< भजन संहिता 104 >

1 हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू वैभव और ऐश्वर्य का वस्त्र पहने हुए है,
Bendice, alma mía, a Yavé. ¡Oh Yavé, ʼElohim mío, cuánto te has engrandecido! Estás cubierto de esplendor y majestad.
2 तू उजियाले को चादर के समान ओढ़े रहता है, और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है,
Te cubres como con un manto de luz. Extiendes el cielo como una cortina.
3 तू अपनी अटारियों की कड़ियाँ जल में धरता है, और मेघों को अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखों पर चलता है,
Él coloca sobre las aguas las vigas de sus altas moradas. Él convierte las nubes en su carroza. Él anda sobre las alas del viento.
4 तू पवनों को अपने दूत, और धधकती आग को अपने सेवक बनाता है।
Él designa los vientos como sus mensajeros, Y las llamas de fuego, como sus ministros.
5 तूने पृथ्वी को उसकी नींव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए।
Él estableció la tierra sobre sus cimientos Para que no sea sacudida.
6 तूने उसको गहरे सागर से ढाँप दिया है जैसे वस्त्र से; जल पहाड़ों के ऊपर ठहर गया।
Le colocaste como una ropa el abismo. Las aguas estaban sobre las montañas.
7 तेरी घुड़की से वह भाग गया; तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया।
A tu reprensión huyeron, Se precipitaron al estruendo de tu trueno.
8 वह पहाड़ों पर चढ़ गया, और तराइयों के मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तूने उसके लिये तैयार किया था।
Subieron las montañas, Bajaron los valles al lugar que estableciste para ellos.
9 तूने एक सीमा ठहराई जिसको वह नहीं लाँघ सकता है, और न लौटकर स्थल को ढाँप सकता है।
Les fijaste un límite que no traspasarán, De manera que no volverán a cubrir la tierra.
10 १० तू तराइयों में सोतों को बहाता है; वे पहाड़ों के बीच से बहते हैं,
Él envía manantiales por los valles. Ellos fluyen entre las montañas.
11 ११ उनसे मैदान के सब जीव-जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपनी प्यास बुझा लेते हैं।
Dan de beber a todas las bestias del campo. Mitigan su sed los asnos monteses.
12 १२ उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियों के बीच में से बोलते हैं।
Junto a ellos habitan las aves del cielo. Elevan voces entre las ramas.
13 १३ तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है, तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है।
Él riega las montañas desde sus altas cámaras. Con el fruto de las obras de Él está saciada la tierra.
14 १४ तू पशुओं के लिये घास, और मनुष्यों के काम के लिये अन्न आदि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन-वस्तुएँ उत्पन्न करता है
Él desarrolla el pasto para el ganado, Y la vegetación para el servicio del hombre De tal modo que saque alimento de la tierra,
15 १५ और दाखमधु जिससे मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिससे उसका मुख चमकता है, और अन्न जिससे वह सम्भल जाता है।
Y vino que alegra el corazón del hombre, El aceite para que brille su semblante Y el pan que sustenta la vida del hombre.
16 १६ यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं।
Los árboles de Yavé beben su savia, Los cedros del Líbano que Él plantó,
17 १७ उनमें चिड़ियाँ अपने घोंसले बनाती हैं; सारस का बसेरा सनोवर के वृक्षों में होता है।
Donde las aves construyen sus nidos, La cigüeña, cuya casa está en los cipreses,
18 १८ ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिये हैं; और चट्टानें शापानों के शरणस्थान हैं।
Las altas montañas para las cabras monteses, Las peñas, madrigueras de los conejos.
19 १९ उसने नियत समयों के लिये चन्द्रमा को बनाया है; सूर्य अपने अस्त होने का समय जानता है।
Él hizo la luna para las estaciones. El sol conoce el punto de su ocaso.
20 २० तू अंधकार करता है, तब रात हो जाती है; जिसमें वन के सब जीव-जन्तु घूमते-फिरते हैं।
Pones la oscuridad y es de noche. En ella corretean todos los animales del bosque.
21 २१ जवान सिंह अहेर के लिये गर्जते हैं, और परमेश्वर से अपना आहार माँगते हैं।
Los leoncillos rugen tras la presa Y buscan de ʼEL su comida.
22 २२ सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपनी माँदों में विश्राम करते हैं।
Al salir el sol se retiran Y se echan en sus guaridas.
23 २३ तब मनुष्य अपने काम के लिये और संध्या तक परिश्रम करने के लिये निकलता है।
Sale el hombre a su trabajo, A su labor hasta el anochecer.
24 २४ हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं! इन सब वस्तुओं को तूने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।
¡Cuán innumerables son tus obras, oh Yavé! Hiciste todas ellas con sabiduría. La tierra está llena de tus posesiones.
25 २५ इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उसमें अनगिनत जलचर जीव-जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं।
Ahí está el grande y ancho mar, Donde hay enjambre de incontables animales, Tanto pequeños como grandes.
26 २६ उसमें जहाज भी आते-जाते हैं, और लिव्यातान भी जिसे तूने वहाँ खेलने के लिये बनाया है।
Allí navegan los barcos, [Y el ]cocodrilo que formaste para que juguetee en él.
27 २७ इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे।
Todos ellos esperan en Ti Para que les des su comida en su tiempo.
28 २८ तू उन्हें देता है, वे चुन लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थों से तृप्त होते हैं।
Les das, ellos recogen. Abres tu mano, Y se sacian con lo bueno.
29 २९ तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी साँस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।
Ocultas tu rostro Y ellos se desmayan. Les retiras su aliento, Y ellos expiran y vuelven a su polvo.
30 ३० फिर तू अपनी ओर से साँस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है।
Envías tu aliento, Son creados, Y renuevas la superficie de la tierra.
31 ३१ यहोवा की महिमा सदाकाल बनी रहे, यहोवा अपने कामों से आनन्दित होवे!
¡Sea la gloria de Yavé para siempre! ¡Que se alegre Yavé en sus obras!
32 ३२ उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी काँप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ों से धुआँ निकलता है।
Él mira a la tierra, Y ella tiembla, Él toca las montañas, Y ellas humean.
33 ३३ मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूँगा; जब तक मैं बना रहूँगा तब तक अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूँगा।
A Yavé cantaré en mi vida, Mientras tenga vida cantaré salmos a mi ʼElohim.
34 ३४ मेरे सोच-विचार उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो यहोवा के कारण आनन्दित रहूँगा।
Sea agradable a Él mi meditación. Yo me regocijaré en Yavé.
35 ३५ पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएँ, और दुष्ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! यहोवा की स्तुति करो!
Sean exterminados de la tierra los pecadores Y los perversos dejen de ser. ¡Bendice, alma mía, a Yavé! ¡Alaben a YA!

< भजन संहिता 104 >