< यशायाह 50 >
1 १ “तुम्हारी माता का त्यागपत्र कहाँ है, जिसे मैंने उसे त्यागते समय दिया था? या मैंने किस व्यापारी के हाथ तुम्हें बेचा?” यहोवा यह कहता है, “सुनो, तुम अपने ही अधर्म के कामों के कारण बिक गए, और तुम्हारे ही अपराधों के कारण तुम्हारी माता छोड़ दी गई।
[Hæc dicit Dominus: Quis est hic liber repudii matris vestræ, quo dimisi eam? aut quis est creditor meus, cui vendidi vos? Ecce in iniquitatibus vestris venditi estis, et in sceleribus vestris dimisi matrem vestram.
2 २ इसका क्या कारण है कि जब मैं आया तब कोई न मिला? और जब मैंने पुकारा, तब कोई न बोला? क्या मेरा हाथ ऐसा छोटा हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? क्या मुझ में उद्धार करने की शक्ति नहीं? देखो, मैं एक धमकी से समुद्र को सूखा देता हूँ, मैं महानदों को रेगिस्तान बना देता हूँ; उनकी मछलियाँ जल बिना मर जाती और बसाती हैं।
Quia veni, et non erat vir; vocavi, et non erat qui audiret. Numquid abbreviata et parvula facta est manus mea, ut non possim redimere? aut non est in me virtus ad liberandum? Ecce in increpatione mea desertum faciam mare, ponam flumina in siccum; computrescent pisces sine aqua, et morientur in siti.
3 ३ मैं आकाश को मानो शोक का काला कपड़ा पहनाता, और टाट को उनका ओढ़ना बना देता हूँ।”
Induam cælos tenebris, et saccum ponam operimentum eorum.]
4 ४ प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा सम्भालना जानूँ। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूँ।
[Dominus dedit mihi linguam eruditam, ut sciam sustentare eum qui lassus est verbo. Erigit mane, mane erigit mihi aurem, ut audiam quasi magistrum.
5 ५ प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैंने विरोध न किया, न पीछे हटा।
Dominus Deus aperuit mihi aurem, ego autem non contradico: retrorsum non abii.
6 ६ मैंने मारनेवालों को अपनी पीठ और गलमोछ नोचनेवालों की ओर अपने गाल किए; अपमानित होने और उनके थूकने से मैंने मुँह न छिपाया।
Corpus meum dedi percutientibus, et genas meas vellentibus; faciem meam non averti ab increpantibus et conspuentibus in me.
7 ७ क्योंकि प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है, इस कारण मैंने संकोच नहीं किया; वरन् अपना माथा चकमक के समान कड़ा किया क्योंकि मुझे निश्चय था कि मुझे लज्जित होना न पड़ेगा।
Dominus Deus auxiliator meus, ideo non sum confusus; ideo posui faciem meam ut petram durissimam, et scio quoniam non confundar.
8 ८ जो मुझे धर्मी ठहराता है वह मेरे निकट है। मेरे साथ कौन मुकद्दमा करेगा? हम आमने-सामने खड़े हों। मेरा विरोधी कौन है? वह मेरे निकट आए।
Juxta est qui justificat me; quis contradicet mihi? Stemus simul; quis est adversarius meus? accedat ad me.
9 ९ सुनो, प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है; मुझे कौन दोषी ठहरा सकेगा? देखो, वे सब कपड़े के समान पुराने हो जाएँगे; उनको कीड़े खा जाएँगे।
Ecce Dominus Deus auxiliator meus; quis est qui condemnet me? Ecce omnes quasi vestimentum conterentur; tinea comedet eos.
10 १० तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अंधियारे में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपने परमेश्वर पर आशा लगाए रहे।
Quis ex vobis timens Dominum, audiens vocem servi sui? Qui ambulavit in tenebris, et non est lumen ei, speret in nomine Domini, et innitatur super Deum suum.
11 ११ देखो, तुम सब जो आग जलाते और अग्निबाणों को कमर में बाँधते हो! तुम सब अपनी जलाई हुई आग में और अपने जलाए हुए अग्निबाणों के बीच आप ही चलो। तुम्हारी यह दशा मेरी ही ओर से होगी, तुम सन्ताप में पड़े रहोगे।
Ecce vos omnes accendentes ignem, accincti flammis: ambulate in lumine ignis vestri, et in flammis quas succendistis; de manu mea factum est hoc vobis: in doloribus dormietis.]