< विलापगीत 1 >

1 जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, अब क्यों कर देनेवाली हो गई है।
Jerusalem was [once] full of people, but now it is deserted. [Once] it was honored by people all over the world, but now it is [grieving/abandoned] like [SIM] a widow. [Once] it was [honored like] [MET] a princess [is honored] among the nations, but now [we who live here] have become slaves.
2 रात को वह फूट फूटकर रोती है, उसके आँसू गालों पर ढलकते हैं; उसके सब यारों में से अब कोई उसे शान्ति नहीं देता; उसके सब मित्रों ने उससे विश्वासघात किया, और उसके शत्रु बन गए हैं।
We [PRS] weep bitterly [all] night long, with tears flowing down our cheeks. Among [the people in] all [the nations] that loved Jerusalem there are none that comfort us [now]. All [the rulers of those nations that were previously] our allies have betrayed us, and they are all now enemies [of the people of Jerusalem].
3 यहूदा दुःख और कठिन दासत्व के कारण परदेश चली गई; परन्तु अन्यजातियों में रहती हुई वह चैन नहीं पाती; उसके सब खदेड़नेवालों ने उसकी सकेती में उसे पकड़ लिया है।
[The people of] Judah have been (exiled/forced to go to other countries) and caused to suffer greatly as slaves. They live in [other] nations where they do not have peace/safety. Their enemies seized them, and there was no way for them to escape.
4 सिय्योन के मार्ग विलाप कर रहे हैं, क्योंकि नियत पर्वों में कोई नहीं आता है; उसके सब फाटक सुनसान पड़े हैं, उसके याजक कराहते हैं; उसकी कुमारियाँ शोकित हैं, और वह आप कठिन दुःख भोग रही है।
The roads to Zion [Hill] are empty [PRS] because no one comes [here] to [celebrate] the sacred festivals. The city gates are deserted, and the priests groan. The young women [of Jerusalem] cry [because] they are suffering greatly.
5 उसके द्रोही प्रधान हो गए, उसके शत्रु उन्नति कर रहे हैं, क्योंकि यहोवा ने उसके बहुत से अपराधों के कारण उसे दुःख दिया है; उसके बाल-बच्चों को शत्रु हाँक-हाँककर बँधुआई में ले गए।
Our enemies have conquered the city, and [now] they prosper. Yahweh has punished [the people of] Jerusalem because of all the sins that they have committed. The children [of Jerusalem] have been captured and taken [to other countries].
6 सिय्योन की पुत्री का सारा प्रताप जाता रहा है। उसके हाकिम ऐसे हिरनों के समान हो गए हैं जिन्हें कोई चरागाह नहीं मिलती; वे खदेड़नेवालों के सामने से बलहीन होकर भागते हैं।
Jerusalem was a beautiful city, but it is not beautiful now. The leaders [of the city] are like [SIM] deer that are starving because of being unable to find any grass [to eat]. They are very weak, with the result that they are unable to run from their enemies.
7 यरूशलेम ने, इन दुःख भरे और संकट के दिनों में, जब उसके लोग द्रोहियों के हाथ में पड़े और उसका कोई सहायक न रहा, अपनी सब मनभावनी वस्तुओं को जो प्राचीनकाल से उसकी थीं, स्मरण किया है। उसके द्रोहियों ने उसको उजड़ा देखकर उपहास में उड़ाया है।
[The people of] Jerusalem are sad and scattered, and they think about the previous greatness of the city. [But now] our enemies have captured the city, and there is no one to help the people. Our enemies destroyed the city and laughed while they were doing that.
8 यरूशलेम ने बड़ा पाप किया, इसलिए वह अशुद्ध स्त्री सी हो गई है; जितने उसका आदर करते थे वे उसका निरादर करते हैं, क्योंकि उन्होंने उसकी नंगाई देखी है; हाँ, वह कराहती हुई मुँह फेर लेती है।
[The people of] [PRS] Jerusalem have sinned very much; [it is as though] [MET] the city has become [like] a filthy [rag]. All those who [previously] honored the city [now] despise it, because they see that it has become very disgraced [MET]. Now [the people of] the city groan, and they cover their faces [because they are very ashamed].
9 उसकी अशुद्धता उसके वस्त्र पर है; उसने अपने अन्त का स्मरण न रखा; इसलिए वह भयंकर रीति से गिराई गई, और कोई उसे शान्ति नहीं देता है। हे यहोवा, मेरे दुःख पर दृष्टि कर, क्योंकि शत्रु मेरे विरुद्ध सफल हुआ है!
The city has become filthy because of [PRS] the sins that the people have committed; they did not think about what could happen to the city. [Now] the city has been destroyed, and there is no one to comfort [the people]. [The people cry out saying], “Yahweh, look at how we are suffering because our enemies have defeated us!”
10 १० द्रोहियों ने उसकी सब मनभावनी वस्तुओं पर हाथ बढ़ाया है; हाँ, अन्यजातियों को, जिनके विषय में तूने आज्ञा दी थी कि वे तेरी सभा में भागी न होने पाएँगी, उनको उसने तेरे पवित्रस्थान में घुसा हुआ देखा है।
Our enemies have taken away all our treasures, all the valuable things that we owned. We have seen [soldiers from other] nations, [men who do not worship Yahweh], enter our sacred temple, [the place] where foreigners/non-Israelis were (forbidden/not allowed) to enter.
11 ११ उसके सब निवासी कराहते हुए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे हैं; उन्होंने अपना प्राण बचाने के लिये अपनी मनभावनी वस्तुएँ बेचकर भोजन मोल लिया है। हे यहोवा, दृष्टि कर, और ध्यान से देख, क्योंकि मैं तुच्छ हो गई हूँ।
The people of the city groan while they search for food; they have given their treasures to get food [to eat] to remain alive. [They say], “Yahweh, look [at us], and see that we are despised!”
12 १२ हे सब बटोहियों, क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं? दृष्टि करके देखो, क्या मेरे दुःख से बढ़कर कोई और पीड़ा है जो यहोवा ने अपने क्रोध के दिन मुझ पर डाल दी है?
You people who pass by, you do not [RHQ] seem to care at all [about what has happened to us]. Look around and see that there are no other [RHQ] people who are suffering like we are. Yahweh has caused us to suffer because he was extremely angry [with us].
13 १३ उसने ऊपर से मेरी हड्डियों में आग लगाई है, और वे उससे भस्म हो गईं; उसने मेरे पैरों के लिये जाल लगाया, और मुझ को उलटा फेर दिया है; उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी और रोग से लगातार निर्बल रहती हूँ।
[It is as though] he sent a fire from heaven [MTY] that burned in our bones; [it is as though] [MET] he has placed a trap for our feet, and has prevented us from walking any further. He has abandoned us; we are weak/miserable [every day], all day long.
14 १४ उसने जूए की रस्सियों की समान मेरे अपराधों को अपने हाथ से कसा है; उसने उन्हें बटकर मेरी गर्दन पर चढ़ाया, और मेरा बल घटा दिया है; जिनका मैं सामना भी नहीं कर सकती, उन्हीं के वश में यहोवा ने मुझे कर दिया है।
He caused the sins that we have committed to be [like] a heavy load for us to carry; [it is as though] [MET] he tied them around our necks. Previously we were strong, but he has caused us to become weak. He has allowed our enemies to capture us, and we were not able to do anything to resist them.
15 १५ यहोवा ने मेरे सब पराक्रमी पुरुषों को तुच्छ जाना; उसने नियत पर्व का प्रचार करके लोगों को मेरे विरुद्ध बुलाया कि मेरे जवानों को पीस डाले; यहूदा की कुमारी कन्या को यहोवा ने मानो कुण्ड में पेरा है।
Yahweh looked at our mighty soldiers and laughed at them. He has summoned a great army to [come and] crush our young soldiers. [It is as though] [MET] Yahweh has trampled on [us] people of Judah like [SIM] [people trample] on grapes in a pit [to make wine].
16 १६ इन बातों के कारण मैं रोती हूँ; मेरी आँखों से आँसू की धारा बहती रहती है; क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता था, वह मुझसे दूर हो गया; मेरे बच्चे अकेले हो गए, क्योंकि शत्रु प्रबल हुआ है।
I weep because of [all] those things; my eyes are filled with tears. There is no one to comfort me; those who could encourage me are far away. Our enemies have conquered [us], so our children have nothing good to (hope for/expect to happen).
17 १७ सिय्योन हाथ फैलाए हुए है, उसे कोई शान्ति नहीं देता; यहोवा ने याकूब के विषय में यह आज्ञा दी है कि उसके चारों ओर के निवासी उसके द्रोही हो जाएँ; यरूशलेम उनके बीच अशुद्ध स्त्री के समान हो गई है।
[We people of] [PRS] Jerusalem reach out our hands [to get help], but there is no one to comfort us. Yahweh has decided concerning [us descendants of] Jacob that the people in nearby nations will become our enemies; so they consider that Jerusalem has become [like] [MET] a filthy rag.
18 १८ यहोवा सच्चाई पर है, क्योंकि मैंने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है; हे सब लोगों, सुनो, और मेरी पीड़ा को देखो! मेरे कुमार और कुमारियाँ बँधुआई में चली गई हैं।
But what Yahweh has done [to us] is fair, because we have rebelled against obeying the commands that he gave [us]. You people everywhere, listen [to us]; [look and] see that we are suffering [greatly]. We had [many] sons and daughters, but they have been captured and forced to go to distant countries.
19 १९ मैंने अपने मित्रों को पुकारा परन्तु उन्होंने भी मुझे धोखा दिया; जब मेरे याजक और पुरनिये इसलिए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे थे कि खाने से उनका जी हरा हो जाए, तब नगर ही में उनके प्राण छूट गए।
We pleaded with our allies [to help us], but they [all] refused. Our priests and our leaders have died [from hunger] in the city while they were searching for food [to eat] to remain alive.
20 २० हे यहोवा, दृष्टि कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ, मेरी अंतड़ियाँ ऐंठी जाती हैं, मेरा हृदय उलट गया है, क्योंकि मैंने बहुत बलवा किया है। बाहर तो मैं तलवार से निर्वंश होती हूँ; और घर में मृत्यु विराज रही है।
Yahweh, see that we are suffering very much. [It is as though] our inner beings are tormented. We are sad [SYN] because we have rebelled [against you]. Our enemies kill people in the streets with their swords; people are dying [because they have no food to eat].
21 २१ उन्होंने सुना है कि मैं कराहती हूँ, परन्तु कोई मुझे शान्ति नहीं देता। मेरे सब शत्रुओं ने मेरी विपत्ति का समाचार सुना है; वे इससे हर्षित हो गए कि तू ही ने यह किया है। परन्तु जिस दिन की चर्चा तूने प्रचार करके सुनाई है उसको तू दिखा, तब वे भी मेरे समान हो जाएँगे।
People have heard us while we groaned, but no one [came to] comfort us. [Yahweh, ] you caused us to experience this [disaster], and our enemies are happy to see what you have done [to us]. But cause it soon to be the time that you have promised, when our enemies will suffer like we have suffered!
22 २२ उनकी सारी दुष्टता की ओर दृष्टि कर; और जैसा मेरे सारे अपराधों के कारण तूने मुझे दण्ड दिया, वैसा ही उनको भी दण्ड दे; क्योंकि मैं बहुत ही कराहती हूँ, और मेरा हृदय रोग से निर्बल हो गया है।
[Yahweh, ] see all the evil things that they have done and punish them! [Punish them] like you have punished us for all the sins that we committed! [We say this to you] because we suffer and groan very much, and we (faint/are very sad).

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