< नीतिवचन 23 >

1 जब तू किसी हाकिम के संग भोजन करने को बैठे, तब इस बात को मन लगाकर सोचना कि मेरे सामने कौन है?
जब तू हाकिम के साथ खाने बैठे, तो खू़ब ग़ौर कर, कि तेरे सामने कौन है?
2 और यदि तू अधिक खानेवाला हो, तो थोड़ा खाकर भूखा उठ जाना।
अगर तू खाऊ है, तो अपने गले पर छुरी रख दे।
3 उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा न करना, क्योंकि वह धोखे का भोजन है।
उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर, क्यूँकि वह दग़ा बाज़ी का खाना है।
4 धनी होने के लिये परिश्रम न करना; अपनी समझ का भरोसा छोड़ना।
मालदार होने के लिए परेशान न हो; अपनी इस 'अक़्लमन्दी से बाज़ आ।
5 जब तू अपनी दृष्टि धन पर लगाएगा, वह चला जाएगा, वह उकाब पक्षी के समान पंख लगाकर, निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाएगा।
क्या तू उस चीज़ पर आँख लगाएगा जो है ही नहीं? लेकिन लगा कर आसमान की तरफ़ उड़ जाती है?
6 जो डाह से देखता है, उसकी रोटी न खाना, और न उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा करना;
तू तंग चश्म की रोटी न खा, और उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर;
7 क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है, जो भोजन के कीमत की गणना करता है। वह तुझ से कहता तो है, खा और पी, परन्तु उसका मन तुझ से लगा नहीं है।
क्यूँकि जैसे उसके दिल के ख़याल हैं वह वैसा ही है। वह तुझ से कहता है खा और पी, लेकिन उसका दिल तेरी तरफ़ नहीं
8 जो कौर तूने खाया हो, उसे उगलना पड़ेगा, और तू अपनी मीठी बातों का फल खोएगा।
जो निवाला तूने खाया है तू उसे उगल देगा, और तेरी मीठी बातें बे मतलब होंगी
9 मूर्ख के सामने न बोलना, नहीं तो वह तेरे बुद्धि के वचनों को तुच्छ जानेगा।
अपनी बातें बेवक़ूफ़ को न सुना, क्यूँकि वह तेरे 'अक़्लमंदी के कलाम की ना क़द्री करेगा।
10 १० पुरानी सीमाओं को न बढ़ाना, और न अनाथों के खेत में घुसना;
पुरानी हदों को न सरका, और यतीमों के खेतों में दख़ल न कर,
11 ११ क्योंकि उनका छुड़ानेवाला सामर्थी है; उनका मुकद्दमा तेरे संग वही लड़ेगा।
क्यूँकि उनका रिहाई बख़्शने वाला ज़बरदस्त है; वह खुद ही तेरे ख़िलाफ़ उनकी वक़ालत करेगा।
12 १२ अपना हृदय शिक्षा की ओर, और अपने कान ज्ञान की बातों की ओर लगाना।
तरबियत पर दिल लगा, और 'इल्म की बातें सुन।
13 १३ लड़के की ताड़ना न छोड़ना; क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा।
लड़के से तादीब को दरेग़ न कर; अगर तू उसे छड़ी से मारेगा तो वह मर न जाएगा।
14 १४ तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा। (Sheol h7585)
तू उसे छड़ी से मारेगा, और उसकी जान को पाताल से बचाएगा। (Sheol h7585)
15 १५ हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो, तो मेरा ही मन आनन्दित होगा।
ऐ मेरे बेटे, अगर तू 'अक़्लमंद दिल है, तो मेरा दिल, हाँ मेरा दिल ख़ुश होगा।
16 १६ और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा।
और जब तेरे लबों से सच्ची बातें निकलेंगी, तो मेरा दिल शादमान होगा।
17 १७ तू पापियों के विषय मन में डाह न करना, दिन भर यहोवा का भय मानते रहना।
तेरा दिल गुनहगारों पर रश्क न करे, बल्कि तू दिन भर ख़ुदावन्द से डरता रह।
18 १८ क्योंकि अन्त में फल होगा, और तेरी आशा न टूटेगी।
क्यूँकि बदला यक़ीनी है, और तेरी आस नहीं टूटेगी।
19 १९ हे मेरे पुत्र, तू सुनकर बुद्धिमान हो, और अपना मन सुमार्ग में सीधा चला।
ऐ मेरे बेटे, तू सुन और 'अक़्लमंद बन, और अपने दिल की रहबरी कर।
20 २० दाखमधु के पीनेवालों में न होना, न माँस के अधिक खानेवालों की संगति करना;
तू शराबियों में शामिल न हो, और न हरीस कबाबियों में,
21 २१ क्योंकि पियक्कड़ और पेटू दरिद्र हो जाएँगे, और उनका क्रोध उन्हें चिथड़े पहनाएगी।
क्यूँकि शराबी और खाऊ कंगाल हो जाएँगे और नींद उनको चीथड़े पहनाएगी।
22 २२ अपने जन्मानेवाले पिता की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।
अपने बाप का जिससे तू पैदा हुआ सुनने वाला हो, और अपनी माँ को उसके बुढ़ापे में हक़ीर न जान।
23 २३ सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं; और बुद्धि और शिक्षा और समझ को भी मोल लेना।
सच्चाई की मोल ले और उसे बेच न डाल; हिकमत और तरबियत और समझ को भी।
24 २४ धर्मी का पिता बहुत मगन होता है; और बुद्धिमान का जन्मानेवाला उसके कारण आनन्दित होता है।
सादिक़ का बाप निहायत ख़ुश होगा; और अक़्लमंद का बाप उससे शादमानी करेगा।
25 २५ तेरे कारण तेरे माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन हो।
अपने माँ बाप को ख़ुश कर, अपनी वालिदा को शादमान रख।
26 २६ हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चाल चलन पर लगी रहे।
ऐ मेरे बेटे, अपना दिल मुझ को दे, और मेरी राहों से तेरी आँखें ख़ुश हों।
27 २७ वेश्या गहरा गड्ढा ठहरती है; और पराई स्त्री सकेत कुएँ के समान है।
क्यूँकि फ़ाहिशा गहरी ख़न्दक़ है, और बेगाना 'औरत तंग गढ़ा है।
28 २८ वह डाकू के समान घात लगाती है, और बहुत से मनुष्यों को विश्वासघाती बना देती है।
वह राहज़न की तरह घात में लगी है, और बनी आदम में बदकारों का शुमार बढ़ाती है।
29 २९ कौन कहता है, हाय? कौन कहता है, हाय, हाय? कौन झगड़े-रगड़े में फँसता है? कौन बक-बक करता है? किसके अकारण घाव होते हैं? किसकी आँखें लाल हो जाती हैं?
कौन अफ़सोस करता है? कौन ग़मज़दा है? कौन झगड़ालू है? कौन शाकी है? कौन बे वजह घायल है? और किसकी आँखों में सुर्ख़ी है?
30 ३० उनकी जो दाखमधु देर तक पीते हैं, और जो मसाला मिला हुआ दाखमधु ढूँढ़ने को जाते हैं।
वही जो देर तक मयनोशी करते हैं; वही जो मिलाई हुई मय की तलाश में रहते हैं।
31 ३१ जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है, और जब वह धार के साथ उण्डेला जाता है, तब उसको न देखना।
जब मय लाल लाल हो, जब उसका बर'अक्स जाम पर पड़े, और जब वह रवानी के साथ नीचे उतरे, तो उस पर नज़र न कर।
32 ३२ क्योंकि अन्त में वह सर्प के समान डसता है, और करैत के समान काटता है।
क्यूँकि अन्जाम कार वह साँप की तरह काटती, और अज़दहे की तरह डस जाती है।
33 ३३ तू विचित्र वस्तुएँ देखेगा, और उलटी-सीधी बातें बकता रहेगा।
तेरी आँखें 'अजीब चीज़ें देखेंगी, और तेरे मुँह से उलटी सीधी बातें निकलेगी।
34 ३४ और तू समुद्र के बीच लेटनेवाले या मस्तूल के सिरे पर सोनेवाले के समान रहेगा।
बल्कि तू उसकी तरह होगा जो समन्दर के बीच में लेट जाए, या उसकी तरह जो मस्तूल के सिरे पर सो रहे।
35 ३५ तू कहेगा कि मैंने मार तो खाई, परन्तु दुःखित न हुआ; मैं पिट तो गया, परन्तु मुझे कुछ सुधि न थी। मैं होश में कब आऊँ? मैं तो फिर मदिरा ढूँढ़ूगा।
तू कहेगा उन्होंने तो मुझे मारा है, लेकिन मुझ को चोट नहीं लगी; उन्होंने मुझे पीटा है लेकिन मुझे मा'लूम भी नहीं हुआ। मैं कब बेदार हूँगा? मैं फिर उसका तालिब हूँगा।

< नीतिवचन 23 >