< लूका 1 >

1 बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है।
प्रथमतो ये साक्षिणो वाक्यप्रचारकाश्चासन् तेऽस्माकं मध्ये यद्यत् सप्रमाणं वाक्यमर्पयन्ति स्म
2 जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया।
तदनुसारतोऽन्येपि बहवस्तद्वृत्तान्तं रचयितुं प्रवृत्ताः।
3 इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ,
अतएव हे महामहिमथियफिल् त्वं या याः कथा अशिक्ष्यथास्तासां दृढप्रमाणानि यथा प्राप्नोषि
4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं।
तदर्थं प्रथममारभ्य तानि सर्व्वाणि ज्ञात्वाहमपि अनुक्रमात् सर्व्ववृत्तान्तान् तुभ्यं लेखितुं मतिमकार्षम्।
5 यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था।
यिहूदादेशीयहेरोद्नामके राजत्वं कुर्व्वति अबीययाजकस्य पर्य्यायाधिकारी सिखरियनामक एको याजको हारोणवंशोद्भवा इलीशेवाख्या
6 और वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलनेवाले थे।
तस्य जाया द्वाविमौ निर्दोषौ प्रभोः सर्व्वाज्ञा व्यवस्थाश्च संमन्य ईश्वरदृष्टौ धार्म्मिकावास्ताम्।
7 उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।
तयोः सन्तान एकोपि नासीत्, यत इलीशेवा बन्ध्या तौ द्वावेव वृद्धावभवताम्।
8 जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था।
यदा स्वपर्य्यानुक्रमेण सिखरिय ईश्वास्य समक्षं याजकीयं कर्म्म करोति
9 तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए।
तदा यज्ञस्य दिनपरिपाय्या परमेश्वरस्य मन्दिरे प्रवेशकाले धूपज्वालनं कर्म्म तस्य करणीयमासीत्।
10 १० और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी।
तद्धूपज्वालनकाले लोकनिवहे प्रार्थनां कर्तुं बहिस्तिष्ठति
11 ११ कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया।
सति सिखरियो यस्यां वेद्यां धूपं ज्वालयति तद्दक्षिणपार्श्वे परमेश्वरस्य दूत एक उपस्थितो दर्शनं ददौ।
12 १२ और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया।
तं दृष्ट्वा सिखरिय उद्विविजे शशङ्के च।
13 १३ परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना।
तदा स दूतस्तं बभाषे हे सिखरिय मा भैस्तव प्रार्थना ग्राह्या जाता तव भार्य्या इलीशेवा पुत्रं प्रसोष्यते तस्य नाम योेहन् इति करिष्यसि।
14 १४ और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे।
किञ्च त्वं सानन्दः सहर्षश्च भविष्यसि तस्य जन्मनि बहव आनन्दिष्यन्ति च।
15 १५ क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा।
यतो हेतोः स परमेश्वरस्य गोचरे महान् भविष्यति तथा द्राक्षारसं सुरां वा किमपि न पास्यति, अपरं जन्मारभ्य पवित्रेणात्मना परिपूर्णः
16 १६ और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा।
सन् इस्रायेल्वंशीयान् अनेकान् प्रभोः परमेश्वरस्य मार्गमानेष्यति।
17 १७ वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।”
सन्तानान् प्रति पितृणां मनांसि धर्म्मज्ञानं प्रत्यनाज्ञाग्राहिणश्च परावर्त्तयितुं, प्रभोः परमेश्वरस्य सेवार्थम् एकां सज्जितजातिं विधातुञ्च स एलियरूपात्मशक्तिप्राप्तस्तस्याग्रे गमिष्यति।
18 १८ जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।”
तदा सिखरियो दूतमवादीत् कथमेतद् वेत्स्यामि? यतोहं वृद्धो मम भार्य्या च वृद्धा।
19 १९ स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल हूँ, जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ।
ततो दूतः प्रत्युवाच पश्येश्वरस्य साक्षाद्वर्त्ती जिब्रायेल्नामा दूतोहं त्वया सह कथां गदितुं तुभ्यमिमां शुभवार्त्तां दातुञ्च प्रेषितः।
20 २० और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।”
किन्तु मदीयं वाक्यं काले फलिष्यति तत् त्वया न प्रतीतम् अतः कारणाद् यावदेव तानि न सेत्स्यन्ति तावत् त्वं वक्तुंमशक्तो मूको भव।
21 २१ लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी?
तदानीं ये ये लोकाः सिखरियमपैक्षन्त ते मध्येमन्दिरं तस्य बहुविलम्बाद् आश्चर्य्यं मेनिरे।
22 २२ जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया।
स बहिरागतो यदा किमपि वाक्यं वक्तुमशक्तः सङ्केतं कृत्वा निःशब्दस्तस्यौ तदा मध्येमन्दिरं कस्यचिद् दर्शनं तेन प्राप्तम् इति सर्व्वे बुबुधिरे।
23 २३ जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया।
अनन्तरं तस्य सेवनपर्य्याये सम्पूर्णे सति स निजगेहं जगाम।
24 २४ इन दिनों के बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आपको यह कह के छिपाए रखा।
कतिपयदिनेषु गतेषु तस्य भार्य्या इलीशेवा गर्ब्भवती बभूव
25 २५ “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।”
पश्चात् सा पञ्चमासान् संगोप्याकथयत् लोकानां समक्षं ममापमानं खण्डयितुं परमेश्वरो मयि दृष्टिं पातयित्वा कर्म्मेदृशं कृतवान्।
26 २६ छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से गब्रिएल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में,
अपरञ्च तस्या गर्ब्भस्य षष्ठे मासे जाते गालील्प्रदेशीयनासरत्पुरे
27 २७ एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था।
दायूदो वंशीयाय यूषफ्नाम्ने पुरुषाय या मरियम्नामकुमारी वाग्दत्तासीत् तस्याः समीपं जिब्रायेल् दूत ईश्वरेण प्रहितः।
28 २८ और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!”
स गत्वा जगाद हे ईश्वरानुगृहीतकन्ये तव शुभं भूयात् प्रभुः परमेश्वरस्तव सहायोस्ति नारीणां मध्ये त्वमेव धन्या।
29 २९ वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है?
तदानीं सा तं दृष्ट्वा तस्य वाक्यत उद्विज्य कीदृशं भाषणमिदम् इति मनसा चिन्तयामास।
30 ३० स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है।
ततो दूतोऽवदत् हे मरियम् भयं माकार्षीः, त्वयि परमेश्वरस्यानुग्रहोस्ति।
31 ३१ और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना।
पश्य त्वं गर्ब्भं धृत्वा पुत्रं प्रसोष्यसे तस्य नाम यीशुरिति करिष्यसि।
32 ३२ वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा।
स महान् भविष्यति तथा सर्व्वेभ्यः श्रेष्ठस्य पुत्र इति ख्यास्यति; अपरं प्रभुः परमेश्वरस्तस्य पितुर्दायूदः सिंहासनं तस्मै दास्यति;
33 ३३ और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (aiōn g165)
तथा स याकूबो वंशोपरि सर्व्वदा राजत्वं करिष्यति, तस्य राजत्वस्यान्तो न भविष्यति। (aiōn g165)
34 ३४ मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।”
तदा मरियम् तं दूतं बभाषे नाहं पुरुषसङ्गं करोमि तर्हि कथमेतत् सम्भविष्यति?
35 ३५ स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।
ततो दूतोऽकथयत् पवित्र आत्मा त्वामाश्रायिष्यति तथा सर्व्वश्रेष्ठस्य शक्तिस्तवोपरि छायां करिष्यति ततो हेतोस्तव गर्ब्भाद् यः पवित्रबालको जनिष्यते स ईश्वरपुत्र इति ख्यातिं प्राप्स्यति।
36 ३६ और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है।
अपरञ्च पश्य तव ज्ञातिरिलीशेवा यां सर्व्वे बन्ध्यामवदन् इदानीं सा वार्द्धक्ये सन्तानमेकं गर्ब्भेऽधारयत् तस्य षष्ठमासोभूत्।
37 ३७ परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”
किमपि कर्म्म नासाध्यम् ईश्वरस्य।
38 ३८ मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
तदा मरियम् जगाद, पश्य प्रभेरहं दासी मह्यं तव वाक्यानुसारेण सर्व्वमेतद् घटताम्; अननतरं दूतस्तस्याः समीपात् प्रतस्थे।
39 ३९ उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई।
अथ कतिपयदिनात् परं मरियम् तस्मात् पर्व्वतमयप्रदेशीययिहूदाया नगरमेकं शीघ्रं गत्वा
40 ४० और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया।
सिखरिययाजकस्य गृहं प्रविश्य तस्य जायाम् इलीशेवां सम्बोध्यावदत्।
41 ४१ जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।
ततो मरियमः सम्बोधनवाक्ये इलीशेवायाः कर्णयोः प्रविष्टमात्रे सति तस्या गर्ब्भस्थबालको ननर्त्त। तत इलीशेवा पवित्रेणात्मना परिपूर्णा सती
42 ४२ और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है!
प्रोच्चैर्गदितुमारेभे, योषितां मध्ये त्वमेव धन्या, तव गर्ब्भस्थः शिशुश्च धन्यः।
43 ४३ और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?
त्वं प्रभोर्माता, मम निवेशने त्वया चरणावर्पितौ, ममाद्य सौभाग्यमेतत्।
44 ४४ और देख जैसे ही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा वैसे ही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।
पश्य तव वाक्ये मम कर्णयोः प्रविष्टमात्रे सति ममोदरस्थः शिशुरानन्दान् ननर्त्त।
45 ४५ और धन्य है, वह जिसने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
या स्त्री व्यश्वसीत् सा धन्या, यतो हेतोस्तां प्रति परमेश्वरोक्तं वाक्यं सर्व्वं सिद्धं भविष्यति।
46 ४६ तब मरियम ने कहा, “मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
तदानीं मरियम् जगाद। धन्यवादं परेशस्य करोति मामकं मनः।
47 ४७ और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर से आनन्दित हुई।
ममात्मा तारकेशे च समुल्लासं प्रगच्छति।
48 ४८ क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है; इसलिए देखो, अब से सब युग-युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
अकरोत् स प्रभु र्दुष्टिं स्वदास्या दुर्गतिं प्रति। पश्याद्यारभ्य मां धन्यां वक्ष्यन्ति पुरुषाः सदा।
49 ४९ क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े- बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
यः सर्व्वशक्तिमान् यस्य नामापि च पवित्रकं। स एव सुमहत्कर्म्म कृतवान् मन्निमित्तकं।
50 ५० और उसकी दया उन पर, जो उससे डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
ये बिभ्यति जनास्तस्मात् तेषां सन्तानपंक्तिषु। अनुकम्पा तदीया च सर्व्वदैव सुतिष्ठति।
51 ५१ उसने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने मन में घमण्ड करते थे, उन्हें तितर-बितर किया।
स्वबाहुबलतस्तेन प्राकाश्यत पराक्रमः। मनःकुमन्त्रणासार्द्धं विकीर्य्यन्तेऽभिमानिनः।
52 ५२ उसने शासकों को सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊँचा किया।
सिंहासनगताल्लोकान् बलिनश्चावरोह्य सः। पदेषूच्चेषु लोकांस्तु क्षुद्रान् संस्थापयत्यपि।
53 ५३ उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया।
क्षुधितान् मानवान् द्रव्यैरुत्तमैः परितर्प्य सः। सकलान् धनिनो लोकान् विसृजेद् रिक्तहस्तकान्।
54 ५४ उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे,
इब्राहीमि च तद्वंशे या दयास्ति सदैव तां। स्मृत्वा पुरा पितृणां नो यथा साक्षात् प्रतिश्रुतं। (aiōn g165)
55 ५५ जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (aiōn g165)
इस्रायेल्सेवकस्तेन तथोपक्रियते स्वयं॥
56 ५६ मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
अनन्तरं मरियम् प्रायेण मासत्रयम् इलीशेवया सहोषित्वा व्याघुय्य निजनिवेशनं ययौ।
57 ५७ तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी।
तदनन्तरम् इलीशेवायाः प्रसवकाल उपस्थिते सति सा पुत्रं प्रासोष्ट।
58 ५८ उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुनकर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए।
ततः परमेश्वरस्तस्यां महानुग्रहं कृतवान् एतत् श्रुत्वा समीपवासिनः कुटुम्बाश्चागत्य तया सह मुमुदिरे।
59 ५९ और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे।
तथाष्टमे दिने ते बालकस्य त्वचं छेत्तुम् एत्य तस्य पितृनामानुरूपं तन्नाम सिखरिय इति कर्त्तुमीषुः।
60 ६० और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।”
किन्तु तस्य माताकथयत् तन्न, नामास्य योहन् इति कर्त्तव्यम्।
61 ६१ और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।”
तदा ते व्याहरन् तव वंशमध्ये नामेदृशं कस्यापि नास्ति।
62 ६२ तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?
ततः परं तस्य पितरं सिखरियं प्रति सङ्केत्य पप्रच्छुः शिशोः किं नाम कारिष्यते?
63 ६३ और उसने लिखने की पट्टी मँगवाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया।
ततः स फलकमेकं याचित्वा लिलेख तस्य नाम योहन् भविष्यति। तस्मात् सर्व्वे आश्चर्य्यं मेनिरे।
64 ६४ तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
तत्क्षणं सिखरियस्य जिह्वाजाड्येऽपगते स मुखं व्यादाय स्पष्टवर्णमुच्चार्य्य ईश्वरस्य गुणानुवादं चकार।
65 ६५ और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई।
तस्माच्चतुर्दिक्स्थाः समीपवासिलोका भीता एवमेताः सर्व्वाः कथा यिहूदायाः पर्व्वतमयप्रदेशस्य सर्व्वत्र प्रचारिताः।
66 ६६ और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
तस्मात् श्रोतारो मनःसु स्थापयित्वा कथयाम्बभूवुः कीदृशोयं बालो भविष्यति? अथ परमेश्वरस्तस्य सहायोभूत्।
67 ६७ और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
तदा योहनः पिता सिखरियः पवित्रेणात्मना परिपूर्णः सन् एतादृशं भविष्यद्वाक्यं कथयामास।
68 ६८ “प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो, कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की और उनका छुटकारा किया है,
इस्रायेलः प्रभु र्यस्तु स धन्यः परमेश्वरः। अनुगृह्य निजाल्लोकान् स एव परिमोचयेत्।
69 ६९ और अपने सेवक दाऊद के घराने में हमारे लिये एक उद्धार का सींग निकाला,
विपक्षजनहस्तेभ्यो यथा मोच्यामहे वयं। यावज्जीवञ्च धर्म्मेण सारल्येन च निर्भयाः।
70 ७० जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा जो जगत के आदि से होते आए हैं, कहा था, (aiōn g165)
सेवामहै तमेवैकम् एतत्कारणमेव च। स्वकीयं सुपवित्रञ्च संस्मृत्य नियमं सदा।
71 ७१ अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है;
कृपया पुरुषान् पूर्व्वान् निकषार्थात्तु नः पितुः। इब्राहीमः समीपे यं शपथं कृतवान् पुरा।
72 ७२ कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी पवित्र वाचा का स्मरण करे,
तमेव सफलं कर्त्तं तथा शत्रुगणस्य च। ऋृतीयाकारिणश्चैव करेभ्यो रक्षणाय नः।
73 ७३ और वह शपथ जो उसने हमारे पिता अब्राहम से खाई थी,
सृष्टेः प्रथमतः स्वीयैः पवित्रै र्भाविवादिभिः। (aiōn g165)
74 ७४ कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
यथोक्तवान् तथा स्वस्य दायूदः सेवकस्य तु।
75 ७५ उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
वंशे त्रातारमेकं स समुत्पादितवान् स्वयम्।
76 ७६ और तू हे बालक, परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा, क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने के लिये उसके आगे-आगे चलेगा,
अतो हे बालक त्वन्तु सर्व्वेभ्यः श्रेष्ठ एव यः। तस्यैव भाविवादीति प्रविख्यातो भविष्यसि। अस्माकं चरणान् क्षेमे मार्गे चालयितुं सदा। एवं ध्वान्तेऽर्थतो मृत्योश्छायायां ये तु मानवाः।
77 ७७ कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे, जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।
उपविष्टास्तु तानेव प्रकाशयितुमेव हि। कृत्वा महानुकम्पां हि यामेव परमेश्वरः।
78 ७८ यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा; जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।
ऊर्द्व्वात् सूर्य्यमुदाय्यैवास्मभ्यं प्रादात्तु दर्शनं। तयानुकम्पया स्वस्य लोकानां पापमोचने।
79 ७९ कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे, और हमारे पाँवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।”
परित्राणस्य तेभ्यो हि ज्ञानविश्राणनाय च। प्रभो र्मार्गं परिष्कर्त्तुं तस्याग्रायी भविष्यसि॥
80 ८० और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा।
अथ बालकः शरीरेण बुद्ध्या च वर्द्धितुमारेभे; अपरञ्च स इस्रायेलो वंशीयलोकानां समीपे यावन्न प्रकटीभूतस्तास्तावत् प्रान्तरे न्यवसत्।

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