< नीतिवचन 15 >

1 कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध भड़क उठता है।
Gelinde Rede stillt den Grimm; verletzend Wort erregt den Zorn.
2 बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खों के मुँह से मूर्खता उबल आती है।
Des Weisen Zunge kleidet guten Sinn in schöne Form; der Mund des Toren spricht die nackte Torheit.
3 यहोवा की आँखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं।
An jedem Orte sieht des Herren Aug die Bösen und die Guten.
4 शान्ति देनेवाली बात जीवन-वृक्ष है, परन्तु उलट-फेर की बात से आत्मा दुःखित होती है।
Der Zunge Milde ist ein Lebensbaum; doch wenn darauf Verkehrtheit liegt, wirkt sie verstörend auf den Geist.
5 मूर्ख अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है, परन्तु जो डाँट को मानता, वह विवेकी हो जाता है।
Der Tor verschmäht die väterliche Zucht; wer auf die Rüge achtet, handelt klug.
6 धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के कमाई में दुःख रहता है।
Im Haus des Frommen findet Vorrat sich in Fülle; doch in des Frevlers Ernte liegt Zerrüttung.
7 बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता।
Der Weisen Lippen zeugen Wissen, doch nicht das Herz der Toren.
8 दुष्ट लोगों के बलिदान से यहोवा घृणा करता है, परन्तु वह सीधे लोगों की प्रार्थना से प्रसन्न होता है।
Der Frevler Opfer ist ein Greuel für den Herrn; doch das Gebet der Redlichen gefällt ihm wohl.
9 दुष्ट के चाल चलन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु जो धर्म का पीछा करता उससे वह प्रेम रखता है।
Der Weg der Frevler ist ein Greuel für den Herrn; das Streben nach der Tugend hat er gern.
10 १० जो मार्ग को छोड़ देता, उसको बड़ी ताड़ना मिलती है, और जो डाँट से बैर रखता, वह अवश्य मर जाता है।
Dem, der vom Pfade weicht, ist Rüge nicht willkommen; wer aber Mahnung haßt, muß sterben.
11 ११ जबकि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के सामने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्यों के मन भी। (Sheol h7585)
Ganz offen liegen Unterwelt und Abgrund vor dem Herrn; um wieviel mehr der Menschen Herzen! (Sheol h7585)
12 १२ ठट्ठा करनेवाला डाँटे जाने से प्रसन्न नहीं होता, और न वह बुद्धिमानों के पास जाता है।
Der Spötter liebt nicht, daß man ihn vermahne; er geht nicht zu den Weisen.
13 १३ मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।
Ein fröhlich Herz macht auch das Antlitz freundlich; bedrückt ist das Gemüt bei Herzenskummer.
14 १४ समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मूर्ख लोग मूर्खता से पेट भरते हैं।
Erkenntnis sucht des Klugen Herz; auf Torheit geht der Toren Miene aus.
15 १५ दुःखियारे के सब दिन दुःख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है।
Wohl sind des Armen Tage alle böse; doch ist er heiteren Gemüts, hat er beständig Festgelage.
16 १६ घबराहट के साथ बहुत रखे हुए धन से, यहोवा के भय के साथ थोड़ा ही धन उत्तम है,
Viel besser, wenig zu besitzen in der Furcht des Herrn, als reiche Schätze und dabei ein bös Gewissen.
17 १७ प्रेमवाले घर में सागपात का भोजन, बैरवाले घर में स्वादिष्ट माँस खाने से उत्तम है।
Viel besser ein Gericht Gemüse und dabei auch Liebe, als ein fettes Rind und Haß dabei.
18 १८ क्रोधी पुरुष झगड़ा मचाता है, परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमों को दबा देता है।
Ein hitziger Mann erregt den Zank; wer aber sanft ist, stillt den Hader.
19 १९ आलसी का मार्ग काँटों से रुन्धा हुआ होता है, परन्तु सीधे लोगों का मार्ग राजमार्ग ठहरता है।
Der Weg des Furchtsamen gleicht einer Dornenhecke; der Pfad des Aufrechten ist wohl gebahnt.
20 २० बुद्धिमान पुत्र से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख अपनी माता को तुच्छ जानता है।
Ein weiser Sohn versorgt den Vater reichlich; ein dummer Mensch vernachlässigt die Mutter.
21 २१ निर्बुद्धि को मूर्खता से आनन्द होता है, परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है।
Die Torheit bringt dem Unverständigen Gefahr; doch ebenen Weg geht der Vernünftige.
22 २२ बिना सम्मति की कल्पनाएँ निष्फल होती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से सफलता मिलती है।
Die Pläne schlagen fehl, wo die Beratung fehlt; sind aber der Berater viel, so kommen sie zustande.
23 २३ सज्जन उत्तर देने से आनन्दित होता है, और अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!
Ein jeder hört sich selber gern. Ein Wort zur rechten Zeit, wie selten!
24 २४ विवेकी के लिये जीवन का मार्ग ऊपर की ओर जाता है, इस रीति से वह अधोलोक में पड़ने से बच जाता है। (Sheol h7585)
Hier oben gibt es für den Klugen einen Lebensweg, damit er fern sich hält dem Abgrund drunten. (Sheol h7585)
25 २५ यहोवा अहंकारियों के घर को ढा देता है, परन्तु विधवा की सीमाओं को अटल रखता है।
Wegreißt der Herr der Stolzen Haus; der Witwe Eigentum läßt er bestehen.
26 २६ बुरी कल्पनाएँ यहोवा को घिनौनी लगती हैं, परन्तु शुद्ध जन के वचन मनभावने हैं।
Ein Greuel für den Herrn sind boshafte Gedanken; doch rein sind Worte, freundlich ausgesprochen.
27 २७ लालची अपने घराने को दुःख देता है, परन्तु घूस से घृणा करनेवाला जीवित रहता है।
Es läßt der Geizhals die Familien darben; wer auf Vermögen nicht versessen ist, ernährt sie wohl.
28 २८ धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूँ, परन्तु दुष्टों के मुँह से बुरी बातें उबल आती हैं।
Die Antwort überlegt des Frommen Herz; des Frevler Mund spricht unumwunden Bosheit.
29 २९ यहोवा दुष्टों से दूर रहता है, परन्तु धर्मियों की प्रार्थना सुनता है।
Den Gottlosen ist fern der Herr; doch das Gebet der Frommen achtet er.
30 ३० आँखों की चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं।
Ein freundlich Anblicken erfreut das Herz, und frohe Kunde labt den Leib.
31 ३१ जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है।
Ein Ohr, das auf die Mahnung hört, die Leben spendet, weilt gerne mitten unter Weisen.
32 ३२ जो शिक्षा को अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डाँट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है।
Wer Zucht verachtet, wirft sein Leben weg; doch wer auf Rüge hört, erkauft sich Leben.
33 ३३ यहोवा के भय मानने से बुद्धि की शिक्षा प्राप्त होती है, और महिमा से पहले नम्रता आती है।
Die Furcht des Herrn ist Grundlage der Weisheit, der Ehre geht voran die Demut.

< नीतिवचन 15 >