< अय्यूब 14 >
1 १ “मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, उसके दिन थोड़े और दुःख भरे है।
“We humans are very frail. We live only a short time, and we experience a lot of trouble.
2 २ वह फूल के समान खिलता, फिर तोड़ा जाता है; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं।
We disappear quickly, like flowers that grow from the ground quickly and then wither and die [SIM]. We are like shadows that disappear [when the sun stops shining].
3 ३ फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है?
[Yahweh, ] why do you keep watching me [to see if I am doing something that is wrong] [RHQ]? Are you wanting to take me to court to judge me?
4 ४ अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
People are sinners from the time when they are born; who can cause them to be sinless? No one [RHQ]!
5 ५ मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी है, और तूने उसके लिये ऐसा सीमा बाँधा है जिसे वह पार नहीं कर सकता,
You have decided how long our lives will be. You have decided how many months we will live, and we cannot live more months than the (limit/number of months) that you have decided.
6 ६ इस कारण उससे अपना मुँह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर के समान अपना दिन पूरा न कर ले।
So please stop examining us, and allow us to be alone, until/while we finish our time [here on earth], like a man finishes his work [at the end of the day].
7 ७ “वृक्ष के लिये तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तो भी फिर पनपेगा और उससे नर्म-नर्म डालियाँ निकलती ही रहेंगी।
If someone cuts a tree down, we hope that it will sprout again and grow new branches.
8 ८ चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूँठ मिट्टी में सूख भी जाए,
Its roots in the ground may be very old, and its stump may decay,
9 ९ तो भी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे के समान उससे शाखाएँ फूटेंगी।
but if some water falls on it, it may bud/sprout and send up shoots like a young plant.
10 १० परन्तु मनुष्य मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहाँ रहा?
But when we people lose all our strength and die, we stop breathing and then we are gone [forever].
11 ११ जैसे नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते-सूखते सूख जाता है,
Just like water evaporates from the ocean, or like a riverbed dries up,
12 १२ वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी।
people [lie down and die and] do not get up again. Until the heavens disappear, people who die [EUP] do not wake up, and no one can wake them up.
13 १३ भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंडा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता। (Sheol )
[“Yahweh, ] I wish that you would put me safely in the place of the dead and forget about me until you are no longer angry with me. I wish that you would decide how much time I would spend there, and then remember [that] I [am there]. (Sheol )
14 १४ यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता।
When we humans die, we will certainly not live again [RHQ]. If [I knew that] we would live again, I would wait patiently, and I would wait for you to release me [from my sufferings].
15 १५ तू मुझे पुकारता, और मैं उत्तर देता हूँ; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती है।
You would call me, and I would answer. You would be eager to see me, one of the creatures that you had made.
16 १६ परन्तु अब तू मेरे पग-पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता?
You would take care of [MET] me, instead of watching me to see if I would sin.
17 १७ मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, और तूने मेरे अधर्म को सी रखा है।
[It is as though the record of] my sins would be sealed in a small bag, and you would cover them up.
18 १८ “और निश्चय पहाड़ भी गिरते-गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है;
“But, just like mountains crumble and rocks fall down from a cliff,
19 १९ और पत्थर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है।
and just like water slowly wears away the stones, and just like floods wash away soil, [you eventually destroy us]; you do not allow us to continue to (hope/confidently expect) [that we will keep on living].
20 २० तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चेहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है।
You always defeat us, and then we die [EUP]. You cause our faces to look ugly after we die, and you send us away.
21 २१ उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता।
[When we die] we do not know if our sons will grow up and [do things that will cause them to] be honored. And if they become disgraced, we do not see that, [either].
22 २२ केवल उसकी अपनी देह को दुःख होता है; और केवल उसका अपना प्राण ही अन्दर ही अन्दर शोकित होता है।”
We will feel our own pains; we will not feel anything else; we will be sorry for ourselves, not for anyone else.”