< भजन संहिता 39 >
1 १ यदूतून प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन मैंने कहा, “मैं अपनी चाल चलन में चौकसी करूँगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे सामने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।”
Auf den Siegesspender, für Zurückgezogene ein Lied, von David. Ich denke: Ich hab acht auf meinen Wandel, daß ich nicht sündige mit meiner Zunge. Ich will mit einem Zaume meinen Mund verwahren vor frevler Rede, die sich mir aufdrängt.
2 २ मैं मौन धारण कर गूँगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई,
Ich habe still geschwiegen, nichts von Besserung gesagt. Verbissen wird mein Schmerz.
3 ३ मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते-सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपनी जीभ से बोल उठा;
Geglüht hat mir das Herz im Busen, und hab ich dran gedacht, so lobte eine Flamme auf. Ich lasse meine Zunge reden:
4 ४ “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि कैसा अनित्य हूँ!
"Herr! Künde mir mein Ziel, wie ist's mit meiner Tage Maß! Ich wüßte gern, woran es bei mir fehlt!
5 ५ देख, तूने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरा जीवनकाल तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्यों न हों तो भी व्यर्थ ठहरे हैं। (सेला)
Du machst ja spannenlang nur meine Tage, und meine Lebensdauer ist wie nichts vor Dir. Nur für das Nichts ist jeder Mensch geschaffen. (Sela)
6 ६ सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा!
Mit Schattenbildern geht der Mensch umher. Sie machen Lärm um eitlen Tand. Man scharrt zusammen und weiß nicht, wer es bekommt.
7 ७ “अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है।
Doch ich, was hoffe ich nur, Herr? Mein Hoffen geht auf Dich.
8 ८ मुझे मेरे सब अपराधों के बन्धन से छुड़ा ले। मूर्ख मेरी निन्दा न करने पाए।
Erlöse mich von allen meinen Sünden! Setz mich dem Spott der Toren nimmer aus!"
9 ९ मैं गूँगा बन गया और मुँह न खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है।
Ich schweige, tu den Mund nicht auf; denn Du hast es getan.
10 १० तूने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझसे दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तेरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूँ।
Nimm Deine Plage fort von mir! Vom Schlage Deiner Hand vergehe ich.
11 ११ जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण डाँट-डपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सामर्थ्य को पतंगे के समान नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।
Wenn Du zur Buße für die Sünden mit Strafen jemand züchtigest, beschädigst Du sein Teuerstes, als wär's ein leeres Vogelnest. Ach, jeder Mensch ist nur ein Hauch. (Sela)
12 १२ “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दुहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शान्त न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ, और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूँ।
Erhöre mein Gebet, Herr, meinen Hilferuf! Auf meine Tränen merke! Nimmer schweige! Ein Gast bin ich bei Dir, ein Beisaß so, wie meine Väter all.
13 १३ आह! इससे पहले कि मैं यहाँ से चला जाऊँ और न रह जाऊँ, मुझे बचा ले जिससे मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूँ!”
Sei freundlich doch zu mir, daß ich noch einmal lächle, bevor ich scheide und hier nimmer weile!