< नीतिवचन 25 >

1 सुलैमान के नीतिवचन ये भी हैं; जिन्हें यहूदा के राजा हिजकिय्याह के जनों ने नकल की थी।
هَذِهِ أَيْضاً أَمْثَالُ سُلَيْمَانَ الَّتِي نَسَخَهَا رِجَالُ حَزَقِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا:١
2 परमेश्वर की महिमा, गुप्त रखने में है परन्तु राजाओं की महिमा गुप्त बात के पता लगाने से होती है।
مِنْ مَظَاهِرِ مَجْدِ اللهِ كِتْمَانُ أَسْرَارِهِ، أَمَّا مَظَاهِرُ مَجْدِ الْمَلِكِ فَالْكَشْفُ عَنْ بَوَاطِنِ الأُمُورِ.٢
3 स्वर्ग की ऊँचाई और पृथ्वी की गहराई और राजाओं का मन, इन तीनों का अन्त नहीं मिलता।
كَمَا أَنَّ السَّمَاوَاتِ لِلْعُلُوِّ، وَالأَرْضَ لِلْعُمْقِ، فَإِنَّ قَلْبَ الْمَلِكِ لَا يُسْبَرُ غَوْرُهُ.٣
4 चाँदी में से मैल दूर करने पर वह सुनार के लिये काम की हो जाती है।
نَقِّ الْفِضَّةَ مِنْ شَوَائِبِهَا، فَيَخْلُصَ لِلصَّائِغِ مَا يَصْنَعُ مِنْهُ إِنَاءً.٤
5 वैसे ही, राजा के सामने से दुष्ट को निकाल देने पर उसकी गद्दी धर्म के कारण स्थिर होगी।
أَبْعِدِ الشِّرِّيرَ مِنْ حَضْرَةِ الْمَلِكِ، يَتَثَبَّتُ عَرْشُهُ بِالْعَدْلِ.٥
6 राजा के सामने अपनी बड़ाई न करना और बड़े लोगों के स्थान में खड़ा न होना;
لَا تَتَبَاهَ أَمَامَ الْمَلِكِ، وَلا تَقِفْ فِي مَوْضِعِ الْعُظَمَاءِ،٦
7 उनके लिए तुझ से यह कहना बेहतर है कि, “इधर मेरे पास आकर बैठ” ताकि प्रधानों के सम्मुख तुझे अपमानित न होना पड़े.
لأَنَّهُ خَيْرٌ أَنْ يُقَالَ لَكَ: ارْتَفِعْ إِلَى هُنَا مِنْ أَنْ يُحَطَّ مَقَامُكَ فِي حَضْرَةِ الرَّئِيسِ، الَّذِي شَاهَدَتْهُ عَيْنَاكَ.٧
8 जो कुछ तूने देखा है, वह जल्दी से अदालत में न ला, अन्त में जब तेरा पड़ोसी तुझे शर्मिंदा करेगा तो तू क्या करेगा?
لَا تَتَسَرَّعْ بِالذَّهَابِ إِلَى سَاحَةِ الْقَضَاءِ، إِذْ مَاذَا تَفْعَلُ فِي النِّهَايَةِ إِنْ أَخْزَاكَ قَرِيبُكَ؟٨
9 अपने पड़ोसी के साथ वाद-विवाद एकान्त में करना और पराए का भेद न खोलना;
قُمْ بِمُنَاقَشَةِ دَعْوَاكَ مَعَ قَرِيبِكَ، وَلا تُفْشِ سِرَّ غَيْرِكَ،٩
10 १० ऐसा न हो कि सुननेवाला तेरी भी निन्दा करे, और तेरी निन्दा बनी रहे।
لِئَلّا يُعَيِّرَكَ السَّامِعُ، وَلا تُمْحَى فَضِيحَتُكَ.١٠
11 ११ जैसे चाँदी की टोकरियों में सोने के सेब हों, वैसे ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।
كَلِمَةٌ تُقَالُ فِي أَوَانِهَا مِثْلُ تُفَّاحٍ مِنْ ذَهَبٍ فِي مَصُوغٍ مِنْ فِضَّةٍ.١١
12 १२ जैसे सोने का नत्थ और कुन्दन का जेवर अच्छा लगता है, वैसे ही माननेवाले के कान में बुद्धिमान की डाँट भी अच्छी लगती है।
الْمُوَبِّخُ الْحَكِيمُ لأُذُنٍ صَاغِيَةٍ مِثْلُ قُرْطٍ مِنْ ذَهَبٍ وَحَلِيٍّ مِنْ إِبْرِيزٍ.١٢
13 १३ जैसे कटनी के समय बर्फ की ठण्ड से, वैसा ही विश्वासयोग्य दूत से भी, भेजनेवालों का जी ठंडा होता है।
الرَّسُولُ الأَمِينُ لِمُرْسِلِيهِ مِثْلُ بُرُودَةِ الثَّلْجِ فِي يَوْمِ الْحَصَادِ، لأَنَّهُ يُنْعِشُ نُفُوسَ سَادَتِهِ.١٣
14 १४ जैसे बादल और पवन बिना वृष्टि निर्लाभ होते हैं, वैसे ही झूठ-मूठ दान देनेवाले का बड़ाई मारना होता है।
الْمُتَفَاخِرُ بِإِغْدَاقِ هَدَايَا كَاذِبَةٍ هُوَ كَالسَّحَابِ وَالرِّيحِ بِلا مَطَرٍ.١٤
15 १५ धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है, और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है।
بِالصَّبْرِ يَتِمُّ إِقْنَاعُ الْحَاكِمِ، وَاللِّسَانُ اللَّيِّنُ يَكْسِرُ الْعِظَامَ.١٥
16 १६ क्या तूने मधु पाया? तो जितना तेरे लिये ठीक हो उतना ही खाना, ऐसा न हो कि अधिक खाकर उसे उगल दे।
إِنْ عَثَرْتَ عَلَى عَسَلٍ فَكُلْ مِنْهُ مَا يَكْفِيكَ، لِئَلّا تَتَّخِمَ فَتَتَقَيَّأَهُ،١٦
17 १७ अपने पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपने पाँव को रोक, ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे।
أَقْلِلْ مِنْ زِيَارَةِ قَرِيبِكَ لِئَلّا يَمَلَّ مِنْكَ وَيَمْقُتَكَ.١٧
18 १८ जो किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी देता है, वह मानो हथौड़ा और तलवार और पैना तीर है।
شَاهِدُ الزُّورِ ضِدَّ قَرِيبِهِ هُوَ مِثْلُ مِطْرَقَةٍ وَسَيْفٍ وَسَهْمٍ مَسْنُونٍ.١٨
19 १९ विपत्ति के समय विश्वासघाती का भरोसा, टूटे हुए दाँत या उखड़े पाँव के समान है।
الاعْتِمَادُ عَلَى الْغَادِرِ فِي وَقْتِ الضِّيقِ مِثْلُ سِنٍّ مَهْتُومَةٍ أَوْ رِجْلٍ مُخَلَّعَةٍ.١٩
20 २० जैसा जाड़े के दिनों में किसी का वस्त्र उतारना या सज्जी पर सिरका डालना होता है, वैसा ही उदास मनवाले के सामने गीत गाना होता है।
مَنْ يَشْدُو بِالأَغَانِي لِقَلْبٍ كَئِيبٍ يَكُونُ كَنَزْعِ الثَّوْبِ فِي يَوْمٍ قَارِسِ الْبُرُودَةِ، أَوْ كَخَلٍّ عَلَى نَطْرُونٍ.٢٠
21 २१ यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना;
إِنْ جَاعَ عَدُوُّكَ فَأَطْعِمْهُ، وَإِنْ عَطِشَ فَاسْقِهِ،٢١
22 २२ क्योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा, और यहोवा तुझे इसका फल देगा।
فَإِنْ فَعَلْتَ هَذَا تَجْمَعْ جَمْراً عَلَى رَأْسِهِ، وَالرَّبُّ يُكَافِئُكَ.٢٢
23 २३ जैसे उत्तरी वायु वर्षा को लाती है, वैसे ही चुगली करने से मुख पर क्रोध छा जाता है।
رِيحُ الشِّمَالِ تَجْلِبُ الْمَطَرَ، وَاللِّسَانُ النَّمَّامُ يَسْتَأْثِرُ بِالنَّظَرَاتِ الْغَاضِبَةِ.٢٣
24 २४ लम्बे चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।
الإِقَامَةُ فِي رُكْنِ سَطْحٍ خَيْرٌ مِنْ مُشَاطَرَةِ بَيْتٍ مَعَ زَوْجَةٍ نَكِدَةٍ.٢٤
25 २५ दूर देश से शुभ सन्देश, प्यासे के लिए ठंडे पानी के समान है।
الْخَبَرُ الطَّيِّبُ مِنْ أَرْضٍ بَعِيدَةٍ مِثْلُ مَاءٍ بَارِدٍ لِلنَّفْسِ الظَّامِئَةِ.٢٥
26 २६ जो धर्मी दुष्ट के कहने में आता है, वह खराब जल-स्रोत और बिगड़े हुए कुण्ड के समान है।
الصِّدِّيقُ الْمُتَخَاذِلُ أَمَامَ الشِّرِّيرِ هُوَ عَيْنٌ عَكِرَةٌ وَيَنْبُوعٌ فَاسِدٌ.٢٦
27 २७ जैसे बहुत मधु खाना अच्छा नहीं, वैसे ही आत्मप्रशंसा करना भी अच्छा नहीं।
كَمَا أَنَّ الإِكْثَارَ مِنِ الْتِهَامِ الْعَسَلِ مُضِرٌّ، كَذَلِكَ الْتِمَاسُ الْمَجْدِ الذَّاتِيِّ مَدْعَاةٌ لِلْهَوَانِ.٢٧
28 २८ जिसकी आत्मा वश में नहीं वह ऐसे नगर के समान है जिसकी शहरपनाह घेराव करके तोड़ दी गई हो।
الرَّجُلُ الْمُفْتَقِرُ لِضَبْطِ النَّفْسِ مِثْلُ مَدِينَةٍ مُنْهَدِمَةٍ لَا سُورَ لَهَا.٢٨

< नीतिवचन 25 >