< अय्यूब 21 >
Then responded Job, and said: —
2 २ “चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे।
Hear ye patiently my words, and let this be your consolation:
3 ३ मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूँ; और जब मैं बातें कर चुकूँ, तब पीछे ठट्ठा करना।
Suffer me, that, I, may speak, and, after I have spoken, thou canst mock!
4 ४ क्या मैं किसी मनुष्य की दुहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्यों न होऊँ?
Did, I, unto man, make my complaint? Wherefore, then, should my spirit not be impatient?
5 ५ मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपनी-अपनी उँगली दाँत तले दबाओ।
Turn round to me, and be astonished, and lay hand on mouth!
6 ६ जब मैं कष्टों को स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह काँपने लगती है।
When I call to mind, then am I dismayed, and there seizeth my flesh a shuddering: —
7 ७ क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन् बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है?
Wherefore do, lawless men, live, advance in years, even wax mighty in power?
8 ८ उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बाल-बच्चे उनकी आँखों के सामने बने रहते हैं।
Their seed, is established in their sight, along with them, yea their offspring, before their eyes;
9 ९ उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और परमेश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती।
Their houses, are at peace, without dread, neither is, the rod of GOD, upon them;
10 १० उनका साँड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गायें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिराती।
His bull, covereth, and causeth not aversion, His cow safely calveth, and casteth not her young;
11 ११ वे अपने लड़कों को झुण्ड के झुण्ड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं।
They send forth—like a flock—their young ones, and, their children, skip about for joy;
12 १२ वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं।
They rejoice aloud as [with] timbrel and lyre, and make merry to the sound of the pipe;
13 १३ वे अपने दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं। (Sheol )
They complete, in prosperity, their days, and, in a moment to hades, they sink down. (Sheol )
14 १४ तो भी वे परमेश्वर से कहते थे, ‘हम से दूर हो! तेरी गति जानने की हमको इच्छा नहीं है।
Yet they said unto GOD, Depart from us, and, In the knowledge of thy ways, find we no pleasure.
15 १५ सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और यदि हम उससे विनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा?’
What is the Almighty, that we should serve him? Or what shall we profit, that we should urge him?
16 १६ देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहता, दुष्ट लोगों का विचार मुझसे दूर रहे।
Lo! not in their own hand, is their welfare, The counsel of lawless men, is far from me!
17 १७ “कितनी बार ऐसे होता है कि दुष्टों का दीपक बुझ जाता है, या उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और परमेश्वर क्रोध करके उनके हिस्से में शोक देता है,
How oft, the lamp of the lawless, goeth out, and their calamity, cometh upon them, Sorrows, apportioneth he in his anger;
18 १८ वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवण्डर से उड़ाई हुई भूसी के समान होते हैं।
They become as straw before the wind, and as chaff, which the storm stealeth away.
19 १९ तुम कहते हो ‘परमेश्वर उसके अधर्म का दण्ड उसके बच्चों के लिये रख छोड़ता है,’ वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले।
Shall, GOD, reserve, for his children, his sorrow? Let him recompense him so that he may know it;
20 २० दुष्ट अपना नाश अपनी ही आँखों से देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले।
His own eyes, shall see his misfortune, and, the wrath of the Almighty, shall he drink.
21 २१ क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बादवाले घराने से उसका क्या काम रहा।
For what shall be his pleasure in his house after him, when, the number of his months, is cut in twain?
22 २२ क्या परमेश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊँचे पद पर रहनेवालों का भी न्याय करता है।
Is it, to GOD, one can teach knowledge, seeing that, he, shall judge, them who are on high?
23 २३ कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
This, man dieth, in the very perfection of his prosperity, wholly tranquil and secure;
24 २४ उसकी देह दूध से और उसकी हड्डियाँ गूदे से भरी रहती हैं।
His veins, are filled with nourishment, and, the marrow of his bones, is fresh;
25 २५ और कोई अपने जीव में कुढ़कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है।
Whereas, this other man, dieth, in bitterness of soul, and hath never tasted good fortune:
26 २६ वे दोनों बराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं।
Together, in the dust, they lie down, and, the worm, spreadeth a covering over them.
27 २७ “देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएँ जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो।
Lo! I know your plans, and the devices, wherewith ye would do me violence!
28 २८ तुम कहते तो हो, ‘रईस का घर कहाँ रहा? दुष्टों के निवास के तम्बू कहाँ रहे?’
For ye say, Where is the house of the noble-minded? And where the dwelling-tent of the lawless?
29 २९ परन्तु क्या तुम ने बटोहियों से कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणों से अनजान हो,
Have ye not asked the passers-by in the way? And, their signs, can ye not recognise?
30 ३० कि विपत्ति के दिन के लिये दुर्जन सुरक्षित रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिये ऐसे लोग बचाए जाते हैं?
That, to the day of calamity, is the wicked reserved, to the day of indignant visitation, are they led.
31 ३१ उसकी चाल उसके मुँह पर कौन कहेगा? और उसने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा?
Who can declare—to his face—his way? And, what, he, hath done, who shall recompense to him?
32 ३२ तो भी वह कब्र को पहुँचाया जाता है, और लोग उस कब्र की रखवाली करते रहते हैं।
Yet, he, to the graves, is borne, and, over the tomb, one keepeth watch;
33 ३३ नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनत जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएँगे।
Pleasant to him are the mounds of the torrent-bed, —and, after him, doth every man march, as, before him, there were without number.
34 ३४ तुम्हारे उत्तरों में तो झूठ ही पाया जाता है, इसलिए तुम क्यों मुझे व्यर्थ शान्ति देते हो?”
How then should ye comfort me with vanity, since, as for your replies, there lurketh, [in them] treachery?