< भजन संहिता 107 >
1 १ यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा की है!
BOOK FIFTH: Oh give thanks unto the Lord; for he is good; for unto eternity endureth his kindness.
2 २ यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उसने शत्रु के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है,
Thus let the Lord's redeemed say, even those whom he hath redeemed from the hand of the adversary;
3 ३ और उन्हें देश-देश से, पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से इकट्ठा किया है।
And whom he hath gathered out of the [various] lands, from the east, and from the west, from the north, and from the sea.
4 ४ वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया;
They wandered about in the wilderness, in the desert path; they could not find an inhabited city:
5 ५ भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए।
Hungry and thirsty, their soul within them fainted.
6 ६ तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने उनको सकेती से छुड़ाया;
Then they cried unto the Lord when they were in distress, [and] out of their afflictions he delivered them.
7 ७ और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुँचे।
And he led them forth on the right way, that they might go to an inhabited city.
8 ८ लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
They [therefore] shall give thanks unto the Lord for his kindness, and [proclaim] his wonders to the children of men!
9 ९ क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है।
For he satisfied the longing soul, and the hungry soul he filled with good.—
10 १० जो अंधियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, और दुःख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे,
Such as sit in darkness and in the shadow of death, bound in misery and [fetters of] iron; —
11 ११ इसलिए कि वे परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध चले, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना।
Because they have rebelled against the words of God, and have contemned the counsel of the Most High;
12 १२ तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला।
And he humbled with trouble their heart; they stumbled, and there was none to help;
13 १३ तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने सकेती से उनका उद्धार किया;
But when they cry unto the Lord when they are in distress, he saveth them out of their afflictions;
14 १४ उसने उनको अंधियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनों को तोड़ डाला।
He bringeth them out of darkness and the shadow of death, and teareth their bands asunder.
15 १५ लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
They [therefore] shall give thanks unto the Lord for his kindness, and [proclaim] his wonders to the children of men!
16 १६ क्योंकि उसने पीतल के फाटकों को तोड़ा, और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े किया।
For he hath broken the doors of copper, and the bolts of iron hath he hewn asunder.—
17 १७ मूर्ख अपनी कुचाल, और अधर्म के कामों के कारण अति दुःखित होते हैं।
Fools, because of their transgression, and because of their iniquities, are afflicted.
18 १८ उनका जी सब भाँति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुँचते हैं।
All manner of food their soul abhorreth; and they draw near unto the gates of death;
19 १९ तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह सकेती से उनका उद्धार करता है;
But when they cry unto the Lord when they are in distress, he saveth them out of their afflictions.
20 २० वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड्ढे में वे पड़े हैं, उससे निकालता है।
He sendeth his word and healeth them, and delivereth them from their graves.
21 २१ लोग यहोवा की करुणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
They [therefore] shall give thanks unto the Lord for his kindness, and [proclaim] his wonders to the children of men!
22 २२ और वे धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ, और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें।
They shall also sacrifice the sacrifices of thanksgiving, and relate his deeds with joyful song.—
23 २३ जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्यापार करते हैं;
They who go down to the sea in ships, who do business on great waters; —
24 २४ वे यहोवा के कामों को, और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहरे समुद्र में करता है, देखते हैं।
These have seen the works of the Lord, and his wonders on the deep.
25 २५ क्योंकि वह आज्ञा देता है, तब प्रचण्ड वायु उठकर तरंगों को उठाती है।
For he spoke, and he raised the stormy wind, which lifteth up its waves.
26 २६ वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता;
They would mount up to heaven, they would go down to the depths: their soul was melted because of their danger.
27 २७ वे चक्कर खाते, और मतवालों की भाँति लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है।
They would reel to and fro, and stagger like a drunken man, and all their wisdom was exhausted.
28 २८ तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है।
And they cried unto the Lord when they were in distress, and he brought them out of their afflictions.
29 २९ वह आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं।
He calmed the storm into a whisper, and stilled were the waves of the sea.
30 ३० तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है।
And they were rejoiced because they were silent: and then he guided them unto their desired haven.
31 ३१ लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें।
They [therefore] shall give thanks unto the Lord for his kindness, and [proclaim] his wonders to the children of men!
32 ३२ और सभा में उसको सराहें, और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें।
And they must exalt him in the congregation of the people, and in the assembly of the elders must they praise him.—
33 ३३ वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है।
He changeth rivers into a wilderness, and water-springs into parched ground;
34 ३४ वह फलवन्त भूमि को बंजर बनाता है, यह वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है।
A fruitful land into a salty waste, for the wickedness of those that dwell therein.
35 ३५ वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है।
He changeth the wilderness into a pool of water, and desert land into water-springs.
36 ३६ और वहाँ वह भूखों को बसाता है, कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें;
And there he causeth to dwell the hungry, that they may found an inhabited city;
37 ३७ और खेती करें, और दाख की बारियाँ लगाएँ, और भाँति-भाँति के फल उपजा लें।
And they sow fields, and plant vineyards, that they may yield the fruits of the [annual] product.
38 ३८ और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता।
He also blesseth them, and they multiply greatly, and he suffereth not their cattle to diminish.
39 ३९ फिर विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं।
They were also diminished and bowed low through oppression, misfortune, and sorrow:
40 ४० और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है;
He [then] poureth contempt upon princes, and causeth them to wander in a pathless wilderness.
41 ४१ वह दरिद्रों को दुःख से छुड़ाकर ऊँचे पर रखता है, और उनको भेड़ों के झुण्ड के समान परिवार देता है।
And he exalteth the needy from misery, and maketh [his] families like flocks.
42 ४२ सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपने मुँह बन्द करते हैं।
The righteous shall see it, and rejoice; but all wickedness shall stop her mouth.
43 ४३ जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; और यहोवा की करुणा के कामों पर ध्यान करेगा।
Whoever is wise, let him observe these things, and let [all] understand the kindness of the Lord.