< कुलुस्सियों 4 >
1 १ हे स्वामियों, अपने-अपने दासों के साथ न्याय और ठीक-ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है।
2 २ प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उसमें जागृत रहो;
3 ३ और इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिसके कारण मैं कैद में हूँ।
4 ४ और उसे ऐसा प्रगट करूँ, जैसा मुझे करना उचित है।
5 ५ अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो।
6 ६ तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सुहावना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।
7 ७ प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा।
8 ८ उसे मैंने इसलिए तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे हृदयों को प्रोत्साहित करे।
9 ९ और उसके साथ उनेसिमुस को भी भेजा है; जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, वे तुम्हें यहाँ की सारी बातें बता देंगे।
10 १० अरिस्तर्खुस जो मेरे साथ कैदी है, और मरकुस जो बरनबास का भाई लगता है। (जिसके विषय में तुम ने निर्देश पाया था कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उससे अच्छी तरह व्यवहार करना।)
11 ११ और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगों में से केवल ये ही परमेश्वर के राज्य के लिये मेरे सहकर्मी और मेरे लिए सांत्वना ठहरे हैं।
12 १२ इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम्हें नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो।
13 १३ मैं उसका गवाह हूँ, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिसवालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है।
14 १४ प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार।
15 १५ लौदीकिया के भाइयों को और नुमफास और उसकी घर की कलीसिया को नमस्कार कहना।
16 १६ और जब यह पत्र तुम्हारे यहाँ पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना।
17 १७ फिर अरखिप्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना।
18 १८ मुझ पौलुस का अपने हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरों को स्मरण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन।