< दानिय्येल 4 >

1 नबूकदनेस्सर राजा की ओर से देश-देश और जाति-जाति के लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले जितने सारी पृथ्वी पर रहते हैं, उन सभी को यह वचन मिला, “तुम्हारा कुशल क्षेम बढ़े!
נְבוּכַדְנֶצַּ֣ר מַלְכָּ֗א לְֽכָל־עַֽמְמַיָּ֞א אֻמַיָּ֧א וְלִשָּׁנַיָּ֛א דִּֽי־דָיְרִ֥ין בְּכָל־אַרְעָ֖א שְׁלָמְכ֥וֹן יִשְׂגֵּֽא׃
2 मुझे यह अच्छा लगा, कि परमप्रधान परमेश्वर ने मुझे जो-जो चिन्ह और चमत्कार दिखाए हैं, उनको प्रगट करूँ।
אָֽתַיָּא֙ וְתִמְהַיָּ֔א דִּ֚י עֲבַ֣ד עִמִּ֔י אֱלָהָ֖א עִלָּאָ֑ה שְׁפַ֥ר קָֽדָמַ֖י לְהַחֲוָיָֽה׃
3 उसके दिखाए हुए चिन्ह क्या ही बड़े, और उसके चमत्कारों में क्या ही बड़ी शक्ति प्रगट होती है! उसका राज्य तो सदा का और उसकी प्रभुता पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
אָת֙וֹהִי֙ כְּמָ֣ה רַבְרְבִ֔ין וְתִמְה֖וֹהִי כְּמָ֣ה תַקִּיפִ֑ין מַלְכוּתֵהּ֙ מַלְכ֣וּת עָלַ֔ם וְשָׁלְטָנֵ֖הּ עִם־דָּ֥ר וְדָֽר׃
4 “मैं नबूकदनेस्सर अपने भवन में चैन से और अपने महल में प्रफुल्लित रहता था।
אֲנָ֣ה נְבוּכַדְנֶצַּ֗ר שְׁלֵ֤ה הֲוֵית֙ בְּבֵיתִ֔י וְרַעְנַ֖ן בְּהֵיכְלִֽי׃
5 मैंने ऐसा स्वप्न देखा जिसके कारण मैं डर गया; और पलंग पर पड़े-पड़े जो विचार मेरे मन में आए और जो बातें मैंने देखीं, उनके कारण मैं घबरा गया था।
חֵ֥לֶם חֲזֵ֖ית וִֽידַחֲלִנַּ֑נִי וְהַרְהֹרִין֙ עַֽל־מִשְׁכְּבִ֔י וְחֶזְוֵ֥י רֵאשִׁ֖י יְבַהֲלֻנַּֽנִי׃
6 तब मैंने आज्ञा दी कि बाबेल के सब पंडित मेरे स्वप्न का अर्थ मुझे बताने के लिये मेरे सामने हाजिर किए जाएँ।
וּמִנִּי֙ שִׂ֣ים טְעֵ֔ם לְהַנְעָלָ֣ה קָֽדָמַ֔י לְכֹ֖ל חַכִּימֵ֣י בָבֶ֑ל דִּֽי־פְשַׁ֥ר חֶלְמָ֖א יְהֽוֹדְעֻנַּֽנִי׃
7 तब ज्योतिषी, तांत्रिक, कसदी और भावी बतानेवाले भीतर आए, और मैंने उनको अपना स्वप्न बताया, परन्तु वे उसका अर्थ न बता सके।
בֵּאדַ֣יִן עָלִּ֗ין חַרְטֻמַיָּא֙ אָֽשְׁפַיָּ֔א כַּשְׂדָּאֵ֖י וְגָזְרַיָּ֑א וְחֶלְמָ֗א אָמַ֤ר אֲנָה֙ קֳדָ֣מֵיה֔וֹן וּפִשְׁרֵ֖הּ לָא־מְהוֹדְעִ֥ין לִֽי׃
8 अन्त में दानिय्येल मेरे सम्मुख आया, जिसका नाम मेरे देवता के नाम के कारण बेलतशस्सर रखा गया था, और जिसमें पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है; और मैंने उसको अपना स्वप्न यह कहकर बता दिया,
וְעַ֣ד אָחֳרֵ֡ין עַל֩ קָֽדָמַ֨י דָּנִיֵּ֜אל דִּֽי־שְׁמֵ֤הּ בֵּלְטְשַׁאצַּר֙ כְּשֻׁ֣ם אֱלָהִ֔י וְדִ֛י רֽוּחַ־אֱלָהִ֥ין קַדִּישִׁ֖ין בֵּ֑הּ וְחֶלְמָ֖א קָֽדָמ֥וֹהִי אַמְרֵֽת׃
9 हे बेलतशस्सर तू तो सब ज्योतिषियों का प्रधान है, मैं जानता हूँ कि तुझ में पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है, और तू किसी भेद के कारण नहीं घबराता; इसलिए जो स्वप्न मैंने देखा है उसे अर्थ समेत मुझे बताकर समझा दे।
בֵּלְטְשַׁאצַּר֮ רַ֣ב חַרְטֻמַיָּא֒ דִּ֣י ׀ אֲנָ֣ה יִדְעֵ֗ת דִּ֠י ר֣וּחַ אֱלָהִ֤ין קַדִּישִׁין֙ בָּ֔ךְ וְכָל־רָ֖ז לָא־אָנֵ֣ס לָ֑ךְ חֶזְוֵ֨י חֶלְמִ֧י דִֽי־חֲזֵ֛ית וּפִשְׁרֵ֖הּ אֱמַֽר׃
10 १० जो दर्शन मैंने पलंग पर पाया वह यह है: मैंने देखा, कि पृथ्वी के बीचोबीच एक वृक्ष लगा है; उसकी ऊँचाई बहुत बड़ी है।
וְחֶזְוֵ֥י רֵאשִׁ֖י עַֽל־מִשְׁכְּבִ֑י חָזֵ֣ה הֲוֵ֔ית וַאֲל֥וּ אִילָ֛ן בְּג֥וֹא אַרְעָ֖א וְרוּמֵ֥הּ שַׂגִּֽיא׃
11 ११ वह वृक्ष बड़ा होकर दृढ़ हो गया, और उसकी ऊँचाई स्वर्ग तक पहुँची, और वह सारी पृथ्वी की छोर तक दिखाई पड़ता था।
רְבָ֥ה אִֽילָנָ֖א וּתְקִ֑ף וְרוּמֵהּ֙ יִמְטֵ֣א לִשְׁמַיָּ֔א וַחֲזוֹתֵ֖הּ לְס֥וֹף כָּל־אַרְעָֽא׃
12 १२ उसके पत्ते सुन्दर, और उसमें बहुत फल थे, यहाँ तक कि उसमें सभी के लिये भोजन था। उसके नीचे मैदान के सब पशुओं को छाया मिलती थी, और उसकी डालियों में आकाश की सब चिड़ियाँ बसेरा करती थीं, और सब प्राणी उससे आहार पाते थे।
עָפְיֵ֤הּ שַׁפִּיר֙ וְאִנְבֵּ֣הּ שַׂגִּ֔יא וּמָז֨וֹן לְכֹ֖לָּא־בֵ֑הּ תְּחֹת֜וֹהִי תַּטְלֵ֣ל ׀ חֵיוַ֣ת בָּרָ֗א וּבְעַנְפ֙וֹהִי֙ יְדוּרָן֙ צִפֲּרֵ֣י שְׁמַיָּ֔א וּמִנֵּ֖הּ יִתְּזִ֥ין כָּל־בִּשְׂרָֽא׃
13 १३ “मैंने पलंग पर दर्शन पाते समय क्या देखा, कि एक पवित्र दूत स्वर्ग से उतर आया।
חָזֵ֥ה הֲוֵ֛ית בְּחֶזְוֵ֥י רֵאשִׁ֖י עַֽל־מִשְׁכְּבִ֑י וַאֲלוּ֙ עִ֣יר וְקַדִּ֔ישׁ מִן־שְׁמַיָּ֖א נָחִֽת׃
14 १४ उसने ऊँचे शब्द से पुकारकर यह कहा, ‘वृक्ष को काट डालो, उसकी डालियों को छाँट दो, उसके पत्ते झाड़ दो और उसके फल छितरा डालो; पशु उसके नीचे से हट जाएँ, और चिड़ियाँ उसकी डालियों पर से उड़ जाएँ।
קָרֵ֨א בְחַ֜יִל וְכֵ֣ן אָמַ֗ר גֹּ֤דּוּ אִֽילָנָא֙ וְקַצִּ֣צוּ עַנְפ֔וֹהִי אַתַּ֥רוּ עָפְיֵ֖הּ וּבַדַּ֣רוּ אִנְבֵּ֑הּ תְּנֻ֤ד חֵֽיוְתָא֙ מִן־תַּחְתּ֔וֹהִי וְצִפְּרַיָּ֖א מִן־עַנְפֽוֹהִי׃
15 १५ तो भी उसके ठूँठे को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बाँधकर मैदान की हरी घास के बीच रहने दो। वह आकाश की ओस से भीगा करे और भूमि की घास खाने में मैदान के पशुओं के संग भागी हो।
בְּרַ֨ם עִקַּ֤ר שָׁרְשׁ֙וֹהִי֙ בְּאַרְעָ֣א שְׁבֻ֔קוּ וּבֶֽאֱסוּר֙ דִּֽי־פַרְזֶ֣ל וּנְחָ֔שׁ בְּדִתְאָ֖א דִּ֣י בָרָ֑א וּבְטַ֤ל שְׁמַיָּא֙ יִצְטַבַּ֔ע וְעִם־חֵיוְתָ֥א חֲלָקֵ֖הּ בַּעֲשַׂ֥ב אַרְעָֽא׃
16 १६ उसका मन बदले और मनुष्य का न रहे, परन्तु पशु का सा बन जाए; और उस पर सात काल बीतें।
לִבְבֵהּ֙ מִן־אֲנָשָׁ֣א יְשַׁנּ֔וֹן וּלְבַ֥ב חֵיוָ֖ה יִתְיְהִ֣ב לֵ֑הּ וְשִׁבְעָ֥ה עִדָּנִ֖ין יַחְלְפ֥וּן עֲלֽוֹהִי׃
17 १७ यह आज्ञा उस दूत के निर्णय से, और यह बात पवित्र लोगों के वचन से निकली, कि जो जीवित हैं वे जान लें कि परमप्रधान परमेश्वर मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है, और उसको जिसे चाहे उसे दे देता है, और वह छोटे से छोटे मनुष्य को भी उस पर नियुक्त कर देता है।’
בִּגְזֵרַ֤ת עִירִין֙ פִּתְגָמָ֔א וּמֵאמַ֥ר קַדִּישִׁ֖ין שְׁאֵֽלְתָ֑א עַד־דִּבְרַ֡ת דִּ֣י יִנְדְּע֣וּן חַ֠יַּיָּא דִּֽי־שַׁלִּ֨יט עִלָּאָ֜ה בְּמַלְכ֣וּת אֲנָשָׁ֗א וּלְמַן־דִּ֤י יִצְבֵּא֙ יִתְּנִנַּ֔הּ וּשְׁפַ֥ל אֲנָשִׁ֖ים יְקִ֥ים עֲלַֽהּ׃
18 १८ मुझ नबूकदनेस्सर राजा ने यही स्वप्न देखा। इसलिए हे बेलतशस्सर, तू इसका अर्थ बता, क्योंकि मेरे राज्य में और कोई पंडित इसका अर्थ मुझे समझा नहीं सका, परन्तु तुझ में तो पवित्र ईश्वरों की आत्मा रहती है, इस कारण तू उसे समझा सकता है।”
דְּנָה֙ חֶלְמָ֣א חֲזֵ֔ית אֲנָ֖ה מַלְכָּ֣א נְבוּכַדְנֶצַּ֑ר וְאַ֨נְתְּ בֵּלְטְשַׁאצַּ֜ר פִּשְׁרֵ֣א ׀ אֱמַ֗ר כָּל־קֳבֵל֙ דִּ֣י ׀ כָּל־חַכִּימֵ֣י מַלְכוּתִ֗י לָֽא־יָכְלִ֤ין פִּשְׁרָא֙ לְהוֹדָ֣עֻתַ֔נִי וְאַ֣נְתְּ כָּהֵ֔ל דִּ֛י רֽוּחַ־אֱלָהִ֥ין קַדִּישִׁ֖ין בָּֽךְ׃
19 १९ तब दानिय्येल जिसका नाम बेलतशस्सर भी था, घड़ी भर घबराता रहा, और सोचते-सोचते व्याकुल हो गया। तब राजा कहने लगा, “हे बेलतशस्सर इस स्वप्न से, या इसके अर्थ से तू व्याकुल मत हो।” बेलतशस्सर ने कहा, “हे मेरे प्रभु, यह स्वप्न तेरे बैरियों पर, और इसका अर्थ तेरे द्रोहियों पर फले!
אֱדַ֨יִן דָּֽנִיֵּ֜אל דִּֽי־שְׁמֵ֣הּ בֵּלְטְשַׁאצַּ֗ר אֶשְׁתּוֹמַם֙ כְּשָׁעָ֣ה חֲדָ֔ה וְרַעְיֹנֹ֖הִי יְבַהֲלֻנֵּ֑הּ עָנֵ֨ה מַלְכָּ֜א וְאָמַ֗ר בֵּלְטְשַׁאצַּר֙ חֶלְמָ֤א וּפִשְׁרֵא֙ אַֽל־יְבַהֲלָ֔ךְ עָנֵ֤ה בֵלְטְשַׁאצַּר֙ וְאָמַ֔ר מָרִ֕י חֶלְמָ֥א לְשָֽׂנְאָ֖ךְ וּפִשְׁרֵ֥הּ לְעָרָֽךְ׃
20 २० जिस वृक्ष को तूने देखा, जो बड़ा और दृढ़ हो गया, और जिसकी ऊँचाई स्वर्ग तक पहुँची और जो पृथ्वी के सिरे तक दिखाई देता था;
אִֽילָנָא֙ דִּ֣י חֲזַ֔יְתָ דִּ֥י רְבָ֖ה וּתְקִ֑ף וְרוּמֵהּ֙ יִמְטֵ֣א לִשְׁמַיָּ֔א וַחֲזוֹתֵ֖הּ לְכָל־אַרְעָֽא׃
21 २१ जिसके पत्ते सुन्दर और फल बहुत थे, और जिसमें सभी के लिये भोजन था; जिसके नीचे मैदान के सब पशु रहते थे, और जिसकी डालियों में आकाश की चिड़ियाँ बसेरा करती थीं,
וְעָפְיֵ֤הּ שַׁפִּיר֙ וְאִנְבֵּ֣הּ שַׂגִּ֔יא וּמָז֨וֹן לְכֹ֖לָּא־בֵ֑הּ תְּחֹת֗וֹהִי תְּדוּר֙ חֵיוַ֣ת בָּרָ֔א וּבְעַנְפ֕וֹהִי יִשְׁכְּנָ֖ן צִפֲּרֵ֥י שְׁמַיָּֽא׃
22 २२ हे राजा, वह तू ही है। तू महान और सामर्थी हो गया, तेरी महिमा बढ़ी और स्वर्ग तक पहुँच गई, और तेरी प्रभुता पृथ्वी की छोर तक फैली है।
אַנְתְּ ה֣וּא מַלְכָּ֔א דִּ֥י רְבַ֖ית וּתְקֵ֑פְתְּ וּרְבוּתָ֤ךְ רְבָת֙ וּמְטָ֣ת לִשְׁמַיָּ֔א וְשָׁלְטָנָ֖ךְ לְס֥וֹף אַרְעָֽא׃
23 २३ और हे राजा, तूने जो एक पवित्र दूत को स्वर्ग से उतरते और यह कहते देखा कि वृक्ष को काट डालो और उसका नाश करो, तो भी उसके ठूँठे को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बाँधकर मैदान की हरी घास के बीच में रहने दो; वह आकाश की ओस से भीगा करे, और उसको मैदान के पशुओं के संग ही भाग मिले; और जब तक सात युग उस पर बीत न चुकें, तब तक उसकी ऐसी ही दशा रहे।
וְדִ֣י חֲזָ֣ה מַלְכָּ֡א עִ֣יר וְקַדִּ֣ישׁ נָחִ֣ת ׀ מִן־שְׁמַיָּ֡א וְאָמַר֩ גֹּ֨דּוּ אִֽילָנָ֜א וְחַבְּל֗וּהִי בְּרַ֨ם עִקַּ֤ר שָׁרְשׁ֙וֹהִי֙ בְּאַרְעָ֣א שְׁבֻ֔קוּ וּבֶאֱסוּר֙ דִּֽי־פַרְזֶ֣ל וּנְחָ֔שׁ בְּדִתְאָ֖א דִּ֣י בָרָ֑א וּבְטַ֧ל שְׁמַיָּ֣א יִצְטַבַּ֗ע וְעִם־חֵיוַ֤ת בָּרָא֙ חֲלָקֵ֔הּ עַ֛ד דִּֽי־שִׁבְעָ֥ה עִדָּנִ֖ין יַחְלְפ֥וּן עֲלֽוֹהִי׃
24 २४ हे राजा, इसका अर्थ जो परमप्रधान ने ठाना है कि राजा पर घटे, वह यह है,
דְּנָ֥ה פִשְׁרָ֖א מַלְכָּ֑א וּגְזֵרַ֤ת עִלָּאָה֙ הִ֔יא דִּ֥י מְטָ֖ת עַל־מָרִ֥י מַלְכָּֽא׃
25 २५ तू मनुष्यों के बीच से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; तू बैलों के समान घास चरेगा; और आकाश की ओस से भीगा करेगा और सात युग तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि मनुष्यों के राज्य में परमप्रधान ही प्रभुता करता है, और जिसे चाहे वह उसे दे देता है।
וְלָ֣ךְ טָֽרְדִ֣ין מִן־אֲנָשָׁ֡א וְעִם־חֵיוַ֣ת בָּרָא֩ לֶהֱוֵ֨ה מְדֹרָ֜ךְ וְעִשְׂבָּ֥א כְתוֹרִ֣ין ׀ לָ֣ךְ יְטַֽעֲמ֗וּן וּמִטַּ֤ל שְׁמַיָּא֙ לָ֣ךְ מְצַבְּעִ֔ין וְשִׁבְעָ֥ה עִדָּנִ֖ין יַחְלְפ֣וּן עֲלָ֑ךְ עַ֣ד דִּֽי־תִנְדַּ֗ע דִּֽי־שַׁלִּ֤יט עִלָּאָה֙ בְּמַלְכ֣וּת אֲנָשָׁ֔א וּלְמַן־דִּ֥י יִצְבֵּ֖א יִתְּנִנַּֽהּ׃
26 २६ और उस वृक्ष के ठूँठे को जड़ समेत छोड़ने की आज्ञा जो हुई है, इसका अर्थ यह है कि तेरा राज्य तेरे लिये बना रहेगा; और जब तू जान लेगा कि जगत का प्रभु स्वर्ग ही में है, तब तू फिर से राज्य करने पाएगा।
וְדִ֣י אֲמַ֗רוּ לְמִשְׁבַּ֞ק עִקַּ֤ר שָׁרְשׁ֙וֹהִי֙ דִּ֣י אִֽילָנָ֔א מַלְכוּתָ֖ךְ לָ֣ךְ קַיָּמָ֑ה מִן־דִּ֣י תִנְדַּ֔ע דִּ֥י שַׁלִּטִ֖ן שְׁמַיָּֽא׃
27 २७ इस कारण, हे राजा, मेरी यह सम्मति स्वीकार कर, कि यदि तू पाप छोड़कर धार्मिकता करने लगे, और अधर्म छोड़कर दीन-हीनों पर दया करने लगे, तो सम्भव है कि ऐसा करने से तेरा चैन बना रहे।”
לָהֵ֣ן מַלְכָּ֗א מִלְכִּי֙ יִשְׁפַּ֣ר עֲלָ֔ךְ וַחֲטָאָךְ֙ בְּצִדְקָ֣ה פְרֻ֔ק וַעֲוָיָתָ֖ךְ בְּמִחַ֣ן עֲנָ֑יִן הֵ֛ן תֶּהֱוֵ֥א אַרְכָ֖ה לִשְׁלֵוְתָֽךְ׃
28 २८ यह सब कुछ नबूकदनेस्सर राजा पर घट गया।
כֹּ֣לָּא מְּטָ֔א עַל־נְבוּכַדְנֶצַּ֖ר מַלְכָּֽא׃ פ
29 २९ बारह महीने बीतने पर जब वह बाबेल के राजभवन की छत पर टहल रहा था, तब वह कहने लगा,
לִקְצָ֥ת יַרְחִ֖ין תְּרֵֽי־עֲשַׂ֑ר עַל־הֵיכַ֧ל מַלְכוּתָ֛א דִּ֥י בָבֶ֖ל מְהַלֵּ֥ךְ הֲוָֽה׃
30 ३० “क्या यह बड़ा बाबेल नहीं है, जिसे मैं ही ने अपने बल और सामर्थ्य से राजनिवास होने को और अपने प्रताप की बड़ाई के लिये बसाया है?”
עָנֵ֤ה מַלְכָּא֙ וְאָמַ֔ר הֲלָ֥א דָא־הִ֖יא בָּבֶ֣ל רַבְּתָ֑א דִּֽי־אֲנָ֤ה בֱנַיְתַהּ֙ לְבֵ֣ית מַלְכ֔וּ בִּתְקַ֥ף חִסְנִ֖י וְלִיקָ֥ר הַדְרִֽי׃
31 ३१ यह वचन राजा के मुँह से निकलने भी न पाया था कि आकाशवाणी हुई, “हे राजा नबूकदनेस्सर तेरे विषय में यह आज्ञा निकलती है कि राज्य तेरे हाथ से निकल गया,
ע֗וֹד מִלְּתָא֙ בְּפֻ֣ם מַלְכָּ֔א קָ֖ל מִן־שְׁמַיָּ֣א נְפַ֑ל לָ֤ךְ אָֽמְרִין֙ נְבוּכַדְנֶצַּ֣ר מַלְכָּ֔א מַלְכוּתָ֖ה עֲדָ֥ת מִנָּֽךְ׃
32 ३२ और तू मनुष्यों के बीच में से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; और बैलों के समान घास चरेगा और सात काल तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि परमप्रधान, मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है और जिसे चाहे वह उसे दे देता है।”
וּמִן־אֲנָשָׁא֩ לָ֨ךְ טָֽרְדִ֜ין וְֽעִם־חֵיוַ֧ת בָּרָ֣א מְדֹרָ֗ךְ עִשְׂבָּ֤א כְתוֹרִין֙ לָ֣ךְ יְטַעֲמ֔וּן וְשִׁבְעָ֥ה עִדָּנִ֖ין יַחְלְפ֣וּן עֲלָ֑ךְ עַ֣ד דִּֽי־תִנְדַּ֗ע דִּֽי־שַׁלִּ֤יט עִלָּיָא֙ בְּמַלְכ֣וּת אֲנָשָׁ֔א וּלְמַן־דִּ֥י יִצְבֵּ֖א יִתְּנִנַּֽהּ׃
33 ३३ उसी घड़ी यह वचन नबूकदनेस्सर के विषय में पूरा हुआ। वह मनुष्यों में से निकाला गया, और बैलों के समान घास चरने लगा, और उसकी देह आकाश की ओस से भीगती थी, यहाँ तक कि उसके बाल उकाब पक्षियों के परों से और उसके नाखून चिड़ियाँ के पंजों के समान बढ़ गए।
בַּהּ־שַׁעֲתָ֗א מִלְּתָא֮ סָ֣פַת עַל־נְבוּכַדְנֶצַּר֒ וּמִן־אֲנָשָׁ֣א טְרִ֔יד וְעִשְׂבָּ֤א כְתוֹרִין֙ יֵאכֻ֔ל וּמִטַּ֥ל שְׁמַיָּ֖א גִּשְׁמֵ֣הּ יִצְטַבַּ֑ע עַ֣ד דִּ֥י שַׂעְרֵ֛הּ כְּנִשְׁרִ֥ין רְבָ֖ה וְטִפְר֥וֹהִי כְצִפְּרִֽין׃
34 ३४ उन दिनों के बीतने पर, मुझ नबूकदनेस्सर ने अपनी आँखें स्वर्ग की ओर उठाई, और मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; तब मैंने परमप्रधान को धन्य कहा, और जो सदा जीवित है उसकी स्तुति और महिमा यह कहकर करने लगा: उसकी प्रभुता सदा की है और उसका राज्य पीढ़ी से पीढ़ी तब बना रहनेवाला है।
וְלִקְצָ֣ת יֽוֹמַיָּה֩ אֲנָ֨ה נְבוּכַדְנֶצַּ֜ר עַיְנַ֣י ׀ לִשְׁמַיָּ֣א נִטְלֵ֗ת וּמַנְדְּעִי֙ עֲלַ֣י יְת֔וּב וּלְעִלָּאָה֙ בָּרְכֵ֔ת וּלְחַ֥י עָלְמָ֖א שַׁבְּחֵ֣ת וְהַדְּרֵ֑ת דִּ֤י שָׁלְטָנֵהּ֙ שָׁלְטָ֣ן עָלַ֔ם וּמַלְכוּתֵ֖הּ עִם־דָּ֥ר וְדָֽר׃
35 ३५ पृथ्वी के सब रहनेवाले उसके सामने तुच्छ गिने जाते हैं, और वह स्वर्ग की सेना और पृथ्वी के रहनेवालों के बीच अपनी इच्छा के अनुसार काम करता है; और कोई उसको रोककर उससे नहीं कह सकता है, “तूने यह क्या किया है?”
וְכָל־דָּיְרֵ֤י אַרְעָא֙ כְּלָ֣ה חֲשִׁיבִ֔ין וּֽכְמִצְבְּיֵ֗הּ עָבֵד֙ בְּחֵ֣יל שְׁמַיָּ֔א וְדָיְרֵ֖י אַרְעָ֑א וְלָ֤א אִיתַי֙ דִּֽי־יְמַחֵ֣א בִידֵ֔הּ וְיֵ֥אמַר לֵ֖הּ מָ֥ה עֲבַֽדְתְּ׃
36 ३६ उसी समय, मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; और मेरे राज्य की महिमा के लिये मेरा प्रताप और मुकुट मुझ पर फिर आ गया। और मेरे मंत्री और प्रधान लोग मुझसे भेंट करने के लिये आने लगे, और मैं अपने राज्य में स्थिर हो गया; और मेरी और अधिक प्रशंसा होने लगी।
בֵּהּ־זִמְנָ֞א מַנְדְּעִ֣י ׀ יְת֣וּב עֲלַ֗י וְלִיקַ֨ר מַלְכוּתִ֜י הַדְרִ֤י וְזִוִי֙ יְת֣וּב עֲלַ֔י וְלִ֕י הַדָּֽבְרַ֥י וְרַבְרְבָנַ֖י יְבַע֑וֹן וְעַל־מַלְכוּתִ֣י הָתְקְנַ֔ת וּרְב֥וּ יַתִּירָ֖ה ה֥וּסְפַת לִֽי׃
37 ३७ अब मैं नबूकदनेस्सर स्वर्ग के राजा को सराहता हूँ, और उसकी स्तुति और महिमा करता हूँ क्योंकि उसके सब काम सच्चे, और उसके सब व्यवहार न्याय के हैं; और जो लोग घमण्ड से चलते हैं, उन्हें वह नीचा कर सकता है।
כְּעַ֞ן אֲנָ֣ה נְבוּכַדְנֶצַּ֗ר מְשַׁבַּ֨ח וּמְרוֹמֵ֤ם וּמְהַדַּר֙ לְמֶ֣לֶךְ שְׁמַיָּ֔א דִּ֤י כָל־מַעֲבָד֙וֹהִי֙ קְשֹׁ֔ט וְאֹרְחָתֵ֖הּ דִּ֑ין וְדִי֙ מַהְלְכִ֣ין בְּגֵוָ֔ה יָכִ֖ל לְהַשְׁפָּלָֽה׃ פ

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