< नहेमायाह 9 >

1 फिर उसी महीने के चौबीसवें दिन को इस्राएली उपवास का टाट पहने और सिर पर धूल डाले हुए, इकट्ठे हो गए।
וּבְיוֹם֩ עֶשְׂרִ֨ים וְאַרְבָּעָ֜ה לַחֹ֣דֶשׁ הַזֶּ֗ה נֶאֶסְפ֤וּ בְנֵֽי־יִשְׂרָאֵל֙ בְּצ֣וֹם וּבְשַׂקִּ֔ים וַאֲדָמָ֖ה עֲלֵיהֶֽם׃
2 तब इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगों से अलग हो गए, और खड़े होकर, अपने-अपने पापों और अपने पुरखाओं के अधर्म के कामों को मान लिया।
וַיִּבָּֽדְלוּ֙ זֶ֣רַע יִשְׂרָאֵ֔ל מִכֹּ֖ל בְּנֵ֣י נֵכָ֑ר וַיַּעַמְד֗וּ וַיִּתְוַדּוּ֙ עַל־חַטֹּ֣אתֵיהֶ֔ם וַעֲוֹנ֖וֹת אֲבֹתֵיהֶֽם׃
3 तब उन्होंने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर दिन के एक पहर तक अपने परमेश्वर यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक पढ़ते, और एक और पहर अपने पापों को मानते, और अपने परमेश्वर यहोवा को दण्डवत् करते रहे।
וַיָּק֙וּמוּ֙ עַל־עָמְדָ֔ם וַֽיִּקְרְא֗וּ בְּסֵ֨פֶר תּוֹרַ֧ת יְהוָ֛ה אֱלֹהֵיהֶ֖ם רְבִעִ֣ית הַיּ֑וֹם וּרְבִעִית֙ מִתְוַדִּ֣ים וּמִֽשְׁתַּחֲוִ֔ים לַיהוָ֖ה אֱלֹהֵיהֶֽם׃ פ
4 और येशुअ, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी ने लेवियों की सीढ़ी पर खड़े होकर ऊँचे स्वर से अपने परमेश्वर यहोवा की दुहाई दी।
וַיָּ֜קָם עַֽל־מַֽעֲלֵ֣ה הַלְוִיִּ֗ם יֵשׁ֨וּעַ וּבָנִ֜י קַדְמִיאֵ֧ל שְׁבַנְיָ֛ה בֻּנִּ֥י שֵׁרֵבְיָ֖ה בָּנִ֣י כְנָ֑נִי וַֽיִּזְעֲקוּ֙ בְּק֣וֹל גָּד֔וֹל אֶל־יְהוָ֖ה אֱלֹהֵיהֶֽם׃
5 फिर येशुअ, कदमीएल, बानी, हशब्नयाह, शेरेब्याह, होदिय्याह, शबन्याह, और पतह्याह नामक लेवियों ने कहा, “खड़े हो, अपने परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो। तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से परे है।
וַיֹּאמְר֣וּ הַלְוִיִּ֡ם יֵשׁ֣וּעַ וְ֠קַדְמִיאֵל בָּנִ֨י חֲשַׁבְנְיָ֜ה שֵׁרֵֽבְיָ֤ה הֽוֹדִיָּה֙ שְׁבַנְיָ֣ה פְתַֽחְיָ֔ה ק֗וּמוּ בָּרֲכוּ֙ אֶת־יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֔ם מִן־הָעוֹלָ֖ם עַד־הָעוֹלָ֑ם וִיבָֽרְכוּ֙ שֵׁ֣ם כְּבוֹדֶ֔ךָ וּמְרוֹמַ֥ם עַל־כָּל־בְּרָכָ֖ה וּתְהִלָּֽה׃
6 “तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृथ्वी और जो कुछ उसमें है, और समुद्र और जो कुछ उसमें है, सभी को तू ही ने बनाया, और सभी की रक्षा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दण्डवत् करती हैं।
אַתָּה־ה֣וּא יְהוָה֮ לְבַדֶּךָ֒ אַתָּ֣ה עָשִׂ֡יתָ אֶֽת־הַשָּׁמַיִם֩ שְׁמֵ֨י הַשָּׁמַ֜יִם וְכָל־צְבָאָ֗ם הָאָ֜רֶץ וְכָל־אֲשֶׁ֤ר עָלֶ֙יהָ֙ הַיַּמִּים֙ וְכָל־אֲשֶׁ֣ר בָּהֶ֔ם וְאַתָּ֖ה מְחַיֶּ֣ה אֶת־כֻּלָּ֑ם וּצְבָ֥א הַשָּׁמַ֖יִם לְךָ֥ מִשְׁתַּחֲוִֽים׃
7 हे यहोवा! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राम को चुनकर कसदियों के ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम अब्राहम रखा;
אַתָּה־הוּא֙ יְהוָ֣ה הָאֱלֹהִ֔ים אֲשֶׁ֤ר בָּחַ֙רְתָּ֙ בְּאַבְרָ֔ם וְהוֹצֵאת֖וֹ מֵא֣וּר כַּשְׂדִּ֑ים וְשַׂ֥מְתָּ שְּׁמ֖וֹ אַבְרָהָֽם׃
8 और उसके मन को अपने साथ सच्चा पाकर, उससे वाचा बाँधी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, और गिर्गाशियों का देश दूँगा; और तूने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धर्मी है।
וּמָצָ֣אתָ אֶת־לְבָבוֹ֮ נֶאֱמָ֣ן לְפָנֶיךָ֒ וְכָר֨וֹת עִמּ֜וֹ הַבְּרִ֗ית לָתֵ֡ת אֶת־אֶרֶץ֩ הַכְּנַעֲנִ֨י הַחִתִּ֜י הָאֱמֹרִ֧י וְהַפְּרִזִּ֛י וְהַיְבוּסִ֥י וְהַגִּרְגָּשִׁ֖י לָתֵ֣ת לְזַרְע֑וֹ וַתָּ֙קֶם֙ אֶת־דְּבָרֶ֔יךָ כִּ֥י צַדִּ֖יק אָֽתָּה׃
9 “फिर तूने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दुःख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दुहाई सुनी।
וַתֵּ֛רֶא אֶת־עֳנִ֥י אֲבֹתֵ֖ינוּ בְּמִצְרָ֑יִם וְאֶת־זַעֲקָתָ֥ם שָׁמַ֖עְתָּ עַל־יַם־סֽוּף׃
10 १० और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन् उसके देश के सब लोगों को दण्ड देने के लिये चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता था कि वे उनसे अभिमान करते हैं; और तूने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है।
וַ֠תִּתֵּן אֹתֹ֨ת וּמֹֽפְתִ֜ים בְּפַרְעֹ֤ה וּבְכָל־עֲבָדָיו֙ וּבְכָל־עַ֣ם אַרְצ֔וֹ כִּ֣י יָדַ֔עְתָּ כִּ֥י הֵזִ֖ידוּ עֲלֵיהֶ֑ם וַתַּֽעַשׂ־לְךָ֥ שֵׁ֖ם כְּהַיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃
11 ११ और तूने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्थल ही स्थल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पड़े थे, उनको तूने गहरे स्थानों में ऐसा डाल दिया, जैसा पत्थर समुद्र में डाला जाए।
וְהַיָּם֙ בָּקַ֣עְתָּ לִפְנֵיהֶ֔ם וַיַּֽעַבְר֥וּ בְתוֹךְ־הַיָּ֖ם בַּיַּבָּשָׁ֑ה וְֽאֶת־רֹ֨דְפֵיהֶ֜ם הִשְׁלַ֧כְתָּ בִמְצוֹלֹ֛ת כְּמוֹ־אֶ֖בֶן בְּמַ֥יִם עַזִּֽים׃
12 १२ फिर तूने दिन को बादल के खम्भे में होकर और रात को आग के खम्भे में होकर उनकी अगुआई की, कि जिस मार्ग पर उन्हें चलना था, उसमें उनको उजियाला मिले।
וּבְעַמּ֣וּד עָנָ֔ן הִנְחִיתָ֖ם יוֹמָ֑ם וּבְעַמּ֥וּד אֵשׁ֙ לַ֔יְלָה לְהָאִ֣יר לָהֶ֔ם אֶת־הַדֶּ֖רֶךְ אֲשֶׁ֥ר יֵֽלְכוּ־בָֽהּ׃
13 १३ फिर तूने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साथ बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्था, और अच्छी विधियाँ, और आज्ञाएँ दीं।
וְעַ֤ל הַר־סִינַי֙ יָרַ֔דְתָּ וְדַבֵּ֥ר עִמָּהֶ֖ם מִשָּׁמָ֑יִם וַתִּתֵּ֨ן לָהֶ֜ם מִשְׁפָּטִ֤ים יְשָׁרִים֙ וְתוֹר֣וֹת אֱמֶ֔ת חֻקִּ֥ים וּמִצְוֹ֖ת טוֹבִֽים׃
14 १४ उन्हें अपने पवित्र विश्रामदिन का ज्ञान दिया, और अपने दास मूसा के द्वारा आज्ञाएँ और विधियाँ और व्यवस्था दीं।
וְאֶת־שַׁבַּ֥ת קָדְשְׁךָ֖ הוֹדַ֣עַתָ לָהֶ֑ם וּמִצְו֤וֹת וְחֻקִּים֙ וְתוֹרָ֔ה צִוִּ֣יתָ לָהֶ֔ם בְּיַ֖ד מֹשֶׁ֥ה עַבְדֶּֽךָ׃
15 १५ और उनकी भूख मिटाने को आकाश से उन्हें भोजन दिया और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिये पानी निकाला, और उन्हें आज्ञा दी कि जिस देश को तुम्हें देने की मैंने शपथ खाई है उसके अधिकारी होने को तुम उसमें जाओ।
וְ֠לֶחֶם מִשָּׁמַ֜יִם נָתַ֤תָּה לָהֶם֙ לִרְעָבָ֔ם וּמַ֗יִם מִסֶּ֛לַע הוֹצֵ֥אתָ לָהֶ֖ם לִצְמָאָ֑ם וַתֹּ֣אמֶר לָהֶ֗ם לָבוֹא֙ לָרֶ֣שֶׁת אֶת־הָאָ֔רֶץ אֲשֶׁר־נָשָׂ֥אתָ אֶת־יָדְךָ֖ לָתֵ֥ת לָהֶֽם׃
16 १६ “परन्तु उन्होंने और हमारे पुरखाओं ने अभिमान किया, और हठीले बने और तेरी आज्ञाएँ न मानी;
וְהֵ֥ם וַאֲבֹתֵ֖ינוּ הֵזִ֑ידוּ וַיַּקְשׁוּ֙ אֶת־עָרְפָּ֔ם וְלֹ֥א שָׁמְע֖וּ אֶל־מִצְוֹתֶֽיךָ׃
17 १७ और आज्ञा मानने से इन्कार किया, और जो आश्चर्यकर्म तूने उनके बीच किए थे, उनका स्मरण न किया, वरन् हठ करके यहाँ तक बलवा करनेवाले बने, कि एक प्रधान ठहराया, कि अपने दासत्व की दशा में लौटे। परन्तु तू क्षमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अति करुणामय परमेश्वर है, तूने उनको न त्यागा।
וַיְמָאֲנ֣וּ לִשְׁמֹ֗עַ וְלֹא־זָכְר֤וּ נִפְלְאֹתֶ֙יךָ֙ אֲשֶׁ֣ר עָשִׂ֣יתָ עִמָּהֶ֔ם וַיַּקְשׁוּ֙ אֶת־עָרְפָּ֔ם וַיִּתְּנוּ־רֹ֛אשׁ לָשׁ֥וּב לְעַבְדֻתָ֖ם בְּמִרְיָ֑ם וְאַתָּה֩ אֱל֨וֹהַּ סְלִיח֜וֹת חַנּ֧וּן וְרַח֛וּם אֶֽרֶךְ־אַפַּ֥יִם וְרַב־חֶ֖סֶד וְלֹ֥א עֲזַבְתָּֽם׃
18 १८ वरन् जब उन्होंने बछड़ा ढालकर कहा, ‘तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है,’ और तेरा बहुत तिरस्कार किया,
אַ֗ף כִּֽי־עָשׂ֤וּ לָהֶם֙ עֵ֣גֶל מַסֵּכָ֔ה וַיֹּ֣אמְר֔וּ זֶ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ אֲשֶׁ֥ר הֶעֶלְךָ֖ מִמִּצְרָ֑יִם וַֽיַּעֲשׂ֔וּ נֶאָצ֖וֹת גְּדֹלֽוֹת׃
19 १९ तब भी तू जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्यागा; न तो दिन को अगुआई करनेवाला बादल का खम्भा उन पर से हटा, और न रात को उजियाला देनेवाला और उनका मार्ग दिखानेवाला आग का खम्भा।
וְאַתָּה֙ בְּרַחֲמֶ֣יךָ הָֽרַבִּ֔ים לֹ֥א עֲזַבְתָּ֖ם בַּמִּדְבָּ֑ר אֶת־עַמּ֣וּד הֶ֠עָנָן לֹא־סָ֨ר מֵעֲלֵיהֶ֤ם בְּיוֹמָם֙ לְהַנְחֹתָ֣ם בְּהַדֶּ֔רֶךְ וְאֶת־עַמּ֨וּד הָאֵ֤שׁ בְּלַ֙יְלָה֙ לְהָאִ֣יר לָהֶ֔ם וְאֶת־הַדֶּ֖רֶךְ אֲשֶׁ֥ר יֵֽלְכוּ־בָֽהּ׃
20 २० वरन् तूने उन्हें समझाने के लिये अपने आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मन्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुझाने को पानी देता रहा।
וְרוּחֲךָ֨ הַטּוֹבָ֔ה נָתַ֖תָּ לְהַשְׂכִּילָ֑ם וּמַנְךָ֙ לֹא־מָנַ֣עְתָּ מִפִּיהֶ֔ם וּמַ֛יִם נָתַ֥תָּה לָהֶ֖ם לִצְמָאָֽם׃
21 २१ चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन-पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पाँव में सूजन हुई।
וְאַרְבָּעִ֥ים שָׁנָ֛ה כִּלְכַּלְתָּ֥ם בַּמִּדְבָּ֖ר לֹ֣א חָסֵ֑רוּ שַׂלְמֹֽתֵיהֶם֙ לֹ֣א בָל֔וּ וְרַגְלֵיהֶ֖ם לֹ֥א בָצֵֽקוּ׃
22 २२ फिर तूने राज्य-राज्य और देश-देश के लोगों को उनके वश में कर दिया, और दिशा-दिशा में उनको बाँट दिया; अतः वे हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग दोनों के देशों के अधिकारी हो गए।
וַתִּתֵּ֨ן לָהֶ֤ם מַמְלָכוֹת֙ וַעֲמָמִ֔ים וַֽתַּחְלְקֵ֖ם לְפֵאָ֑ה וַיִּֽירְשׁ֞וּ אֶת־אֶ֣רֶץ סִיח֗וֹן וְאֶת־אֶ֙רֶץ֙ מֶ֣לֶךְ חֶשְׁבּ֔וֹן וְאֶת־אֶ֖רֶץ ע֥וֹג מֶֽלֶךְ־הַבָּשָֽׁן׃
23 २३ फिर तूने उनकी सन्तान को आकाश के तारों के समान बढ़ाकर उन्हें उस देश में पहुँचा दिया, जिसके विषय तूने उनके पूर्वजों से कहा था; कि वे उसमें जाकर उसके अधिकारी हो जाएँगे।
וּבְנֵיהֶ֣ם הִרְבִּ֔יתָ כְּכֹכְבֵ֖י הַשָּׁמָ֑יִם וַתְּבִיאֵם֙ אֶל־הָאָ֔רֶץ אֲשֶׁר־אָמַ֥רְתָּ לַאֲבֹתֵיהֶ֖ם לָב֥וֹא לָרָֽשֶׁת׃
24 २४ सो यह सन्तान जाकर उसकी अधिकारी हो गई, और तूने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियों को दबाया, और राजाओं और देश के लोगों समेत उनको, उनके हाथ में कर दिया, कि वे उनसे जो चाहें सो करें।
וַיָּבֹ֤אוּ הַבָּנִים֙ וַיִּֽירְשׁ֣וּ אֶת־הָאָ֔רֶץ וַתַּכְנַ֨ע לִפְנֵיהֶ֜ם אֶת־יֹשְׁבֵ֤י הָאָ֙רֶץ֙ הַכְּנַ֣עֲנִ֔ים וַֽתִּתְּנֵ֖ם בְּיָדָ֑ם וְאֶת־מַלְכֵיהֶם֙ וְאֶת־עַֽמְמֵ֣י הָאָ֔רֶץ לַעֲשׂ֥וֹת בָּהֶ֖ם כִּרְצוֹנָֽם׃
25 २५ उन्होंने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब प्रकार की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरों के, और खुदे हुए हौदों के, और दाख और जैतून की बारियों के, और खाने के फलवाले बहुत से वृक्षों के अधिकारी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और हष्ट-पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे।
וַֽיִּלְכְּד֞וּ עָרִ֣ים בְּצֻרוֹת֮ וַאֲדָמָ֣ה שְׁמֵנָה֒ וַיִּֽירְשׁ֡וּ בָּתִּ֣ים מְלֵֽאִים־כָּל־ט֠וּב בֹּר֨וֹת חֲצוּבִ֜ים כְּרָמִ֧ים וְזֵיתִ֛ים וְעֵ֥ץ מַאֲכָ֖ל לָרֹ֑ב וַיֹּאכְל֤וּ וַֽיִּשְׂבְּעוּ֙ וַיַּשְׁמִ֔ינוּ וַיִּֽתְעַדְּנ֖וּ בְּטוּבְךָ֥ הַגָּדֽוֹל׃
26 २६ “परन्तु वे तुझ से फिरकर बलवा करनेवाले बन गए और तेरी व्यवस्था को त्याग दिया, और तेरे जो नबी तेरी ओर उन्हें फेरने के लिये उनको चिताते रहे उनको उन्होंने घात किया, और तेरा बहुत तिरस्कार किया।
וַיַּמְר֨וּ וַֽיִּמְרְד֜וּ בָּ֗ךְ וַיַּשְׁלִ֤כוּ אֶת־תּוֹרָֽתְךָ֙ אַחֲרֵ֣י גַוָּ֔ם וְאֶת־נְבִיאֶ֣יךָ הָרָ֔גוּ אֲשֶׁר־הֵעִ֥ידוּ בָ֖ם לַהֲשִׁיבָ֣ם אֵלֶ֑יךָ וַֽיַּעֲשׂ֔וּ נֶאָצ֖וֹת גְּדוֹלֹֽת׃
27 २७ इस कारण तूने उनको उनके शत्रुओं के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको संकट में डाल दिया; तो भी जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दुहाई देते रहे तब-तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अति दयालु है, इसलिए उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे।
וַֽתִּתְּנֵם֙ בְּיַ֣ד צָֽרֵיהֶ֔ם וַיָּצֵ֖רוּ לָהֶ֑ם וּבְעֵ֤ת צָֽרָתָם֙ יִצְעֲק֣וּ אֵלֶ֔יךָ וְאַתָּה֙ מִשָּׁמַ֣יִם תִּשְׁמָ֔ע וּֽכְרַחֲמֶ֣יךָ הָֽרַבִּ֗ים תִּתֵּ֤ן לָהֶם֙ מֽוֹשִׁיעִ֔ים וְיוֹשִׁיע֖וּם מִיַּ֥ד צָרֵיהֶֽם׃
28 २८ परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब-तब वे फिर तेरे सामने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता था, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तो भी जब वे फिरकर तेरी दुहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिए बार बार उनको छुड़ाता,
וּכְנ֣וֹחַ לָהֶ֔ם יָשׁ֕וּבוּ לַעֲשׂ֥וֹת רַ֖ע לְפָנֶ֑יךָ וַתַּֽעַזְבֵ֞ם בְּיַ֤ד אֹֽיְבֵיהֶם֙ וַיִּרְדּ֣וּ בָהֶ֔ם וַיָּשׁ֙וּבוּ֙ וַיִּזְעָק֔וּךָ וְאַתָּ֞ה מִשָּׁמַ֧יִם תִּשְׁמַ֛ע וְתַצִּילֵ֥ם כְּֽרַחֲמֶ֖יךָ רַבּ֥וֹת עִתִּֽים׃
29 २९ और उनको चिताता था कि उनको फिर अपनी व्यवस्था के अधीन कर दे। परन्तु वे अभिमान करते रहे और तेरी आज्ञाएँ नहीं मानते थे, और तेरे नियम, जिनको यदि मनुष्य माने, तो उनके कारण जीवित रहे, उनके विरुद्ध पाप करते, और हठ करके अपना कंधा हटाते और न सुनते थे।
וַתָּ֨עַד בָּהֶ֜ם לַהֲשִׁיבָ֣ם אֶל־תּוֹרָתֶ֗ךָ וְהֵ֨מָּה הֵזִ֜ידוּ וְלֹא־שָׁמְע֤וּ לְמִצְוֹתֶ֙יךָ֙ וּבְמִשְׁפָּטֶ֣יךָ חָֽטְאוּ־בָ֔ם אֲשֶׁר־יַעֲשֶׂ֥ה אָדָ֖ם וְחָיָ֣ה בָהֶ֑ם וַיִּתְּנ֤וּ כָתֵף֙ סוֹרֶ֔רֶת וְעָרְפָּ֥ם הִקְשׁ֖וּ וְלֹ֥א שָׁמֵֽעוּ׃
30 ३० तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपने आत्मा से नबियों के द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिए तूने उन्हें देश-देश के लोगों के हाथ में कर दिया।
וַתִּמְשֹׁ֤ךְ עֲלֵיהֶם֙ שָׁנִ֣ים רַבּ֔וֹת וַתָּ֨עַד בָּ֧ם בְּרוּחֲךָ֛ בְּיַד־נְבִיאֶ֖יךָ וְלֹ֣א הֶאֱזִ֑ינוּ וַֽתִּתְּנֵ֔ם בְּיַ֖ד עַמֵּ֥י הָאֲרָצֹֽת׃
31 ३१ तो भी तूने जो अति दयालु है, उनका अन्त नहीं कर डाला और न उनको त्याग दिया, क्योंकि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर है।
וּֽבְרַחֲמֶ֧יךָ הָרַבִּ֛ים לֹֽא־עֲשִׂיתָ֥ם כָּלָ֖ה וְלֹ֣א עֲזַבְתָּ֑ם כִּ֛י אֵֽל־חַנּ֥וּן וְרַח֖וּם אָֽתָּה׃
32 ३२ “अब तो हे हमारे परमेश्वर! हे महान पराक्रमी और भययोग्य परमेश्वर! जो अपनी वाचा पालता और करुणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनों से ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन् तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में थोड़ा न ठहरे।
וְעַתָּ֣ה אֱ֠לֹהֵינוּ הָאֵ֨ל הַגָּד֜וֹל הַגִּבּ֣וֹר וְהַנּוֹרָא֮ שׁוֹמֵ֣ר הַבְּרִ֣ית וְהַחֶסֶד֒ אַל־יִמְעַ֣ט לְפָנֶ֡יךָ אֵ֣ת כָּל־הַתְּלָאָ֣ה אֲֽשֶׁר־מְ֠צָאַתְנוּ לִמְלָכֵ֨ינוּ לְשָׂרֵ֧ינוּ וּלְכֹהֲנֵ֛ינוּ וְלִנְבִיאֵ֥נוּ וְלַאֲבֹתֵ֖ינוּ וּלְכָל־עַמֶּ֑ךָ מִימֵי֙ מַלְכֵ֣י אַשּׁ֔וּר עַ֖ד הַיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃
33 ३३ तो भी जो कुछ हम पर बीता है उसके विषय तू तो धर्मी है; तूने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हमने दुष्टता की है।
וְאַתָּ֣ה צַדִּ֔יק עַ֖ל כָּל־הַבָּ֣א עָלֵ֑ינוּ כִּֽי־אֱמֶ֥ת עָשִׂ֖יתָ וַאֲנַ֥חְנוּ הִרְשָֽׁעְנוּ׃
34 ३४ और हमारे राजाओं और हाकिमों, याजकों और पुरखाओं ने, न तो तेरी व्यवस्था को माना है और न तेरी आज्ञाओं और चितौनियों की ओर ध्यान दिया है जिनसे तूने उनको चिताया था।
וְאֶת־מְלָכֵ֤ינוּ שָׂרֵ֙ינוּ֙ כֹּהֲנֵ֣ינוּ וַאֲבֹתֵ֔ינוּ לֹ֥א עָשׂ֖וּ תּוֹרָתֶ֑ךָ וְלֹ֤א הִקְשִׁ֙יבוּ֙ אֶל־מִצְוֹתֶ֔יךָ וּלְעֵ֣דְוֹתֶ֔יךָ אֲשֶׁ֥ר הַעִידֹ֖תָ בָּהֶֽם׃
35 ३५ उन्होंने अपने राज्य में, और उस बड़े कल्याण के समय जो तूने उन्हें दिया था, और इस लम्बे चौड़े और उपजाऊ देश में तेरी सेवा नहीं की; और न अपने बुरे कामों से पश्चाताप किया।
וְהֵ֣ם בְּמַלְכוּתָם֩ וּבְטוּבְךָ֨ הָרָ֜ב אֲשֶׁר־נָתַ֣תָּ לָהֶ֗ם וּבְאֶ֨רֶץ הָרְחָבָ֧ה וְהַשְּׁמֵנָ֛ה אֲשֶׁר־נָתַ֥תָּ לִפְנֵיהֶ֖ם לֹ֣א עֲבָד֑וּךָ וְֽלֹא־שָׁ֔בוּ מִמַּֽעַלְלֵיהֶ֖ם הָרָעִֽים׃
36 ३६ देख, हम आजकल दास हैं; जो देश तूने हमारे पितरों को दिया था कि उसकी उत्तम उपज खाएँ, इसी में हम दास हैं।
הִנֵּ֛ה אֲנַ֥חְנוּ הַיּ֖וֹם עֲבָדִ֑ים וְהָאָ֜רֶץ אֲשֶׁר־נָתַ֣תָּה לַאֲבֹתֵ֗ינוּ לֶאֱכֹ֤ל אֶת־פִּרְיָהּ֙ וְאֶת־טוּבָ֔הּ הִנֵּ֛ה אֲנַ֥חְנוּ עֲבָדִ֖ים עָלֶֽיהָ׃
37 ३७ इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तूने हमारे पापों के कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और वे हमारे शरीरों और हमारे पशुओं पर अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार प्रभुता जताते हैं, इसलिए हम बड़े संकट में पड़े हैं।”
וּתְבוּאָתָ֣הּ מַרְבָּ֗ה לַמְּלָכִ֛ים אֲשֶׁר־נָתַ֥תָּה עָלֵ֖ינוּ בְּחַטֹּאותֵ֑ינוּ וְעַ֣ל גְּ֠וִיֹּתֵינוּ מֹשְׁלִ֤ים וּבִבְהֶמְתֵּ֙נוּ֙ כִּרְצוֹנָ֔ם וּבְצָרָ֥ה גְדוֹלָ֖ה אֲנָֽחְנוּ׃ פ
38 ३८ इस सब के कारण, हम सच्चाई के साथ वाचा बाँधते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं।
וּבְכָל־זֹ֕את אֲנַ֛חְנוּ כֹּרְתִ֥ים אֲמָנָ֖ה וְכֹתְבִ֑ים וְעַל֙ הֶֽחָת֔וּם שָׂרֵ֥ינוּ לְוִיֵּ֖נוּ כֹּהֲנֵֽינוּ׃

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