< एस्तेर 8 >
1 १ उसी दिन राजा क्षयर्ष ने यहूदियों के विरोधी हामान का घरबार एस्तेर रानी को दे दिया। मोर्दकै राजा के सामने आया, क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया था, कि उससे उसका क्या नाता था
Aquel día, el rey Asuero entregó la casa de Amán, el enemigo de los judíos, a la reina Ester. Mardoqueo se presentó ante el rey, pues Ester le había contado lo que era.
2 २ तब राजा ने अपनी वह मुहर वाली अंगूठी जो उसने हामान से ले ली थी, उतार कर, मोर्दकै को दे दी। एस्तेर ने मोर्दकै को हामान के घरबार पर अधिकारी नियुक्त कर दिया।
El rey se quitó el anillo que le había quitado a Amán y se lo dio a Mardoqueo. Ester puso a Mardoqueo al frente de la casa de Amán.
3 ३ फिर एस्तेर दूसरी बार राजा से बोली; और उसके पाँव पर गिर, आँसू बहा बहाकर उससे गिड़गिड़ाकर विनती की, कि अगागी हामान की बुराई और यहूदियों की हानि की उसकी युक्ति निष्फल की जाए।
Ester volvió a hablar ante el rey, se postró a sus pies y le rogó con lágrimas que acabara con la maldad de Amán el agagita y con el plan que había planeado contra los judíos.
4 ४ तब राजा ने एस्तेर की ओर सोने का राजदण्ड बढ़ाया।
Entonces el rey le tendió a Ester el cetro de oro. Entonces Ester se levantó y se presentó ante el rey.
5 ५ तब एस्तेर उठकर राजा के सामने खड़ी हुई; और कहने लगी, “यदि राजा को स्वीकार हो और वह मुझसे प्रसन्न है और यह बात उसको ठीक जान पड़े, और मैं भी उसको अच्छी लगती हूँ, तो जो चिट्ठियाँ हम्मदाता अगागी के पुत्र हामान ने राजा के सब प्रान्तों के यहूदियों को नाश करने की युक्ति करके लिखाई थीं, उनको पलटने के लिये लिखा जाए।
Ella dijo: “Si al rey le agrada, y si he hallado gracia ante sus ojos, y la cosa le parece bien al rey, y soy agradable a sus ojos, que se escriba para anular las cartas ideadas por Amán, hijo de Hamedata el agagueo, que él escribió para destruir a los judíos que están en todas las provincias del rey.
6 ६ क्योंकि मैं अपने जाति के लोगों पर पड़नेवाली उस विपत्ति को किस रीति से देख सकूँगी? और मैं अपने भाइयों के विनाश को कैसे देख सकूँगी?”
Porque, ¿cómo podré soportar ver el mal que le espera a mi pueblo? ¿Cómo podré soportar ver la destrucción de mis parientes?”
7 ७ तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से और मोर्दकै यहूदी से कहा, “मैं हामान का घरबार तो एस्तेर को दे चुका हूँ, और वह फांसी के खम्भे पर लटका दिया गया है, इसलिए कि उसने यहूदियों पर हाथ उठाया था।
Entonces el rey Asuero dijo a la reina Ester y al judío Mardoqueo: “Mira, he entregado a Ester a la casa de Amán, y lo han colgado en la horca porque puso su mano sobre los judíos.
8 ८ अतः तुम अपनी समझ के अनुसार राजा के नाम से यहूदियों के नाम पर लिखो, और राजा की मुहर वाली अंगूठी की छाप भी लगाओ; क्योंकि जो चिट्ठी राजा के नाम से लिखी जाए, और उस पर उसकी अंगूठी की छाप लगाई जाए, उसको कोई भी पलट नहीं सकता।”
Escribe también a los judíos lo que te plazca, en nombre del rey, y séllalo con el anillo del rey; porque lo que se escribe en nombre del rey, y se sella con el anillo del rey, no puede ser revocado por nadie.”
9 ९ उसी समय अर्थात् सीवान नामक तीसरे महीने के तेईसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाए गए और जिस-जिस बात की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी थी, उसे यहूदियों और अधिपतियों और भारत से लेकर कूश तक, जो एक सौ सत्ताईस प्रान्त हैं, उन सभी के अधिपतियों और हाकिमों को एक-एक प्रान्त के अक्षरों में और एक-एक देश के लोगों की भाषा में, और यहूदियों को उनके अक्षरों और भाषा में लिखी गईं।
Entonces fueron llamados los escribas del rey en aquel tiempo, en el mes tercero, que es el mes de Siván, a los veintitrés días del mes; y se escribió según todo lo que Mardoqueo mandó a los judíos, y a los gobernadores locales, y a los gobernadores y príncipes de las provincias que están desde la India hasta Etiopía, ciento veintisiete provincias, a cada provincia según su escritura, y a cada pueblo en su lengua, y a los judíos en su escritura y en su lengua.
10 १० मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के नाम से चिट्ठियाँ लिखाकर, और उन पर राजा की मुहर वाली अंगूठी की छाप लगाकर, वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों, खच्चरों और साँड़नियों पर सवार हरकारों के हाथ भेज दीं।
Escribió en nombre del rey Asuero, y lo selló con el anillo del rey, y envió las cartas por correo a caballo, montando en caballos reales criados de corceles veloces.
11 ११ इन चिट्ठियों में सब नगरों के यहूदियों को राजा की ओर से अनुमति दी गई, कि वे इकट्ठे हों और अपना-अपना प्राण बचाने के लिये तैयार होकर, जिस जाति या प्रान्त के लोग अन्याय करके उनको या उनकी स्त्रियों और बाल-बच्चों को दुःख देना चाहें, उनको घात और नाश करें, और उनकी धन-सम्पत्ति लूट लें।
En esas cartas, el rey concedía a los judíos que estaban en cada ciudad que se reunieran y defendieran sus vidas, para destruir, matar y hacer perecer a todo el poder del pueblo y de la provincia que los asaltara, a sus pequeños y a sus mujeres, y para saquear sus posesiones,
12 १२ और यह राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में एक ही दिन में किया जाए, अर्थात् अदार नामक बारहवें महीने के तेरहवें दिन को।
en un solo día en todas las provincias del rey Asuero, el día trece del duodécimo mes, que es el mes de Adar.
13 १३ इस आज्ञा के लेख की नकलें, समस्त प्रान्तों में सब देशों के लोगों के पास खुली हुई भेजी गईं; ताकि यहूदी उस दिन अपने शत्रुओं से पलटा लेने को तैयार रहें।
Se publicó en todos los pueblos una copia de la carta para que el decreto se repartiera en todas las provincias, a fin de que los judíos estuvieran preparados para ese día para vengarse de sus enemigos.
14 १४ अतः हरकारे वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों पर सवार होकर, राजा की आज्ञा से फुर्ती करके जल्दी चले गए, और यह आज्ञा शूशन राजगढ़ में दी गई थी।
Salieron, pues, los mensajeros que montaban en caballos reales, se apresuraron y se pusieron en marcha por orden del rey. El decreto se dio en la ciudadela de Susa.
15 १५ तब मोर्दकै नीले और श्वेत रंग के राजकीय वस्त्र पहने और सिर पर सोने का बड़ा मुकुट धरे हुए और सूक्ष्म सन और बैंगनी रंग का बागा पहने हुए, राजा के सम्मुख से निकला, और शूशन नगर के लोग आनन्द के मारे ललकार उठे।
Mardoqueo salió de la presencia del rey con ropas reales de azul y blanco, y con una gran corona de oro, y con un manto de lino fino y púrpura; y la ciudad de Susa gritó y se alegró.
16 १६ और यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई।
Los judíos tuvieron luz, alegría, gozo y honor.
17 १७ और जिस-जिस प्रान्त, और जिस-जिस नगर में, जहाँ कहीं राजा की आज्ञा और नियम पहुँचे, वहाँ-वहाँ यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ, और उन्होंने भोज करके उस दिन को खुशी का दिन माना। और उस देश के लोगों में से बहुत लोग यहूदी बन गए, क्योंकि उनके मन में यहूदियों का डर समा गया था।
En todas las provincias y en todas las ciudades, dondequiera que llegaba el mandamiento del rey y su decreto, los judíos tenían alegría, gozo, fiesta y festividad. Muchos de entre los pueblos de la tierra se hicieron judíos, porque el temor de los judíos había caído sobre ellos.