< अय्यूब 26 >

1 तब अय्यूब ने कहा,
پس ایوب در جواب گفت:۱
2 “निर्बल जन की तूने क्या ही बड़ी सहायता की, और जिसकी बाँह में सामर्थ्य नहीं, उसको तूने कैसे सम्भाला है?
«شخص بی‌قوت را چگونه اعانت کردی؟ و بازوی ناتوان را چگونه نجات دادی؟۲
3 निर्बुद्धि मनुष्य को तूने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपनी खरी बुद्धि कैसी भली भाँति प्रगट की है?
شخص بی‌حکمت را چه نصیحت نمودی؟ وحقیقت امر را به فراوانی اعلام کردی!۳
4 तूने किसके हित के लिये बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुँह से निकलीं?”
برای که سخنان را بیان کردی؟ و نفخه کیست که از توصادر شد؟۴
5 “बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं।
ارواح مردگان می‌لرزند، زیر آبها وساکنان آنها.۵
6 अधोलोक उसके सामने उघड़ा रहता है, और विनाश का स्थान ढँप नहीं सकता। (Sheol h7585)
هاویه به حضور او عریان است، وابدون را ستری نیست. (Sheol h7585)۶
7 वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।
شمال را بر جو پهن می‌کند، و زمین را بر نیستی آویزان می‌سازد.۷
8 वह जल को अपनी काली घटाओं में बाँध रखता, और बादल उसके बोझ से नहीं फटता।
آبها را در ابرهای خود می‌بندد، پس ابر، زیرآنها چاک نمی شود.۸
9 वह अपने सिंहासन के सामने बादल फैलाकर चाँद को छिपाए रखता है।
روی تخت خود رامحجوب می‌سازد و ابرهای خویش را پیش آن می‌گستراند.۹
10 १० उजियाले और अंधियारे के बीच जहाँ सीमा बंधी है, वहाँ तक उसने जलनिधि का सीमा ठहरा रखी है।
به اطراف سطح آبها حد می‌گذاردتا کران روشنایی و تاریکی.۱۰
11 ११ उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे थरथराते और चकित होते हैं।
ستونهای آسمان متزلزل می‌شود و از عتاب او حیران می‌ماند.۱۱
12 १२ वह अपने बल से समुद्र को शान्त, और अपनी बुद्धि से रहब को छेद देता है।
به قوت خود دریا را به تلاطم می‌آورد، و به فهم خویش رهب را خرد می‌کند.۱۲
13 १३ उसकी आत्मा से आकाशमण्डल स्वच्छ हो जाता है, वह अपने हाथ से वेग से भागनेवाले नाग को मार देता है।
به روح اوآسمانها زینت داده شد، و دست او مار تیز رو راسفت.۱۳
14 १४ देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?”
اینک اینها حواشی طریق های او است. و چه آواز آهسته‌ای درباره او می‌شنویم، لکن رعد جبروت او را کیست که بفهمد؟»۱۴

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