< उत्पत्ति 41 >

1 पूरे दो वर्ष के बीतने पर फ़िरौन ने यह स्वप्न देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है।
וַיְהִ֕י מִקֵּ֖ץ שְׁנָתַ֣יִם יָמִ֑ים וּפַרְעֹ֣ה חֹלֵ֔ם וְהִנֵּ֖ה עֹמֵ֥ד עַל־הַיְאֹֽר׃
2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी-मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं।
וְהִנֵּ֣ה מִן־הַיְאֹ֗ר עֹלֹת֙ שֶׁ֣בַע פָּר֔וֹת יְפ֥וֹת מַרְאֶ֖ה וּבְרִיאֹ֣ת בָּשָׂ֑ר וַתִּרְעֶ֖ינָה בָּאָֽחוּ׃
3 और, क्या देखा कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकलीं; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुईं।
וְהִנֵּ֞ה שֶׁ֧בַע פָּר֣וֹת אֲחֵר֗וֹת עֹל֤וֹת אַחֲרֵיהֶן֙ מִן־הַיְאֹ֔ר רָע֥וֹת מַרְאֶ֖ה וְדַקּ֣וֹת בָּשָׂ֑ר וַֽתַּעֲמֹ֛דְנָה אֵ֥צֶל הַפָּר֖וֹת עַל־שְׂפַ֥ת הַיְאֹֽר׃
4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी-मोटी गायों को खा गईं। तब फ़िरौन जाग उठा।
וַתֹּאכַ֣לְנָה הַפָּר֗וֹת רָע֤וֹת הַמַּרְאֶה֙ וְדַקֹּ֣ת הַבָּשָׂ֔ר אֵ֚ת שֶׁ֣בַע הַפָּר֔וֹת יְפֹ֥ת הַמַּרְאֶ֖ה וְהַבְּרִיאֹ֑ת וַיִּיקַ֖ץ פַּרְעֹֽה׃
5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा कि एक डंठल में से सात मोटी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं।
וַיִּישָׁ֕ן וַֽיַּחֲלֹ֖ם שֵׁנִ֑ית וְהִנֵּ֣ה ׀ שֶׁ֣בַע שִׁבֳּלִ֗ים עֹל֛וֹת בְּקָנֶ֥ה אֶחָ֖ד בְּרִיא֥וֹת וְטֹבֽוֹת׃
6 और, क्या देखा कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुर्झाई हुई निकलीं।
וְהִנֵּה֙ שֶׁ֣בַע שִׁבֳּלִ֔ים דַּקּ֖וֹת וּשְׁדוּפֹ֣ת קָדִ֑ים צֹמְח֖וֹת אַחֲרֵיהֶֽן׃
7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फ़िरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था।
וַתִּבְלַ֙עְנָה֙ הַשִּׁבֳּלִ֣ים הַדַּקּ֔וֹת אֵ֚ת שֶׁ֣בַע הַֽשִּׁבֳּלִ֔ים הַבְּרִיא֖וֹת וְהַמְּלֵא֑וֹת וַיִּיקַ֥ץ פַּרְעֹ֖ה וְהִנֵּ֥ה חֲלֽוֹם׃
8 भोर को फ़िरौन का मन व्याकुल हुआ; और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पंडितों को बुलवा भेजा; और उनको अपने स्वप्न बताए; पर उनमें से कोई भी उनका फल फ़िरौन को न बता सका।
וַיְהִ֤י בַבֹּ֙קֶר֙ וַתִּפָּ֣עֶם רוּח֔וֹ וַיִּשְׁלַ֗ח וַיִּקְרָ֛א אֶת־כָּל־חַרְטֻמֵּ֥י מִצְרַ֖יִם וְאֶת־כָּל־חֲכָמֶ֑יהָ וַיְסַפֵּ֨ר פַּרְעֹ֤ה לָהֶם֙ אֶת־חֲלֹמ֔וֹ וְאֵין־פּוֹתֵ֥ר אוֹתָ֖ם לְפַרְעֹֽה׃
9 तब पिलानेहारों का प्रधान फ़िरौन से बोल उठा, “मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए:
וַיְדַבֵּר֙ שַׂ֣ר הַמַּשְׁקִ֔ים אֶת־פַּרְעֹ֖ה לֵאמֹ֑ר אֶת־חֲטָאַ֕י אֲנִ֖י מַזְכִּ֥יר הַיּֽוֹם׃
10 १० जब फ़िरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके अंगरक्षकों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था;
פַּרְעֹ֖ה קָצַ֣ף עַל־עֲבָדָ֑יו וַיִּתֵּ֨ן אֹתִ֜י בְּמִשְׁמַ֗ר בֵּ֚ית שַׂ֣ר הַטַּבָּחִ֔ים אֹתִ֕י וְאֵ֖ת שַׂ֥ר הָאֹפִֽים׃
11 ११ तब हम दोनों ने एक ही रात में, अपने-अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा;
וַנַּֽחַלְמָ֥ה חֲל֛וֹם בְּלַ֥יְלָה אֶחָ֖ד אֲנִ֣י וָה֑וּא אִ֛ישׁ כְּפִתְר֥וֹן חֲלֹמ֖וֹ חָלָֽמְנוּ׃
12 १२ और वहाँ हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो अंगरक्षकों के प्रधान का दास था; अतः हमने उसको बताया, और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक-एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया।
וְשָׁ֨ם אִתָּ֜נוּ נַ֣עַר עִבְרִ֗י עֶ֚בֶד לְשַׂ֣ר הַטַּבָּחִ֔ים וַנְּ֨סַפֶּר־ל֔וֹ וַיִּפְתָּר־לָ֖נוּ אֶת־חֲלֹמֹתֵ֑ינוּ אִ֥ישׁ כַּחֲלֹמ֖וֹ פָּתָֽר׃
13 १३ और जैसा-जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया।”
וַיְהִ֛י כַּאֲשֶׁ֥ר פָּֽתַר־לָ֖נוּ כֵּ֣ן הָיָ֑ה אֹתִ֛י הֵשִׁ֥יב עַל־כַּנִּ֖י וְאֹת֥וֹ תָלָֽה׃
14 १४ तब फ़िरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फ़िरौन के सामने आया।
וַיִּשְׁלַ֤ח פַּרְעֹה֙ וַיִּקְרָ֣א אֶת־יוֹסֵ֔ף וַיְרִיצֻ֖הוּ מִן־הַבּ֑וֹר וַיְגַלַּח֙ וַיְחַלֵּ֣ף שִׂמְלֹתָ֔יו וַיָּבֹ֖א אֶל־פַּרְעֹֽה׃
15 १५ फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “मैंने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैंने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।”
וַיֹּ֤אמֶר פַּרְעֹה֙ אֶל־יוֹסֵ֔ף חֲל֣וֹם חָלַ֔מְתִּי וּפֹתֵ֖ר אֵ֣ין אֹת֑וֹ וַאֲנִ֗י שָׁמַ֤עְתִּי עָלֶ֙יךָ֙ לֵאמֹ֔ר תִּשְׁמַ֥ע חֲל֖וֹם לִפְתֹּ֥ר אֹתֽוֹ׃
16 १६ यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “मैं तो कुछ नहीं जानता: परमेश्वर ही फ़िरौन के लिये शुभ वचन देगा।”
וַיַּ֨עַן יוֹסֵ֧ף אֶת־פַּרְעֹ֛ה לֵאמֹ֖ר בִּלְעָדָ֑י אֱלֹהִ֕ים יַעֲנֶ֖ה אֶת־שְׁל֥וֹם פַּרְעֹֽה׃
17 १७ फिर फ़िरौन यूसुफ से कहने लगा, “मैंने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूँ।
וַיְדַבֵּ֥ר פַּרְעֹ֖ה אֶל־יוֹסֵ֑ף בַּחֲלֹמִ֕י הִנְנִ֥י עֹמֵ֖ד עַל־שְׂפַ֥ת הַיְאֹֽר׃
18 १८ फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर-सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं।
וְהִנֵּ֣ה מִן־הַיְאֹ֗ר עֹלֹת֙ שֶׁ֣בַע פָּר֔וֹת בְּרִיא֥וֹת בָּשָׂ֖ר וִיפֹ֣ת תֹּ֑אַר וַתִּרְעֶ֖ינָה בָּאָֽחוּ׃
19 १९ फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मैंने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं।
וְהִנֵּ֞ה שֶֽׁבַע־פָּר֤וֹת אֲחֵרוֹת֙ עֹל֣וֹת אַחֲרֵיהֶ֔ן דַּלּ֨וֹת וְרָע֥וֹת תֹּ֛אַר מְאֹ֖ד וְרַקּ֣וֹת בָּשָׂ֑ר לֹֽא־רָאִ֧יתִי כָהֵ֛נָּה בְּכָל־אֶ֥רֶץ מִצְרַ֖יִם לָרֹֽעַ׃
20 २० इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी-मोटी गायों को खा लिया।
וַתֹּאכַ֙לְנָה֙ הַפָּר֔וֹת הָרַקּ֖וֹת וְהָרָע֑וֹת אֵ֣ת שֶׁ֧בַע הַפָּר֛וֹת הָרִאשֹׁנ֖וֹת הַבְּרִיאֹֽת׃
21 २१ और जब वे उनको खा गईं तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहले के समान जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा।
וַתָּבֹ֣אנָה אֶל־קִרְבֶּ֗נָה וְלֹ֤א נוֹדַע֙ כִּי־בָ֣אוּ אֶל־קִרְבֶּ֔נָה וּמַרְאֵיהֶ֣ן רַ֔ע כַּאֲשֶׁ֖ר בַּתְּחִלָּ֑ה וָאִיקָֽץ׃
22 २२ फिर मैंने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठल में सात अच्छी-अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं।
וָאֵ֖רֶא בַּחֲלֹמִ֑י וְהִנֵּ֣ה ׀ שֶׁ֣בַע שִׁבֳּלִ֗ים עֹלֹ֛ת בְּקָנֶ֥ה אֶחָ֖ד מְלֵאֹ֥ת וְטֹבֽוֹת׃
23 २३ फिर क्या देखता हूँ, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी-छूछी और पतली और पुरवाई से मुर्झाई हुई निकलीं।
וְהִנֵּה֙ שֶׁ֣בַע שִׁבֳּלִ֔ים צְנֻמ֥וֹת דַּקּ֖וֹת שְׁדֻפ֣וֹת קָדִ֑ים צֹמְח֖וֹת אַחֲרֵיהֶֽם׃
24 २४ और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी-अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैंने ज्योतिषियों को बताया, पर इसका समझानेवाला कोई नहीं मिला।”
וַתִּבְלַ֙עְןָ֙ הָשִׁבֳּלִ֣ים הַדַּקֹּ֔ת אֵ֛ת שֶׁ֥בַע הַֽשִׁבֳּלִ֖ים הַטֹּב֑וֹת וָֽאֹמַר֙ אֶל־הַֽחַרְטֻמִּ֔ים וְאֵ֥ין מַגִּ֖יד לִֽי׃
25 २५ तब यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “फ़िरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसको उसने फ़िरौन पर प्रगट किया है।
וַיֹּ֤אמֶר יוֹסֵף֙ אֶל־פַּרְעֹ֔ה חֲל֥וֹם פַּרְעֹ֖ה אֶחָ֣ד ה֑וּא אֵ֣ת אֲשֶׁ֧ר הָאֱלֹהִ֛ים עֹשֶׂ֖ה הִגִּ֥יד לְפַרְעֹֽה׃
26 २६ वे सात अच्छी-अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी-अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है।
שֶׁ֧בַע פָּרֹ֣ת הַטֹּבֹ֗ת שֶׁ֤בַע שָׁנִים֙ הֵ֔נָּה וְשֶׁ֤בַע הַֽשִּׁבֳּלִים֙ הַטֹּבֹ֔ת שֶׁ֥בַע שָׁנִ֖ים הֵ֑נָּה חֲל֖וֹם אֶחָ֥ד הֽוּא׃
27 २७ फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुर्झाई हुई बालें निकालीं, वे अकाल के सात वर्ष होंगे।
וְשֶׁ֣בַע הַ֠פָּרוֹת הָֽרַקּ֨וֹת וְהָרָעֹ֜ת הָעֹלֹ֣ת אַחֲרֵיהֶ֗ן שֶׁ֤בַע שָׁנִים֙ הֵ֔נָּה וְשֶׁ֤בַע הַֽשִׁבֳּלִים֙ הָרֵק֔וֹת שְׁדֻפ֖וֹת הַקָּדִ֑ים יִהְי֕וּ שֶׁ֖בַע שְׁנֵ֥י רָעָֽב׃
28 २८ यह वही बात है जो मैं फ़िरौन से कह चुका हूँ, कि परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसे उसने फ़िरौन को दिखाया है।
ה֣וּא הַדָּבָ֔ר אֲשֶׁ֥ר דִּבַּ֖רְתִּי אֶל־פַּרְעֹ֑ה אֲשֶׁ֧ר הָאֱלֹהִ֛ים עֹשֶׂ֖ה הֶרְאָ֥ה אֶת־פַּרְעֹֽה׃
29 २९ सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे।
הִנֵּ֛ה שֶׁ֥בַע שָׁנִ֖ים בָּא֑וֹת שָׂבָ֥ע גָּד֖וֹל בְּכָל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
30 ३० उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आएँगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जाएँगे; और अकाल से देश का नाश होगा।
וְ֠קָמוּ שֶׁ֜בַע שְׁנֵ֤י רָעָב֙ אַחֲרֵיהֶ֔ן וְנִשְׁכַּ֥ח כָּל־הַשָּׂבָ֖ע בְּאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם וְכִלָּ֥ה הָרָעָ֖ב אֶת־הָאָֽרֶץ׃
31 ३१ और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा।
וְלֹֽא־יִוָּדַ֤ע הַשָּׂבָע֙ בָּאָ֔רֶץ מִפְּנֵ֛י הָרָעָ֥ב הַה֖וּא אַחֲרֵי־כֵ֑ן כִּֽי־כָבֵ֥ד ה֖וּא מְאֹֽד׃
32 ३२ और फ़िरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा।
וְעַ֨ל הִשָּׁנ֧וֹת הַחֲל֛וֹם אֶל־פַּרְעֹ֖ה פַּעֲמָ֑יִם כִּֽי־נָכ֤וֹן הַדָּבָר֙ מֵעִ֣ם הָאֱלֹהִ֔ים וּמְמַהֵ֥ר הָאֱלֹהִ֖ים לַעֲשֹׂתֽוֹ׃
33 ३३ इसलिए अब फ़िरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरुष को ढूँढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए।
וְעַתָּה֙ יֵרֶ֣א פַרְעֹ֔ה אִ֖ישׁ נָב֣וֹן וְחָכָ֑ם וִישִׁיתֵ֖הוּ עַל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
34 ३४ फ़िरौन यह करे कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे।
יַעֲשֶׂ֣ה פַרְעֹ֔ה וְיַפְקֵ֥ד פְּקִדִ֖ים עַל־הָאָ֑רֶץ וְחִמֵּשׁ֙ אֶת־אֶ֣רֶץ מִצְרַ֔יִם בְּשֶׁ֖בַע שְׁנֵ֥י הַשָּׂבָֽע׃
35 ३५ और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर-नगर में भण्डार घर भोजन के लिये, फ़िरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें।
וְיִקְבְּצ֗וּ אֶת־כָּל־אֹ֙כֶל֙ הַשָּׁנִ֣ים הַטֹּבֹ֔ת הַבָּאֹ֖ת הָאֵ֑לֶּה וְיִצְבְּרוּ־בָ֞ר תַּ֧חַת יַד־פַּרְעֹ֛ה אֹ֥כֶל בֶּעָרִ֖ים וְשָׁמָֽרוּ׃
36 ३६ और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएँगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिससे देश का उस अकाल से सत्यानाश न हो जाए।”
וְהָיָ֨ה הָאֹ֤כֶל לְפִקָּדוֹן֙ לָאָ֔רֶץ לְשֶׁ֙בַע֙ שְׁנֵ֣י הָרָעָ֔ב אֲשֶׁ֥ר תִּהְיֶ֖יןָ בְּאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם וְלֹֽא־תִכָּרֵ֥ת הָאָ֖רֶץ בָּרָעָֽב׃
37 ३७ यह बात फ़िरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी।
וַיִּיטַ֥ב הַדָּבָ֖ר בְּעֵינֵ֣י פַרְעֹ֑ה וּבְעֵינֵ֖י כָּל־עֲבָדָֽיו׃
38 ३८ इसलिए फ़िरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, “क्या हमको ऐसा पुरुष, जैसा यह है, जिसमें परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है?”
וַיֹּ֥אמֶר פַּרְעֹ֖ה אֶל־עֲבָדָ֑יו הֲנִמְצָ֣א כָזֶ֔ה אִ֕ישׁ אֲשֶׁ֛ר ר֥וּחַ אֱלֹהִ֖ים בּֽוֹ׃
39 ३९ फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान नहीं;
וַיֹּ֤אמֶר פַּרְעֹה֙ אֶל־יוֹסֵ֔ף אַחֲרֵ֨י הוֹדִ֧יעַ אֱלֹהִ֛ים אוֹתְךָ֖ אֶת־כָּל־זֹ֑את אֵין־נָב֥וֹן וְחָכָ֖ם כָּמֽוֹךָ׃
40 ४० इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूँगा।”
אַתָּה֙ תִּהְיֶ֣ה עַל־בֵּיתִ֔י וְעַל־פִּ֖יךָ יִשַּׁ֣ק כָּל־עַמִּ֑י רַ֥ק הַכִּסֵּ֖א אֶגְדַּ֥ל מִמֶּֽךָּ׃
41 ४१ फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “सुन, मैं तुझको मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूँ।”
וַיֹּ֥אמֶר פַּרְעֹ֖ה אֶל־יוֹסֵ֑ף רְאֵה֙ נָתַ֣תִּי אֹֽתְךָ֔ עַ֖ל כָּל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
42 ४२ तब फ़िरौन ने अपने हाथ से मुहर वाली अंगूठी निकालकर यूसुफ के हाथ में पहना दी; और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्र पहनवा दिए, और उसके गले में सोने की माला डाल दी;
וַיָּ֨סַר פַּרְעֹ֤ה אֶת־טַבַּעְתּוֹ֙ מֵעַ֣ל יָד֔וֹ וַיִּתֵּ֥ן אֹתָ֖הּ עַל־יַ֣ד יוֹסֵ֑ף וַיַּלְבֵּ֤שׁ אֹתוֹ֙ בִּגְדֵי־שֵׁ֔שׁ וַיָּ֛שֶׂם רְבִ֥ד הַזָּהָ֖ב עַל־צַוָּארֽוֹ׃
43 ४३ और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे-आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत् करो और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधानमंत्री ठहराया।
וַיַּרְכֵּ֣ב אֹת֗וֹ בְּמִרְכֶּ֤בֶת הַמִּשְׁנֶה֙ אֲשֶׁר־ל֔וֹ וַיִּקְרְא֥וּ לְפָנָ֖יו אַבְרֵ֑ךְ וְנָת֣וֹן אֹת֔וֹ עַ֖ל כָּל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
44 ४४ फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “फ़िरौन तो मैं हूँ, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पाँव न हिलाएगा।”
וַיֹּ֧אמֶר פַּרְעֹ֛ה אֶל־יוֹסֵ֖ף אֲנִ֣י פַרְעֹ֑ה וּבִלְעָדֶ֗יךָ לֹֽא־יָרִ֨ים אִ֧ישׁ אֶת־יָד֛וֹ וְאֶת־רַגְל֖וֹ בְּכָל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
45 ४५ फ़िरौन ने यूसुफ का नाम सापनत-पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा।
וַיִּקְרָ֨א פַרְעֹ֣ה שֵׁם־יוֹסֵף֮ צָֽפְנַ֣ת פַּעְנֵחַ֒ וַיִּתֶּן־ל֣וֹ אֶת־אָֽסְנַ֗ת בַּת־פּ֥וֹטִי פֶ֛רַע כֹּהֵ֥ן אֹ֖ן לְאִשָּׁ֑ה וַיֵּצֵ֥א יוֹסֵ֖ף עַל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
46 ४६ जब यूसुफ मिस्र के राजा फ़िरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। वह फ़िरौन के सम्मुख से निकलकर सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा।
וְיוֹסֵף֙ בֶּן־שְׁלֹשִׁ֣ים שָׁנָ֔ה בְּעָמְד֕וֹ לִפְנֵ֖י פַּרְעֹ֣ה מֶֽלֶךְ־מִצְרָ֑יִם וַיֵּצֵ֤א יוֹסֵף֙ מִלִּפְנֵ֣י פַרְעֹ֔ה וַֽיַּעְבֹ֖ר בְּכָל־אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
47 ४७ सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही।
וַתַּ֣עַשׂ הָאָ֔רֶץ בְּשֶׁ֖בַע שְׁנֵ֣י הַשָּׂבָ֑ע לִקְמָצִֽים׃
48 ४८ और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएँ, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया।
וַיִּקְבֹּ֞ץ אֶת־כָּל־אֹ֣כֶל ׀ שֶׁ֣בַע שָׁנִ֗ים אֲשֶׁ֤ר הָיוּ֙ בְּאֶ֣רֶץ מִצְרַ֔יִם וַיִּתֶּן־אֹ֖כֶל בֶּעָרִ֑ים אֹ֧כֶל שְׂדֵה־הָעִ֛יר אֲשֶׁ֥ר סְבִיבֹתֶ֖יהָ נָתַ֥ן בְּתוֹכָֽהּ׃
49 ४९ इस प्रकार यूसुफ ने अन्न को समुद्र की रेत के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि-राशि गिनके रखा, यहाँ तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गईं।
וַיִּצְבֹּ֨ר יוֹסֵ֥ף בָּ֛ר כְּח֥וֹל הַיָּ֖ם הַרְבֵּ֣ה מְאֹ֑ד עַ֛ד כִּי־חָדַ֥ל לִסְפֹּ֖ר כִּי־אֵ֥ין מִסְפָּֽר׃
50 ५० अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे।
וּלְיוֹסֵ֤ף יֻלַּד֙ שְׁנֵ֣י בָנִ֔ים בְּטֶ֥רֶם תָּב֖וֹא שְׁנַ֣ת הָרָעָ֑ב אֲשֶׁ֤ר יָֽלְדָה־לּוֹ֙ אָֽסְנַ֔ת בַּת־פּ֥וֹטִי פֶ֖רַע כֹּהֵ֥ן אֽוֹן׃
51 ५१ और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहकर मनश्शे रखा, कि ‘परमेश्वर ने मुझसे मेरा सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।’
וַיִּקְרָ֥א יוֹסֵ֛ף אֶת־שֵׁ֥ם הַבְּכ֖וֹר מְנַשֶּׁ֑ה כִּֽי־נַשַּׁ֤נִי אֱלֹהִים֙ אֶת־כָּל־עֲמָלִ֔י וְאֵ֖ת כָּל־בֵּ֥ית אָבִֽי׃
52 ५२ दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि ‘मुझे दुःख भोगने के देश में परमेश्वर ने फलवन्त किया है।’
וְאֵ֛ת שֵׁ֥ם הַשֵּׁנִ֖י קָרָ֣א אֶפְרָ֑יִם כִּֽי־הִפְרַ֥נִי אֱלֹהִ֖ים בְּאֶ֥רֶץ עָנְיִֽי׃
53 ५३ और मिस्र देश के सुकाल के सात वर्ष समाप्त हो गए।
וַתִּכְלֶ֕ינָה שֶׁ֖בַע שְׁנֵ֣י הַשָּׂבָ֑ע אֲשֶׁ֥ר הָיָ֖ה בְּאֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
54 ५४ और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था।
וַתְּחִלֶּ֜ינָה שֶׁ֣בַע שְׁנֵ֤י הָרָעָב֙ לָב֔וֹא כַּאֲשֶׁ֖ר אָמַ֣ר יוֹסֵ֑ף וַיְהִ֤י רָעָב֙ בְּכָל־הָ֣אֲרָצ֔וֹת וּבְכָל־אֶ֥רֶץ מִצְרַ֖יִם הָ֥יָה לָֽחֶם׃
55 ५५ जब मिस्र का सारा देश भूखा मरने लगा; तब प्रजा फ़िरौन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी माँगने लगी; और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, “यूसुफ के पास जाओ; और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।”
וַתִּרְעַב֙ כָּל־אֶ֣רֶץ מִצְרַ֔יִם וַיִּצְעַ֥ק הָעָ֛ם אֶל־פַּרְעֹ֖ה לַלָּ֑חֶם וַיֹּ֨אמֶר פַּרְעֹ֤ה לְכָל־מִצְרַ֙יִם֙ לְכ֣וּ אֶל־יוֹסֵ֔ף אֲשֶׁר־יֹאמַ֥ר לָכֶ֖ם תַּעֲשֽׂוּ׃
56 ५६ इसलिए जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में अकाल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल-खोलकर मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा।
וְהָרָעָ֣ב הָיָ֔ה עַ֖ל כָּל־פְּנֵ֣י הָאָ֑רֶץ וַיִּפְתַּ֨ח יוֹסֵ֜ף אֶֽת־כָּל־אֲשֶׁ֤ר בָּהֶם֙ וַיִּשְׁבֹּ֣ר לְמִצְרַ֔יִם וַיֶּחֱזַ֥ק הָֽרָעָ֖ב בְּאֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
57 ५७ इसलिए सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।
וְכָל־הָאָ֙רֶץ֙ בָּ֣אוּ מִצְרַ֔יְמָה לִשְׁבֹּ֖ר אֶל־יוֹסֵ֑ף כִּֽי־חָזַ֥ק הָרָעָ֖ב בְּכָל־הָאָֽרֶץ׃

< उत्पत्ति 41 >