< यशायाह 55 >
1 १ “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपये और बिना दाम ही आकर ले लो।
o omnes sitientes venite ad aquas et qui non habetis argentum properate emite et comedite venite emite absque argento et absque ulla commutatione vinum et lac
2 २ जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिये तुम क्यों रुपया लगाते हो, और जिससे पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों परिश्रम करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएँ खाने पाओगे और चिकनी-चिकनी वस्तुएँ खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।
quare adpenditis argentum non in panibus et laborem vestrum non in saturitate audite audientes me et comedite bonum et delectabitur in crassitudine anima vestra
3 ३ कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साथ सदा की वाचा बाँधूँगा, अर्थात् दाऊद पर की अटल करुणा की वाचा।
inclinate aurem vestram et venite ad me audite et vivet anima vestra et feriam vobis pactum sempiternum misericordias David fideles
4 ४ सुनो, मैंने उसको राज्य-राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।
ecce testem populis dedi eum ducem ac praeceptorem gentibus
5 ५ सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियाँ जो तुझे नहीं जानती तेरे पास दौड़ी आएँगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उसने तुझे शोभायमान किया है।
ecce gentem quam nesciebas vocabis et gentes quae non cognoverunt te ad te current propter Dominum Deum tuum et Sanctum Israhel quia glorificavit te
6 ६ “जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो;
quaerite Dominum dum inveniri potest invocate eum dum prope est
7 ७ दुष्ट अपनी चाल चलन और अनर्थकारी अपने सोच-विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।
derelinquat impius viam suam et vir iniquus cogitationes suas et revertatur ad Dominum et miserebitur eius et ad Deum nostrum quoniam multus est ad ignoscendum
8 ८ क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।
non enim cogitationes meae cogitationes vestrae neque viae vestrae viae meae dicit Dominus
9 ९ क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।
quia sicut exaltantur caeli a terra sic exaltatae sunt viae meae a viis vestris et cogitationes meae a cogitationibus vestris
10 १० “जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहाँ ऐसे ही लौट नहीं जाते, वरन् भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है,
et quomodo descendit imber et nix de caelo et illuc ultra non revertitur sed inebriat terram et infundit eam et germinare eam facit et dat semen serenti et panem comedenti
11 ११ उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैंने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।
sic erit verbum meum quod egredietur de ore meo non revertetur ad me vacuum sed faciet quaecumque volui et prosperabitur in his ad quae misi illud
12 १२ “क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुँचाए जाओगे; तुम्हारे आगे-आगे पहाड़ और पहाड़ियाँ गला खोलकर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएँगे।
quia in laetitia egrediemini et in pace deducemini montes et colles cantabunt coram vobis laudem et omnia ligna regionis plaudent manu
13 १३ तब भटकटैयों के बदले सनोवर उगेंगे; और बिच्छू पेड़ों के बदले मेंहदी उगेगी; और इससे यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।”
pro saliunca ascendet abies et pro urtica crescet myrtus et erit Dominus nominatus in signum aeternum quod non auferetur