< लूका 1 >

1 बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है।
prathamato ye sAkShiNo vAkyaprachArakAshchAsan te. asmAkaM madhye yadyat sapramANaM vAkyamarpayanti sma
2 जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया।
tadanusArato. anyepi bahavastadvR^ittAntaM rachayituM pravR^ittAH|
3 इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ,
ataeva he mahAmahimathiyaphil tvaM yA yAH kathA ashikShyathAstAsAM dR^iDhapramANAni yathA prApnoShi
4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं।
tadarthaM prathamamArabhya tAni sarvvANi j nAtvAhamapi anukramAt sarvvavR^ittAntAn tubhyaM lekhituM matimakArSham|
5 यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था।
yihUdAdeshIyaherodnAmake rAjatvaM kurvvati abIyayAjakasya paryyAyAdhikArI sikhariyanAmaka eko yAjako hAroNavaMshodbhavA ilIshevAkhyA
6 और वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलनेवाले थे।
tasya jAyA dvAvimau nirdoShau prabhoH sarvvAj nA vyavasthAshcha saMmanya IshvaradR^iShTau dhArmmikAvAstAm|
7 उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।
tayoH santAna ekopi nAsIt, yata ilIshevA bandhyA tau dvAveva vR^iddhAvabhavatAm|
8 जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था।
yadA svaparyyAnukrameNa sikhariya IshvAsya samakShaM yAjakIyaM karmma karoti
9 तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए।
tadA yaj nasya dinaparipAyyA parameshvarasya mandire praveshakAle dhUpajvAlanaM karmma tasya karaNIyamAsIt|
10 १० और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी।
taddhUpajvAlanakAle lokanivahe prArthanAM kartuM bahistiShThati
11 ११ कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया।
sati sikhariyo yasyAM vedyAM dhUpaM jvAlayati taddakShiNapArshve parameshvarasya dUta eka upasthito darshanaM dadau|
12 १२ और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया।
taM dR^iShTvA sikhariya udvivije shasha Nke cha|
13 १३ परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना।
tadA sa dUtastaM babhAShe he sikhariya mA bhaistava prArthanA grAhyA jAtA tava bhAryyA ilIshevA putraM prasoShyate tasya nAma yohan iti kariShyasi|
14 १४ और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे।
ki ncha tvaM sAnandaH saharShashcha bhaviShyasi tasya janmani bahava AnandiShyanti cha|
15 १५ क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा।
yato hetoH sa parameshvarasya gochare mahAn bhaviShyati tathA drAkShArasaM surAM vA kimapi na pAsyati, aparaM janmArabhya pavitreNAtmanA paripUrNaH
16 १६ और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा।
san isrAyelvaMshIyAn anekAn prabhoH parameshvarasya mArgamAneShyati|
17 १७ वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।”
santAnAn prati pitR^iNAM manAMsi dharmmaj nAnaM pratyanAj nAgrAhiNashcha parAvarttayituM, prabhoH parameshvarasya sevArtham ekAM sajjitajAtiM vidhAtu ncha sa eliyarUpAtmashaktiprAptastasyAgre gamiShyati|
18 १८ जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।”
tadA sikhariyo dUtamavAdIt kathametad vetsyAmi? yatohaM vR^iddho mama bhAryyA cha vR^iddhA|
19 १९ स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल हूँ, जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ।
tato dUtaH pratyuvAcha pashyeshvarasya sAkShAdvarttI jibrAyelnAmA dUtohaM tvayA saha kathAM gadituM tubhyamimAM shubhavArttAM dAtu ncha preShitaH|
20 २० और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।”
kintu madIyaM vAkyaM kAle phaliShyati tat tvayA na pratItam ataH kAraNAd yAvadeva tAni na setsyanti tAvat tvaM vaktuMmashakto mUko bhava|
21 २१ लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी?
tadAnIM ye ye lokAH sikhariyamapaikShanta te madhyemandiraM tasya bahuvilambAd AshcharyyaM menire|
22 २२ जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया।
sa bahirAgato yadA kimapi vAkyaM vaktumashaktaH sa NketaM kR^itvA niHshabdastasyau tadA madhyemandiraM kasyachid darshanaM tena prAptam iti sarvve bubudhire|
23 २३ जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया।
anantaraM tasya sevanaparyyAye sampUrNe sati sa nijagehaM jagAma|
24 २४ इन दिनों के बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आपको यह कह के छिपाए रखा।
katipayadineShu gateShu tasya bhAryyA ilIshevA garbbhavatI babhUva
25 २५ “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।”
pashchAt sA pa nchamAsAn saMgopyAkathayat lokAnAM samakShaM mamApamAnaM khaNDayituM parameshvaro mayi dR^iShTiM pAtayitvA karmmedR^ishaM kR^itavAn|
26 २६ छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से गब्रिएल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में,
apara ncha tasyA garbbhasya ShaShThe mAse jAte gAlIlpradeshIyanAsaratpure
27 २७ एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था।
dAyUdo vaMshIyAya yUShaphnAmne puruShAya yA mariyamnAmakumArI vAgdattAsIt tasyAH samIpaM jibrAyel dUta IshvareNa prahitaH|
28 २८ और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!”
sa gatvA jagAda he IshvarAnugR^ihItakanye tava shubhaM bhUyAt prabhuH parameshvarastava sahAyosti nArINAM madhye tvameva dhanyA|
29 २९ वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है?
tadAnIM sA taM dR^iShTvA tasya vAkyata udvijya kIdR^ishaM bhAShaNamidam iti manasA chintayAmAsa|
30 ३० स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है।
tato dUto. avadat he mariyam bhayaM mAkArShIH, tvayi parameshvarasyAnugrahosti|
31 ३१ और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना।
pashya tvaM garbbhaM dhR^itvA putraM prasoShyase tasya nAma yIshuriti kariShyasi|
32 ३२ वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा।
sa mahAn bhaviShyati tathA sarvvebhyaH shreShThasya putra iti khyAsyati; aparaM prabhuH parameshvarastasya piturdAyUdaH siMhAsanaM tasmai dAsyati;
33 ३३ और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (aiōn g165)
tathA sa yAkUbo vaMshopari sarvvadA rAjatvaM kariShyati, tasya rAjatvasyAnto na bhaviShyati| (aiōn g165)
34 ३४ मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।”
tadA mariyam taM dUtaM babhAShe nAhaM puruShasa NgaM karomi tarhi kathametat sambhaviShyati?
35 ३५ स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।
tato dUto. akathayat pavitra AtmA tvAmAshrAyiShyati tathA sarvvashreShThasya shaktistavopari ChAyAM kariShyati tato hetostava garbbhAd yaH pavitrabAlako janiShyate sa Ishvaraputra iti khyAtiM prApsyati|
36 ३६ और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है।
apara ncha pashya tava j nAtirilIshevA yAM sarvve bandhyAmavadan idAnIM sA vArddhakye santAnamekaM garbbhe. adhArayat tasya ShaShThamAsobhUt|
37 ३७ परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”
kimapi karmma nAsAdhyam Ishvarasya|
38 ३८ मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
tadA mariyam jagAda, pashya prabherahaM dAsI mahyaM tava vAkyAnusAreNa sarvvametad ghaTatAm; ananataraM dUtastasyAH samIpAt pratasthe|
39 ३९ उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई।
atha katipayadinAt paraM mariyam tasmAt parvvatamayapradeshIyayihUdAyA nagaramekaM shIghraM gatvA
40 ४० और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया।
sikhariyayAjakasya gR^ihaM pravishya tasya jAyAm ilIshevAM sambodhyAvadat|
41 ४१ जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।
tato mariyamaH sambodhanavAkye ilIshevAyAH karNayoH praviShTamAtre sati tasyA garbbhasthabAlako nanartta| tata ilIshevA pavitreNAtmanA paripUrNA satI
42 ४२ और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है!
prochchairgaditumArebhe, yoShitAM madhye tvameva dhanyA, tava garbbhasthaH shishushcha dhanyaH|
43 ४३ और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?
tvaM prabhormAtA, mama niveshane tvayA charaNAvarpitau, mamAdya saubhAgyametat|
44 ४४ और देख जैसे ही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा वैसे ही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।
pashya tava vAkye mama karNayoH praviShTamAtre sati mamodarasthaH shishurAnandAn nanartta|
45 ४५ और धन्य है, वह जिसने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
yA strI vyashvasIt sA dhanyA, yato hetostAM prati parameshvaroktaM vAkyaM sarvvaM siddhaM bhaviShyati|
46 ४६ तब मरियम ने कहा, “मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
tadAnIM mariyam jagAda| dhanyavAdaM pareshasya karoti mAmakaM manaH|
47 ४७ और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर से आनन्दित हुई।
mamAtmA tArakeshe cha samullAsaM pragachChati|
48 ४८ क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है; इसलिए देखो, अब से सब युग-युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
akarot sa prabhu rduShTiM svadAsyA durgatiM prati| pashyAdyArabhya mAM dhanyAM vakShyanti puruShAH sadA|
49 ४९ क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े- बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
yaH sarvvashaktimAn yasya nAmApi cha pavitrakaM| sa eva sumahatkarmma kR^itavAn mannimittakaM|
50 ५० और उसकी दया उन पर, जो उससे डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
ye bibhyati janAstasmAt teShAM santAnapaMktiShu| anukampA tadIyA cha sarvvadaiva sutiShThati|
51 ५१ उसने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने मन में घमण्ड करते थे, उन्हें तितर-बितर किया।
svabAhubalatastena prAkAshyata parAkramaH| manaHkumantraNAsArddhaM vikIryyante. abhimAninaH|
52 ५२ उसने शासकों को सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊँचा किया।
siMhAsanagatAllokAn balinashchAvarohya saH| padeShUchcheShu lokAMstu kShudrAn saMsthApayatyapi|
53 ५३ उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया।
kShudhitAn mAnavAn dravyairuttamaiH paritarpya saH| sakalAn dhanino lokAn visR^ijed riktahastakAn|
54 ५४ उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे,
ibrAhImi cha tadvaMshe yA dayAsti sadaiva tAM| smR^itvA purA pitR^iNAM no yathA sAkShAt pratishrutaM| (aiōn g165)
55 ५५ जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (aiōn g165)
isrAyelsevakastena tathopakriyate svayaM||
56 ५६ मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
anantaraM mariyam prAyeNa mAsatrayam ilIshevayA sahoShitvA vyAghuyya nijaniveshanaM yayau|
57 ५७ तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी।
tadanantaram ilIshevAyAH prasavakAla upasthite sati sA putraM prAsoShTa|
58 ५८ उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुनकर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए।
tataH parameshvarastasyAM mahAnugrahaM kR^itavAn etat shrutvA samIpavAsinaH kuTumbAshchAgatya tayA saha mumudire|
59 ५९ और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे।
tathAShTame dine te bAlakasya tvachaM Chettum etya tasya pitR^inAmAnurUpaM tannAma sikhariya iti karttumIShuH|
60 ६० और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।”
kintu tasya mAtAkathayat tanna, nAmAsya yohan iti karttavyam|
61 ६१ और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।”
tadA te vyAharan tava vaMshamadhye nAmedR^ishaM kasyApi nAsti|
62 ६२ तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?
tataH paraM tasya pitaraM sikhariyaM prati sa Nketya paprachChuH shishoH kiM nAma kAriShyate?
63 ६३ और उसने लिखने की पट्टी मँगवाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया।
tataH sa phalakamekaM yAchitvA lilekha tasya nAma yohan bhaviShyati| tasmAt sarvve AshcharyyaM menire|
64 ६४ तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
tatkShaNaM sikhariyasya jihvAjADye. apagate sa mukhaM vyAdAya spaShTavarNamuchchAryya Ishvarasya guNAnuvAdaM chakAra|
65 ६५ और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई।
tasmAchchaturdiksthAH samIpavAsilokA bhItA evametAH sarvvAH kathA yihUdAyAH parvvatamayapradeshasya sarvvatra prachAritAH|
66 ६६ और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
tasmAt shrotAro manaHsu sthApayitvA kathayAmbabhUvuH kIdR^ishoyaM bAlo bhaviShyati? atha parameshvarastasya sahAyobhUt|
67 ६७ और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
tadA yohanaH pitA sikhariyaH pavitreNAtmanA paripUrNaH san etAdR^ishaM bhaviShyadvAkyaM kathayAmAsa|
68 ६८ “प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो, कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की और उनका छुटकारा किया है,
isrAyelaH prabhu ryastu sa dhanyaH parameshvaraH| anugR^ihya nijAllokAn sa eva parimochayet|
69 ६९ और अपने सेवक दाऊद के घराने में हमारे लिये एक उद्धार का सींग निकाला,
vipakShajanahastebhyo yathA mochyAmahe vayaM| yAvajjIva ncha dharmmeNa sAralyena cha nirbhayAH|
70 ७० जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा जो जगत के आदि से होते आए हैं, कहा था, (aiōn g165)
sevAmahai tamevaikam etatkAraNameva cha| svakIyaM supavitra ncha saMsmR^itya niyamaM sadA|
71 ७१ अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है;
kR^ipayA puruShAn pUrvvAn nikaShArthAttu naH pituH| ibrAhImaH samIpe yaM shapathaM kR^itavAn purA|
72 ७२ कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी पवित्र वाचा का स्मरण करे,
tameva saphalaM karttaM tathA shatrugaNasya cha| R^itIyAkAriNashchaiva karebhyo rakShaNAya naH|
73 ७३ और वह शपथ जो उसने हमारे पिता अब्राहम से खाई थी,
sR^iShTeH prathamataH svIyaiH pavitrai rbhAvivAdibhiH| (aiōn g165)
74 ७४ कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
yathoktavAn tathA svasya dAyUdaH sevakasya tu|
75 ७५ उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
vaMshe trAtAramekaM sa samutpAditavAn svayam|
76 ७६ और तू हे बालक, परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा, क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने के लिये उसके आगे-आगे चलेगा,
ato he bAlaka tvantu sarvvebhyaH shreShTha eva yaH| tasyaiva bhAvivAdIti pravikhyAto bhaviShyasi| asmAkaM charaNAn kSheme mArge chAlayituM sadA| evaM dhvAnte. arthato mR^ityoshChAyAyAM ye tu mAnavAH|
77 ७७ कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे, जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।
upaviShTAstu tAneva prakAshayitumeva hi| kR^itvA mahAnukampAM hi yAmeva parameshvaraH|
78 ७८ यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा; जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।
UrdvvAt sUryyamudAyyaivAsmabhyaM prAdAttu darshanaM| tayAnukampayA svasya lokAnAM pApamochane|
79 ७९ कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे, और हमारे पाँवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।”
paritrANasya tebhyo hi j nAnavishrANanAya cha| prabho rmArgaM pariShkarttuM tasyAgrAyI bhaviShyasi||
80 ८० और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा।
atha bAlakaH sharIreNa buddhyA cha varddhitumArebhe; apara ncha sa isrAyelo vaMshIyalokAnAM samIpe yAvanna prakaTIbhUtastAstAvat prAntare nyavasat|

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