< लूका 8 >
1 १ इसके बाद वह नगर-नगर और गाँव-गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे,
১এর পরেই তিনি ঘোষণা করতে করতে এবং ঈশ্বরের রাজ্যের সুসমাচার প্রচার করার জন্য শহরে শহরে ও গ্রামে গ্রামে ভ্রমণ করলেন, আর তাঁর সঙ্গে সেই বারো জন,
2 २ और कुछ स्त्रियाँ भी जो दुष्टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे यह हैं मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी, जिसमें से सात दुष्टात्माएँ निकली थीं,
২এবং যাঁরা মন্দ আত্মা ও রোগ থেকে মুক্ত হয়েছিলেন, এমন কয়েক জন স্ত্রীলোক ছিলেন, মগ্দলীনি যাকে মরিয়ম বলা হতো, যাঁর মধ্যে থেকে সাতটা ভূত বের করা হয়েছিল,
3 ३ और हेरोदेस के भण्डारी खुज़ा की पत्नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियाँ, ये तो अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं।
৩যোহানা, যিনি হেরোদের পরিচালক কুষের স্ত্রী এবং শোশন্না ও অন্য অনেক স্ত্রীলোক ছিলেন, তাঁরা নিজেদের সম্পত্তি দিয়ে তাঁদের সেবা করতেন।
4 ४ जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर-नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्टान्त में कहा:
৪আর যখন, অনেক লোক সমবেত হচ্ছিল এবং অন্য অন্য শহর থেকে লোকেরা তাঁর কাছে এলো, তখন তিনি একটা গল্পের মাধ্যমে তাদের সঙ্গে কথা বললেন,
5 ५ “एक बोनेवाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया।
৫“একজন চাষী বীজ বপন করতে গেল। বপনের দিনের কিছু বীজ রাস্তার পাশে পড়ল, তাতে সেই বীজগুলো লোকেরা পায়ে মাড়িয়ে গেল ও আকাশের পাখিরা সেগুলো খেয়ে ফেলল।
6 ६ और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु नमी न मिलने से सूख गया।
৬আর কিছু বীজ পাথরের ওপরে পড়ল, তাতে সেগুলোর অঙ্কুর বের হল কিন্তু রস না পাওয়াতে শুকিয়ে গেল।
7 ७ कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया।
৭আর কিছু বীজ কাঁটাবনের মধ্যে পড়ল, তাতে কাঁটাও বীজের সঙ্গে বৃদ্ধি হতে থাকলো এবং সেগুলোকে চেপে ধরল।
8 ८ और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन लें।”
৮আর কিছু বীজ ভাল জমিতে পড়ল, তাতে সেগুলো অঙ্কুরিত হয়ে একশোগুন বেশি ফল উৎপন্ন করল।” এই কথা বলে তিনি চিত্কার করে বললেন, “যার শোনার কান আছে সে শুনুক।”
9 ९ उसके चेलों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?”
৯পরে তাঁর শিষ্যরা তাঁকে জিজ্ঞাসা করলেন, এই গল্পটার মানে কি?
10 १० उसने कहा, “तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिए कि ‘वे देखते हुए भी न देखें, और सुनते हुए भी न समझें।’
১০তিনি বললেন, “ঈশ্বরের রাজ্যের সমস্ত গুপ্ত বিষয় জানার অধিকার তোমাদের দেওয়া হয়েছে; কিন্তু অন্য সবার কাছে গল্পের মাধ্যমে বলা হয়েছে; যেন তারা দেখেও না দেখে এবং শুনেও না বোঝে।”
11 ११ “दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज तो परमेश्वर का वचन है।
১১গল্পের মানে এই; সেই বীজ ঈশ্বরের বাক্য।
12 १२ मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएँ।
১২যে বীজগুলো রাস্তার পাশে পড়েছিল তা এমন লোকেদের বোঝায়, যারা শুনেছিল, পরে দিয়াবল এসে তাদের হৃদয় থেকে সেই বাক্য চুরি করে নিয়ে যায়, যেন তারা বিশ্বাস করে পরিত্রান না পায়।
13 १३ चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं।
১৩আর যে বীজগুলি পাথরের ওপরে পড়েছিল তা এমন লোকদের বোঝায়, যারা শুনে আনন্দের সঙ্গে সেই বাক্য গ্রহণ করেছিল, কিন্তু তাদের মূল ছিল না, তারা অল্প দিনের জন্য বিশ্বাস করে, আর পরীক্ষার দিন তারা বিশ্বাস থেকে দূরে চলে যায়।
14 १४ जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं, जो सुनते हैं, पर आगे चलकर चिन्ता और धन और जीवन के सुख-विलास में फँस जाते हैं, और उनका फल नहीं पकता।
১৪আর যেগুলো কাঁটাবনের মধ্যে পড়ল, তারা এমন লোক, যারা শুনেছিল, কিন্তু চলতে চলতে জীবনের চিন্তা ও ধন ও সুখভোগে চাপা পড়ে যায় এবং ভাল ফল উৎপন্ন করে না।
15 १५ पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।
১৫আর যেগুলো ভাল জমিতে পড়ল, তারা এমন লোক, যারা সৎ ও ভালো হৃদয়ে বাক্য শুনে ধরে রাখে এবং ধৈর্য্য সহকারে ফল উৎপন্ন করে।
16 १६ “कोईदिया जलाकरबर्तन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ।
১৬আর প্রদীপ জালিয়ে কেউ বাটি দিয়ে ঢাকে না, কিংবা খাটের নীচে রাখে না, কিন্তু বাতিদানের উপরেই রাখে, যেন যারা ভিতরে যায়, তারা আলো দেখতে পায়।
17 १७ कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो।
১৭কারণ এমন ঢাকা কিছুই নেই, যা প্রকাশ পাবে না এবং এমন গোপন কিছুই নেই, যা জানা যাবে না।
18 १८ इसलिए सावधान रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।”
১৮অতএব তোমরা কীভাবে শোন সে বিষয়ে সাবধান হও; কারণ যার আছে, তাকে দেওয়া হবে, আর যার নেই, তার যা কিছু আছে সেগুলোও তার কাছ থেকে নিয়ে নেওয়া হবে।
19 १९ उसकी माता और उसके भाई पास आए, पर भीड़ के कारण उससे भेंट न कर सके।
১৯আর তাঁর মা ও ভাইয়েরা তাঁর কাছে আসলেন, কিন্তু লোকেদের ভিড়ের জন্য তাঁর কাছে যেতে পারলেন না।
20 २० और उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं।”
২০পরে এক ব্যক্তি তাঁকে বলল, দেখুন আপনার মা ও ভাইয়েরা আপনার সাথে দেখা করার জন্য বাইরে দাঁড়িয়ে আছেন।
21 २१ उसने उसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही है, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
২১তিনি এর উত্তরে তাদের বললেন, “এই যে ব্যক্তিরা ঈশ্বরের বাক্য শোনে ও পালন করে, এরাই আমার মা ও ভাই।”
22 २२ फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अतः उन्होंने नाव खोल दी।
২২এক দিন তিনি ও তাঁর শিষ্যরা একটি নৌকায় উঠলেন; আর তিনি তাঁদের বললেন, “চল আমরা হ্রদের অন্য পারে যাই” তাতে তাঁরা নৌকার পাল তুলে দিলেন।
23 २३ पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे।
২৩কিন্তু তাঁরা যখন নৌকা করে যাচ্ছিলেন, তিনি ঘুমিয়ে পড়লেন, তখন হ্রদের ওপর ঝড় এসে পড়ল, তাতে নৌকা জলে পূর্ণ হতে লাগল ও তাঁরা বিপদে পড়লেন।
24 २४ तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए, और शान्त हो गया।
২৪পরে তাঁরা কাছে গিয়ে তাঁকে জাগিয়ে বললেন, “প্রভু, প্রভু, আমরা মারা পড়লাম।” তখন তিনি ঘুম থেকে উঠে বাতাস ও ঢেউকে ধমক দিলেন, তাতে সব কিছু থেমে গেল, ও সবার শান্তি হল।
25 २५ और उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है, जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”
২৫পরে তিনি তাঁদের বললেন, “তোমাদের বিশ্বাস কোথায়?” তখন তাঁরা ভয় পেলেন ও খুবই আশ্চর্য্য হলেন, একজন অন্য জনকে বললেন, “ইনি তবে কে যে, বায়ুকে ও জলকে আজ্ঞা দেন, আর তারা তাঁর আদেশ মানে?”
26 २६ फिर वे गिरासेनियों के देश में पहुँचे, जो उस पार गलील के सामने है।
২৬পরে তাঁরা গালীলের ওপারে গেরাসেনীদের অঞ্চলে পৌঁছালেন।
27 २७ जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिसमें दुष्टात्माएँ थीं। और बहुत दिनों से न कपड़े पहनता था और न घर में रहता था वरन् कब्रों में रहा करता था।
২৭আর তিনি ডাঙায় নামলে ঐ শহরের একটা ভূতগ্রস্ত লোক তাঁর সামনে উপস্থিত হল; সে অনেকদিন ধরে কাপড় পড়ত না ও বাড়িতে বসবাস করত না, কিন্তু কবরে থাকত।
28 २८ वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके सामने गिरकर ऊँचे शब्द से कहा, “हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र यीशु! मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे।”
২৮যীশুকে দেখার সঙ্গে সঙ্গে সে চিৎকার করে উঠল এবং তাঁর সামনে পড়ে চিত্কার করে বলল, “হে যীশু, মহান সর্বশক্তিমান ঈশ্বরের পুত্র, আপনার সঙ্গে আমার সম্পর্ক কি? আমি আপনাকে ঈশ্বরের দিব্যি দিয়ে বলছি, আমাকে যন্ত্রণা দেবেন না।”
29 २९ क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्मा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा था, इसलिए कि वह उस पर बार बार प्रबल होती थी। और यद्यपि लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधते थे, तो भी वह बन्धनों को तोड़ डालता था, और दुष्टात्मा उसे जंगल में भगाए फिरती थी।
২৯কারণ তিনি সেই ভূতকে লোকটীর মধ্যে থেকে বের হয়ে যেতে নির্দেশ করলেন; ঐ মন্দ আত্মা অনেকদিন তাকে ধরে রেখেছিল, আর শিকল ও বেড়ি দিয়ে তাকে বাঁধলেও সে সব কিছু ছিঁড়ে ভূতের বশে ফাঁকা জায়গায় চলে যেত।
30 ३० यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने कहा, “सेना,” क्योंकि बहुत दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं।
৩০যীশু তাকে জিজ্ঞাসা করলেনতোমার নাম কি? সে বলল, “বাহিনী,” কারণ অনেক ভূত তার মধ্যে প্রবেশ করেছিল।
31 ३१ और उन्होंने उससे विनती की, “हमें अथाह गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे।” (Abyssos )
৩১পরে তারা তাঁকে অনুরোধ করতে লাগল, যেন তিনি তাদের অতল গর্তে চলে যেতে আদেশ না দেন। (Abyssos )
32 ३२ वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था, अतः उन्होंने उससे विनती की, “हमें उनमें समाने दे।” अतः उसने उन्हें जाने दिया।
৩২সেই জায়গায় পাহাড়ের উপরে এক শূকরের পাল চরছিল; তাতে ভূতেরা তাঁকে অনুরোধ করল, যেন তিনি তাদের শূকরদের মধ্যে প্রবেশ করতে অনুমতি দেন, তিনি তাদের অনুমতি দিলেন।
33 ३३ तब दुष्टात्माएँ उस मनुष्य से निकलकर सूअरों में समा गई और वह झुण्ड कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
৩৩তখন ভূতেরা সেই লোকটার মধ্যে দিয়ে বের হয়ে শূকরদের মধ্যে প্রবেশ করল, তাতে সেই পাল ঢালু পাহাড় দিয়ে জোরে দৌড়ে গিয়ে হ্রদে পড়ে ডুবে মরল।
34 ३४ चरवाहे यह जो हुआ था देखकर भागे, और नगर में, और गाँवों में जाकर उसका समाचार कहा।
৩৪এই ঘটনা দেখে, যারা শূকর চরাচ্ছিল, তারা পালিয়ে গেল এবং শহরে ও তার আশেপাশের অঞ্চলে খবর দিল।
35 ३५ और लोग यह जो हुआ था उसको देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसे यीशु के पाँवों के पास कपड़े पहने और सचेत बैठे हुए पाकर डर गए।
৩৫তখন কি ঘটেছে, দেখার জন্য লোকেরা বের হল এবং যীশুর কাছে এসে দেখল, যে লোকটী মধ্যে থেকে ভূতেরা বের হয়েছে, সে কাপড় পরে ও ভদ্র হয়ে যীশুর পায়ের কাছে বসে আছে; তাতে তারা ভয় পেল।
36 ३६ और देखनेवालों ने उनको बताया, कि वह दुष्टात्मा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ।
৩৬আর যারা দেখেছিল, সেই ভূতগ্রস্ত লোকটা কীভাবে সুস্থ হয়েছিল, তা তাদের বলল।
37 ३७ तब गिरासेनियों के आस-पास के सब लोगों ने यीशु से विनती की, कि हमारे यहाँ से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया था। अतः वह नाव पर चढ़कर लौट गया।
৩৭তাতে গেরাসেনীদের প্রদেশের সমস্ত লোকেরা তাঁকে অনুরোধ করল, যেন তিনি তাদের কাছ থেকে চলে যান; কারণ তারা খুবই ভয় পেয়েছিল, তখন ফিরে যাওয়ার জন্য তিনি নৌকায় উঠলেন।
38 ३८ जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं वह उससे विनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा।
৩৮আর যার মধ্যে থেকে ভূতেরা বের হয়েছিল, সেই লোকটি অনুরোধ করল, যেন তাঁর সঙ্গে থাকতে পারে;
39 ३९ “अपने घर में लौट जा और लोगों से कह दे, कि परमेश्वर ने तेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।” वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए।
৩৯কিন্তু তিনি তাকে পাঠিয়ে দিলেন এবং বললেন, “তুমি তোমার বাড়ি ফিরে যাও এবং তোমার জন্য ঈশ্বর যা যা মহৎ কাজ করেছেন, তার বৃত্তান্ত বল।” তাতে সে চলে গেল এবং যীশু তার জন্য যে সমস্ত মহৎ কাজ করেছেন, তা শহরের সব জায়গায় প্রচার করতে লাগল।
40 ४० जब यीशु लौट रहा था, तो लोग उससे आनन्द के साथ मिले; क्योंकि वे सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
৪০যীশু ফিরে আসার পর লোকেরা তাঁকে সাদরে গ্রহণ করল; কারণ সবাই তাঁর অপেক্ষা করছিল।
41 ४१ और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया, और यीशु के पाँवों पर गिरकर उससे विनती करने लगा, “मेरे घर चल।”
৪১আর দেখ, যায়ীর নামে এক ব্যক্তি আসলেন; তিনি সমাজঘরের একজন তত্ত্বাবধায়ক। তিনি যীশুর পায়ে পড়ে তার বাড়ি যেতে তাঁকে অনুরোধ করতে লাগলেন;
42 ४२ क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी। जब वह जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे।
৪২কারণ তার একমাত্র মেয়ে ছিল, বয়স প্রায় বারো বছর, আর সে যে কোনও মূহুর্তে মারা যেতে পারে। যীশু যখন যাচ্ছিলেন, তখন লোকেরা তাঁর উপরে চাপাচাপি করে পড়তে লাগল।
43 ४३ और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी,
৪৩আর, একটি মহিলা, যে বারো বছর ধরে রক্তস্রাব রোগে ভুগছিলেন, তিনি ডাক্তারদের পিছনে সব টাকা ব্যয় করেও কারও কাছেই সুস্থ হতে পারেননি,
44 ४४ पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना थम गया।
৪৪সে তাঁর পিছন দিকে এসে তাঁর পোশাকের ঝালর স্পর্শ করল; আর সঙ্গে সঙ্গে তার রক্তস্রাব বন্ধ হয়ে গেল।
45 ४५ इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किसने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।”
৪৫তখন যীশু বললেন, “কে আমাকে স্পর্শ করল?” সবাই অস্বীকার করলে পিতর ও তাঁর সঙ্গীরা বললেন, “প্রভু, লোকেরা চাপাচাপি করে আপনার উপরে পড়ছে।”
46 ४६ परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मैंने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है।”
৪৬কিন্তু যীশু বললেন, “আমাকে কেউ স্পর্শ করেছে, কারণ আমি টের পেয়েছি যে, আমার মধ্যে থেকে শক্তি বের হয়েছে।”
47 ४७ जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया, कि मैंने किस कारण से तुझे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई।
৪৭মহিলাটি যখন দেখল, সে যা করেছে তা লুকানো যাবে না, তখন কাঁপতে কাঁপতে এসে তাঁর সামনে উপুড় হয়ে প্রণাম করল আর কিসের জন্য তাঁকে স্পর্শ করেছিল এবং কীভাবে সঙ্গে সঙ্গে সুস্থ হয়েছিল, তা সব লোকের সামনে বর্ণনা করলেন।
48 ४८ उसने उससे कहा, “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।”
৪৮তিনি তাকে বললেন, “মা! তোমার বিশ্বাস তোমাকে সুস্থ করল; শান্তিতে চলে যাও।”
49 ४९ वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दुःख न दे।”
৪৯তিনি কথা বলছেন, এমন দিনের সমাজঘরের এক অধ্যক্ষের বাড়ি থেকে একজন এসে বলল, “আপনার মেয়ের মৃত্যু হয়েছে, গুরুকে আর কষ্ট দেবেন না।”
50 ५० यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख; तो वहबच जाएगी।”
৫০একথা শুনে যীশু তাঁকে বললেন, ভয় করও না, কিন্তু বিশ্বাস কর, তাতে সে বাঁচবে।
51 ५१ घर में आकर उसने पतरस, और यूहन्ना, और याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया।
৫১পরে তিনি সেই বাড়িতে উপস্থিত হলে, পিতর, যাকোব ও যোহন এবং মেয়েটির বাবা ও মা ছাড়া আর কাউকেই প্রবেশ করতে দিলেন না।
52 ५२ और सब उसके लिये रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।”
৫২তখন সবাই তার জন্য কাঁদছিল, ও দুঃখ করছিল। তিনি বললেন, “কেঁদ না; সে মারা যায়নি, ঘুমিয়ে আছে।”
53 ५३ वे यह जानकर, कि मर गई है, उसकी हँसी करने लगे।
৫৩তখন তারা তাঁকে ঠাট্টা করে হাঁসলো, কারণ তারা জানত, সে মারা গেছে।
54 ५४ परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की उठ!”
৫৪কিন্তু তিনি তার হাত ধরে ডেকে বললেন, “মেয়ে ওঠ।”
55 ५५ तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठी; फिर उसने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए।
৫৫তাতে তার আত্মা ফিরে আসল ও সে সেই মুহূর্তে উঠল, আর তিনি তাকে কিছু খাবার দিতে আদেশ দিলেন।
56 ५६ उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चेतावनी दी, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना।
৫৬এসব দেখে তার মা বাবা খুবই আশ্চর্য্য হল, কিন্তু তিনি তাদের নির্দেশ দিয়ে বললেন, “এ ঘটনার কথা কাউকে বলো না।”