< दानिय्येल 6 >

1 दारा को यह अच्छा लगा कि अपने राज्य के ऊपर एक सौ बीस ऐसे अधिपति ठहराए, जो पूरे राज्य में अधिकार रखें।
حَسُنَ عِنْدَ دَارِيُّوسَ أَنْ يُوَلِّيَ عَلَى ٱلْمَمْلَكَةِ مِئَةً وَعِشْرِينَ مَرْزُبَانًا يَكُونُونَ عَلَى ٱلْمَمْلَكَةِ كُلِّهَا.١
2 और उनके ऊपर उसने तीन अध्यक्ष, जिनमें से दानिय्येल एक था, इसलिए ठहराए, कि वे उन अधिपतियों से लेखा लिया करें, और इस रीति राजा की कुछ हानि न होने पाए।
وَعَلَى هَؤُلَاءِ ثَلَاثَةَ وُزَرَاءَ أَحَدُهُمْ دَانِيآلُ، لِتُؤَدِّيَ ٱلْمَرَازِبَةُ إِلَيْهِمِ ٱلْحِسَابَ فَلَا تُصِيبَ ٱلْمَلِكَ خَسَارَةٌ.٢
3 जब यह देखा गया कि दानिय्येल में उत्तम आत्मा रहती है, तब उसको उन अध्यक्षों और अधिपतियों से अधिक प्रतिष्ठा मिली; वरन् राजा यह भी सोचता था कि उसको सारे राज्य के ऊपर ठहराए।
فَفَاقَ دَانِيآلُ هَذَا عَلَى ٱلْوُزَرَاءِ وَٱلْمَرَازِبَةِ، لِأَنَّ فِيهِ رُوحًا فَاضِلَةً. وَفَكَّرَ ٱلْمَلِكُ فِي أَنْ يُوَلِّيَهُ عَلَى ٱلْمَمْلَكَةِ كُلِّهَا.٣
4 तब अध्यक्ष और अधिपति राजकार्य के विषय में दानिय्येल के विरुद्ध दोष ढूँढ़ने लगे; परन्तु वह विश्वासयोग्य था, और उसके काम में कोई भूल या दोष न निकला, और वे ऐसा कोई अपराध या दोष न पा सके।
ثُمَّ إِنَّ ٱلْوُزَرَاءَ وَٱلْمَرَازِبَةَ كَانُوا يَطْلُبُونَ عِلَّةً يَجِدُونَهَا عَلَى دَانِيآلَ مِنْ جِهَةِ ٱلْمَمْلَكَةِ، فَلَمْ يَقْدِرُوا أَنْ يَجِدُوا عِلَّةً وَلَا ذَنْبًا، لِأَنَّهُ كَانَ أَمِينًا وَلَمْ يُوجَدْ فِيهِ خَطَأٌ وَلَا ذَنْبٌ.٤
5 तब वे लोग कहने लगे, “हम उस दानिय्येल के परमेश्वर की व्यवस्था को छोड़ और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे।”
فَقَالَ هَؤُلَاءِ ٱلرِّجَالُ: «لَا نَجِدُ عَلَى دَانِيآلَ هَذَا عِلَّةً إِلَّا أَنْ نَجِدَهَا مِنْ جِهَةِ شَرِيعَةِ إِلَهِهِ».٥
6 तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उससे कहा, “हे राजा दारा, तू युग-युग जीवित रहे।
حِينَئِذٍ ٱجْتَمَعَ هَؤُلَاءِ ٱلْوُزَرَاءُ وَٱلْمَرَازِبَةُ عِنْدَ ٱلْمَلِكِ وَقَالُوا لَهُ هَكَذَا: «أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ دَارِيُوسُ، عِشْ إِلَى ٱلْأَبَدِ!٦
7 राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और राज्यपालों ने आपस में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाए।
إِنَّ جَمِيعَ وُزَرَاءِ ٱلْمَمْلَكَةِ وَٱلشِّحَنِ وَٱلْمَرَازِبَةِ وَٱلْمُشِيرِينَ وَٱلْوُلَاةِ قَدْ تَشَاوَرُوا عَلَى أَنْ يَضَعُوا أَمْرًا مَلَكِيًّا وَيُشَدِّدُوا نَهْيًا، بِأَنَّ كُلَّ مَنْ يَطْلُبُ طِلْبَةً حَتَّى ثَلَاثِينَ يَوْمًا مِنْ إِلَهٍ أَوْ إِنْسَانٍ إِلَّا مِنْكَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، يُطْرَحُ فِي جُبِّ ٱلْأُسُودِ.٧
8 इसलिए अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिससे यह बात मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके।”
فَثَبِّتِ ٱلْآنَ ٱلنَّهْيَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، وَأَمْضِ ٱلْكِتَابَةَ لِكَيْ لَا تَتَغَيَّرَ كَشَرِيعَةِ مَادِي وَفَارِسَ ٱلَّتِي لَا تُنْسَخُ».٨
9 तब दारा राजा ने उस आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कर दिया।
لِأَجْلِ ذَلِكَ أَمْضَى ٱلْمَلِكُ دَارِيُوسُ ٱلْكِتَابَةَ وَٱلنَّهْيَ.٩
10 १० जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी ऊपरी कोठरी की खिड़कियाँ यरूशलेम की ओर खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा।
فَلَمَّا عَلِمَ دَانِيآلُ بِإِمْضَاءِ ٱلْكِتَابَةِ ذَهَبَ إِلَى بَيْتِهِ، وَكُواهُ مَفْتُوحَةٌ فِي عُلِّيَّتِهِ نَحْوَ أُورُشَلِيمَ، فَجَثَا عَلَى رُكْبَتَيْهِ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ فِي ٱلْيَوْمِ، وَصَلَّى وَحَمَدَ قُدَّامَ إِلَهِهِ كَمَا كَانَ يَفْعَلُ قَبْلَ ذَلِكَ.١٠
11 ११ तब उन पुरुषों ने उतावली से आकर दानिय्येल को अपने परमेश्वर के सामने विनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया।
فَٱجْتَمَعَ حِينَئِذٍ هَؤُلَاءِ ٱلرِّجَالُ فَوَجَدُوا دَانِيآلَ يَطْلُبُ وَيَتَضَرَّعُ قُدَّامَ إِلَهِهِ.١١
12 १२ तब वे राजा के पास जाकर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उससे कहने लगे, “हे राजा, क्या तूने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी मनुष्य या देवता से विनती करेगा, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाएगा?” राजा ने उत्तर दिया, “हाँ, मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है।”
فَتَقَدَّمُوا وَتَكَلَّمُوا قُدَّامَ ٱلْمَلِكِ فِي نَهْيِ ٱلْمَلِكِ: «أَلَمْ تُمْضِ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ نَهْيًا بِأَنَّ كُلَّ إِنْسَانٍ يَطْلُبُ مِنْ إِلَهٍ أَوْ إِنْسَانٍ حَتَّى ثَلَاثِينَ يَوْمًا إِلَّا مِنْكَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ يُطْرَحُ فِي جُبِّ ٱلْأُسُودِ؟» فَأَجَابَ ٱلْمَلِكُ وَقَالَ: «ٱلْأَمْرُ صَحِيحٌ كَشَرِيعَةِ مَادِي وَفَارِسَ ٱلَّتِي لَا تُنْسَخُ».١٢
13 १३ तब उन्होंने राजा से कहा, “यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्येल है, उसने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार विनती किया करता है।”
حِينَئِذٍ أَجَابُوا وَقَالُوا قُدَّامَ ٱلْمَلِكِ: «إِنَّ دَانِيآلَ ٱلَّذِي مِنْ بَنِي سَبْيِ يَهُوذَا لَمْ يَجْعَلْ لَكَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ ٱعْتِبَارًا وَلَا لِلنَّهْيِ ٱلَّذِي أَمْضَيْتَهُ، بَلْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ فِي ٱلْيَوْمِ يَطْلُبُ طِلْبَتَهُ».١٣
14 १४ यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल को बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा।
فَلَمَّا سَمِعَ ٱلْمَلِكُ هَذَا ٱلْكَلَامَ ٱغْتَاظَ عَلَى نَفْسِهِ جِدًّا، وَجَعَلَ قَلْبَهُ عَلَى دَانِيآلَ لِيُنَجِّيَهُ، وَٱجْتَهَدَ إِلَى غُرُوبِ ٱلشَّمْسِ لِيُنْقِذَهُ.١٤
15 १५ तब वे पुरुष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, “हे राजा, यह जान रख, कि मादियों और फारसियों में यह व्यवस्था है कि जो-जो मनाही या आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती।”
فَٱجْتَمَعَ أُولَئِكَ ٱلرِّجَالُ إِلَى ٱلْمَلِكِ وَقَالُوا لِلْمَلِكِ: «ٱعْلَمْ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ أَنَّ شَرِيعَةَ مَادِي وَفَارِسَ هِيَ أَنَّ كُلَّ نَهْيٍ أَوْ أَمْرٍ يَضَعُهُ ٱلْمَلِكُ لَا يَتَغَيَّرُ».١٥
16 १६ तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल लाकर सिंहों की माँद में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, “तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए!”
حِينَئِذٍ أَمَرَ ٱلْمَلِكُ فَأَحْضَرُوا دَانِيآلَ وَطَرَحُوهُ فِي جُبِّ ٱلْأُسُودِ. أَجَابَ ٱلْمَلِكُ وَقَالَ لِدَانِيآلَ: «إِنَّ إِلَهَكَ ٱلَّذِي تَعْبُدُهُ دَائِمًا هُوَ يُنَجِّيكَ».١٦
17 १७ तब एक पत्थर लाकर उस माँद के मुँह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अँगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने न पाए।
وَأُتِيَ بِحَجَرٍ وَوُضِعَ عَلَى فَمِ ٱلْجُبِّ وَخَتَمَهُ ٱلْمَلِكُ بِخَاتِمِهِ وَخَاتِمِ عُظَمَائِهِ، لِئَلَّا يَتَغَيَّرَ ٱلْقَصْدُ فِي دَانِيآلَ.١٧
18 १८ तब राजा अपने महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख-विलास की कोई वस्तु नहीं पहुँचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई।
حِينَئِذٍ مَضَى ٱلْمَلِكُ إِلَى قَصْرِهِ وَبَاتَ صَائِمًا، وَلَمْ يُؤْتَ قُدَّامَهُ بِسَرَارِيهِ وَطَارَ عَنْهُ نَوْمُهُ.١٨
19 १९ भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहों के माँद की ओर फुर्ती से चला गया।
ثُمَّ قَامَ ٱلْمَلِكُ بَاكِرًا عِنْدَ ٱلْفَجْرِ وَذَهَبَ مُسْرِعًا إِلَى جُبِّ ٱلْأُسُودِ.١٩
20 २० जब राजा माँद के निकट आया, तब शोकभरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, “हे दानिय्येल, हे जीविते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?”
فَلَمَّا ٱقْتَرَبَ إِلَى ٱلْجُبِّ نَادَى دَانِيآلَ بِصَوْتٍ أَسِيفٍ. أَجَابَ ٱلْمَلِكُ وَقَالَ لِدَانِيآلَ: «يَا دَانِيآلُ عَبْدَ ٱللهِ ٱلْحَيِّ، هَلْ إِلَهُكَ ٱلَّذِي تَعْبُدُهُ دَائِمًا قَدِرَ عَلَى أَنْ يُنَجِّيَكَ مِنَ ٱلْأُسُودِ؟»٢٠
21 २१ तब दानिय्येल ने राजा से कहा, “हे राजा, तू युग-युग जीवित रहे!
فَتَكَلَّمَ دَانِيآلُ مَعَ ٱلْمَلِكِ: «يَا أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، عِشْ إِلَى ٱلْأَبَدِ!٢١
22 २२ मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुँह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके सामने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैंने कोई भूल नहीं की।”
إِلَهِي أَرْسَلَ مَلَاكَهُ وَسَدَّ أَفْوَاهَ ٱلْأُسُودِ فَلَمْ تَضُرَّنِي، لِأَنِّي وُجِدْتُ بَرِيئًا قُدَّامَهُ، وَقُدَّامَكَ أَيْضًا أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، لَمْ أَفْعَلْ ذَنْبًا».٢٢
23 २३ तब राजा ने बहुत आनन्दित होकर, दानिय्येल को माँद में से निकालने की आज्ञा दी। अतः दानिय्येल माँद में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था।
حِينَئِذٍ فَرِحَ ٱلْمَلِكُ بِهِ، وَأَمَرَ بِأَنْ يُصْعَدَ دَانِيآلُ مِنَ ٱلْجُبِّ. فَأُصْعِدَ دَانِيآلُ مِنَ ٱلْجُبِّ وَلَمْ يُوجَدْ فِيهِ ضَرَرٌ، لِأَنَّهُ آمَنَ بِإِلَهِهِ.٢٣
24 २४ तब राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरुषों ने दानिय्येल की चुगली की थी, वे अपने-अपने बाल-बच्चों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों की माँद में डाल दिए जाएँ; और वे माँद की पेंदी तक भी न पहुँचे कि सिंहों ने उन पर झपटकर सब हड्डियों समेत उनको चबा डाला।
فَأَمَرَ ٱلْمَلِكُ فَأَحْضَرُوا أُولَئِكَ ٱلرِّجَالَ ٱلَّذِينَ ٱشْتَكَوْا عَلَى دَانِيآلَ وَطَرَحُوهُمْ فِي جُبِّ ٱلْأُسُودِ هُمْ وَأَوْلَادَهُمْ وَنِسَاءَهُمْ. وَلَمْ يَصِلُوا إِلَى أَسْفَلِ ٱلْجُبِّ حَتَّى بَطَشَتْ بِهِمِ ٱلْأُسُودُ وَسَحَقَتْ كُلَّ عِظَامِهِمْ.٢٤
25 २५ तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहनेवाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालों के पास यह लिखा, “तुम्हारा बहुत कुशल हो!
ثُمَّ كَتَبَ ٱلْمَلِكُ دَارِيُّوسُ إِلَى كُلِّ ٱلشُّعُوبِ وَٱلْأُمَمِ وَٱلْأَلْسِنَةِ ٱلسَّاكِنِينَ فِي ٱلْأَرْضِ كُلِّهَا: «لِيَكْثُرْ سَلَامُكُمْ.٢٥
26 २६ मैं यह आज्ञा देता हूँ कि जहाँ-जहाँ मेरे राज्य का अधिकार है, वहाँ के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख काँपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीविता और युगानुयुग तक रहनेवाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी।
مِنْ قِبَلِي صَدَرَ أَمْرٌ بِأَنَّهُ فِي كُلِّ سُلْطَانِ مَمْلَكَتِي يَرْتَعِدُونَ وَيَخَافُونَ قُدَّامَ إِلَهِ دَانِيآلَ، لِأَنَّهُ هُوَ ٱلْإِلَهُ ٱلْحَيُّ ٱلْقَيُّومُ إِلَى ٱلْأَبَدِ، وَمَلَكُوتُهُ لَنْ يَزُولَ وَسُلْطَانُهُ إِلَى ٱلْمُنْتَهَى.٢٦
27 २७ जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करनेवाला है।”
هُوَ يُنَجِّي وَيُنْقِذُ وَيَعْمَلُ ٱلْآيَاتِ وَٱلْعَجَائِبَ فِي ٱلسَّمَاوَاتِ وَفِي ٱلْأَرْضِ. هُوَ ٱلَّذِي نَجَّى دَانِيآلَ مِنْ يَدِ ٱلْأُسُودِ».٢٧
28 २८ और दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में सुख-चैन से रहा।
فَنَجَحَ دَانِيآلُ هَذَا فِي مُلْكِ دَارِيُّوسَ وَفِي مُلْكِ كُورَشَ ٱلْفَارِسِيِّ.٢٨

< दानिय्येल 6 >