< 2 शमूएल 7 >

1 जब राजा अपने भवन में रहता था, और यहोवा ने उसको उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से विश्राम दिया था,
factum est autem cum sedisset rex in domo sua et Dominus dedisset ei requiem undique ab universis inimicis suis
2 तब राजा नातान नामक भविष्यद्वक्ता से कहने लगा, “देख, मैं तो देवदार के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु परमेश्वर का सन्दूक तम्बू में रहता है।”
dixit ad Nathan prophetam videsne quod ego habitem in domo cedrina et arca Dei posita sit in medio pellium
3 नातान ने राजा से कहा, “जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर; क्योंकि यहोवा तेरे संग है।”
dixitque Nathan ad regem omne quod est in corde tuo vade fac quia Dominus tecum est
4 उसी रात को यहोवा का यह वचन नातान के पास पहुँचा,
factum est autem in nocte illa et ecce sermo Domini ad Nathan dicens
5 “जाकर मेरे दास दाऊद से कह, ‘यहोवा यह कहता है, कि क्या तू मेरे निवास के लिये घर बनवाएगा?
vade et loquere ad servum meum David haec dicit Dominus numquid tu aedificabis mihi domum ad habitandum
6 जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा, तम्बू के निवास में आया-जाया करता हूँ।
neque enim habitavi in domo ex die qua eduxi filios Israhel de terra Aegypti usque in diem hanc sed ambulans ambulabam in tabernaculo et in tentorio
7 जहाँ-जहाँ मैं समस्त इस्राएलियों के बीच फिरता रहा, क्या मैंने कहीं इस्राएल के किसी गोत्र से, जिसे मैंने अपनी प्रजा इस्राएल की चरवाही करने को ठहराया है, ऐसी बात कभी कही, कि तुम ने मेरे लिए देवदार का घर क्यों नहीं बनवाया?’
per cuncta loca quae transivi cum omnibus filiis Israhel numquid loquens locutus sum ad unam de tribubus Israhel cui praecepi ut pasceret populum meum Israhel dicens quare non aedificastis mihi domum cedrinam
8 इसलिए अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, ‘सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि मैंने तो तुझे भेड़शाला से, और भेड़-बकरियों के पीछे-पीछे फिरने से, इस मनसा से बुला लिया कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए।
et nunc haec dices servo meo David haec dicit Dominus exercituum ego tuli te de pascuis sequentem greges ut esses dux super populum meum Israhel
9 और जहाँ कहीं तू आया गया, वहाँ-वहाँ मैं तेरे संग रहा, और तेरे समस्त शत्रुओं को तेरे सामने से नाश किया है; फिर मैं तेरे नाम को पृथ्वी पर के बड़े-बड़े लोगों के नामों के समान महान कर दूँगा।
et fui tecum in omnibus ubicumque ambulasti et interfeci universos inimicos tuos a facie tua fecique tibi nomen grande iuxta nomen magnorum qui sunt in terra
10 १० और मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिये एक स्थान ठहराऊँगा, और उसको स्थिर करूँगा, कि वह अपने ही स्थान में बसी रहेगी, और कभी चलायमान न होगी; और कुटिल लोग उसे फिर दुःख न देने पाएँगे, जैसे कि पहले करते थे,
et ponam locum populo meo Israhel et plantabo eum et habitabit sub eo et non turbabitur amplius nec addent filii iniquitatis ut adfligant eum sicut prius
11 ११ वरन् उस समय से भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; और मैं तुझे तेरे समस्त शत्रुओं से विश्राम दूँगा। यहोवा तुझे यह भी बताता है कि यहोवा तेरा घर बनाए रखेगा।
ex die qua constitui iudices super populum meum Israhel et requiem dabo tibi ab omnibus inimicis tuis praedicitque tibi Dominus quod domum faciat tibi Dominus
12 १२ जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपने पुरखाओं के संग जा मिलेगा, तब मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूँगा।
cumque conpleti fuerint dies tui et dormieris cum patribus tuis suscitabo semen tuum post te quod egredietur de utero tuo et firmabo regnum eius
13 १३ मेरे नाम का घर वही बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूँगा।
ipse aedificabit domum nomini meo et stabiliam thronum regni eius usque in sempiternum
14 १४ मैं उसका पिता ठहरूँगा, और वह मेरा पुत्र ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे, तो मैं उसे मनुष्यों के योग्य दण्ड से, और आदमियों के योग्य मार से ताड़ना दूँगा।
ego ero ei in patrem et ipse erit mihi in filium qui si inique aliquid gesserit arguam eum in virga virorum et in plagis filiorum hominum
15 १५ परन्तु मेरी करुणा उस पर से ऐसे न हटेगी, जैसे मैंने शाऊल पर से हटा ली थी और उसको तेरे आगे से दूर किया था।
misericordiam autem meam non auferam ab eo sicut abstuli a Saul quem amovi a facie tua
16 १६ वरन् तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे सामने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी।’”
et fidelis erit domus tua et regnum tuum usque in aeternum ante faciem tuam et thronus tuus erit firmus iugiter
17 १७ इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया।
secundum omnia verba haec et iuxta universam visionem istam sic locutus est Nathan ad David
18 १८ तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, “हे प्रभु यहोवा, क्या कहूँ, और मेरा घराना क्या है, कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचा दिया है?
ingressus est autem rex David et sedit coram Domino et dixit quis ego sum Domine Deus et quae domus mea quia adduxisti me hucusque
19 १९ तो भी, हे प्रभु यहोवा, यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई; क्योंकि तूने अपने दास के घराने के विषय आगे के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, हे प्रभु यहोवा, यह तो मनुष्य का नियम है।
sed et hoc parum visum est in conspectu tuo Domine Deus nisi loquereris etiam de domo servi tui in longinquum ista est enim lex Adam Domine Deus
20 २० दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? हे प्रभु यहोवा, तू तो अपने दास को जानता है!
quid ergo addere poterit adhuc David ut loquatur ad te tu enim scis servum tuum Domine Deus
21 २१ तूने अपने वचन के निमित्त, और अपने ही मन के अनुसार, यह सब बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले।
propter verbum tuum et secundum cor tuum fecisti omnia magnalia haec ita ut notum faceres servo tuo
22 २२ इस कारण, हे यहोवा परमेश्वर, तू महान है; क्योंकि जो कुछ हमने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है।
idcirco magnificatus es Domine Deus quia non est similis tui neque est deus extra te in omnibus quae audivimus auribus nostris
23 २३ फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? वह तो पृथ्वी भर में एक ही जाति है जिसे परमेश्वर ने जाकर अपनी निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिए कि वह अपना नाम करे, (और तुम्हारे लिये बड़े-बड़े काम करे) और तू अपनी प्रजा के सामने, जिसे तूने मिस्री आदि जाति-जाति के लोगों और उनके देवताओं से छुड़ा लिया, अपने देश के लिये भयानक काम करे।
quae est autem ut populus tuus Israhel gens in terra propter quam ivit Deus ut redimeret eam sibi in populum et poneret sibi nomen faceretque eis magnalia et horribilia super terram a facie populi tui quem redemisti tibi ex Aegypto gentem et deum eius
24 २४ और तूने अपनी प्रजा इस्राएल को अपनी सदा की प्रजा होने के लिये ठहराया; और हे यहोवा, तू आप उसका परमेश्वर है।
et firmasti tibi populum tuum Israhel in populum sempiternum et tu Domine factus es eis in Deum
25 २५ अब हे यहोवा परमेश्वर, तूने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय दिया है, उसे सदा के लिये स्थिर कर, और अपने कहने के अनुसार ही कर;
nunc ergo Domine Deus verbum quod locutus es super servum tuum et super domum eius suscita in sempiternum et fac sicut locutus es
26 २६ और यह कर कि लोग तेरे नाम की महिमा सदा किया करें, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल के ऊपर परमेश्वर है; और तेरे दास दाऊद का घराना तेरे सामने अटल रहे।
et magnificetur nomen tuum usque in sempiternum atque dicatur Dominus exercituum Deus super Israhel et domus servi tui David erit stabilita coram Domino
27 २७ क्योंकि, हे सेनाओं के यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तूने यह कहकर अपने दास पर प्रगट किया है, कि मैं तेरा घर बनाए रखूँगा; इस कारण तेरे दास को तुझ से यह प्रार्थना करने का हियाव हुआ है।
quia tu Domine exercituum Deus Israhel revelasti aurem servi tui dicens domum aedificabo tibi propterea invenit servus tuus cor suum ut oraret te oratione hac
28 २८ अब हे प्रभु यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तेरे वचन सत्य हैं, और तूने अपने दास को यह भलाई करने का वचन दिया है;
nunc ergo Domine Deus tu es Deus et verba tua erunt vera locutus es enim ad servum tuum bona haec
29 २९ तो अब प्रसन्न होकर अपने दास के घराने पर ऐसी आशीष दे, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे; क्योंकि, हे प्रभु यहोवा, तूने ऐसा ही कहा है, और तेरे दास का घराना तुझ से आशीष पाकर सदैव धन्य रहे।”
incipe igitur et benedic domui servi tui ut sit in sempiternum coram te quia tu Domine Deus locutus es et benedictione tua benedicetur domus servi tui in sempiternum

< 2 शमूएल 7 >