< भजन संहिता 105 >
1 १ यहोवा का धन्यवाद करो, उससे प्रार्थना करो, देश-देश के लोगों में उसके कामों का प्रचार करो!
[Vergl. 1. Chron. 16,8-22] N Preiset [O. Danket] Jehova, rufet an seinen Namen, machet kund unter den Völkern seine Taten!
2 २ उसके लिये गीत गाओ, उसके लिये भजन गाओ, उसके सब आश्चर्यकर्मों का वर्णन करो!
Singet ihm, singet ihm Psalmen; sinnet über alle [O. redet von allen] seine Wunderwerke!
3 ३ उसके पवित्र नाम की बड़ाई करो; यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो!
Rühmet euch seines heiligen Namens! es freue sich das Herz derer, die Jehova suchen!
4 ४ यहोवा और उसकी सामर्थ्य को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो!
Trachtet nach Jehova und seiner Stärke, suchet sein Angesicht beständig!
5 ५ उसके किए हुए आश्चर्यकर्मों को स्मरण करो, उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो!
Gedenket seiner Wunderwerke, die er getan hat, seiner Wunderzeichen und der Gerichte [O. Urteile, Rechte] seines Mundes!
6 ६ हे उसके दास अब्राहम के वंश, हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो!
Du Same Abrahams, seines Knechtes, [O. sein Knecht] ihr Söhne Jakobs, seine Auserwählten!
7 ७ वही हमारा परमेश्वर यहोवा है; पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं।
Er, Jehova, ist unser Gott; seine Gerichte sind auf der ganzen Erde.
8 ८ वह अपनी वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, यह वही वचन है जो उसने हजार पीढ़ियों के लिये ठहराया है;
Er gedenkt ewiglich seines Bundes, des Wortes, das er geboten hat auf tausend Geschlechter hin,
9 ९ वही वाचा जो उसने अब्राहम के साथ बाँधी, और उसके विषय में उसने इसहाक से शपथ खाई,
Den er gemacht hat mit Abraham, und seines Eides, den er Isaak geschworen hat. [W. seines Eides an Isaak]
10 १० और उसी को उसने याकूब के लिये विधि करके, और इस्राएल के लिये यह कहकर सदा की वाचा करके दृढ़ किया,
Und er stellte ihn Jakob zur Satzung, Israel zum ewigen Bunde,
11 ११ “मैं कनान देश को तुझी को दूँगा, वह बाँट में तुम्हारा निज भाग होगा।”
Indem er sprach: Dir will ich das Land Kanaan geben als Schnur eures Erbteils;
12 १२ उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन् बहुत ही थोड़े, और उस देश में परदेशी थे।
Als sie ein zählbares Häuflein [Eig. eine zählbare Mannschaft] waren, gar wenige und Fremdlinge darin;
13 १३ वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे;
Und als sie wanderten von Nation zu Nation, von einem Reiche zu einem anderen Volke.
14 १४ परन्तु उसने किसी मनुष्य को उन पर अत्याचार करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था,
Er ließ keinem Menschen zu, sie zu bedrücken, und ihretwegen strafte er Könige:
15 १५ “मेरे अभिषिक्तों को मत छूओ, और न मेरे नबियों की हानि करो!”
"Tastet meine Gesalbten nicht an, und meinen Propheten tut nichts Übles!"
16 १६ फिर उसने उस देश में अकाल भेजा, और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया।
Und er rief eine Hungersnot über das Land herbei; jede Stütze des Brotes zerbrach er.
17 १७ उसने यूसुफ नामक एक पुरुष को उनसे पहले भेजा था, जो दास होने के लिये बेचा गया था।
Er sandte einen Mann vor ihnen her, Joseph wurde zum Knechte verkauft.
18 १८ लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियाँ डालकर उसे दुःख दिया; वह लोहे की साँकलों से जकड़ा गया;
Man preßte seine Füße in den Stock, [Eig. in das Fußeisen] er [W. seine Seele] kam in das Eisen.
19 १९ जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा।
Bis zur Zeit, da sein Wort eintraf; das Wort Jehovas läuterte ihn. [O. ihn geläutert hatte]
20 २० तब राजा ने दूत भेजकर उसे निकलवा लिया, और देश-देश के लोगों के स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए;
Der König sandte hin und ließ ihn los, der Herrscher über Völker, und befreite ihn;
21 २१ उसने उसको अपने भवन का प्रधान और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया,
Er setzte ihn zum Herrn über sein Haus, und zum Herrscher über all sein Besitztum,
22 २२ कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करे और पुरनियों को ज्ञान सिखाए।
Um seine Fürsten zu fesseln nach seiner Lust, und daß er seine Ältesten Weisheit lehre.
23 २३ फिर इस्राएल मिस्र में आया; और याकूब हाम के देश में रहा।
Und Israel kam nach Ägypten, und Jakob hielt sich auf im Lande Hams.
24 २४ तब उसने अपनी प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके शत्रुओं से अधिक बलवन्त किया।
Und er machte sein Volk sehr fruchtbar, und machte es stärker [O. zahlreicher] als seine Bedränger.
25 २५ उसने मिस्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासों से छल करने लगे।
Er wandelte ihr Herz, sein Volk zu hassen, Arglist zu üben an seinen Knechten.
26 २६ उसने अपने दास मूसा को, और अपने चुने हुए हारून को भेजा।
Er sandte Mose, seinen Knecht, Aaron, den er auserwählt hatte.
27 २७ उन्होंने मिस्रियों के बीच उसकी ओर से भाँति-भाँति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए।
Sie taten unter ihnen seine Zeichen, und Wunder im Lande Hams.
28 २८ उसने अंधकार कर दिया, और अंधियारा हो गया; और उन्होंने उसकी बातों को न माना।
Er sandte Finsternis und machte finster; und sie waren nicht widerspenstig gegen seine Worte.
29 २९ उसने मिस्रियों के जल को लहू कर डाला, और मछलियों को मार डाला।
Er verwandelte ihre Wasser in Blut, und ließ sterben ihre Fische.
30 ३० मेंढ़क उनकी भूमि में वरन् उनके राजा की कोठरियों में भी भर गए।
Es wimmelte ihr Land von Fröschen, in den Gemächern ihrer Könige.
31 ३१ उसने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियाँ आ गईं।
Er sprach, und es kamen Hundsfliegen, Stechmücken in alle ihre Grenzen.
32 ३२ उसने उनके लिये जलवृष्टि के बदले ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई।
Er gab ihnen Hagel als Regen, flammendes Feuer in ihrem Lande;
33 ३३ और उसने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को वरन् उनके देश के सब पेड़ों को तोड़ डाला।
Und er schlug ihre Weinstöcke und Feigenbäume, und zerbrach die Bäume ihres Landes. [Eig. ihrer Grenzen]
34 ३४ उसने आज्ञा दी तब अनगिनत टिड्डियाँ, और कीड़े आए,
Er sprach, und es kamen Heuschrecken und Grillen [Eig. Abfresser; eine Heuschreckenart] ohne Zahl;
35 ३५ और उन्होंने उनके देश के सब अन्न आदि को खा डाला; और उनकी भूमि के सब फलों को चट कर गए।
Und sie fraßen alles Kraut in ihrem Lande und fraßen die Frucht ihres Bodens.
36 ३६ उसने उनके देश के सब पहिलौठों को, उनके पौरूष के सब पहले फल को नाश किया।
Und er schlug alle Erstgeburt in ihrem Lande, die Erstlinge all ihrer Kraft.
37 ३७ तब वह इस्राएल को सोना चाँदी दिलाकर निकाल लाया, और उनमें से कोई निर्बल न था।
Und er führte sie heraus mit Silber und Gold, und kein Strauchelnder war in seinen Stämmen.
38 ३८ उनके जाने से मिस्री आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उनमें समा गया था।
Froh war Ägypten, daß [O. als] sie auszogen; denn ihr Schrecken war auf sie gefallen.
39 ३९ उसने छाया के लिये बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिये आग प्रगट की।
Er breitete eine Wolke aus zur Decke, und ein Feuer, die Nacht zu erleuchten.
40 ४० उन्होंने माँगा तब उसने बटेरें पहुँचाई, और उनको स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया।
Sie forderten, und er ließ Wachteln kommen; und mit Himmelsbrot sättigte er sie.
41 ४१ उसने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी।
Er öffnete den Felsen, und es flossen Wasser heraus; sie liefen in den dürren Örtern wie ein Strom.
42 ४२ क्योंकि उसने अपने पवित्र वचन और अपने दास अब्राहम को स्मरण किया।
Denn er gedachte seines heiligen Wortes, Abrahams, seines Knechtes;
43 ४३ वह अपनी प्रजा को हर्षित करके और अपने चुने हुओं से जयजयकार कराके निकाल लाया।
Und er führte sein Volk heraus mit Freuden, mit Jubel seine Auserwählten.
44 ४४ और उनको जाति-जाति के देश दिए; और वे अन्य लोगों के श्रम के फल के अधिकारी किए गए,
Und er gab ihnen die Länder der Nationen, und die Mühe [d. h. das mühsam Errungene] der Völkerschaften nahmen sie in Besitz;
45 ४५ कि वे उसकी विधियों को मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। यहोवा की स्तुति करो!
Damit sie seine Satzungen beobachteten und seine Gesetze bewahrten. Lobet Jehova! [Hallelujah!]