< अय्यूब 12 >
Und Hiob antwortete und sprach:
2 २ “निःसन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी।
Fürwahr, ihr seid die Leute, und mit euch wird die Weisheit aussterben!
3 ३ परन्तु तुम्हारे समान मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ नीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो?
Auch ich habe Verstand wie ihr; ich stehe nicht hinter euch zurück; [Eig. ich falle nicht gegen euch ab; so auch Kap. 13,2] und wer wüßte nicht dergleichen?
4 ४ मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन लिया करता था; परन्तु अब मेरे मित्र मुझ पर हँसते हैं; जो धर्मी और खरा मनुष्य है, वह हँसी का कारण हो गया है।
Ich muß einer sein, der seinem Freunde zum Gespött ist, der zu Gott ruft, und er antwortet [O. rief antwortete] ihm; der Gerechte, Vollkommene ist zum Gespött!
5 ५ दुःखी लोग तो सुखी लोगों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पाँव फिसलते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है।
Dem Unglück gebührt Verachtung nach den Gedanken des Sorglosen; sie ist bereit für die, welche mit dem Fuße wanken.
6 ६ डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो परमेश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; अर्थात् उनका ईश्वर उनकी मुट्ठी में रहता हैं;
Die Zelte der Verwüster sind in Ruhe, und Sicherheit ist für die, welche Gott [El] reizen, für den, welcher Gott in seiner Hand führt. [d. h. welcher nur auf seine Hand vertraut. Vergl. Hab. 1,11]
7 ७ “पशुओं से तो पूछ और वे तुझे सिखाएँगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बताएँगे।
Aber frage doch das Vieh, und es wirds dich lehren; und das Gevögel des Himmels, und es wirds dir kundtun;
8 ८ पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उससे तुझे शिक्षा मिलेगी; और समुद्र की मछलियाँ भी तुझ से वर्णन करेंगी।
oder rede zu der Erde, und sie wirds dich lehren; und die Fische des Meeres werden es dir erzählen.
9 ९ कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है?
Wer erkennte nicht an diesen allen, daß die Hand Jehovas solches gemacht hat,
10 १० उसके हाथ में एक-एक जीवधारी का प्राण, और एक-एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।
in dessen Hand die Seele alles Lebendigen ist und der Geist alles menschlichen Fleisches?
11 ११ जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?
Soll nicht das Ohr die Worte prüfen, wie der Gaumen für sich die Speise kostet?
12 १२ बूढ़ों में बुद्धि पाई जाती है, और लम्बी आयु वालों में समझ होती तो है।
Bei Greisen ist Weisheit, und Einsicht bei hohem Alter.
13 १३ “परमेश्वर में पूरी बुद्धि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं।
Bei ihm ist Weisheit und Macht, sein ist Rat und Einsicht.
14 १४ देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।
Siehe, er reißt nieder, und es wird nicht wieder gebaut; er schließt über jemand zu, und es wird nicht aufgetan.
15 १५ देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्वी उलट जाती है।
Siehe, er hemmt die Wasser, und sie vertrocknen; und er läßt sie los, und sie kehren das Land um.
16 १६ उसमें सामर्थ्य और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोखा देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनों उसी के हैं।
Bei ihm ist Kraft und vollkommenes Wissen; sein ist der Irrende und der Irreführende.
17 १७ वह मंत्रियों को लूटकर बँधुआई में ले जाता, और न्यायियों को मूर्ख बना देता है।
Er führt Räte beraubt [Eig. ausgezogen] hinweg, und Richter macht er zu Narren.
18 १८ वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है।
Die Herrschaft der Könige löst er auf, und schlingt eine Fessel [Eig. einen Gurt, ein Band] um ihre Lenden.
19 १९ वह याजकों को लूटकर बँधुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है।
Er führt Priester beraubt [Eig. ausgezogen] hinweg, und Feststehende stürzt er um.
20 २० वह विश्वासयोग्य पुरुषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है।
Zuverlässigen [d. h. solchen, auf deren Rat man sich verlassen kann] entzieht er die Sprache, und Alten benimmt er das Urteil.
21 २१ वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है।
Verachtung schüttet er auf Edle, und den Gürtel der Starken macht er schlaff.
22 २२ वह अंधियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।
Er enthüllt Tiefes aus der Finsternis, und Todesschatten zieht er an das Licht hervor.
23 २३ वह जातियों को बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बँधुआई में ले जाता है।
Er vergrößert Nationen, und er vernichtet sie; er breitet Nationen aus, und er führt sie hinweg.
24 २४ वह पृथ्वी के मुख्य लोगों की बुद्धि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्थानों में जहाँ रास्ता नहीं है, भटकाता है।
Er entzieht den Verstand den Häuptern der Völker der Erde, und macht sie umherirren in pfadloser Einöde;
25 २५ वे बिन उजियाले के अंधेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले के समान डगमगाते हुए चलते हैं।
sie tappen in der Finsternis, wo kein Licht ist, und er macht sie umherirren gleich einem Trunkenen.