< लूका 9 >

1 फिर उसने बारहों को बुलाकर उन्हें सब दुष्टात्माओं और बीमारियों को दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार दिया।
ततः परं स द्वादशशिष्यानाहूय भूतान् त्याजयितुं रोगान् प्रतिकर्त्तुञ्च तेभ्यः शक्तिमाधिपत्यञ्च ददौ।
2 और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने, और बीमारों को अच्छा करने के लिये भेजा।
अपरञ्च ईश्वरीयराज्यस्य सुसंवादं प्रकाशयितुम् रोगिणामारोग्यं कर्त्तुञ्च प्रेरणकाले तान् जगाद।
3 और उसने उनसे कहा, “मार्ग के लिये कुछ न लेना: न तो लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपये और न दो-दो कुर्ते।
यात्रार्थं यष्टि र्वस्त्रपुटकं भक्ष्यं मुद्रा द्वितीयवस्त्रम्, एषां किमपि मा गृह्लीत।
4 और जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो; और वहीं से विदा हो।
यूयञ्च यन्निवेशनं प्रविशथ नगरत्यागपर्य्यनतं तन्निवेशने तिष्ठत।
5 जो कोई तुम्हें ग्रहण न करेगा उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।”
तत्र यदि कस्यचित् पुरस्य लोका युष्माकमातिथ्यं न कुर्व्वन्ति तर्हि तस्मान्नगराद् गमनकाले तेषां विरुद्धं साक्ष्यार्थं युष्माकं पदधूलीः सम्पातयत।
6 अतः वे निकलकर गाँव-गाँव सुसमाचार सुनाते, और हर कहीं लोगों को चंगा करते हुए फिरते रहे।
अथ ते प्रस्थाय सर्व्वत्र सुसंवादं प्रचारयितुं पीडितान् स्वस्थान् कर्त्तुञ्च ग्रामेषु भ्रमितुं प्रारेभिरे।
7 और देश की चौथाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया, क्योंकि कितनों ने कहा, कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है।
एतर्हि हेरोद् राजा यीशोः सर्व्वकर्म्मणां वार्त्तां श्रुत्वा भृशमुद्विविजे
8 और कितनों ने यह, कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरों ने यह, कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।
यतः केचिदूचुर्योहन् श्मशानादुदतिष्ठत्। केचिदूचुः, एलियो दर्शनं दत्तवान्; एवमन्यलोका ऊचुः पूर्व्वीयः कश्चिद् भविष्यद्वादी समुत्थितः।
9 परन्तु हेरोदेस ने कहा, “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवाया अब यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?” और उसने उसे देखने की इच्छा की।
किन्तु हेरोदुवाच योहनः शिरोऽहमछिनदम् इदानीं यस्येदृक्कर्म्मणां वार्त्तां प्राप्नोमि स कः? अथ स तं द्रष्टुम् ऐच्छत्।
10 १० फिर प्रेरितों ने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया था, उसको बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा नामक एक नगर को ले गया।
अनन्तरं प्रेरिताः प्रत्यागत्य यानि यानि कर्म्माणि चक्रुस्तानि यीशवे कथयामासुः ततः स तान् बैत्सैदानामकनगरस्य विजनं स्थानं नीत्वा गुप्तं जगाम।
11 ११ यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली, और वह आनन्द के साथ उनसे मिला, और उनसे परमेश्वर के राज्य की बातें करने लगा, और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया।
पश्चाल् लोकास्तद् विदित्वा तस्य पश्चाद् ययुः; ततः स तान् नयन् ईश्वरीयराज्यस्य प्रसङ्गमुक्तवान्, येषां चिकित्सया प्रयोजनम् आसीत् तान् स्वस्थान् चकार च।
12 १२ जब दिन ढलने लगा, तो बारहों ने आकर उससे कहा, “भीड़ को विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर अपने लिए रहने को स्थान, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।”
अपरञ्च दिवावसन्ने सति द्वादशशिष्या यीशोरन्तिकम् एत्य कथयामासुः, वयमत्र प्रान्तरस्थाने तिष्ठामः, ततो नगराणि ग्रामाणि गत्वा वासस्थानानि प्राप्य भक्ष्यद्रव्याणि क्रेतुं जननिवहं भवान् विसृजतु।
13 १३ उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं; परन्तु हाँ, यदि हम जाकर इन सब लोगों के लिये भोजन मोल लें, तो हो सकता है।”
तदा स उवाच, यूयमेव तान् भेजयध्वं; ततस्ते प्रोचुरस्माकं निकटे केवलं पञ्च पूपा द्वौ मत्स्यौ च विद्यन्ते, अतएव स्थानान्तरम् इत्वा निमित्तमेतेषां भक्ष्यद्रव्येषु न क्रीतेषु न भवति।
14 १४ (क्योंकि वहाँ पर लगभग पाँच हजार पुरुष थे।) और उसने अपने चेलों से कहा, “उन्हें पचास-पचास करके पाँति में बैठा दो।”
तत्र प्रायेण पञ्चसहस्राणि पुरुषा आसन्।
15 १५ उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया।
तदा स शिष्यान् जगाद पञ्चाशत् पञ्चाशज्जनैः पंक्तीकृत्य तानुपवेशयत, तस्मात् ते तदनुसारेण सर्व्वलोकानुपवेशयापासुः।
16 १६ तब उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया कि लोगों को परोसें।
ततः स तान् पञ्च पूपान् मीनद्वयञ्च गृहीत्वा स्वर्गं विलोक्येश्वरगुणान् कीर्त्तयाञ्चक्रे भङ्क्ता च लोकेभ्यः परिवेषणार्थं शिष्येषु समर्पयाम्बभूव।
17 १७ अतः सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई।
ततः सर्व्वे भुक्त्वा तृप्तिं गता अवशिष्टानाञ्च द्वादश डल्लकान् संजगृहुः।
18 १८ जब वह एकान्त में प्रार्थना कर रहा था, और चेले उसके साथ थे, तो उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?”
अथैकदा निर्जने शिष्यैः सह प्रार्थनाकाले तान् पप्रच्छ, लोका मां कं वदन्ति?
19 १९ उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, और कोई-कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।”
ततस्ते प्राचुः, त्वां योहन्मज्जकं वदन्ति; केचित् त्वाम् एलियं वदन्ति, पूर्व्वकालिकः कश्चिद् भविष्यद्वादी श्मशानाद् उदतिष्ठद् इत्यपि केचिद् वदन्ति।
20 २० उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर का मसीह।”
तदा स उवाच, यूयं मां कं वदथ? ततः पितर उक्तवान् त्वम् ईश्वराभिषिक्तः पुरुषः।
21 २१ तब उसने उन्हें चेतावनी देकर कहा, “यह किसी से न कहना।”
तदा स तान् दृढमादिदेश, कथामेतां कस्मैचिदपि मा कथयत।
22 २२ और उसने कहा, “मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे।”
स पुनरुवाच, मनुष्यपुत्रेण वहुयातना भोक्तव्याः प्राचीनलोकैः प्रधानयाजकैरध्यापकैश्च सोवज्ञाय हन्तव्यः किन्तु तृतीयदिवसे श्मशानात् तेनोत्थातव्यम्।
23 २३ उसने सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।
अपरं स सर्व्वानुवाच, कश्चिद् यदि मम पश्चाद् गन्तुं वाञ्छति तर्हि स स्वं दाम्यतु, दिने दिने क्रुशं गृहीत्वा च मम पश्चादागच्छतु।
24 २४ क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा।
यतो यः कश्चित् स्वप्राणान् रिरक्षिषति स तान् हारयिष्यति, यः कश्चिन् मदर्थं प्राणान् हारयिष्यति स तान् रक्षिष्यति।
25 २५ यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपना प्राण खो दे, या उसकी हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा?
कश्चिद् यदि सर्व्वं जगत् प्राप्नोति किन्तु स्वप्राणान् हारयति स्वयं विनश्यति च तर्हि तस्य को लाभः?
26 २६ जो कोई मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और अपने पिता की, और पवित्र स्वर्गदूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उससे लजाएगा।
पुन र्यः कश्चिन् मां मम वाक्यं वा लज्जास्पदं जानाति मनुष्यपुत्रो यदा स्वस्य पितुश्च पवित्राणां दूतानाञ्च तेजोभिः परिवेष्टित आगमिष्यति तदा सोपि तं लज्जास्पदं ज्ञास्यति।
27 २७ मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई-कोई ऐसे हैं कि जब तक परमेश्वर का राज्य न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद न चखेंगे।”
किन्तु युष्मानहं यथार्थं वदामि, ईश्वरीयराजत्वं न दृष्टवा मृत्युं नास्वादिष्यन्ते, एतादृशाः कियन्तो लोका अत्र स्थनेऽपि दण्डायमानाः सन्ति।
28 २८ इन बातों के कोई आठ दिन बाद वह पतरस, और यूहन्ना, और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिये पहाड़ पर गया।
एतदाख्यानकथनात् परं प्रायेणाष्टसु दिनेषु गतेषु स पितरं योहनं याकूबञ्च गृहीत्वा प्रार्थयितुं पर्व्वतमेकं समारुरोह।
29 २९ जब वह प्रार्थना कर ही रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया, और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा।
अथ तस्य प्रार्थनकाले तस्य मुखाकृतिरन्यरूपा जाता, तदीयं वस्त्रमुज्ज्वलशुक्लं जातं।
30 ३० तब, मूसा और एलिय्याह, ये दो पुरुष उसके साथ बातें कर रहे थे।
अपरञ्च मूसा एलियश्चोभौ तेजस्विनौ दृष्टौ
31 ३१ ये महिमा सहित दिखाई दिए, और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनेवाला था।
तौ तेन यिरूशालम्पुरे यो मृत्युः साधिष्यते तदीयां कथां तेन सार्द्धं कथयितुम् आरेभाते।
32 ३२ पतरस और उसके साथी नींद से भरे थे, और जब अच्छी तरह सचेत हुए, तो उसकी महिमा; और उन दो पुरुषों को, जो उसके साथ खड़े थे, देखा।
तदा पितरादयः स्वस्य सङ्गिनो निद्रयाकृष्टा आसन् किन्तु जागरित्वा तस्य तेजस्तेन सार्द्धम् उत्तिष्ठन्तौ जनौ च ददृशुः।
33 ३३ जब वे उसके पास से जाने लगे, तो पतरस ने यीशु से कहा, “हे स्वामी, हमारा यहाँ रहना भला है: अतः हम तीन मण्डप बनाएँ, एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” वह जानता न था, कि क्या कह रहा है।
अथ तयोरुभयो र्गमनकाले पितरो यीशुं बभाषे, हे गुरोऽस्माकं स्थानेऽस्मिन् स्थितिः शुभा, तत एका त्वदर्था, एका मूसार्था, एका एलियार्था, इति तिस्रः कुट्योस्माभि र्निर्म्मीयन्तां, इमां कथां स न विविच्य कथयामास।
34 ३४ वह यह कह ही रहा था, कि एक बादल ने आकर उन्हें छा लिया, और जब वे उस बादल से घिरने लगे, तो डर गए।
अपरञ्च तद्वाक्यवदनकाले पयोद एक आगत्य तेषामुपरि छायां चकार, ततस्तन्मध्ये तयोः प्रवेशात् ते शशङ्किरे।
35 ३५ और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो।”
तदा तस्मात् पयोदाद् इयमाकाशीया वाणी निर्जगाम, ममायं प्रियः पुत्र एतस्य कथायां मनो निधत्त।
36 ३६ यह शब्द होते ही यीशु अकेला पाया गया; और वे चुप रहे, और जो कुछ देखा था, उसकी कोई बात उन दिनों में किसी से न कही।
इति शब्दे जाते ते यीशुमेकाकिनं ददृशुः किन्तु ते तदानीं तस्य दर्शनस्य वाचमेकामपि नोक्त्वा मनःसु स्थापयामासुः।
37 ३७ और दूसरे दिन जब वे पहाड़ से उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली।
परेऽहनि तेषु तस्माच्छैलाद् अवरूढेषु तं साक्षात् कर्त्तुं बहवो लोका आजग्मुः।
38 ३८ तब, भीड़ में से एक मनुष्य ने चिल्लाकर कहा, “हे गुरु, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मेरे पुत्र पर कृपादृष्टि कर; क्योंकि वह मेरा एकलौता है।
तेषां मध्याद् एको जन उच्चैरुवाच, हे गुरो अहं विनयं करोमि मम पुत्रं प्रति कृपादृष्टिं करोतु, मम स एवैकः पुत्रः।
39 ३९ और देख, एक दुष्टात्मा उसे पकड़ती है, और वह एकाएक चिल्ला उठता है; और वह उसे ऐसा मरोड़ती है, कि वह मुँह में फेन भर लाता है; और उसे कुचलकर कठिनाई से छोड़ती है।
भूतेन धृतः सन् सं प्रसभं चीच्छब्दं करोति तन्मुखात् फेणा निर्गच्छन्ति च, भूत इत्थं विदार्य्य क्लिष्ट्वा प्रायशस्तं न त्यजति।
40 ४० और मैंने तेरे चेलों से विनती की, कि उसे निकालें; परन्तु वे न निकाल सके।”
तस्मात् तं भूतं त्याजयितुं तव शिष्यसमीपे न्यवेदयं किन्तु ते न शेकुः।
41 ४१ यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, और तुम्हारी सहूँगा? अपने पुत्र को यहाँ ले आ।”
तदा यीशुरवादीत्, रे आविश्वासिन् विपथगामिन् वंश कतिकालान् युष्माभिः सह स्थास्याम्यहं युष्माकम् आचरणानि च सहिष्ये? तव पुत्रमिहानय।
42 ४२ वह आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटककर मरोड़ा, परन्तु यीशु ने अशुद्ध आत्मा को डाँटा और लड़के को अच्छा करके उसके पिता को सौंप दिया।
ततस्तस्मिन्नागतमात्रे भूतस्तं भूमौ पातयित्वा विददार; तदा यीशुस्तममेध्यं भूतं तर्जयित्वा बालकं स्वस्थं कृत्वा तस्य पितरि समर्पयामास।
43 ४३ तब सब लोग परमेश्वर के महासामर्थ्य से चकित हुए। परन्तु जब सब लोग उन सब कामों से जो वह करता था, अचम्भा कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा,
ईश्वरस्य महाशक्तिम् इमां विलोक्य सर्व्वे चमच्चक्रुः; इत्थं यीशोः सर्व्वाभिः क्रियाभिः सर्व्वैर्लोकैराश्चर्य्ये मन्यमाने सति स शिष्यान् बभाषे,
44 ४४ “ये बातें तुम्हारे कानों में पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है।”
कथेयं युष्माकं कर्णेषु प्रविशतु, मनुष्यपुत्रो मनुष्याणां करेषु समर्पयिष्यते।
45 ४५ परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उनसे छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएँ, और वे इस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।
किन्तु ते तां कथां न बुबुधिरे, स्पष्टत्वाभावात् तस्या अभिप्रायस्तेषां बोधगम्यो न बभूव; तस्या आशयः क इत्यपि ते भयात् प्रष्टुं न शेकुः।
46 ४६ फिर उनमें यह विवाद होने लगा, कि हम में से बड़ा कौन है?
तदनन्तरं तेषां मध्ये कः श्रेष्ठः कथामेतां गृहीत्वा ते मिथो विवादं चक्रुः।
47 ४७ पर यीशु ने उनके मन का विचार जान लिया, और एक बालक को लेकर अपने पास खड़ा किया,
ततो यीशुस्तेषां मनोभिप्रायं विदित्वा बालकमेकं गृहीत्वा स्वस्य निकटे स्थापयित्वा तान् जगाद,
48 ४८ और उनसे कहा, “जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है, क्योंकि जो तुम में सबसे छोटे से छोटा है, वही बड़ा है।”
यो जनो मम नाम्नास्य बालास्यातिथ्यं विदधाति स ममातिथ्यं विदधाति, यश्च ममातिथ्यं विदधाति स मम प्रेरकस्यातिथ्यं विदधाति, युष्माकं मध्येयः स्वं सर्व्वस्मात् क्षुद्रं जानीते स एव श्रेष्ठो भविष्यति।
49 ४९ तब यूहन्ना ने कहा, “हे स्वामी, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा, और हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता।”
अपरञ्च योहन् व्याजहार हे प्रभेा तव नाम्ना भूतान् त्याजयन्तं मानुषम् एकं दृष्टवन्तो वयं, किन्त्वस्माकम् अपश्चाद् गामित्वात् तं न्यषेधाम्। तदानीं यीशुरुवाच,
50 ५० यीशु ने उससे कहा, “उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है।”
तं मा निषेधत, यतो यो जनोस्माकं न विपक्षः स एवास्माकं सपक्षो भवति।
51 ५१ जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, तो उसने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया।
अनन्तरं तस्यारोहणसमय उपस्थिते स स्थिरचेता यिरूशालमं प्रति यात्रां कर्त्तुं निश्चित्याग्रे दूतान् प्रेषयामास।
52 ५२ और उसने अपने आगे दूत भेजे: वे सामरियों के एक गाँव में गए, कि उसके लिये जगह तैयार करें।
तस्मात् ते गत्वा तस्य प्रयोजनीयद्रव्याणि संग्रहीतुं शोमिरोणीयानां ग्रामं प्रविविशुः।
53 ५३ परन्तु उन लोगों ने उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था।
किन्तु स यिरूशालमं नगरं याति ततो हेतो र्लोकास्तस्यातिथ्यं न चक्रुः।
54 ५४ यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा, “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?”
अतएव याकूब्योहनौ तस्य शिष्यौ तद् दृष्ट्वा जगदतुः, हे प्रभो एलियो यथा चकार तथा वयमपि किं गगणाद् आगन्तुम् एतान् भस्मीकर्त्तुञ्च वह्निमाज्ञापयामः? भवान् किमिच्छति?
55 ५५ परन्तु उसने फिरकर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा के हो। क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन् बचाने के लिये आया है।”]
किन्तु स मुखं परावर्त्य तान् तर्जयित्वा गदितवान् युष्माकं मनोभावः कः, इति यूयं न जानीथ।
56 ५६ और वे किसी और गाँव में चले गए।
मनुजसुतो मनुजानां प्राणान् नाशयितुं नागच्छत्, किन्तु रक्षितुम् आगच्छत्। पश्चाद् इतरग्रामं ते ययुः।
57 ५७ जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ-जहाँ तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूँगा।”
तदनन्तरं पथि गमनकाले जन एकस्तं बभाषे, हे प्रभो भवान् यत्र याति भवता सहाहमपि तत्र यास्यामि।
58 ५८ यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर रखने की भी जगह नहीं।”
तदानीं यीशुस्तमुवाच, गोमायूनां गर्त्ता आसते, विहायसीयविहगाानां नीडानि च सन्ति, किन्तु मानवतनयस्य शिरः स्थापयितुं स्थानं नास्ति।
59 ५९ उसने दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ।”
ततः परं स इतरजनं जगाद, त्वं मम पश्चाद् एहि; ततः स उवाच, हे प्रभो पूर्व्वं पितरं श्मशाने स्थापयितुं मामादिशतु।
60 ६० उसने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना।”
तदा यीशुरुवाच, मृता मृतान् श्मशाने स्थापयन्तु किन्तु त्वं गत्वेश्वरीयराज्यस्य कथां प्रचारय।
61 ६१ एक और ने भी कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूँगा; पर पहले मुझे जाने दे कि अपने घर के लोगों से विदा हो आऊँ।”
ततोन्यः कथयामास, हे प्रभो मयापि भवतः पश्चाद् गंस्यते, किन्तु पूर्व्वं मम निवेशनस्य परिजनानाम् अनुमतिं ग्रहीतुम् अहमादिश्यै भवता।
62 ६२ यीशु ने उससे कहा, “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”
तदानीं यीशुस्तं प्रोक्तवान्, यो जनो लाङ्गले करमर्पयित्वा पश्चात् पश्यति स ईश्वरीयराज्यं नार्हति।

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