< यिर्मयाह 17 >
1 १ “यहूदा का पाप लोहे की टाँकी और हीरे की नोक से लिखा हुआ है; वह उनके हृदयरूपी पटिया और उनकी वेदियों के सींगों पर भी खुदा हुआ है।
Peccatum Juda scriptum est stylo ferreo in ungue adamantino, exaratum super latitudinem cordis eorum, et in cornibus ararum eorum.
2 २ उनकी वेदियाँ और अशेरा नामक देवियाँ जो हरे पेड़ों के पास और ऊँचे टीलों के ऊपर हैं, वे उनके लड़कों को भी स्मरण रहती हैं।
Cum recordati fuerint filii eorum ararum suarum, et lucorum suorum, lignorumque frondentium, in montibus excelsis,
3 ३ हे मेरे पर्वत, तू जो मैदान में है, तेरी धन-सम्पत्ति और भण्डार मैं तेरे पाप के कारण लुट जाने दूँगा, और तेरे पूजा के ऊँचे स्थान भी जो तेरे देश में पाए जाते हैं।
sacrificantes in agro: fortitudinem tuam, et omnes thesauros tuos in direptionem dabo; excelsa tua propter peccata in universis finibus tuis.
4 ४ तू अपने ही दोष के कारण अपने उस भाग का अधिकारी न रहने पाएगा जो मैंने तुझे दिया है, और मैं ऐसा करूँगा कि तू अनजाने देश में अपने शत्रुओं की सेवा करेगा, क्योंकि तूने मेरे क्रोध की आग ऐसी भड़काई है जो सर्वदा जलती रहेगी।”
Et relinqueris sola ab hæreditate tua, quam dedi tibi, et servire te faciam inimicis tuis in terra quam ignoras: quoniam ignem succendisti in furore meo: usque in æternum ardebit.
5 ५ यहोवा यह कहता है, “श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है।
Hæc dicit Dominus: Maledictus homo qui confidit in homine, et ponit carnem brachium suum, et a Domino recedit cor ejus.
6 ६ वह निर्जल देश के अधमरे पेड़ के समान होगा और कभी भलाई न देखेगा। वह निर्जल और निर्जन तथा लोनछाई भूमि पर बसेगा।
Erit enim quasi myricæ in deserto, et non videbit cum venerit bonum: sed habitabit in siccitate in deserto, in terra salsuginis et inhabitabili.
7 ७ “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो।
Benedictus vir qui confidit in Domino, et erit Dominus fiducia ejus.
8 ८ वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के किनारे पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब धूप होगी तब उसको न लगेगी, उसके पत्ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।”
Et erit quasi lignum quod transplantatur super aquas, quod ad humorem mittit radices suas, et non timebit cum venerit æstus: et erit folium ejus viride, et in tempore siccitatis non erit sollicitum, nec aliquando desinet facere fructum.
9 ९ मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उसमें असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?
Pravum est cor omnium, et inscrutabile: quis cognoscet illud?
10 १० “मैं यहोवा मन को खोजता और हृदय को जाँचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात् उसके कामों का फल दूँ।”
Ego Dominus scrutans cor, et probans renes: qui do unicuique juxta viam suam, et juxta fructum adinventionum suarum.
11 ११ जो अन्याय से धन बटोरता है वह उस तीतर के समान होता है जो दूसरी चिड़िया के दिए हुए अण्डों को सेती है, उसकी आधी आयु में ही वह उस धन को छोड़ जाता है, और अन्त में वह मूर्ख ही ठहरता है।
Perdix fovit quæ non peperit: fecit divitias, et non in judicio: in dimidio dierum suorum derelinquet eas, et in novissimo suo erit insipiens.
12 १२ हमारा पवित्र आराधनालय आदि से ऊँचे स्थान पर रखे हुए एक तेजोमय सिंहासन के समान है।
Solium gloriæ altitudinis a principio, locus sanctificationis nostræ.
13 १३ हे यहोवा, हे इस्राएल के आधार, जितने तुझे छोड़ देते हैं वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से भटक जाते हैं उनके नाम भूमि ही पर लिखे जाएँगे, क्योंकि उन्होंने जीवन के जल के सोते यहोवा को त्याग दिया है।
Exspectatio Israël, Domine, omnes qui te derelinquunt confundentur: recedentes a te, in terra scribentur, quoniam dereliquerunt venam aquarum viventium Dominum.
14 १४ हे यहोवा मुझे चंगा कर, तब मैं चंगा हो जाऊँगा; मुझे बचा, तब मैं बच जाऊँगा; क्योंकि मैं तेरी ही स्तुति करता हूँ।
Sana me, Domine, et sanabor: salvum me fac, et salvus ero: quoniam laus mea tu es.
15 १५ सुन, वे मुझसे कहते हैं, “यहोवा का वचन कहाँ रहा? वह अभी पूरा हो जाए!”
Ecce ipsi dicunt ad me: Ubi est verbum Domini? veniat:
16 १६ परन्तु तू मेरा हाल जानता है, मैंने तेरे पीछे चलते हुए उतावली करके चरवाहे का काम नहीं छोड़ा; न मैंने उस आनेवाली विपत्ति के दिन की लालसा की है; जो कुछ मैं बोला वह तुझ पर प्रगट था।
et ego non sum turbatus, te pastorem sequens: et diem hominis non desideravi, tu scis: quod egressum est de labiis meis, rectum in conspectu tuo fuit.
17 १७ मुझे न घबरा; संकट के दिन तू ही मेरा शरणस्थान है।
Non sis tu mihi formidini: spes mea tu in die afflictionis.
18 १८ हे यहोवा, मेरी आशा टूटने न दे, मेरे सतानेवालों ही की आशा टूटे; उन्हीं को विस्मित कर; परन्तु मुझे निराशा से बचा; उन पर विपत्ति डाल और उनको चकनाचूर कर दे!
Confundantur qui me persequuntur, et non confundar ego: paveant illi, et non paveam ego: induc super eos diem afflictionis, et duplici contritione contere eos.
19 १९ यहोवा ने मुझसे यह कहा, “जाकर सदर फाटक में खड़ा हो जिससे यहूदा के राजा वरन् यरूशलेम के सब रहनेवाले भीतर-बाहर आया-जाया करते हैं;
Hæc dicit Dominus ad me: Vade, et sta in porta filiorum populi, per quam ingrediuntur reges Juda, et egrediuntur, et in cunctis portis Jerusalem:
20 २० और उनसे कह, ‘हे यहूदा के राजाओं और सब यहूदियों, हे यरूशलेम के सब निवासियों, और सब लोगों जो इन फाटकों में से होकर भीतर जाते हो, यहोवा का वचन सुनो।
et dices ad eos: Audite verbum Domini, reges Juda, et omnis Juda, cunctique habitatores Jerusalem, qui ingredimini per portas istas.
21 २१ यहोवा यह कहता है, सावधान रहो, विश्राम के दिन कोई बोझ मत उठाओ; और न कोई बोझ यरूशलेम के फाटकों के भीतर ले आओ।
Hæc dicit Dominus: Custodite animas vestras, et nolite portare pondera in die sabbati, nec inferatis per portas Jerusalem:
22 २२ विश्राम के दिन अपने-अपने घर से भी कोई बोझ बाहर मत ले जाओ और न किसी रीति का काम-काज करो, वरन् उस आज्ञा के अनुसार जो मैंने तुम्हारे पुरखाओं को दी थी, विश्राम के दिन को पवित्र माना करो।
et nolite ejicere onera de domibus vestris in die sabbati, et omne opus non facietis: sanctificate diem sabbati, sicut præcepi patribus vestris.
23 २३ परन्तु उन्होंने न सुना और न कान लगाया, परन्तु इसके विपरीत हठ किया कि न सुनें और ताड़ना से भी न मानें।
Et non audierunt, nec inclinaverunt aurem suam: sed induraverunt cervicem suam, ne audirent me, et ne acciperent disciplinam.
24 २४ “‘परन्तु यदि तुम सचमुच मेरी सुनो, यहोवा की यह वाणी है, और विश्राम के दिन इस नगर के फाटकों के भीतर कोई बोझ न ले आओ और विश्रामदिन को पवित्र मानो, और उसमें किसी रीति का काम-काज न करो,
Et erit: si audieritis me, dicit Dominus, ut non inferatis onera per portas civitatis hujus in die sabbati: et si sanctificaveritis diem sabbati, ne faciatis in eo omne opus:
25 २५ तब तो दाऊद की गद्दी पर विराजमान राजा, रथों और घोड़ों पर चढ़े हुए हाकिम और यहूदा के लोग और यरूशलेम के निवासी इस नगर के फाटकों से होकर प्रवेश किया करेंगे और यह नगर सर्वदा बसा रहेगा।
ingredientur per portas civitatis hujus reges et principes, sedentes super solium David, et ascendentes in curribus et equis, ipsi et principes eorum, viri Juda, et habitatores Jerusalem: et habitabitur civitas hæc in sempiternum.
26 २६ लोग होमबलि, मेलबलि अन्नबलि, लोबान और धन्यवाद-बलि लिए हुए यहूदा के नगरों से और यरूशलेम के आस-पास से, बिन्यामीन के क्षेत्र और नीचे के देश से, पहाड़ी देश और दक्षिण देश से, यहोवा के भवन में आया करेंगे।
Et venient de civitatibus Juda, et de circuitu Jerusalem, et de terra Benjamin, et de campestribus, et de montuosis, et ab austro, portantes holocaustum, et victimam, et sacrificium, et thus, et inferent oblationem in domum Domini.
27 २७ परन्तु यदि तुम मेरी सुनकर विश्राम के दिन को पवित्र न मानो, और उस दिन यरूशलेम के फाटकों से बोझ लिए हुए प्रवेश करते रहो, तो मैं यरूशलेम के फाटकों में आग लगाऊँगा; और उससे यरूशलेम के महल भी भस्म हो जाएँगे और वह आग फिर न बुझेगी।’”
Si autem non audieritis me ut sanctificetis diem sabbati, et ne portetis onus, et ne inferatis per portas Jerusalem in die sabbati, succendam ignem in portis ejus, et devorabit domos Jerusalem, et non extinguetur.