< याकूब 2 >
1 १ हे मेरे भाइयों, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो।
he mama bhrAtaraH, yUyam asmAkaM tejasvinaH prabho ryIshukhrIShTasya dharmmaM mukhApekShayA na dhArayata|
2 २ क्योंकि यदि एक पुरुष सोने के छल्ले और सुन्दर वस्त्र पहने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहने हुए आए।
yato yuShmAkaM sabhAyAM svarNA NgurIyakayukte bhrAjiShNuparichChade puruShe praviShTe malinavastre kasmiMshchid daridre. api praviShTe
3 ३ और तुम उस सुन्दर वस्त्रवाले पर ध्यान केन्द्रित करके कहो, “तू यहाँ अच्छी जगह बैठ,” और उस कंगाल से कहो, “तू वहाँ खड़ा रह,” या “मेरे पाँवों के पास बैठ।”
yUyaM yadi taM bhrAjiShNuparichChadavasAnaM janaM nirIkShya vadeta bhavAn atrottamasthAna upavishatviti ki ncha taM daridraM yadi vadeta tvam amusmin sthAne tiShTha yadvAtra mama pAdapITha upavisheti,
4 ४ तो क्या तुम ने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करनेवाले न ठहरे?
tarhi manaHsu visheShya yUyaM kiM kutarkaiH kuvichArakA na bhavatha?
5 ५ हे मेरे प्रिय भाइयों सुनो; क्या परमेश्वर ने इस जगत के कंगालों को नहीं चुना कि वह विश्वास में धनी, और उस राज्य के अधिकारी हों, जिसकी प्रतिज्ञा उसने उनसे की है जो उससे प्रेम रखते हैं?
he mama priyabhrAtaraH, shR^iNuta, saMsAre ye daridrAstAn Ishvaro vishvAsena dhaninaH svapremakAribhyashcha pratishrutasya rAjyasyAdhikAriNaH karttuM kiM na varItavAn? kintu daridro yuShmAbhiravaj nAyate|
6 ६ पर तुम ने उस कंगाल का अपमान किया। क्या धनी लोग तुम पर अत्याचार नहीं करते और क्या वे ही तुम्हें कचहरियों में घसीट-घसीट कर नहीं ले जाते?
dhanavanta eva kiM yuShmAn nopadravanti balAchcha vichArAsanAnAM samIpaM na nayanti?
7 ७ क्या वे उस उत्तम नाम की निन्दा नहीं करते जिसके तुम कहलाए जाते हो?
yuShmadupari parikIrttitaM paramaM nAma kiM taireva na nindyate?
8 ८ तो भी यदि तुम पवित्रशास्त्र के इस वचन के अनुसार, “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख,” सचमुच उस राज व्यवस्था को पूरी करते हो, तो अच्छा करते हो।
ki ncha tvaM svasamIpavAsini svAtmavat prIyasva, etachChAstrIyavachanAnusArato yadi yUyaM rAjakIyavyavasthAM pAlayatha tarhi bhadraM kurutha|
9 ९ पर यदि तुम पक्षपात करते हो, तो पाप करते हो; और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है।
yadi cha mukhApekShAM kurutha tarhi pApam Acharatha vyavasthayA chAj nAla Nghina iva dUShyadhve|
10 १० क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा।
yato yaH kashchit kR^itsnAM vyavasthAM pAlayati sa yadyekasmin vidhau skhalati tarhi sarvveShAm aparAdhI bhavati|
11 ११ इसलिए कि जिसने यह कहा, “तू व्यभिचार न करना” उसी ने यह भी कहा, “तू हत्या न करना” इसलिए यदि तूने व्यभिचार तो नहीं किया, पर हत्या की तो भी तू व्यवस्था का उल्लंघन करनेवाला ठहरा।
yato hetostvaM paradArAn mA gachCheti yaH kathitavAn sa eva narahatyAM mA kuryyA ityapi kathitavAn tasmAt tvaM paradArAn na gatvA yadi narahatyAM karoShi tarhi vyavasthAla NghI bhavasi|
12 १२ तुम उन लोगों के समान वचन बोलो, और काम भी करो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा।
mukte rvyavasthAto yeShAM vichAreNa bhavitavyaM tAdR^ishA lokA iva yUyaM kathAM kathayata karmma kuruta cha|
13 १३ क्योंकि जिसने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा। दया न्याय पर जयवन्त होती है।
yo dayAM nAcharati tasya vichAro nirddayena kAriShyate, kintu dayA vichAram abhibhaviShyati|
14 १४ हे मेरे भाइयों, यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो उससे क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास कभी उसका उद्धार कर सकता है?
he mama bhrAtaraH, mama pratyayo. astIti yaH kathayati tasya karmmANi yadi na vidyanta tarhi tena kiM phalaM? tena pratyayena kiM tasya paritrANaM bhavituM shaknoti?
15 १५ यदि कोई भाई या बहन नंगे उघाड़े हों, और उन्हें प्रतिदिन भोजन की घटी हो,
keShuchid bhrAtR^iShu bhaginIShu vA vasanahIneShu prAtyahikAhArahIneShu cha satsu yuShmAkaM ko. api tebhyaH sharIrArthaM prayojanIyAni dravyANi na datvA yadi tAn vadet,
16 १६ और तुम में से कोई उनसे कहे, “शान्ति से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो,” पर जो वस्तुएँ देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ?
yUyaM sakushalaM gatvoShNagAtrA bhavata tR^ipyata cheti tarhyetena kiM phalaM?
17 १७ वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।
tadvat pratyayo yadi karmmabhi ryukto na bhavet tarhyekAkitvAt mR^ita evAste|
18 १८ वरन् कोई कह सकता है, “तुझे विश्वास है, और मैं कर्म करता हूँ।” तू अपना विश्वास मुझे कर्म बिना दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊँगा।
ki ncha kashchid idaM vadiShyati tava pratyayo vidyate mama cha karmmANi vidyante, tvaM karmmahInaM svapratyayaM mAM darshaya tarhyahamapi matkarmmabhyaH svapratyayaM tvAM darshayiShyAmi|
19 १९ तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है; तू अच्छा करता है; दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं।
eka Ishvaro. astIti tvaM pratyeShi| bhadraM karoShi| bhUtA api tat pratiyanti kampante cha|
20 २० पर हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है?
kintu he nirbbodhamAnava, karmmahInaH pratyayo mR^ita evAstyetad avagantuM kim ichChasi?
21 २१ जब हमारे पिता अब्राहम ने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर चढ़ाया, तो क्या वह कर्मों से धार्मिक न ठहरा था?
asmAkaM pUrvvapuruSho ya ibrAhIm svaputram ishAkaM yaj navedyAm utsR^iShTavAn sa kiM karmmabhyo na sapuNyIkR^itaH?
22 २२ तूने देख लिया कि विश्वास ने उसके कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ।
pratyaye tasya karmmaNAM sahakAriNi jAte karmmabhiH pratyayaH siddho. abhavat tat kiM pashyasi?
23 २३ और पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हुआ, “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई,” और वह परमेश्वर का मित्र कहलाया।
ittha nchedaM shAstrIyavachanaM saphalam abhavat, ibrAhIm parameshvare vishvasitavAn tachcha tasya puNyAyAgaNyata sa cheshvarasya mitra iti nAma labdhavAn|
24 २४ तुम ने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन् कर्मों से भी धर्मी ठहरता है।
pashyata mAnavaH karmmabhyaH sapuNyIkriyate na chaikAkinA pratyayena|
25 २५ वैसे ही राहाब वेश्या भी जब उसने दूतों को अपने घर में उतारा, और दूसरे मार्ग से विदा किया, तो क्या कर्मों से धार्मिक न ठहरी?
tadvad yA rAhabnAmikA vArA NganA chArAn anugR^ihyApareNa mArgeNa visasarja sApi kiM karmmabhyo na sapuNyIkR^itA?
26 २६ जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।
ataevAtmahIno deho yathA mR^ito. asti tathaiva karmmahInaH pratyayo. api mR^ito. asti|