< भजन संहिता 108 >

1 दाऊद का भजन हे परमेश्वर, मेरा हृदय स्थिर है; मैं गाऊँगा, मैं अपनी आत्मा से भी भजन गाऊँगा।
שִׁ֖יר מִזְמֹ֣ור לְדָוִֽד׃ נָכֹ֣ון לִבִּ֣י אֱלֹהִ֑ים אָשִׁ֥ירָה וַ֝אֲזַמְּרָ֗ה אַף־כְּבֹודִֽי׃
2 हे सारंगी और वीणा जागो! मैं आप पौ फटते जाग उठूँगा
ע֭וּרָֽה הַנֵּ֥בֶל וְכִנֹּ֗ור אָעִ֥ירָה שָּֽׁחַר׃
3 हे यहोवा, मैं देश-देश के लोगों के मध्य में तेरा धन्यवाद करूँगा, और राज्य-राज्य के लोगों के मध्य में तेरा भजन गाऊँगा।
אֹודְךָ֖ בָעַמִּ֥ים ׀ יְהוָ֑ה וַ֝אֲזַמֶּרְךָ֗ בַּל־אֻמִּֽים׃
4 क्योंकि तेरी करुणा आकाश से भी ऊँची है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है।
כִּֽי־גָדֹ֣ול מֵֽעַל־שָׁמַ֣יִם חַסְדֶּ֑ךָ וְֽעַד־שְׁחָקִ֥ים אֲמִתֶּֽךָ׃
5 हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर हो! और तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर हो!
ר֣וּמָה עַל־שָׁמַ֣יִם אֱלֹהִ֑ים וְעַ֖ל כָּל־הָאָ֣רֶץ כְּבֹודֶֽךָ׃
6 इसलिए कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएँ, तू अपने दाहिने हाथ से बचा ले और हमारी विनती सुन ले!
לְ֭מַעַן יֵחָלְצ֣וּן יְדִידֶ֑יךָ הֹושִׁ֖יעָה יְמִֽינְךָ֣ וַעֲנֵֽנִי׃
7 परमेश्वर ने अपनी पवित्रता में होकर कहा है, “मैं प्रफुल्लित होकर शेकेम को बाँट लूँगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊँगा।
אֱלֹהִ֤ים ׀ דִּבֶּ֥ר בְּקָדְשֹׁ֗ו אֶעְלֹ֥זָה אֲחַלְּקָ֥ה שְׁכֶ֑ם וְעֵ֖מֶק סֻכֹּ֣ות אֲמַדֵּֽד׃
8 गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप है; यहूदा मेरा राजदण्ड है।
לִ֤י גִלְעָ֨ד ׀ לִ֤י מְנַשֶּׁ֗ה וְ֭אֶפְרַיִם מָעֹ֣וז רֹאשִׁ֑י יְ֝הוּדָ֗ה מְחֹקְקִֽי׃
9 मोआब मेरे धोने का पात्र है, मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूँगा, पलिश्त पर मैं जयजयकार करूँगा।”
מֹואָ֤ב ׀ סִ֬יר רַחְצִ֗י עַל־אֱ֭דֹום אַשְׁלִ֣יךְ נַעֲלִ֑י עֲלֵֽי־פְ֝לֶ֗שֶׁת אֶתְרֹועָֽע׃
10 १० मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुँचाएगा? एदोम तक मेरी अगुआई किसने की हैं?
מִ֣י יֹ֭בִלֵנִי עִ֣יר מִבְצָ֑ר מִ֖י נָחַ֣נִי עַד־אֱדֹֽום׃
11 ११ हे परमेश्वर, क्या तूने हमको त्याग नहीं दिया?, और हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के आगे-आगे नहीं चलता।
הֲלֹֽא־אֱלֹהִ֥ים זְנַחְתָּ֑נוּ וְֽלֹא־תֵצֵ֥א אֱ֝לֹהִ֗ים בְּצִבְאֹתֵֽינוּ׃
12 १२ शत्रुओं के विरुद्ध हमारी सहायता कर, क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है!
הָֽבָה־לָּ֣נוּ עֶזְרָ֣ת מִצָּ֑ר וְ֝שָׁ֗וְא תְּשׁוּעַ֥ת אָדָֽם׃
13 १३ परमेश्वर की सहायता से हम वीरता दिखाएँगे, हमारे शत्रुओं को वही रौंदेगा।
בֵּֽאלֹהִ֥ים נַעֲשֶׂה־חָ֑יִל וְ֝ה֗וּא יָב֥וּס צָרֵֽינוּ׃

< भजन संहिता 108 >