< मत्ती 12 >
1 १ उस समय यीशु सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेलों को भूख लगी, और वे बालें तोड़-तोड़कर खाने लगे।
anantaraM yIzu rvizrAmavAre zsyamadhyena gacchati, tadA tacchiSyA bubhukSitAH santaH zsyamaJjarIzchatvA chitvA khAditumArabhanta|
2 २ फरीसियों ने यह देखकर उससे कहा, “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं।”
tad vilokya phirUzino yIzuM jagaduH, pazya vizrAmavAre yat karmmAkarttavyaM tadeva tava ziSyAH kurvvanti|
3 ३ उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने, जब वह और उसके साथी भूखे हुए तो क्या किया?
sa tAn pratyAvadata, dAyUd tatsaGginazca bubhukSitAH santo yat karmmAkurvvan tat kiM yuSmAbhi rnApAThi?
4 ४ वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, औरभेंट की रोटियाँखाई, जिन्हें खाना न तो उसे और न उसके साथियों को, पर केवल याजकों को उचित था?
ye darzanIyAH pUpAH yAjakAn vinA tasya tatsaGgimanujAnAJcAbhojanIyAsta IzvarAvAsaM praviSTena tena bhuktAH|
5 ५ या क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मन्दिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं?
anyacca vizrAmavAre madhyemandiraM vizrAmavArIyaM niyamaM laGvantopi yAjakA nirdoSA bhavanti, zAstramadhye kimidamapi yuSmAbhi rna paThitaM?
6 ६ पर मैं तुम से कहता हूँ, कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान है।
yuSmAnahaM vadAmi, atra sthAne mandirAdapi garIyAn eka Aste|
7 ७ यदि तुम इसका अर्थ जानते कि मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं, तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते।
kintu dayAyAM me yathA prIti rna tathA yajJakarmmaNi| etadvacanasyArthaM yadi yuyam ajJAsiSTa tarhi nirdoSAn doSiNo nAkArSTa|
8 ८ मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।”
anyacca manujasuto vizrAmavArasyApi patirAste|
9 ९ वहाँ से चलकर वह उनके आराधनालय में आया।
anantaraM sa tatsthAnAt prasthAya teSAM bhajanabhavanaM praviSTavAn, tadAnIm ekaH zuSkakarAmayavAn upasthitavAn|
10 १० वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूखा हुआ था; और उन्होंने उस पर दोष लगाने के लिए उससे पूछा, “क्या सब्त के दिन चंगा करना उचित है?”
tato yIzum apavadituM mAnuSAH papracchuH, vizrAmavAre nirAmayatvaM karaNIyaM na vA?
11 ११ उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है, जिसकी एक भेड़ हो, और वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर न निकाले?
tena sa pratyuvAca, vizrAmavAre yadi kasyacid avi rgartte patati, tarhi yastaM ghRtvA na tolayati, etAdRzo manujo yuSmAkaM madhye ka Aste?
12 १२ भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़कर है! इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।”
ave rmAnavaH kiM nahi zreyAn? ato vizrAmavAre hitakarmma karttavyaM|
13 १३ तब यीशु ने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और वह फिर दूसरे हाथ के समान अच्छा हो गया।
anantaraM sa taM mAnavaM gaditavAn, karaM prasAraya; tena kare prasArite sonyakaravat svastho'bhavat|
14 १४ तब फरीसियों ने बाहर जाकर उसके विरोध में सम्मति की, कि उसे किस प्रकार मार डाले?
tadA phirUzino bahirbhUya kathaM taM haniSyAma iti kumantraNAM tatprAtikUlyena cakruH|
15 १५ यह जानकर यीशु वहाँ से चला गया। और बहुत लोग उसके पीछे हो लिये, और उसने सब को चंगा किया।
tato yIzustad viditvA sthanAntaraM gatavAn; anyeSu bahunareSu tatpazcAd gateSu tAn sa nirAmayAn kRtvA ityAjJApayat,
16 १६ और उन्हें चेतावनी दी, कि मुझे प्रगट न करना।
yUyaM mAM na paricAyayata|
17 १७ कि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो:
tasmAt mama prIyo manonIto manasastuSTikArakaH| madIyaH sevako yastu vidyate taM samIkSatAM| tasyopari svakIyAtmA mayA saMsthApayiSyate| tenAnyadezajAteSu vyavasthA saMprakAzyate|
18 १८ “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैंने चुना है; मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा।
kenApi na virodhaM sa vivAdaJca kariSyati| na ca rAjapathe tena vacanaM zrAvayiSyate|
19 १९ वह न झगड़ा करेगा, और न चिल्लाएगा; और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा।
vyavasthA calitA yAvat nahi tena kariSyate| tAvat nalo vidIrNo'pi bhaMkSyate nahi tena ca| tathA sadhUmavarttiJca na sa nirvvApayiSyate|
20 २० वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा; और धुआँ देती हुई बत्ती को न बुझाएगा, जब तक न्याय को प्रबल न कराए।
pratyAzAJca kariSyanti tannAmni bhinnadezajAH|
21 २१ और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।”
yAnyetAni vacanAni yizayiyabhaviSyadvAdinA proktAnyAsan, tAni saphalAnyabhavan|
22 २२ तब लोग एक अंधे-गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी, उसके पास लाए; और उसने उसे अच्छा किया; और वह गूँगा बोलने और देखने लगा।
anantaraM lokai statsamIpam AnIto bhUtagrastAndhamUkaikamanujastena svasthIkRtaH, tataH so'ndho mUko draSTuM vaktuJcArabdhavAn|
23 २३ इस पर सब लोग चकित होकर कहने लगे, “यह क्या दाऊद की सन्तान है?”
anena sarvve vismitAH kathayAJcakruH, eSaH kiM dAyUdaH santAno nahi?
24 २४ परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार शैतान की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।”
kintu phirUzinastat zrutvA gaditavantaH, bAlsibUbnAmno bhUtarAjasya sAhAyyaM vinA nAyaM bhUtAn tyAjayati|
25 २५ उसने उनके मन की बात जानकर उनसे कहा, “जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है, और कोई नगर या घराना जिसमें फूट होती है, बना न रहेगा।
tadAnIM yIzusteSAm iti mAnasaM vijJAya tAn avadat kiJcana rAjyaM yadi svavipakSAd bhidyate, tarhi tat ucchidyate; yacca kiJcana nagaraM vA gRhaM svavipakSAd vibhidyate, tat sthAtuM na zaknoti|
26 २६ और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा?
tadvat zayatAno yadi zayatAnaM bahiH kRtvA svavipakSAt pRthak pRthak bhavati, tarhi tasya rAjyaM kena prakAreNa sthAsyati?
27 २७ भला, यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारे वंश किसकी सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे।
ahaJca yadi bAlsibUbA bhUtAn tyAjayAmi, tarhi yuSmAkaM santAnAH kena bhUtAn tyAjayanti? tasmAd yuSmAkam etadvicArayitArasta eva bhaviSyanti|
28 २८ पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा है।
kintavahaM yadIzvarAtmanA bhUtAn tyAjayAmi, tarhIzvarasya rAjyaM yuSmAkaM sannidhimAgatavat|
29 २९ या कैसे कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहले उस बलवन्त को न बाँध ले? और तब वह उसका घर लूट लेगा।
anyaJca kopi balavanta janaM prathamato na badvvA kena prakAreNa tasya gRhaM pravizya taddravyAdi loThayituM zaknoti? kintu tat kRtvA tadIyagRsya dravyAdi loThayituM zaknoti|
30 ३० जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है।
yaH kazcit mama svapakSIyo nahi sa vipakSIya Aste, yazca mayA sAkaM na saMgRhlAti, sa vikirati|
31 ३१ इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी।
ataeva yuSmAnahaM vadAmi, manujAnAM sarvvaprakArapApAnAM nindAyAzca marSaNaM bhavituM zaknoti, kintu pavitrasyAtmano viruddhanindAyA marSaNaM bhavituM na zaknoti|
32 ३२ जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस युग में और न ही आनेवाले युग में क्षमा किया जाएगा। (aiōn )
yo manujasutasya viruddhAM kathAM kathayati, tasyAparAdhasya kSamA bhavituM zaknoti, kintu yaH kazcit pavitrasyAtmano viruddhAM kathAM kathayati nehaloke na pretya tasyAparAdhasya kSamA bhavituM zaknoti| (aiōn )
33 ३३ “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है।
pAdapaM yadi bhadraM vadatha, tarhi tasya phalamapi sAdhu vaktavyaM, yadi ca pAdapaM asAdhuM vadatha, tarhi tasya phalamapyasAdhu vaktavyaM; yataH svIyasvIyaphalena pAdapaH paricIyate|
34 ३४ हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है।
re bhujagavaMzA yUyamasAdhavaH santaH kathaM sAdhu vAkyaM vaktuM zakSyatha? yasmAd antaHkaraNasya pUrNabhAvAnusArAd vadanAd vaco nirgacchati|
35 ३५ भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है।
tena sAdhurmAnavo'ntaHkaraNarUpAt sAdhubhANDAgArAt sAdhu dravyaM nirgamayati, asAdhurmAnuSastvasAdhubhANDAgArAd asAdhuvastUni nirgamayati|
36 ३६ और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो-जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे।
kintvahaM yuSmAn vadAmi, manujA yAvantyAlasyavacAMsi vadanti, vicAradine taduttaramavazyaM dAtavyaM,
37 ३७ क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”
yatastvaM svIyavacobhi rniraparAdhaH svIyavacobhizca sAparAdho gaNiSyase|
38 ३८ इस पर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “हे गुरु, हम तुझ से एक चिन्ह देखना चाहते हैं।”
tadAnIM katipayA upAdhyAyAH phirUzinazca jagaduH, he guro vayaM bhavattaH kiJcana lakSma didRkSAmaH|
39 ३९ उसने उन्हें उत्तर दिया, “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं; परन्तु योना भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा।
tadA sa pratyuktavAn, duSTo vyabhicArI ca vaMzo lakSma mRgayate, kintu bhaviSyadvAdino yUnaso lakSma vihAyAnyat kimapi lakSma te na pradarzayiSyante|
40 ४० योना तीन रात-दिन महा मच्छ के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात-दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा।
yato yUnam yathA tryahorAtraM bRhanmInasya kukSAvAsIt, tathA manujaputropi tryahorAtraM medinyA madhye sthAsyati|
41 ४१ नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर, मन फिराया और यहाँ वह है जोयोना से भी बड़ाहै।
aparaM nInivIyA mAnavA vicAradina etadvaMzIyAnAM pratikUlam utthAya tAn doSiNaH kariSyanti, yasmAtte yUnasa upadezAt manAMsi parAvarttayAJcakrire, kintvatra yUnasopi gurutara eka Aste|
42 ४२ दक्षिण की रानीन्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिये पृथ्वी के छोर से आई, और यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है।
punazca dakSiNadezIyA rAjJI vicAradina etadvaMzIyAnAM pratikUlamutthAya tAn doSiNaH kariSyati yataH sA rAjJI sulemano vidyAyAH kathAM zrotuM medinyAH sImna Agacchat, kintu sulemanopi gurutara eko jano'tra Aste|
43 ४३ “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं।
aparaM manujAd bahirgato 'pavitrabhUtaH zuSkasthAnena gatvA vizrAmaM gaveSayati, kintu tadalabhamAnaH sa vakti, yasmA; niketanAd AgamaM, tadeva vezma pakAvRtya yAmi|
44 ४४ तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है।
pazcAt sa tat sthAnam upasthAya tat zUnyaM mArjjitaM zobhitaJca vilokya vrajan svatopi duSTatarAn anyasaptabhUtAn saGginaH karoti|
45 ४५ तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है। इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।”
tataste tat sthAnaM pravizya nivasanti, tena tasya manujasya zeSadazA pUrvvadazAtotIvAzubhA bhavati, eteSAM duSTavaMzyAnAmapi tathaiva ghaTiSyate|
46 ४६ जब वह भीड़ से बातें कर ही रहा था, तो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बातें करना चाहते थे।
mAnavebhya etAsAM kathanAM kathanakAle tasya mAtA sahajAzca tena sAkaM kAJcit kathAM kathayituM vAJchanto bahireva sthitavantaH|
47 ४७ किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।”
tataH kazcit tasmai kathitavAn, pazya tava jananI sahajAzca tvayA sAkaM kAJcana kathAM kathayituM kAmayamAnA bahistiSThanti|
48 ४८ यह सुन उसने कहनेवाले को उत्तर दिया, “कौन हैं मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?”
kintu sa taM pratyavadat, mama kA jananI? ke vA mama sahajAH?
49 ४९ और अपने चेलों की ओर अपना हाथ बढ़ाकर कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये हैं।
pazcAt ziSyAn prati karaM prasAryya kathitavAn, pazya mama jananI mama sahajAzcaite;
50 ५० क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन, और माता है।”
yaH kazcit mama svargasthasya pituriSTaM karmma kurute, saeva mama bhrAtA bhaginI jananI ca|