< विलापगीत 1 >

1 जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, अब क्यों कर देनेवाली हो गई है।
אֵיכָ֣ה ׀ יָשְׁבָ֣ה בָדָ֗ד הָעִיר֙ רַבָּ֣תִי עָ֔ם הָיְתָ֖ה כְּאַלְמָנָ֑ה רַּבָּ֣תִי בַגּוֹיִ֗ם שָׂרָ֙תִי֙ בַּמְּדִינ֔וֹת הָיְתָ֖ה לָמַֽס׃ ס
2 रात को वह फूट फूटकर रोती है, उसके आँसू गालों पर ढलकते हैं; उसके सब यारों में से अब कोई उसे शान्ति नहीं देता; उसके सब मित्रों ने उससे विश्वासघात किया, और उसके शत्रु बन गए हैं।
בָּכ֨וֹ תִבְכֶּ֜ה בַּלַּ֗יְלָה וְדִמְעָתָהּ֙ עַ֣ל לֶֽחֱיָ֔הּ אֵֽין־לָ֥הּ מְנַחֵ֖ם מִכָּל־אֹהֲבֶ֑יהָ כָּל־רֵעֶ֙יהָ֙ בָּ֣גְדוּ בָ֔הּ הָ֥יוּ לָ֖הּ לְאֹיְבִֽים׃ ס
3 यहूदा दुःख और कठिन दासत्व के कारण परदेश चली गई; परन्तु अन्यजातियों में रहती हुई वह चैन नहीं पाती; उसके सब खदेड़नेवालों ने उसकी सकेती में उसे पकड़ लिया है।
גָּֽלְתָ֨ה יְהוּדָ֤ה מֵעֹ֙נִי֙ וּמֵרֹ֣ב עֲבֹדָ֔ה הִ֚יא יָשְׁבָ֣ה בַגּוֹיִ֔ם לֹ֥א מָצְאָ֖ה מָנ֑וֹחַ כָּל־רֹדְפֶ֥יהָ הִשִּׂיג֖וּהָ בֵּ֥ין הַמְּצָרִֽים׃ ס
4 सिय्योन के मार्ग विलाप कर रहे हैं, क्योंकि नियत पर्वों में कोई नहीं आता है; उसके सब फाटक सुनसान पड़े हैं, उसके याजक कराहते हैं; उसकी कुमारियाँ शोकित हैं, और वह आप कठिन दुःख भोग रही है।
דַּרְכֵ֨י צִיּ֜וֹן אֲבֵל֗וֹת מִבְּלִי֙ בָּאֵ֣י מוֹעֵ֔ד כָּל־שְׁעָרֶ֙יהָ֙ שֽׁוֹמֵמִ֔ין כֹּהֲנֶ֖יהָ נֶאֱנָחִ֑ים בְּתוּלֹתֶ֥יהָ נּוּג֖וֹת וְהִ֥יא מַר־לָֽהּ׃ ס
5 उसके द्रोही प्रधान हो गए, उसके शत्रु उन्नति कर रहे हैं, क्योंकि यहोवा ने उसके बहुत से अपराधों के कारण उसे दुःख दिया है; उसके बाल-बच्चों को शत्रु हाँक-हाँककर बँधुआई में ले गए।
הָי֨וּ צָרֶ֤יהָ לְרֹאשׁ֙ אֹיְבֶ֣יהָ שָׁל֔וּ כִּֽי־יְהוָ֥ה הוֹגָ֖הּ עַ֣ל רֹב־פְּשָׁעֶ֑יהָ עוֹלָלֶ֛יהָ הָלְכ֥וּ שְׁבִ֖י לִפְנֵי־צָֽר׃ ס
6 सिय्योन की पुत्री का सारा प्रताप जाता रहा है। उसके हाकिम ऐसे हिरनों के समान हो गए हैं जिन्हें कोई चरागाह नहीं मिलती; वे खदेड़नेवालों के सामने से बलहीन होकर भागते हैं।
וַיֵּצֵ֥א מן־בת־צִיּ֖וֹן כָּל־הֲדָרָ֑הּ הָי֣וּ שָׂרֶ֗יהָ כְּאַיָּלִים֙ לֹא־מָצְא֣וּ מִרְעֶ֔ה וַיֵּלְכ֥וּ בְלֹא־כֹ֖חַ לִפְנֵ֥י רוֹדֵֽף׃ ס
7 यरूशलेम ने, इन दुःख भरे और संकट के दिनों में, जब उसके लोग द्रोहियों के हाथ में पड़े और उसका कोई सहायक न रहा, अपनी सब मनभावनी वस्तुओं को जो प्राचीनकाल से उसकी थीं, स्मरण किया है। उसके द्रोहियों ने उसको उजड़ा देखकर उपहास में उड़ाया है।
זָֽכְרָ֣ה יְרוּשָׁלִַ֗ם יְמֵ֤י עָנְיָהּ֙ וּמְרוּדֶ֔יהָ כֹּ֚ל מַחֲמֻדֶ֔יהָ אֲשֶׁ֥ר הָי֖וּ מִ֣ימֵי קֶ֑דֶם בִּנְפֹ֧ל עַמָּ֣הּ בְּיַד־צָ֗ר וְאֵ֤ין עוֹזֵר֙ לָ֔הּ רָא֣וּהָ צָרִ֔ים שָׂחֲק֖וּ עַ֥ל מִשְׁבַּתֶּֽהָ׃ ס
8 यरूशलेम ने बड़ा पाप किया, इसलिए वह अशुद्ध स्त्री सी हो गई है; जितने उसका आदर करते थे वे उसका निरादर करते हैं, क्योंकि उन्होंने उसकी नंगाई देखी है; हाँ, वह कराहती हुई मुँह फेर लेती है।
חֵ֤טְא חָֽטְאָה֙ יְר֣וּשָׁלִַ֔ם עַל־כֵּ֖ן לְנִידָ֣ה הָיָ֑תָה כָּֽל־מְכַבְּדֶ֤יהָ הִזִּיל֙וּהָ֙ כִּי־רָא֣וּ עֶרְוָתָ֔הּ גַּם־הִ֥יא נֶאֶנְחָ֖ה וַתָּ֥שָׁב אָחֽוֹר׃ ס
9 उसकी अशुद्धता उसके वस्त्र पर है; उसने अपने अन्त का स्मरण न रखा; इसलिए वह भयंकर रीति से गिराई गई, और कोई उसे शान्ति नहीं देता है। हे यहोवा, मेरे दुःख पर दृष्टि कर, क्योंकि शत्रु मेरे विरुद्ध सफल हुआ है!
טֻמְאָתָ֣הּ בְּשׁוּלֶ֗יהָ לֹ֤א זָֽכְרָה֙ אַחֲרִיתָ֔הּ וַתֵּ֣רֶד פְּלָאִ֔ים אֵ֥ין מְנַחֵ֖ם לָ֑הּ רְאֵ֤ה יְהוָה֙ אֶת־עָנְיִ֔י כִּ֥י הִגְדִּ֖יל אוֹיֵֽב׃ ס
10 १० द्रोहियों ने उसकी सब मनभावनी वस्तुओं पर हाथ बढ़ाया है; हाँ, अन्यजातियों को, जिनके विषय में तूने आज्ञा दी थी कि वे तेरी सभा में भागी न होने पाएँगी, उनको उसने तेरे पवित्रस्थान में घुसा हुआ देखा है।
יָדוֹ֙ פָּ֣רַשׂ צָ֔ר עַ֖ל כָּל־מַחֲמַדֶּ֑יהָ כִּֽי־רָאֲתָ֤ה גוֹיִם֙ בָּ֣אוּ מִקְדָּשָׁ֔הּ אֲשֶׁ֣ר צִוִּ֔יתָה לֹא־יָבֹ֥אוּ בַקָּהָ֖ל לָֽךְ׃ ס
11 ११ उसके सब निवासी कराहते हुए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे हैं; उन्होंने अपना प्राण बचाने के लिये अपनी मनभावनी वस्तुएँ बेचकर भोजन मोल लिया है। हे यहोवा, दृष्टि कर, और ध्यान से देख, क्योंकि मैं तुच्छ हो गई हूँ।
כָּל־עַמָּ֤הּ נֶאֱנָחִים֙ מְבַקְּשִׁ֣ים לֶ֔חֶם נָתְנ֧וּ מחמודיהם בְּאֹ֖כֶל לְהָשִׁ֣יב נָ֑פֶשׁ רְאֵ֤ה יְהוָה֙ וְֽהַבִּ֔יטָה כִּ֥י הָיִ֖יתִי זוֹלֵלָֽה׃ ס
12 १२ हे सब बटोहियों, क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं? दृष्टि करके देखो, क्या मेरे दुःख से बढ़कर कोई और पीड़ा है जो यहोवा ने अपने क्रोध के दिन मुझ पर डाल दी है?
ל֣וֹא אֲלֵיכֶם֮ כָּל־עֹ֣בְרֵי דֶרֶךְ֒ הַבִּ֣יטוּ וּרְא֗וּ אִם־יֵ֤שׁ מַכְאוֹב֙ כְּמַכְאֹבִ֔י אֲשֶׁ֥ר עוֹלַ֖ל לִ֑י אֲשֶׁר֙ הוֹגָ֣ה יְהוָ֔ה בְּי֖וֹם חֲר֥וֹן אַפּֽוֹ׃ ס
13 १३ उसने ऊपर से मेरी हड्डियों में आग लगाई है, और वे उससे भस्म हो गईं; उसने मेरे पैरों के लिये जाल लगाया, और मुझ को उलटा फेर दिया है; उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी और रोग से लगातार निर्बल रहती हूँ।
מִמָּר֛וֹם שָֽׁלַח־אֵ֥שׁ בְּעַצְמֹתַ֖י וַיִּרְדֶּ֑נָּה פָּרַ֨שׂ רֶ֤שֶׁת לְרַגְלַי֙ הֱשִׁיבַ֣נִי אָח֔וֹר נְתָנַ֙נִי֙ שֹֽׁמֵמָ֔ה כָּל־הַיּ֖וֹם דָּוָֽה׃ ס
14 १४ उसने जूए की रस्सियों की समान मेरे अपराधों को अपने हाथ से कसा है; उसने उन्हें बटकर मेरी गर्दन पर चढ़ाया, और मेरा बल घटा दिया है; जिनका मैं सामना भी नहीं कर सकती, उन्हीं के वश में यहोवा ने मुझे कर दिया है।
נִשְׂקַד֩ עֹ֨ל פְּשָׁעַ֜י בְּיָד֗וֹ יִשְׂתָּֽרְג֛וּ עָל֥וּ עַל־צַוָּארִ֖י הִכְשִׁ֣יל כֹּחִ֑י נְתָנַ֣נִי אֲדֹנָ֔י בִּידֵ֖י לֹא־אוּכַ֥ל קֽוּם׃ ס
15 १५ यहोवा ने मेरे सब पराक्रमी पुरुषों को तुच्छ जाना; उसने नियत पर्व का प्रचार करके लोगों को मेरे विरुद्ध बुलाया कि मेरे जवानों को पीस डाले; यहूदा की कुमारी कन्या को यहोवा ने मानो कुण्ड में पेरा है।
סִלָּ֨ה כָל־אַבִּירַ֤י ׀ אֲדֹנָי֙ בְּקִרְבִּ֔י קָרָ֥א עָלַ֛י מוֹעֵ֖ד לִשְׁבֹּ֣ר בַּחוּרָ֑י גַּ֚ת דָּרַ֣ךְ אֲדֹנָ֔י לִבְתוּלַ֖ת בַּת־יְהוּדָֽה׃ ס
16 १६ इन बातों के कारण मैं रोती हूँ; मेरी आँखों से आँसू की धारा बहती रहती है; क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता था, वह मुझसे दूर हो गया; मेरे बच्चे अकेले हो गए, क्योंकि शत्रु प्रबल हुआ है।
עַל־אֵ֣לֶּה ׀ אֲנִ֣י בוֹכִיָּ֗ה עֵינִ֤י ׀ עֵינִי֙ יֹ֣רְדָה מַּ֔יִם כִּֽי־רָחַ֥ק מִמֶּ֛נִּי מְנַחֵ֖ם מֵשִׁ֣יב נַפְשִׁ֑י הָי֤וּ בָנַי֙ שֽׁוֹמֵמִ֔ים כִּ֥י גָבַ֖ר אוֹיֵֽב׃ ס
17 १७ सिय्योन हाथ फैलाए हुए है, उसे कोई शान्ति नहीं देता; यहोवा ने याकूब के विषय में यह आज्ञा दी है कि उसके चारों ओर के निवासी उसके द्रोही हो जाएँ; यरूशलेम उनके बीच अशुद्ध स्त्री के समान हो गई है।
פֵּֽרְשָׂ֨ה צִיּ֜וֹן בְּיָדֶ֗יהָ אֵ֤ין מְנַחֵם֙ לָ֔הּ צִוָּ֧ה יְהוָ֛ה לְיַעֲקֹ֖ב סְבִיבָ֣יו צָרָ֑יו הָיְתָ֧ה יְרוּשָׁלִַ֛ם לְנִדָּ֖ה בֵּינֵיהֶֽם׃ ס
18 १८ यहोवा सच्चाई पर है, क्योंकि मैंने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है; हे सब लोगों, सुनो, और मेरी पीड़ा को देखो! मेरे कुमार और कुमारियाँ बँधुआई में चली गई हैं।
צַדִּ֥יק ה֛וּא יְהוָ֖ה כִּ֣י פִ֣יהוּ מָרִ֑יתִי שִׁמְעוּ־נָ֣א כָל־עמים וּרְאוּ֙ מַכְאֹבִ֔י בְּתוּלֹתַ֥י וּבַחוּרַ֖י הָלְכ֥וּ בַשֶּֽׁבִי׃ ס
19 १९ मैंने अपने मित्रों को पुकारा परन्तु उन्होंने भी मुझे धोखा दिया; जब मेरे याजक और पुरनिये इसलिए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे थे कि खाने से उनका जी हरा हो जाए, तब नगर ही में उनके प्राण छूट गए।
קָרָ֤אתִי לַֽמְאַהֲבַי֙ הֵ֣מָּה רִמּ֔וּנִי כֹּהֲנַ֥י וּזְקֵנַ֖י בָּעִ֣יר גָּוָ֑עוּ כִּֽי־בִקְשׁ֥וּ אֹ֙כֶל֙ לָ֔מוֹ וְיָשִׁ֖יבוּ אֶת־נַפְשָֽׁם׃ ס
20 २० हे यहोवा, दृष्टि कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ, मेरी अंतड़ियाँ ऐंठी जाती हैं, मेरा हृदय उलट गया है, क्योंकि मैंने बहुत बलवा किया है। बाहर तो मैं तलवार से निर्वंश होती हूँ; और घर में मृत्यु विराज रही है।
רְאֵ֨ה יְהוָ֤ה כִּֽי־צַר־לִי֙ מֵעַ֣י חֳמַרְמָ֔רוּ נֶהְפַּ֤ךְ לִבִּי֙ בְּקִרְבִּ֔י כִּ֥י מָר֖וֹ מָרִ֑יתִי מִח֥וּץ שִׁכְּלָה־חֶ֖רֶב בַּבַּ֥יִת כַּמָּֽוֶת׃ ס
21 २१ उन्होंने सुना है कि मैं कराहती हूँ, परन्तु कोई मुझे शान्ति नहीं देता। मेरे सब शत्रुओं ने मेरी विपत्ति का समाचार सुना है; वे इससे हर्षित हो गए कि तू ही ने यह किया है। परन्तु जिस दिन की चर्चा तूने प्रचार करके सुनाई है उसको तू दिखा, तब वे भी मेरे समान हो जाएँगे।
שָׁמְע֞וּ כִּ֧י נֶאֱנָחָ֣ה אָ֗נִי אֵ֤ין מְנַחֵם֙ לִ֔י כָּל־אֹ֨יְבַ֜י שָׁמְע֤וּ רָֽעָתִי֙ שָׂ֔שׂוּ כִּ֥י אַתָּ֖ה עָשִׂ֑יתָ הֵבֵ֥אתָ יוֹם־קָרָ֖אתָ וְיִֽהְי֥וּ כָמֽוֹנִי׃ ס
22 २२ उनकी सारी दुष्टता की ओर दृष्टि कर; और जैसा मेरे सारे अपराधों के कारण तूने मुझे दण्ड दिया, वैसा ही उनको भी दण्ड दे; क्योंकि मैं बहुत ही कराहती हूँ, और मेरा हृदय रोग से निर्बल हो गया है।
תָּבֹ֨א כָל־רָעָתָ֤ם לְפָנֶ֙יךָ֙ וְעוֹלֵ֣ל לָ֔מוֹ כַּאֲשֶׁ֥ר עוֹלַ֛לְתָּ לִ֖י עַ֣ל כָּל־פְּשָׁעָ֑י כִּֽי־רַבּ֥וֹת אַנְחֹתַ֖י וְלִבִּ֥י דַוָּֽי׃ פ

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