< भजन संहिता 142 >

1 दाऊद का मश्कील, जब वह गुफा में था: प्रार्थना मैं यहोवा की दुहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूँ,
[Ein Maskil [S. die Anm. zu Ps. 32, Überschrift] von David. Ein Gebet, als er in der Höhle war.] Mit meiner Stimme schreie ich zu Jehova, mit meiner Stimme flehe ich zu Jehova.
2 मैं अपने शोक की बातें उससे खोलकर कहता, मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूँ।
Ich schütte meine Klage vor ihm aus, meine Bedrängnis tue ich vor ihm kund.
3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फंदा लगाया।
Als mein Geist in mir ermattete, da kanntest du meinen Pfad. Auf dem Wege, den ich wandelte, haben sie mir heimlich eine Schlinge gelegt.
4 मैंने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।
Schaue zur Rechten, und sieh: ich habe ja niemand, der mich erkennt; [O. beachtet] verloren ist mir jede Zuflucht, niemand fragt nach meiner Seele.
5 हे यहोवा, मैंने तेरी दुहाई दी है; मैंने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते जी तू मेरा भाग है।
Zu dir habe ich geschrieen, Jehova! Ich habe gesagt: Du bist meine Zuflucht, mein Teil im Lande der Lebendigen.
6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उनसे मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझसे अधिक सामर्थी हैं।
Horche auf mein Schreien, denn ich bin sehr elend; [O. schwach] errette mich von meinen Verfolgern, denn sie sind mir zu mächtig!
7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँ! धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएँगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।
Führe aus dem Gefängnis heraus meine Seele, damit ich deinen Namen preise! Die Gerechten werden mich umringen, wenn du mir wohlgetan hast. [O. weil du mir wohltun wirst]

< भजन संहिता 142 >