< यहेजकेल 20 >

1 सातवें वर्ष के पाँचवें महीने के दसवें दिन को इस्राएल के कितने पुरनिये यहोवा से प्रश्न करने को आए, और मेरे सामने बैठ गए।
וַיְהִ֣י ׀ בַּשָּׁנָ֣ה הַשְּׁבִיעִ֗ית בַּֽחֲמִשִׁי֙ בֶּעָשֹׂ֣ור לַחֹ֔דֶשׁ בָּ֧אוּ אֲנָשִׁ֛ים מִזִּקְנֵ֥י יִשְׂרָאֵ֖ל לִדְרֹ֣שׁ אֶת־יְהוָ֑ה וַיֵּשְׁב֖וּ לְפָנָֽי׃ ס
2 तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा:
וַיְהִ֥י דְבַר־יְהוָ֖ה אֵלַ֥י לֵאמֹֽר׃
3 “हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएली पुरनियों से यह कह, प्रभु यहोवा यह कहता है, क्या तुम मुझसे प्रश्न करने को आए हो? प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, तुम मुझसे प्रश्न करने न पाओगे।
בֶּן־אָדָ֗ם דַּבֵּ֞ר אֶת־זִקְנֵ֤י יִשְׂרָאֵל֙ וְאָמַרְתָּ֣ אֲלֵהֶ֔ם כֹּ֤ה אָמַר֙ אֲדֹנָ֣י יְהוִ֔ה הֲלִדְרֹ֥שׁ אֹתִ֖י אַתֶּ֣ם בָּאִ֑ים חַי־אָ֙נִי֙ אִם־אִדָּרֵ֣שׁ לָכֶ֔ם נְאֻ֖ם אֲדֹנָ֥י יְהוִֽה׃
4 हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उनका न्याय न करेगा? क्या तू उनका न्याय न करेगा? उनके पुरखाओं के घिनौने काम उन्हें जता दे,
הֲתִשְׁפֹּ֣ט אֹתָ֔ם הֲתִשְׁפֹּ֖וט בֶּן־אָדָ֑ם אֶת־תֹּועֲבֹ֥ת אֲבֹותָ֖ם הֹודִיעֵֽם׃
5 और उनसे कह, प्रभु यहोवा यह कहता है: जिस दिन मैंने इस्राएल को चुन लिया, और याकूब के घराने के वंश से शपथ खाई, और मिस्र देश में अपने को उन पर प्रगट किया, और उनसे शपथ खाकर कहा, मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ,
וְאָמַרְתָּ֣ אֲלֵיהֶ֗ם כֹּֽה־אָמַר֮ אֲדֹנָ֣י יְהוִה֒ בְּיֹום֙ בָּחֳרִ֣י בְיִשְׂרָאֵ֔ל וָאֶשָּׂ֣א יָדִ֗י לְזֶ֙רַע֙ בֵּ֣ית יַֽעֲקֹ֔ב וָאִוָּדַ֥ע לָהֶ֖ם בְּאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם וָאֶשָּׂ֨א יָדִ֤י לָהֶם֙ לֵאמֹ֔ר אֲנִ֖י יְהוָ֥ה אֱלֹהֵיכֶֽם׃
6 उसी दिन मैंने उनसे यह भी शपथ खाई, कि मैं तुम को मिस्र देश से निकालकर एक देश में पहुँचाऊँगा, जिसे मैंने तुम्हारे लिये चुन लिया है; वह सब देशों का शिरोमणि है, और उसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं।
בַּיֹּ֣ום הַה֗וּא נָשָׂ֤אתִי יָדִי֙ לָהֶ֔ם לְהֹֽוצִיאָ֖ם מֵאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם אֶל־אֶ֜רֶץ אֲשֶׁר־תַּ֣רְתִּי לָהֶ֗ם זָבַ֤ת חָלָב֙ וּדְבַ֔שׁ צְבִ֥י הִ֖יא לְכָל־הָאֲרָצֹֽות׃
7 फिर मैंने उनसे कहा, जिन घिनौनी वस्तुओं पर तुम में से हर एक की आँखें लगी हैं, उन्हें फेंक दो; और मिस्र की मूरतों से अपने को अशुद्ध न करो; मैं ही तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
וָאֹמַ֣ר אֲלֵהֶ֗ם אִ֣ישׁ שִׁקּוּצֵ֤י עֵינָיו֙ הַשְׁלִ֔יכוּ וּבְגִלּוּלֵ֥י מִצְרַ֖יִם אַל־תִּטַּמָּ֑אוּ אֲנִ֖י יְהוָ֥ה אֱלֹהֵיכֶֽם׃
8 परन्तु वे मुझसे बिगड़ गए और मेरी सुननी न चाही; जिन घिनौनी वस्तुओं पर उनकी आँखें लगी थीं, उनको किसी ने फेंका नहीं, और न मिस्र की मूरतों को छोड़ा। “तब मैंने कहा, मैं यहीं, मिस्र देश के बीच तुम पर अपनी जलजलाहट भड़काऊँगा। और पूरा कोप दिखाऊँगा।
וַיַּמְרוּ־בִ֗י וְלֹ֤א אָבוּ֙ לִּשְׁמֹ֣עַ אֵלַ֔י אִ֣ישׁ אֶת־שִׁקּוּצֵ֤י עֵֽינֵיהֶם֙ לֹ֣א הִשְׁלִ֔יכוּ וְאֶת־גִּלּוּלֵ֥י מִצְרַ֖יִם לֹ֣א עָזָ֑בוּ וָאֹמַ֞ר לִשְׁפֹּ֧ךְ חֲמָתִ֣י עֲלֵיהֶ֗ם לְכַלֹּ֤ות אַפִּי֙ בָּהֶ֔ם בְּתֹ֖וךְ אֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
9 तो भी मैंने अपने नाम के निमित्त ऐसा किया कि जिनके बीच वे थे, और जिनके देखते हुए मैंने उनको मिस्र देश से निकलने के लिये अपने को उन पर प्रगट किया था उन जातियों के सामने वे अपवित्र न ठहरे।
וָאַ֙עַשׂ֙ לְמַ֣עַן שְׁמִ֔י לְבִלְתִּ֥י הֵחֵ֛ל לְעֵינֵ֥י הַגֹּויִ֖ם אֲשֶׁר־הֵ֣מָּה בְתֹוכָ֑ם אֲשֶׁ֨ר נֹודַ֤עְתִּי אֲלֵיהֶם֙ לְעֵ֣ינֵיהֶ֔ם לְהֹוצִיאָ֖ם מֵאֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
10 १० मैं उनको मिस्र देश से निकालकर जंगल में ले आया।
וָאֹֽוצִיאֵ֖ם מֵאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם וָאֲבִאֵ֖ם אֶל־הַמִּדְבָּֽר׃
11 ११ वहाँ उनको मैंने अपनी विधियाँ बताई और अपने नियम भी बताए कि जो मनुष्य उनको माने, वह उनके कारण जीवित रहेगा।
וָאֶתֵּ֤ן לָהֶם֙ אֶת־חֻקֹּותַ֔י וְאֶת־מִשְׁפָּטַ֖י הֹודַ֣עְתִּי אֹותָ֑ם אֲשֶׁ֨ר יַעֲשֶׂ֥ה אֹותָ֛ם הָאָדָ֖ם וָחַ֥י בָּהֶֽם׃
12 १२ फिर मैंने उनके लिये अपने विश्रामदिन ठहराए जो मेरे और उनके बीच चिन्ह ठहरें; कि वे जानें कि मैं यहोवा उनका पवित्र करनेवाला हूँ।
וְגַ֤ם אֶת־שַׁבְּתֹותַי֙ נָתַ֣תִּי לָהֶ֔ם לִהְיֹ֣ות לְאֹ֔ות בֵּינִ֖י וּבֵֽינֵיהֶ֑ם לָדַ֕עַת כִּ֛י אֲנִ֥י יְהוָ֖ה מְקַדְּשָֽׁם׃
13 १३ तो भी इस्राएल के घराने ने जंगल में मुझसे बलवा किया; वे मेरी विधियों पर न चले, और मेरे नियमों को तुच्छ जाना, जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; और उन्होंने मेरे विश्रामदिनों को अति अपवित्र किया। “तब मैंने कहा, मैं जंगल में इन पर अपनी जलजलाहट भड़काकर इनका अन्त कर डालूँगा।
וַיַּמְרוּ־בִ֨י בֵֽית־יִשְׂרָאֵ֜ל בַּמִּדְבָּ֗ר בְּחֻקֹּותַ֨י לֹא־הָלָ֜כוּ וְאֶת־מִשְׁפָּטַ֣י מָאָ֗סוּ אֲשֶׁר֩ יַעֲשֶׂ֨ה אֹתָ֤ם הָֽאָדָם֙ וָחַ֣י בָּהֶ֔ם וְאֶת־שַׁבְּתֹתַ֖י חִלְּל֣וּ מְאֹ֑ד וָאֹמַ֞ר לִשְׁפֹּ֨ךְ חֲמָתִ֧י עֲלֵיהֶ֛ם בַּמִּדְבָּ֖ר לְכַלֹּותָֽם׃
14 १४ परन्तु मैंने अपने नाम के निमित्त ऐसा किया कि वे उन जातियों के सामने, जिनके देखते मैं उनको निकाल लाया था, अपवित्र न ठहरे।
וָאֶעֱשֶׂ֖ה לְמַ֣עַן שְׁמִ֑י לְבִלְתִּ֤י הֵחֵל֙ לְעֵינֵ֣י הַגֹּויִ֔ם אֲשֶׁ֥ר הֹוצֵאתִ֖ים לְעֵינֵיהֶֽם׃
15 १५ फिर मैंने जंगल में उनसे शपथ खाई कि जो देश मैंने उनको दे दिया, और जो सब देशों का शिरोमणि है, जिसमें दूध और मधु की धराएँ बहती हैं, उसमें उन्हें न पहुँचाऊँगा,
וְגַם־אֲנִ֗י נָשָׂ֧אתִי יָדִ֛י לָהֶ֖ם בַּמִּדְבָּ֑ר לְבִלְתִּי֩ הָבִ֨יא אֹותָ֜ם אֶל־הָאָ֣רֶץ אֲשֶׁר־נָתַ֗תִּי זָבַ֤ת חָלָב֙ וּדְבַ֔שׁ צְבִ֥י הִ֖יא לְכָל־הָאֲרָצֹֽות׃
16 १६ क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने और मेरी विधियों पर न चले, और मेरे विश्रामदिन अपवित्र किए थे; इसलिए कि उनका मन उनकी मूरतों की ओर लगा रहा।
יַ֜עַן בְּמִשְׁפָּטַ֣י מָאָ֗סוּ וְאֶת־חֻקֹּותַי֙ לֹא־הָלְכ֣וּ בָהֶ֔ם וְאֶת־שַׁבְּתֹותַ֖י חִלֵּ֑לוּ כִּ֛י אַחֲרֵ֥י גִלּוּלֵיהֶ֖ם לִבָּ֥ם הֹלֵֽךְ׃
17 १७ तो भी मैंने उन पर कृपा की दृष्टि की, और उन्हें नाश न किया, और न जंगल में पूरी रीति से उनका अन्त कर डाला।
וַתָּ֧חָס עֵינִ֛י עֲלֵיהֶ֖ם מִֽשַּׁחֲתָ֑ם וְלֹֽא־עָשִׂ֧יתִי אֹותָ֛ם כָּלָ֖ה בַּמִּדְבָּֽר׃
18 १८ “फिर मैंने जंगल में उनकी सन्तान से कहा, अपने पुरखाओं की विधियों पर न चलो, न उनकी रीतियों को मानो और न उनकी मूरतें पूजकर अपने को अशुद्ध करो।
וָאֹמַ֤ר אֶל־בְּנֵיהֶם֙ בַּמִּדְבָּ֔ר בְּחוּקֵּ֤י אֲבֹֽותֵיכֶם֙ אַל־תֵּלֵ֔כוּ וְאֶת־מִשְׁפְּטֵיהֶ֖ם אַל־תִּשְׁמֹ֑רוּ וּבְגִלּוּלֵיהֶ֖ם אַל־תִּטַּמָּֽאוּ׃
19 १९ मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, मेरी विधियों पर चलो, और मेरे नियमों के मानने में चौकसी करो,
אֲנִי֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֵיכֶ֔ם בְּחֻקֹּותַ֖י לֵ֑כוּ וְאֶת־מִשְׁפָּטַ֥י שִׁמְר֖וּ וַעֲשׂ֥וּ אֹותָֽם׃
20 २० और मेरे विश्रामदिनों को पवित्र मानो कि वे मेरे और तुम्हारे बीच चिन्ह ठहरें, और जिससे तुम जानो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
וְאֶת־שַׁבְּתֹותַ֖י קַדֵּ֑שׁוּ וְהָי֤וּ לְאֹות֙ בֵּינִ֣י וּבֵֽינֵיכֶ֔ם לָדַ֕עַת כִּ֛י אֲנִ֥י יְהוָ֖ה אֱלֹהֵיכֶֽם׃
21 २१ परन्तु उनकी सन्तान ने भी मुझसे बलवा किया; वे मेरी विधियों पर न चले, न मेरे नियमों के मानने में चौकसी की; जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; मेरे विश्रामदिनों को उन्होंने अपवित्र किया। “तब मैंने कहा, मैं जंगल में उन पर अपनी जलजलाहट भड़काकर अपना कोप दिखलाऊँगा।
וַיַּמְרוּ־בִ֣י הַבָּנִ֗ים בְּחֻקֹּותַ֣י לֹֽא־הָ֠לָכוּ וְאֶת־מִשְׁפָּטַ֨י לֹא־שָׁמְר֜וּ לַעֲשֹׂ֣ות אֹותָ֗ם אֲשֶׁר֩ יַעֲשֶׂ֨ה אֹותָ֤ם הָֽאָדָם֙ וָחַ֣י בָּהֶ֔ם אֶת־שַׁבְּתֹותַ֖י חִלֵּ֑לוּ וָאֹמַ֞ר לִשְׁפֹּ֧ךְ חֲמָתִ֣י עֲלֵיהֶ֗ם לְכַלֹּ֥ות אַפִּ֛י בָּ֖ם בַּמִּדְבָּֽר׃
22 २२ तो भी मैंने हाथ खींच लिया, और अपने नाम के निमित्त ऐसा किया, कि उन जातियों के सामने जिनके देखते हुए मैं उन्हें निकाल लाया था, वे अपवित्र न ठहरे।
וַהֲשִׁבֹ֙תִי֙ אֶת־יָדִ֔י וָאַ֖עַשׂ לְמַ֣עַן שְׁמִ֑י לְבִלְתִּ֤י הֵחֵל֙ לְעֵינֵ֣י הַגֹּויִ֔ם אֲשֶׁר־הֹוצֵ֥אתִי אֹותָ֖ם לְעֵינֵיהֶֽם׃
23 २३ फिर मैंने जंगल में उनसे शपथ खाई, कि मैं तुम्हें जाति-जाति में तितर-बितर करूँगा, और देश-देश में छितरा दूँगा,
גַּם־אֲנִ֗י נָשָׂ֧אתִי אֶת־יָדִ֛י לָהֶ֖ם בַּמִּדְבָּ֑ר לְהָפִ֤יץ אֹתָם֙ בַּגֹּויִ֔ם וּלְזָרֹ֥ות אֹותָ֖ם בָּאֲרָצֹֽות׃
24 २४ क्योंकि उन्होंने मेरे नियम न माने, मेरी विधियों को तुच्छ जाना, मेरे विश्रामदिनों को अपवित्र किया, और अपने पुरखाओं की मूरतों की ओर उनकी आँखें लगी रहीं।
יַ֜עַן מִשְׁפָּטַ֤י לֹֽא־עָשׂוּ֙ וְחֻקֹּותַ֣י מָאָ֔סוּ וְאֶת־שַׁבְּתֹותַ֖י חִלֵּ֑לוּ וְאַחֲרֵי֙ גִּלּוּלֵ֣י אֲבֹותָ֔ם הָי֖וּ עֵינֵיהֶֽם׃
25 २५ फिर मैंने उनके लिये ऐसी-ऐसी विधियाँ ठहराई जो अच्छी न थी और ऐसी-ऐसी रीतियाँ जिनके कारण वे जीवित न रह सके;
וְגַם־אֲנִי֙ נָתַ֣תִּי לָהֶ֔ם חֻקִּ֖ים לֹ֣א טֹובִ֑ים וּמִ֨שְׁפָּטִ֔ים לֹ֥א יִֽחְי֖וּ בָּהֶֽם׃
26 २६ अर्थात् वे अपने सब पहिलौठों को आग में होम करने लगे; इस रीति मैंने उन्हें उन्हीं की भेंटों के द्वारा अशुद्ध किया जिससे उन्हें निर्वंश कर डालूँ; और तब वे जान लें कि मैं यहोवा हूँ।
וָאֲטַמֵּ֤א אֹותָם֙ בְּמַתְּנֹותָ֔ם בְּהַעֲבִ֖יר כָּל־פֶּ֣טֶר רָ֑חַם לְמַ֣עַן אֲשִׁמֵּ֔ם לְמַ֙עַן֙ אֲשֶׁ֣ר יֵֽדְע֔וּ אֲשֶׁ֖ר אֲנִ֥י יְהוָֽה׃ ס
27 २७ “हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा यह कहता है: तुम्हारे पुरखाओं ने इसमें भी मेरी निन्दा की कि उन्होंने मेरा विश्वासघात किया।
לָכֵ֞ן דַּבֵּ֨ר אֶל־בֵּ֤ית יִשְׂרָאֵל֙ בֶּן־אָדָ֔ם וְאָמַרְתָּ֣ אֲלֵיהֶ֔ם כֹּ֥ה אָמַ֖ר אֲדֹנָ֣י יְהוִ֑ה עֹ֗וד זֹ֚את גִּדְּפ֤וּ אֹותִי֙ אֲבֹ֣ותֵיכֶ֔ם בְּמַעֲלָ֥ם בִּ֖י מָֽעַל׃
28 २८ क्योंकि जब मैंने उनको उस देश में पहुँचाया, जिसे उन्हें देने की शपथ मैंने उनसे खाई थी, तब वे हर एक ऊँचे टीले और हर एक घने वृक्ष पर दृष्टि करके वहीं अपने मेलबलि करने लगे; और वहीं रिस दिलानेवाली अपनी भेंटें चढ़ाने लगे और वहीं अपना सुखदायक सुगन्ध-द्रव्य जलाने लगे, और वहीं अपने तपावन देने लगे।
וָאֲבִיאֵם֙ אֶל־הָאָ֔רֶץ אֲשֶׁ֤ר נָשָׂ֙אתִי֙ אֶת־יָדִ֔י לָתֵ֥ת אֹותָ֖הּ לָהֶ֑ם וַיִּרְאוּ֩ כָל־גִּבְעָ֨ה רָמָ֜ה וְכָל־עֵ֣ץ עָבֹ֗ת וַיִּזְבְּחוּ־שָׁ֤ם אֶת־זִבְחֵיהֶם֙ וַיִּתְּנוּ־שָׁם֙ כַּ֣עַס קָרְבָּנָ֔ם וַיָּשִׂ֣ימוּ שָׁ֗ם רֵ֚יחַ נִיחֹ֣וחֵיהֶ֔ם וַיַּסִּ֥יכוּ שָׁ֖ם אֶת־נִסְכֵּיהֶֽם׃
29 २९ तब मैंने उनसे पूछा, जिस ऊँचे स्थान को तुम लोग जाते हो, उससे क्या प्रयोजन है? इसी से उसका नाम आज तक बामा कहलाता है।
וָאֹמַ֣ר אֲלֵהֶ֔ם מָ֣ה הַבָּמָ֔ה אֲשֶׁר־אַתֶּ֥ם הַבָּאִ֖ים שָׁ֑ם וַיִּקָּרֵ֤א שְׁמָהּ֙ בָּמָ֔ה עַ֖ד הַיֹּ֥ום הַזֶּֽה׃
30 ३० इसलिए इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा तुम से यह पूछता है: क्या तुम भी अपने पुरखाओं की रीति पर चलकर अशुद्ध होकर, और उनके घिनौने कामों के अनुसार व्यभिचारिणी के समान काम करते हो?
לָכֵ֞ן אֱמֹ֣ר ׀ אֶל־בֵּ֣ית יִשְׂרָאֵ֗ל כֹּ֤ה אָמַר֙ אֲדֹנָ֣י יְהוִ֔ה הַבְּדֶ֥רֶךְ אֲבֹֽותֵיכֶ֖ם אַתֶּ֣ם נִטְמְאִ֑ים וְאַחֲרֵ֥י שִׁקּוּצֵיהֶ֖ם אַתֶּ֥ם זֹנִֽים׃
31 ३१ आज तक जब जब तुम अपनी भेंटें चढ़ाते और अपने बाल-बच्चों को होम करके आग में चढ़ाते हो, तब-तब तुम अपनी मूरतों के कारण अशुद्ध ठहरते हो। हे इस्राएल के घराने, क्या तुम मुझसे पूछने पाओगे? प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की शपथ तुम मुझसे पूछने न पाओगे।
וּבִשְׂאֵ֣ת מַתְּנֹֽתֵיכֶ֡ם בְּֽהַעֲבִיר֩ בְּנֵיכֶ֨ם בָּאֵ֜שׁ אַתֶּם֩ נִטְמְאִ֤֨ים לְכָל־גִּלּֽוּלֵיכֶם֙ עַד־הַיֹּ֔ום וַאֲנִ֛י אִדָּרֵ֥שׁ לָכֶ֖ם בֵּ֣ית יִשְׂרָאֵ֑ל חַי־אָ֗נִי נְאֻם֙ אֲדֹנָ֣י יְהוִ֔ה אִם־אִדָּרֵ֖שׁ לָכֶֽם׃
32 ३२ “जो बात तुम्हारे मन में आती है, ‘हम काठ और पत्थर के उपासक होकर अन्यजातियों और देश-देश के कुलों के समान हो जाएँगे,’ वह किसी भाँति पूरी नहीं होने की।
וְהָֽעֹלָה֙ עַל־ר֣וּחֲכֶ֔ם הָיֹ֖ו לֹ֣א תִֽהְיֶ֑ה אֲשֶׁ֣ר ׀ אַתֶּ֣ם אֹמְרִ֗ים נִֽהְיֶ֤ה כַגֹּויִם֙ כְּמִשְׁפְּחֹ֣ות הָאֲרָצֹ֔ות לְשָׁרֵ֖ת עֵ֥ץ וָאָֽבֶן׃
33 ३३ “प्रभु यहोवा यह कहता है, मेरे जीवन की शपथ मैं निश्चय बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई हुई जलजलाहट के साथ तुम्हारे ऊपर राज्य करूँगा।
חַי־אָ֕נִי נְאֻ֖ם אֲדֹנָ֣י יְהוִ֑ה אִם־לֹ֠א בְּיָ֨ד חֲזָקָ֜ה וּבִזְרֹ֧ועַ נְטוּיָ֛ה וּבְחֵמָ֥ה שְׁפוּכָ֖ה אֶמְלֹ֥וךְ עֲלֵיכֶֽם׃
34 ३४ मैं बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई हुई जलजलाहट के साथ तुम्हें देश-देश के लोगों में से अलग करूँगा, और उन देशों से जिनमें तुम तितर-बितर हो गए थे, इकट्ठा करूँगा;
וְהֹוצֵאתִ֤י אֶתְכֶם֙ מִן־הָ֣עַמִּ֔ים וְקִבַּצְתִּ֣י אֶתְכֶ֔ם מִן־הָ֣אֲרָצֹ֔ות אֲשֶׁ֥ר נְפֹוצֹתֶ֖ם בָּ֑ם בְּיָ֤ד חֲזָקָה֙ וּבִזְרֹ֣ועַ נְטוּיָ֔ה וּבְחֵמָ֖ה שְׁפוּכָֽה׃
35 ३५ और मैं तुम्हें देश-देश के लोगों के जंगल में ले जाकर, वहाँ आमने-सामने तुम से मुकद्दमा लड़ूँगा।
וְהֵבֵאתִ֣י אֶתְכֶ֔ם אֶל־מִדְבַּ֖ר הָֽעַמִּ֑ים וְנִשְׁפַּטְתִּ֤י אִתְּכֶם֙ שָׁ֔ם פָּנִ֖ים אֶל־פָּנִֽים׃
36 ३६ जिस प्रकार मैं तुम्हारे पूर्वजों से मिस्र देशरूपी जंगल में मुकद्दमा लड़ता था, उसी प्रकार तुम से मुकद्दमा लड़ूँगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
כַּאֲשֶׁ֤ר נִשְׁפַּ֙טְתִּי֙ אֶת־אֲבֹ֣ותֵיכֶ֔ם בְּמִדְבַּ֖ר אֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם כֵּ֚ן אִשָּׁפֵ֣ט אִתְּכֶ֔ם נְאֻ֖ם אֲדֹנָ֥י יְהוִֽה׃
37 ३७ “मैं तुम्हें लाठी के तले चलाऊँगा। और तुम्हें वाचा के बन्धन में डालूँगा।
וְהַעֲבַרְתִּ֥י אֶתְכֶ֖ם תַּ֣חַת הַשָּׁ֑בֶט וְהֵבֵאתִ֥י אֶתְכֶ֖ם בְּמָסֹ֥רֶת הַבְּרִֽית׃
38 ३८ मैं तुम में से सब विद्रोहियों को निकालकर जो मेरा अपराध करते है; तुम्हें शुद्ध करूँगा; और जिस देश में वे टिकते हैं उसमें से मैं उन्हें निकाल दूँगा; परन्तु इस्राएल के देश में घुसने न दूँगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
וּבָרֹותִ֣י מִכֶּ֗ם הַמֹּרְדִ֤ים וְהַפֹּֽושְׁעִים֙ בִּ֔י מֵאֶ֤רֶץ מְגֽוּרֵיהֶם֙ אֹוצִ֣יא אֹותָ֔ם וְאֶל־אַדְמַ֥ת יִשְׂרָאֵ֖ל לֹ֣א יָבֹ֑וא וִֽידַעְתֶּ֖ם כִּי־אֲנִ֥י יְהוָֽה׃
39 ३९ “हे इस्राएल के घराने तुम से तो प्रभु यहोवा यह कहता है: जाकर अपनी-अपनी मूरतों की उपासना करो; और यदि तुम मेरी न सुनोगे, तो आगे को भी यही किया करो; परन्तु मेरे पवित्र नाम को अपनी भेंटों और मूरतों के द्वारा फिर अपवित्र न करना।
וְאַתֶּ֨ם בֵּֽית־יִשְׂרָאֵ֜ל כֹּֽה־אָמַ֣ר ׀ אֲדֹנָ֣י יְהֹוִ֗ה אִ֤ישׁ גִּלּוּלָיו֙ לְכ֣וּ עֲבֹ֔דוּ וְאַחַ֕ר אִם־אֵינְכֶ֖ם שֹׁמְעִ֣ים אֵלָ֑י וְאֶת־שֵׁ֤ם קָדְשִׁי֙ לֹ֣א תְחַלְּלוּ־עֹ֔וד בְּמַתְּנֹֽותֵיכֶ֖ם וּבְגִלּוּלֵיכֶֽם׃
40 ४० “क्योंकि प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि इस्राएल का सारा घराना अपने देश में मेरे पवित्र पर्वत पर, इस्राएल के ऊँचे पर्वत पर, सब का सब मेरी उपासना करेगा; वही मैं उनसे प्रसन्न होऊँगा, और वहीं मैं तुम्हारी उठाई हुई भेंटें और चढ़ाई हुई उत्तम-उत्तम वस्तुएँ, और तुम्हारी सब पवित्र की हुई वस्तुएँ तुम से लिया करूँगा।
כִּ֣י בְהַר־קָדְשִׁ֞י בְּהַ֣ר ׀ מְרֹ֣ום יִשְׂרָאֵ֗ל נְאֻם֙ אֲדֹנָ֣י יְהוִ֔ה שָׁ֣ם יַעַבְדֻ֜נִי כָּל־בֵּ֧ית יִשְׂרָאֵ֛ל כֻּלֹּ֖ה בָּאָ֑רֶץ שָׁ֣ם אֶרְצֵ֔ם וְשָׁ֞ם אֶדְרֹ֣ושׁ אֶת־תְּרוּמֹֽתֵיכֶ֗ם וְאֶת־רֵאשִׁ֛ית מַשְׂאֹותֵיכֶ֖ם בְּכָל־קָדְשֵׁיכֶֽם׃
41 ४१ जब मैं तुम्हें देश-देश के लोगों में से अलग करूँ और उन देशों से जिनमें तुम तितर-बितर हुए हो, इकट्ठा करूँ, तब तुम को सुखदायक सुगन्ध जानकर ग्रहण करूँगा, और अन्यजातियों के सामने तुम्हारे द्वारा पवित्र ठहराया जाऊँगा।
בְּרֵ֣יחַ נִיחֹחַ֮ אֶרְצֶ֣ה אֶתְכֶם֒ בְּהֹוצִיאִ֤י אֶתְכֶם֙ מִן־הָ֣עַמִּ֔ים וְקִבַּצְתִּ֣י אֶתְכֶ֔ם מִן־הָ֣אֲרָצֹ֔ות אֲשֶׁ֥ר נְפֹצֹתֶ֖ם בָּ֑ם וְנִקְדַּשְׁתִּ֥י בָכֶ֖ם לְעֵינֵ֥י הַגֹּויִֽם׃
42 ४२ जब मैं तुम्हें इस्राएल के देश में पहुँचाऊँ, जिसके देने की शपथ मैंने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी, तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
וִֽידַעְתֶּם֙ כִּֽי־אֲנִ֣י יְהוָ֔ה בַּהֲבִיאִ֥י אֶתְכֶ֖ם אֶל־אַדְמַ֣ת יִשְׂרָאֵ֑ל אֶל־הָאָ֗רֶץ אֲשֶׁ֤ר נָשָׂ֙אתִי֙ אֶת־יָדִ֔י לָתֵ֥ת אֹותָ֖הּ לַאֲבֹֽותֵיכֶֽם׃
43 ४३ वहाँ तुम अपनी चाल चलन और अपने सब कामों को जिनके करने से तुम अशुद्ध हुए हो स्मरण करोगे, और अपने सब बुरे कामों के कारण अपनी दृष्टि में घिनौने ठहरोगे।
וּזְכַרְתֶּם־שָׁ֗ם אֶת־דַּרְכֵיכֶם֙ וְאֵת֙ כָּל־עֲלִילֹ֣ותֵיכֶ֔ם אֲשֶׁ֥ר נִטְמֵאתֶ֖ם בָּ֑ם וּנְקֹֽטֹתֶם֙ בִּפְנֵיכֶ֔ם בְּכָל־רָעֹותֵיכֶ֖ם אֲשֶׁ֥ר עֲשִׂיתֶֽם׃
44 ४४ हे इस्राएल के घराने, जब मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे बुरे चाल चलन और बिगड़े हुए कामों के अनुसार नहीं, परन्तु अपने ही नाम के निमित्त बर्ताव करूँ, तब तुम जान लोगे कि में यहोवा हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।”
וִֽידַעְתֶּם֙ כִּֽי־אֲנִ֣י יְהוָ֔ה בַּעֲשֹׂותִ֥י אִתְּכֶ֖ם לְמַ֣עַן שְׁמִ֑י לֹא֩ כְדַרְכֵיכֶ֨ם הָרָעִ֜ים וְכַעֲלִילֹֽותֵיכֶ֤ם הַנִּשְׁחָתֹות֙ בֵּ֣ית יִשְׂרָאֵ֔ל נְאֻ֖ם אֲדֹנָ֥י יְהוִֽה׃ פ
45 ४५ यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा:
וַיְהִ֥י דְבַר־יְהוָ֖ה אֵלַ֥י לֵאמֹֽר׃
46 ४६ “हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख दक्षिण की ओर कर, दक्षिण की ओर वचन सुना, और दक्षिण देश के वन के विषय में भविष्यद्वाणी कर;
בֶּן־אָדָ֗ם שִׂ֤ים פָּנֶ֙יךָ֙ דֶּ֣רֶךְ תֵּימָ֔נָה וְהַטֵּ֖ף אֶל־דָּרֹ֑ום וְהִנָּבֵ֛א אֶל־יַ֥עַר הַשָּׂדֶ֖ה נֶֽגֶב׃
47 ४७ और दक्षिण देश के वन से कह, यहोवा का यह वचन सुन, प्रभु यहोवा यह कहता है, मैं तुझ में आग लगाऊँगा, और तुझ में क्या हरे, क्या सूखे, जितने पेड़ हैं, सब को वह भस्म करेगी; उसकी धधकती ज्वाला न बुझेगी, और उसके कारण दक्षिण से उत्तर तक सब के मुख झुलस जाएँगे।
וְאָֽמַרְתָּ֙ לְיַ֣עַר הַנֶּ֔גֶב שְׁמַ֖ע דְּבַר־יְהוָ֑ה כֹּֽה־אָמַ֣ר אֲדֹנָ֣י יְהוִ֡ה הִנְנִ֣י מַֽצִּית־בְּךָ֣ ׀ אֵ֡שׁ וְאָכְלָ֣ה בְךָ֣ כָל־עֵֽץ־לַח֩ וְכָל־עֵ֨ץ יָבֵ֤שׁ לֹֽא־תִכְבֶּה֙ לַהֶ֣בֶת שַׁלְהֶ֔בֶת וְנִצְרְבוּ־בָ֥הּ כָּל־פָּנִ֖ים מִנֶּ֥גֶב צָפֹֽונָה׃
48 ४८ तब सब प्राणियों को सूझ पड़ेगा कि यह आग यहोवा की लगाई हुई है; और वह कभी न बुझेगी।”
וְרָאוּ֙ כָּל־בָּשָׂ֔ר כִּ֛י אֲנִ֥י יְהוָ֖ה בִּֽעַרְתִּ֑יהָ לֹ֖א תִּכְבֶּֽה׃
49 ४९ तब मैंने कहा, “हाय परमेश्वर यहोवा! लोग तो मेरे विषय में कहा करते हैं कि क्या वह दृष्टान्त ही का कहनेवाला नहीं है?”
וָאֹמַ֕ר אֲהָ֖הּ אֲדֹנָ֣י יְהוִ֑ה הֵ֚מָּה אֹמְרִ֣ים לִ֔י הֲלֹ֛א מְמַשֵּׁ֥ל מְשָׁלִ֖ים הֽוּא׃ פ

< यहेजकेल 20 >