< न्यायियों 16 >
1 १ तब शिमशोन गाज़ा को गया, और वहाँ एक वेश्या को देखकर उसके पास गया।
abiit quoque in Gazam et vidit ibi meretricem mulierem ingressusque est ad eam
2 २ जब गाज़ावासियों को इसका समाचार मिला कि शिमशोन यहाँ आया है, तब उन्होंने उसको घेर लिया, और रात भर नगर के फाटक पर उसकी घात में लगे रहे; और यह कहकर रात भर चुपचाप रहे, कि भोर होते ही हम उसको घात करेंगे।
quod cum audissent Philisthim et percrebruisset apud eos intrasse urbem Samson circumdederunt eum positis in porta civitatis custodibus et ibi tota nocte cum silentio praestolantes ut facto mane exeuntem occiderent
3 ३ परन्तु शिमशोन आधी रात तक पड़ा रहा, और आधी रात को उठकर, उसने नगर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाजुओं को पकड़कर बेंड़ों समेत उखाड़ लिया, और अपने कंधों पर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के सामने है।
dormivit autem Samson usque ad noctis medium et inde consurgens adprehendit ambas portae fores cum postibus suis et sera inpositasque umeris portavit ad verticem montis qui respicit Hebron
4 ४ इसके बाद वह सोरेक नामक घाटी में रहनेवाली दलीला नामक एक स्त्री से प्रीति करने लगा।
post haec amavit mulierem quae habitabat in valle Sorech et vocabatur Dalila
5 ५ तब पलिश्तियों के सरदारों ने उस स्त्री के पास जा के कहा, “तू उसको फुसलाकर पूछ कि उसके महाबल का भेद क्या है, और कौन सा उपाय करके हम उस पर ऐसे प्रबल हों, कि उसे बाँधकर दबा रखें; तब हम तुझे ग्यारह-ग्यारह सौ टुकड़े चाँदी देंगे।”
veneruntque ad eam principes Philisthinorum atque dixerunt decipe eum et disce ab illo in quo tantam habeat fortitudinem et quomodo eum superare valeamus et vinctum adfligere quod si feceris dabimus tibi singuli mille centum argenteos
6 ६ तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “मुझे बता दे कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है, और किस रीति से कोई तुझे बाँधकर रख सकता है।”
locuta est ergo Dalila ad Samson dic mihi obsecro in quo sit tua maxima fortitudo et quid sit quo ligatus erumpere nequeas
7 ७ शिमशोन ने उससे कहा, “यदि मैं सात ऐसी नई-नई ताँतों से बाँधा जाऊँ जो सुखाई न गई हों, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊँगा।”
cui respondit Samson si septem nervicis funibus necdum siccis et adhuc humentibus ligatus fuero infirmus ero ut ceteri homines
8 ८ तब पलिश्तियों के सरदार दलीला के पास ऐसी नई-नई सात ताँतें ले गए जो सुखाई न गई थीं, और उनसे उसने शिमशोन को बाँधा।
adtuleruntque ad eam satrapae Philisthinorum septem funes ut dixerat quibus vinxit eum
9 ९ उसके पास तो कुछ मनुष्य कोठरी में घात लगाए बैठे थे। तब उसने उससे कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” तब उसने ताँतों को ऐसा तोड़ा जैसा सन का सूत आग से छूते ही टूट जाता है। और उसके बल का भेद न खुला।
latentibus apud se insidiis et in cubiculo finem rei expectantibus clamavitque ad eum Philisthim super te Samson qui rupit vincula quomodo si rumpat quis filum de stuppae tortum putamine cum odorem ignis acceperit et non est cognitum in quo esset fortitudo eius
10 १० तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “सुन, तूने तो मुझसे छल किया, और झूठ कहा है; अब मुझे बता दे कि तू किस वस्तु से बन्ध सकता है।”
dixitque ad eum Dalila ecce inlusisti mihi et falsum locutus es saltim nunc indica quo ligari debeas
11 ११ उसने उससे कहा, “यदि मैं ऐसी नई-नई रस्सियों से जो किसी काम में न आईं हों कसकर बाँधा जाऊँ, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊँगा।”
cui ille respondit si ligatus fuero novis funibus qui numquam fuerunt in opere infirmus ero et aliorum hominum similis
12 १२ तब दलीला ने नई-नई रस्सियाँ लेकर और उसको बाँधकर कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” कितने मनुष्य उस कोठरी में घात लगाए हुए थे। तब उसने उनको सूत के समान अपनी भुजाओं पर से तोड़ डाला।
quibus rursum Dalila vinxit eum et clamavit Philisthim super te Samson in cubiculo insidiis praeparatis qui ita rupit vincula quasi fila telarum
13 १३ तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “अब तक तू मुझसे छल करता, और झूठ बोलता आया है; अब मुझे बता दे कि तू किस से बन्ध सकता है?” उसने कहा, “यदि तू मेरे सिर की सातों लटें ताने में बुने तो बन्ध सकूँगा।”
dixitque Dalila rursum ad eum usquequo decipis me et falsum loqueris ostende quo vinciri debeas si inquit septem crines capitis mei cum licio plexueris et clavum his circumligatum terrae fixeris infirmus ero
14 १४ अतः उसने उसे खूँटी से जकड़ा। तब उससे कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” तब वह नींद से चौंक उठा, और खूँटी को धरन में से उखाड़कर उसे ताने समेत ले गया।
quod cum fecisset Dalila dixit ad eum Philisthim super te Samson qui consurgens de somno extraxit clavum cum crinibus et licio
15 १५ तब दलीला ने उससे कहा, “तेरा मन तो मुझसे नहीं लगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ? तूने ये तीनों बार मुझसे छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है।”
dixitque ad eum Dalila quomodo dicis quod ames me cum animus tuus non sit mecum per tres vices mentitus es mihi et noluisti dicere in quo sit tua maxima fortitudo
16 १६ इस प्रकार जब उसने हर दिन बातें करते-करते उसको तंग किया, और यहाँ तक हठ किया, कि उसकी नाकों में दम आ गया,
cumque molesta ei esset et per multos dies iugiter adhereret spatium ad quietem non tribuens defecit anima eius et ad mortem usque lassata est
17 १७ तब उसने अपने मन का सारा भेद खोलकर उससे कहा, “मेरे सिर पर छुरा कभी नहीं फिरा, क्योंकि मैं माँ के पेट ही से परमेश्वर का नाज़ीर हूँ, यदि मैं मुँड़ा जाऊँ, तो मेरा बल इतना घट जाएगा, कि मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊँगा।”
tunc aperiens veritatem rei dixit ad eam ferrum numquam ascendit super caput meum quia nazareus id est consecratus Deo sum de utero matris meae si rasum fuerit caput meum recedet a me fortitudo mea et deficiam eroque ut ceteri homines
18 १८ यह देखकर, कि उसने अपने मन का सारा भेद मुझसे कह दिया है, दलीला ने पलिश्तियों के सरदारों के पास कहला भेजा, “अब की बार फिर आओ, क्योंकि उसने अपने मन का सब भेद मुझे बता दिया है।” तब पलिश्तियों के सरदार हाथ में रुपया लिए हुए उसके पास गए।
videns illa quod confessus ei esset omnem animum suum misit ad principes Philisthinorum atque mandavit ascendite adhuc semel quia nunc mihi aperuit cor suum qui ascenderunt adsumpta pecunia quam promiserant
19 १९ तब उसने उसको अपने घुटनों पर सुला रखा; और एक मनुष्य बुलवाकर उसके सिर की सातों लटें मुँण्ड़वा डाली। और वह उसको दबाने लगी, और वह निर्बल हो गया।
at illa dormire eum fecit super genua sua et in sinu suo reclinare caput vocavitque tonsorem et rasit septem crines eius et coepit abicere eum et a se repellere statim enim ab eo fortitudo discessit
20 २० तब उसने कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” तब वह चौंककर सोचने लगा, “मैं पहले के समान बाहर जाकर झटकूँगा।” वह तो न जानता था, कि यहोवा उसके पास से चला गया है।
dixitque Philisthim super te Samson qui de somno consurgens dixit in animo suo egrediar sicut ante feci et me excutiam nesciens quod Dominus recessisset ab eo
21 २१ तब पलिश्तियों ने उसको पकड़कर उसकी आँखें फोड़ डालीं, और उसे गाज़ा को ले जा के पीतल की बेड़ियों से जकड़ दिया; और वह बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा।
quem cum adprehendissent Philisthim statim eruerunt oculos eius et duxerunt Gazam vinctum catenis et clausum in carcere molere fecerunt
22 २२ उसके सिर के बाल मुँण्ड़ जाने के बाद फिर बढ़ने लगे।
iamque capilli eius renasci coeperant
23 २३ तब पलिश्तियों के सरदार अपने दागोन नामक देवता के लिये बड़ा यज्ञ, और आनन्द करने को यह कहकर इकट्ठे हुए, “हमारे देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हमारे हाथ में कर दिया है।”
et principes Philisthinorum convenerunt in unum ut immolarent hostias magnificas Dagon deo suo et epularentur dicentes tradidit deus noster inimicum nostrum Samson in manus nostras
24 २४ और जब लोगों ने उसे देखा, तब यह कहकर अपने देवता की स्तुति की, “हमारे देवता ने हमारे शत्रु और हमारे देश का नाश करनेवाले को, जिसने हम में से बहुतों को मार भी डाला, हमारे हाथ में कर दिया है।”
quod etiam populus videns laudabat deum suum eademque dicebat tradidit deus noster in manus nostras adversarium qui delevit terram nostram et occidit plurimos
25 २५ जब उनका मन मगन हो गया, तब उन्होंने कहा, “शिमशोन को बुलवा लो, कि वह हमारे लिये तमाशा करे।” इसलिए शिमशोन बन्दीगृह में से बुलवाया गया, और उनके लिये तमाशा करने लगा, और खम्भों के बीच खड़ा कर दिया गया।
laetantesque per convivia sumptis iam epulis praeceperunt ut vocaretur Samson et ante eos luderet qui adductus de carcere ludebat ante eos feceruntque eum stare inter duas columnas
26 २६ तब शिमशोन ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े था कहा, “मुझे उन खम्भों को, जिनसे घर सम्भला हुआ है छूने दे, कि मैं उस पर टेक लगाऊँ।”
qui dixit puero regenti gressus suos dimitte me ut tangam columnas quibus omnis inminet domus ut recliner super eas et paululum requiescam
27 २७ वह घर तो स्त्री पुरुषों से भरा हुआ था; पलिश्तियों के सब सरदार भी वहाँ थे, और छत पर कोई तीन हजार स्त्री और पुरुष थे, जो शिमशोन को तमाशा करते हुए देख रहे थे।
domus autem plena erat virorum ac mulierum et erant ibi omnes principes Philisthinorum ac de tecto et solario circiter tria milia utriusque sexus spectabant ludentem Samson
28 २८ तब शिमशोन ने यह कहकर यहोवा की दुहाई दी, “हे प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर, अब की बार मुझे बल दे, कि मैं पलिश्तियों से अपनी दोनों आँखों का एक ही बदला लूँ।”
at ille invocato Domino ait Domine Deus memento mei et redde nunc mihi pristinam fortitudinem Deus meus ut ulciscar me de hostibus meis et pro amissione duorum luminum unam ultionem recipiam
29 २९ तब शिमशोन ने उन दोनों बीचवाले खम्भों को जिनसे घर सम्भला हुआ था, पकड़कर एक पर तो दाहिने हाथ से और दूसरे पर बाएँ हाथ से बल लगा दिया।
et adprehendens ambas columnas quibus innitebatur domus alteramque earum dextera et alteram leva tenens
30 ३० और शिमशोन ने कहा, “पलिश्तियों के संग मेरा प्राण भी जाए।” और वह अपना सारा बल लगाकर झुका; तब वह घर सब सरदारों और उसमें के सारे लोगों पर गिर पड़ा। इस प्रकार जिनको उसने मरते समय मार डाला वे उनसे भी अधिक थे जिन्हें उसने अपने जीवन में मार डाला था।
ait moriatur anima mea cum Philisthim concussisque fortiter columnis cecidit domus super omnes principes et ceteram multitudinem quae ibi erat multoque plures interfecit moriens quam ante vivus occiderat
31 ३१ तब उसके भाई और उसके पिता के सारे घराने के लोग आए, और उसे उठाकर ले गए, और सोरा और एश्ताओल के मध्य उसके पिता मानोह की कब्र में मिट्टी दी। उसने इस्राएल का न्याय बीस वर्ष तक किया था।
descendentes autem fratres eius et universa cognatio tulerunt corpus eius et sepelierunt inter Saraa et Esthaol in sepulchro patris Manue iudicavitque Israhel viginti annis