< भजन संहिता 49 >
1 १ प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का भजन हे देश-देश के सब लोगों यह सुनो! हे संसार के सब निवासियों, कान लगाओ!
To the chief Musician, A Psalm for the sons of Korah. Hear this, all [ye] people; give ear, all [ye] inhabitants of the world:
2 २ क्या ऊँच, क्या नीच क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ!
Both low and high, rich and poor, together.
3 ३ मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी।
My mouth shall speak of wisdom; and the meditation of my heart [shall be] of understanding.
4 ४ मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊँगा, मैं वीणा बजाते हुए अपनी गुप्त बात प्रकाशित करूँगा।
I will incline mine ear to a parable: I will open my dark saying upon the harp.
5 ५ विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे?
Wherefore should I fear in the days of evil, [when] the iniquity of my heels shall compass me about?
6 ६ जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते, और अपने धन की बहुतायत पर फूलते हैं,
They that trust in their wealth, and boast themselves in the multitude of their riches;
7 ७ उनमें से कोई अपने भाई को किसी भाँति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसके बदले प्रायश्चित में कुछ दे सकता है
None [of them] can by any means redeem his brother, nor give to God a ransom for him:
8 ८ क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे
(For the redemption of their soul [is] precious, and it ceaseth for ever: )
9 ९ कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे।
That he should still live for ever, [and] not see corruption.
10 १० क्योंकि देखने में आता है कि बुद्धिमान भी मरते हैं, और मूर्ख और पशु सरीखे मनुष्य भी दोनों नाश होते हैं, और अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिये छोड़ जाते हैं।
For he seeth [that] wise men die, likewise the fool and the brutish person perish, and leave their wealth to others.
11 ११ वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर सदा स्थिर रहेगा, और उनके निवास पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे; इसलिए वे अपनी-अपनी भूमि का नाम अपने-अपने नाम पर रखते हैं।
Their inward thought [is, that] their houses [shall continue] for ever, [and] their dwelling places to all generations; they call [their] lands after their own names.
12 १२ परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता, वह पशुओं के समान होता है, जो मर मिटते हैं।
Nevertheless man [being] in honour abideth not: he is like the beasts [that] perish.
13 १३ उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है, तो भी उनके बाद लोग उनकी बातों से प्रसन्न होते हैं। (सेला)
This their way [is] their folly: yet their posterity approve their sayings. (Selah)
14 १४ वे अधोलोक की मानो भेड़ों का झुण्ड ठहराए गए हैं; मृत्यु उनका गड़रिया ठहरेगा; और भोर को सीधे लोग उन पर प्रभुता करेंगे; और उनका सुन्दर रूप अधोलोक का कौर हो जाएगा और उनका कोई आधार न रहेगा। (Sheol )
Like sheep they are laid in the grave; death shall feed on them; and the upright shall have dominion over them in the morning; and their beauty shall consume in the grave from their dwelling. (Sheol )
15 १५ परन्तु परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक के वश से छुड़ा लेगा, वह मुझे ग्रहण करके अपनाएगा। (Sheol )
But God will redeem my soul from the power of the grave: for he shall receive me. (Selah) (Sheol )
16 १६ जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का वैभव बढ़ जाए, तब तू भय न खाना।
Be not thou afraid when one is made rich, when the glory of his house is increased;
17 १७ क्योंकि वह मरकर कुछ भी साथ न ले जाएगा; न उसका वैभव उसके साथ कब्र में जाएगा।
For when he dieth he shall carry nothing away: his glory shall not descend after him.
18 १८ चाहे वह जीते जी अपने आपको धन्य कहता रहे। जब तू अपनी भलाई करता है, तब वे लोग तेरी प्रशंसा करते हैं
Though while he lived he blessed his soul: and [men] will praise thee, when thou doest well to thyself.
19 १९ तो भी वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, जो कभी उजियाला न देखेंगे।
He shall go to the generation of his fathers; they shall never see light.
20 २० मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों परन्तु यदि वे समझ नहीं रखते तो वे पशुओं के समान हैं, जो मर मिटते हैं।
Man [that is] in honour, and understandeth not, is like the beasts [that] perish.