< नीतिवचन 27 >
1 १ कल के दिन के विषय में डींग मत मार, क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर में क्या होगा।
Rühme dich nicht des morgenden Tags, denn du weißt nicht, was ein Tag gebären mag.
2 २ तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना; दूसरा तुझे सराहे तो सराहे, परन्तु तू अपनी सराहना न करना।
Es rühme dich ein Anderer und nicht dein eigener Mund, ein Fremder, aber nicht deine eigenen Lippen.
3 ३ पत्थर तो भारी है और रेत में बोझ है, परन्तु मूर्ख का क्रोध, उन दोनों से भी भारी है।
Schwere mag ein Stein haben und Gewicht der Sand, aber des Narren Unmut ist schwerer als beide.
4 ४ क्रोध की क्रूरता और प्रकोप की बाढ़, परन्तु ईर्ष्या के सामने कौन ठहर सकता है?
Grimmig mag die Wut sein und der Zorn überfluten - aber wer kann vor der Eifersucht bestehen?
5 ५ खुली हुई डाँट गुप्त प्रेम से उत्तम है।
Besser unverhüllte Rüge, als geheim gehaltene Liebe.
6 ६ जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं परन्तु बैरी अधिक चुम्बन करता है।
Treugemeint sind Wunden von der Hand des Liebenden, aber abscheulich die Küsse des Hassers.
7 ७ सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएँ भी मीठी जान पड़ती हैं।
Ein Gesättigter tritt Honigseim mit Füßen, aber ein Hungriger findet alles Bittere süß.
8 ८ स्थान छोड़कर घूमनेवाला मनुष्य उस चिड़िया के समान है, जो घोंसला छोड़कर उड़ती फिरती है।
Wie ein Vogel, der von seinem Neste geflohen ist, also ein Mann, der flüchtig ward aus seiner Heimat.
9 ९ जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है।
Salböl und Räucherwerk erfreuen das Herz, aber süßer ist einem der Freund als duftende Hölzer.
10 १० जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे न छोड़ना; और अपनी विपत्ति के दिन, अपने भाई के घर न जाना। प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है।
Deinen Freund und deines Vaters Freund verlaß nicht und in deines Bruders Haus geh nicht an deinem Unglückstage. Besser ein Nachbar in der Nähe als ein Bruder in der Ferne.
11 ११ हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा।
Sei weise, mein Sohn, und erfreue mein Herz, damit ich dem, der mich schmäht, Rede stehen kann.
12 १२ बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आती देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते हैं।
Der Kluge sieht das Unglück und verbirgt sich, die Einfältigen aber gehen weiter und müssen's büßen.
13 १३ जो पराए का उत्तरदायी हो उसका कपड़ा, और जो अनजान का उत्तरदायी हो उससे बन्धक की वस्तु ले ले।
Nimm ihm sein Kleid, denn er hat für einen Fremden gebürgt, und um einer Auswärtigen willen pfände ihn!
14 १४ जो भोर को उठकर अपने पड़ोसी को ऊँचे शब्द से आशीर्वाद देता है, उसके लिये यह श्राप गिना जाता है।
Wer seinen Nächsten am frühen Morgen mit lautem Segenswunsche grüßt, dem wird es als Fluch angerechnet.
15 १५ झड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, और झगड़ालू पत्नी दोनों एक से हैं;
Eine rinnende Dachtraufe zur Zeit des Regenwetters und ein zänkisches Weib, die gleichen sich:
16 १६ जो उसको रोक रखे, वह वायु को भी रोक रखेगा और दाहिने हाथ से वह तेल पकड़ेगा।
Wer sie aufhält, der hält den Wind auf und will Öl mit seiner Rechten fassen.
17 १७ जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।
Eisen schärft Eisen; also schärft ein Mann die Schneide des andern.
18 १८ जो अंजीर के पेड़ की रक्षा करता है वह उसका फल खाता है, इसी रीति से जो अपने स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है।
Wer den Feigenbaum hütet, wird seine Frucht genießen, und wer seines Herrn wartet, wird geehrt werden.
19 १९ जैसे जल में मुख की परछाई मुख को प्रगट करती है, वैसे ही मनुष्य का मन मनुष्य को प्रगट करती है।
Wie im Wasser das Antlitz dem Antlitz entspricht, ebenso ist eines Menschen Herz gegen den andern.
20 २० जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होती। (Sheol )
Unterwelt und Abgrund bekommen nie genug; so sind auch der Menschen Augen unersättlich. (Sheol )
21 २१ जैसे चाँदी के लिये कुठाली और सोने के लिये भट्ठी हैं, वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है।
Der Tiegel ist für das Silber und der Schmelzofen für das Gold, und ein Mann wird beurteilt nach dem, was man von ihm rühmt.
22 २२ चाहे तू मूर्ख को अनाज के बीच ओखली में डालकर मूसल से कूटे, तो भी उसकी मूर्खता नहीं जाने की।
Wenn du den Narren im Mörser zerstießest mit dem Stämpfel wie Grütze, so ließe doch seine Narrheit nicht von ihm.
23 २३ अपनी भेड़-बकरियों की दशा भली भाँति मन लगाकर जान ले, और अपने सब पशुओं के झुण्डों की देख-भाल उचित रीति से कर;
Habe wohl acht auf das Aussehen deiner Schafe, richte deine Aufmerksamkeit auf die Herden.
24 २४ क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती; और क्या राजमुकुट पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहता है?
Denn Wohlstand währt nicht für immer, noch eine Krone von Geschlecht zu Geschlecht.
25 २५ कटी हुई घास उठा ली जाती और नई घास दिखाई देती है और पहाड़ों की हरियाली काटकर इकट्ठी की जाती है;
Ist das Gras geschwunden und frisches Grün erschienen, und sind der Berge Kräuter eingesammelt,
26 २६ तब भेड़ों के बच्चे तेरे वस्त्र के लिये होंगे, और बकरों के द्वारा खेत का मूल्य दिया जाएगा;
dann hast du Lämmer für deine Kleidung und Böcke als Kaufpreis für einen Acker
27 २७ और बकरियों का इतना दूध होगा कि तू अपने घराने समेत पेट भरकर पिया करेगा, और तेरी दासियों का भी जीवन निर्वाह होता रहेगा।
und genug Ziegenmilch zu deiner Nahrung, zur Nahrung für dein Haus, und Lebensunterhalt für deine Mägde.