहा है, “हम इनको एकदम दबा दें।” उन्होंने इस देश में परमेश्वर के सब सभास्थानों को फूँक दिया है।
عبادتگاه‌های تو را در سراسر خاک اسرائیل به آتش کشیدند تا هیچ اثری از خداپرستی برجای نماند.
9 हमको अब परमेश्वर के कोई अद्भुत चिन्ह दिखाई नहीं देते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी।
هیچ نبی در میان ما نیست که بداند این وضع تا به کی ادامه می‌یابد تا ما را از آن خبر دهد.
10 १० हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा?
ای خدا، تا به کی به دشمن اجازه می‌دهی به نام تو اهانت کند؟
11 ११ तू अपना दाहिना हाथ क्यों रोके रहता है? उसे अपने पंजर से निकालकर उनका अन्त कर दे।
چرا دست خود را عقب کشیده‌ای و به داد ما نمی‌رسی؟ دست راست خود را از گریبان خود بیرون آور و دشمنانمان را نابود کن.
12 १२ परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है।
ای خدا، تو از قدیم پادشاه ما بوده‌ای و بارها ما را نجات داده‌ای.
13 १३ तूने तो अपनी शक्ति से समुद्र को दो भागकर दिया; तूने तो समुद्री अजगरों के सिरों को फोड़ दिया।
تو دریا را به نیروی خود شکافتی، و سرهای هیولاهای دریا را شکستی.
14 १४ तूने तो लिव्यातान के सिरों को टुकड़े-टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए।
سرهای لِویاتان را فروکوفتی، و آن را خوراک جانوران صحرا ساختی.
15 १५ तूने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, तूने तो बारहमासी नदियों को सूखा डाला।
چشمه‌ها جاری ساختی تا قوم تو آب بنوشند و رود همیشه پر آب را خشک کردی تا از آن عبور کنند.
16 १६ दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तूने स्थिर किया है।
شب و روز را تو پدید آورده‌ای؛ خورشید و ماه را تو در آسمان قرار داده‌ای.
17 १७ तूने तो पृथ्वी की सब सीमाओं को ठहराया; धूपकाल और सर्दी दोनों तूने ठहराए हैं।
تمام نظم جهان از توست. تابستان و زمستان را تو به‌وجود آورده‌ای.
18 १८ हे यहोवा, स्मरण कर कि शत्रु ने नामधराई की है, और मूर्ख लोगों ने तेरे नाम की निन्दा की है।
ای خداوند، ببین چگونه دشمن به نام تو اهانت می‌کند.
19 १९ अपनी पिण्डुकी के प्राण को वन पशु के वश में न कर; अपने दीन जनों को सदा के लिये न भूल
قوم ستمدیدهٔ خود را برای همیشه ترک نکن؛ کبوتر ضعیف خود را به چنگ پرندهٔ شکاری مسپار!
20 २० अपनी वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अंधेरे स्थान अत्याचार के घरों से भरपूर हैं।
گوشه‌های تاریک سرزمین ما از ظلم پر شده است، عهدی را که با ما بسته‌ای به یاد آر.
21 २१ पिसे हुए जन को अपमानित होकर लौटना न पड़े; दीन और दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएँ।
نگذار قوم مظلوم تو بیش از این رسوا شوند. ایشان را نجات ده تا تو را ستایش کنند.
22 २२ हे परमेश्वर, उठ, अपना मुकद्दमा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूर्ख द्वारा दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर।
ای خدا، برخیز و حق خود را از دشمن بگیر، زیرا این مردم نادان تمام روز به تو توهین می‌کنند.
23 २३ अपने द्रोहियों का बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियों का कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है।
فریاد اهانت‌آمیز آنها را که پیوسته بلند است، نشنیده مگیر.

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