< व्यवस्था विवरण 26 >
1 १ “फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुँचे, और उसका अधिकारी होकर उसमें बस जाए,
"Kommst du in das Land, das dir der Herr, dein Gott, zu eigen gibt, nimmst du es in Besitz und siedelst du darin,
2 २ तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भाँति-भाँति की जो पहली उपज तू अपने घर लाएगा, उसमें से कुछ टोकरी में लेकर उस स्थान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले।
dann nimm einen Teil des ersten Abhubs all der Feldfrüchte, die du aus deinem Lande einbringst, das dir der Herr, dein Gott, gibt, lege sie in einen Korb und gehe zu der Stätte, die der Herr, dein Gott, erwählt, um seinen Namen dort wohnen zu lassen!
3 ३ और उन दिनों के याजक के पास जाकर यह कहना, ‘मैं आज हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने स्वीकार करता हूँ, कि यहोवा ने हम लोगों को जिस देश के देने की हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी उसमें मैं आ गया हूँ।’
Tritt zu dem Priester hin, der zu jener Zeit Dienste tut, und sprich zu ihm: 'Hiermit zeige ich heute dem Herrn, deinem Gott, an, daß ich in das Land gekommen bin, das uns zu geben der Herr unseren Vätern zugeschworen!'
4 ४ तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी लेकर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के सामने रख दे।
Dann nehme der Priester den Korb aus deiner Hand und stelle ihn vor den Altar des Herrn, deines Gottes!
5 ५ तब तू अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, ‘मेरा मूलपुरुष एक अरामी मनुष्य था जो मरने पर था; और वह अपने छोटे से परिवार समेत मिस्र को गया, और वहाँ परदेशी होकर रहा; और वहाँ उससे एक बड़ी, और सामर्थी, और बहुत मनुष्यों से भरी हुई जाति उत्पन्न हुई।
Dann heb an und sprich also vor dem Herrn, deinem Gott: 'Ein Aramäer, stammgetrennt, ist mein Ahn gewesen. Er zog mit einem geringen Häuflein nach Ägypten, war dort zu Gast und ward daselbst zu großem, starkem und zahlreichem Volke.
6 ६ और मिस्रियों ने हम लोगों से बुरा बर्ताव किया, और हमें दुःख दिया, और हम से कठिन सेवा ली।
Die Ägypter aber Behandelten uns und bedrückten uns und legten uns harte Arbeit auf!
7 ७ परन्तु हमने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की दुहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुःख-श्रम और अत्याचार पर दृष्टि की;
Da schrieen wir zum Herrn, dem Gott unserer Väter. Und der Herr erhörte unser Rufen und sah auf unser Elend, unsere Mühsal und Qual.
8 ८ और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हमको मिस्र से निकाल लाया;
Dann führte der Herr uns aus Ägypten mit starker Hand und ausgerecktem Arme, mit furchtbarer Macht und unter Zeichen und Wundern.
9 ९ और हमें इस स्थान पर पहुँचाकर यह देश जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं हमें दे दिया है।
Er brachte uns an diese Stätte und gab uns dieses Land, ein Land, von Milch und Honig fließend.
10 १० अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तूने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूँ।’ तब तू उसे अपने परमेश्वर यहोवा के सामने रखना; और यहोवा को दण्डवत् करना;
Und hier bringe ich den ersten Abhub der Früchte aus dem Lande, das Du mir gegeben, Herr!' Damit laß sie beim Herrn deinem Gott, wirf dich nieder vor dem Herrn, deinem Gott,
11 ११ और जितने अच्छे पदार्थ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवियों और अपने मध्य में रहनेवाले परदेशियों सहित आनन्द करना।
und freue dich an all dem Segen, den dir und deinem Haus der Herr, dein Gott, geschenkt, du selbst, der Levite und der Fremdling bei dir!
12 १२ “तीसरे वर्ष जो दशमांश देने का वर्ष ठहरा है, जब तू अपनी सब भाँति की बढ़ती के दशमांश को निकाल चुके, तब उसे लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को देना, कि वे तेरे फाटकों के भीतर खाकर तृप्त हों;
Lieferst du vollständig im dritten Jahre, dem Zehntjahre, den ganzen Zehnten deiner Erträgnisse ab, dann gib ihn den Leviten, Fremdlingen, Waisen und Witwen, damit sie ihn in deinen Toren verzehren und sich sättigen!
13 १३ और तू अपने परमेश्वर यहोवा से कहना, ‘मैंने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्र ठहराई हुई वस्तुओं को अपने घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैंने न तो टाला है, और न भूला है।
Dann erkläre vor dem Herrn, deinem Gott: 'Ich habe das Heilige aus dem Haus geschafft und es den Leviten, Fremdlingen, Waisen und Witwen gegeben, genau nach Deinem Gebote, das Du mir geboten. Ich habe keines Deiner Gebote übertreten und keines vergessen.
14 १४ उन वस्तुओं में से मैंने शोक के समय नहीं खाया, और न उनमें से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और न कुछ शोक करनेवालों को दिया; मैंने अपने परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैंने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है।
Ich habe nichts davon im Tempel genossen und nichts davon beseitigt in unfrommer Weise und habe nichts davon einem Toten gegeben. Ich gehorche der Stimme des Herrn, meines Gottes, und tue alles, was Du mir befahlst.
15 १५ तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्र धाम है दृष्टि करके अपनी प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तूने हमारे पूर्वजों से खाई हुई शपथ के अनुसार हमें दिया है।’
Neige Dich von Deiner heiligen Wohnung, vom Himmel, und segne Dein Volk Israel und die Scholle, die Du uns gegeben, wie Du unseren Vätern zugeschworen, ein Land, von Milch und Honig fließend!'
16 १६ “आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको इन्हीं विधियों और नियमों के मानने की आज्ञा देता है; इसलिए अपने सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना।
Heute befiehlt dir der Herr, dein Gott, diese Gebote und Gebräuche zu tun. So befolge sie sorgfältig von ganzem Herzen und aus ganzer Seele!
17 १७ तूने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बताए हुए मार्गों पर चलूँगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमों को माना करूँगा, और तेरी सुना करूँगा।
Du erklärst heute von dem Herrn, er soll dein Gott sein und du wollest in seinen Wegen wandeln, seine Gesetze, Gebote und Gebräuche halten und seiner Stimme gehorchen.
18 १८ और यहोवा ने भी आज तुझको अपने वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन-सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे,
Und der Herr erklärt heute von dir, du sollest ihm ein Sondervolk sein, wie er dir verheißen, wenn du all seine Gebote befolgst.
19 १९ और कि वह अपनी बनाई हुई सब जातियों से अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझको प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।”
Er wolle dich hoch über alle Völker setzen, die er geschaffen, zu Preis, Ruhm und Ehre, und du sollst dem Herrn, deinem Gott, ein heiliges Volk sein, wie er zugesagt hat."