< 2 इतिहास 32 >

1 इन बातों और ऐसे प्रबन्ध के बाद अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने आकर यहूदा में प्रवेश कर और गढ़वाले नगरों के विरुद्ध डेरे डालकर उनको अपने लाभ के लिये लेना चाहा।
אַחֲרֵ֨י הַדְּבָרִ֤ים וְהָאֱמֶת֙ הָאֵ֔לֶּה בָּ֖א סַנְחֵרִ֣יב מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֑וּר וַיָּבֹ֣א בִֽיהוּדָ֗ה וַיִּ֙חַן֙ עַל־הֶעָרִ֣ים הַבְּצֻר֔וֹת וַיֹּ֖אמֶר לְבִקְעָ֥ם אֵלָֽיו׃
2 यह देखकर कि सन्हेरीब निकट आया है और यरूशलेम से लड़ने की इच्छा करता है,
וַיַּרְא֙ יְחִזְקִיָּ֔הוּ כִּי־בָ֖א סַנְחֵרִ֑יב וּפָנָ֕יו לַמִּלְחָמָ֖ה עַל־יְרוּשָׁלִָֽם׃
3 हिजकिय्याह ने अपने हाकिमों और वीरों के साथ यह सम्मति की, कि नगर के बाहर के सोतों को पटवा दें; और उन्होंने उसकी सहायता की।
וַיִּוָּעַ֗ץ עִם־שָׂרָיו֙ וְגִבֹּרָ֔יו לִסְתּוֹם֙ אֶת־מֵימֵ֣י הָעֲיָנ֔וֹת אֲשֶׁ֖ר מִח֣וּץ לָעִ֑יר וַֽיַּעְזְרֽוּהוּ׃
4 इस पर बहुत से लोग इकट्ठे हुए, और यह कहकर कि, “अश्शूर के राजा क्यों यहाँ आएँ, और आकर बहुत पानी पाएँ,” उन्होंने सब सोतों को रोक दिया और उस नदी को सुखा दिया जो देश के मध्य से होकर बहती थी।
וַיִּקָּבְצ֣וּ עַם־רָ֔ב וַֽיִּסְתְּמוּ֙ אֶת־כָּל־הַמַּעְיָנ֔וֹת וְאֶת־הַנַּ֛חַל הַשּׁוֹטֵ֥ף בְּתוֹךְ־הָאָ֖רֶץ לֵאמֹ֑ר לָ֤מָּה יָב֙וֹאוּ֙ מַלְכֵ֣י אַשּׁ֔וּר וּמָצְא֖וּ מַ֥יִם רַבִּֽים׃
5 फिर हिजकिय्याह ने हियाव बाँधकर शहरपनाह जहाँ कहीं टूटी थी, वहाँ-वहाँ उसको बनवाया, और उसे गुम्मटों के बराबर ऊँचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई, और दाऊदपुर में मिल्लो को दृढ़ किया। और बहुत से हथियार और ढालें भी बनवाईं।
וַיִּתְחַזַּ֡ק וַיִּבֶן֩ אֶת־כָּל־הַחוֹמָ֨ה הַפְּרוּצָ֜ה וַיַּ֣עַל עַל־הַמִּגְדָּל֗וֹת וְלַח֙וּצָה֙ הַחוֹמָ֣ה אַחֶ֔רֶת וַיְחַזֵּ֥ק אֶת־הַמִּלּ֖וֹא עִ֣יר דָּוִ֑יד וַיַּ֥עַשׂ שֶׁ֛לַח לָרֹ֖ב וּמָגִנִּֽים׃
6 तब उसने प्रजा के ऊपर सेनापति नियुक्त किए और उनको नगर के फाटक के चौक में इकट्ठा किया, और यह कहकर उनको धीरज दिया,
וַיִּתֵּ֛ן שָׂרֵ֥י מִלְחָמ֖וֹת עַל־הָעָ֑ם וַיִּקְבְּצֵ֣ם אֵלָ֗יו אֶל־רְחוֹב֙ שַׁ֣עַר הָעִ֔יר וַיְדַבֵּ֥ר עַל־לְבָבָ֖ם לֵאמֹֽר׃
7 “हियाव बाँधो और दृढ़ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है।
חִזְק֣וּ וְאִמְצ֔וּ אַל־תִּֽירְא֣וּ וְאַל־תֵּחַ֗תּוּ מִפְּנֵי֙ מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֔וּר וּמִלִּפְנֵ֖י כָּל־הֶהָמ֣וֹן אֲשֶׁר־עִמּ֑וֹ כִּֽי־עִמָּ֥נוּ רַ֖ב מֵעִמּֽוֹ׃
8 अर्थात् उसका सहारा तो मनुष्य ही है परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है।” इसलिए प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातों पर भरोसा किए रहे।
עִמּוֹ֙ זְר֣וֹעַ בָּשָׂ֔ר וְעִמָּ֜נוּ יְהוָ֤ה אֱלֹהֵ֙ינוּ֙ לְעָזְרֵ֔נוּ וּלְהִלָּחֵ֖ם מִלְחֲמֹתֵ֑נוּ וַיִּסָּמְכ֣וּ הָעָ֔ם עַל־דִּבְרֵ֖י יְחִזְקִיָּ֥הוּ מֶֽלֶךְ־יְהוּדָֽה׃ פ
9 इसके बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब जो सारी सेना समेत लाकीश के सामने पड़ा था, उसने अपने कर्मचारियों को यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिय्याह और उन सब यहूदियों से जो यरूशलेम में थे यह कहने के लिये भेजा,
אַ֣חַר זֶ֗ה שָׁ֠לַח סַנְחֵרִ֨יב מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֤וּר עֲבָדָיו֙ יְר֣וּשָׁלַ֔יְמָה וְהוּא֙ עַל־לָכִ֔ישׁ וְכָל־מֶמְשַׁלְתּ֖וֹ עִמּ֑וֹ עַל־יְחִזְקִיָּ֙הוּ֙ מֶ֣לֶךְ יְהוּדָ֔ה וְעַל־כָּל־יְהוּדָ֛ה אֲשֶׁ֥ר בִּירוּשָׁלִַ֖ם לֵאמֹֽר׃
10 १० “अश्शूर का राजा सन्हेरीब कहता है, कि तुम्हें किसका भरोसा है जिससे कि तुम घिरे हुए यरूशलेम में बैठे हो?
כֹּ֣ה אָמַ֔ר סַנְחֵרִ֖יב מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֑וּר עַל־מָה֙ אַתֶּ֣ם בֹּטְחִ֔ים וְיֹשְׁבִ֥ים בְּמָצ֖וֹר בִּירוּשָׁלִָֽם׃
11 ११ क्या हिजकिय्याह तुम से यह कहकर कि हमारा परमेश्वर यहोवा हमको अश्शूर के राजा के पंजे से बचाएगा तुम्हें नहीं भरमाता है कि तुम को भूखा प्यासा मारे?
הֲלֹ֤א יְחִזְקִיָּ֙הוּ֙ מַסִּ֣ית אֶתְכֶ֔ם לָתֵ֣ת אֶתְכֶ֔ם לָמ֛וּת בְּרָעָ֥ב וּבְצָמָ֖א לֵאמֹ֑ר יְהוָ֣ה אֱלֹהֵ֔ינוּ יַצִּילֵ֕נוּ מִכַּ֖ף מֶ֥לֶךְ אַשּֽׁוּר׃
12 १२ क्या उसी हिजकिय्याह ने उसके ऊँचे स्थान और वेदियों को दूर करके यहूदा और यरूशलेम को आज्ञा नहीं दी, कि तुम एक ही वेदी के सामने दण्डवत् करना और उसी पर धूप जलाना?
הֲלֹא־הוּא֙ יְחִזְקִיָּ֔הוּ הֵסִ֥יר אֶת־בָּמֹתָ֖יו וְאֶת־מִזְבְּחֹתָ֑יו וַיֹּ֨אמֶר לִֽיהוּדָ֤ה וְלִֽירוּשָׁלִַ֙ם֙ לֵאמֹ֔ר לִפְנֵ֨י מִזְבֵּ֧חַ אֶחָ֛ד תִּֽשְׁתַּחֲו֖וּ וְעָלָ֥יו תַּקְטִֽירוּ׃
13 १३ क्या तुम को मालूम नहीं, कि मैंने और मेरे पुरखाओं ने देश-देश के सब लोगों से क्या-क्या किया है? क्या उन देशों की जातियों के देवता किसी भी उपाय से अपने देश को मेरे हाथ से बचा सके?
הֲלֹ֣א תֵדְע֗וּ מֶ֤ה עָשִׂ֙יתִי֙ אֲנִ֣י וַאֲבוֹתַ֔י לְכֹ֖ל עַמֵּ֣י הָאֲרָצ֑וֹת הֲיָכ֣וֹל יָֽכְל֗וּ אֱלֹהֵי֙ גּוֹיֵ֣ הָאֲרָצ֔וֹת לְהַצִּ֥יל אֶת־אַרְצָ֖ם מִיָּדִֽי׃
14 १४ जितनी जातियों का मेरे पुरखाओं ने सत्यानाश किया है उनके सब देवताओं में से ऐसा कौन था जो अपनी प्रजा को मेरे हाथ से बचा सका हो? फिर तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से कैसे बचा सकेगा?
מִ֠י בְּֽכָל־אֱלֹהֵ֞י הַגּוֹיִ֤ם הָאֵ֙לֶּה֙ אֲשֶׁ֣ר הֶחֱרִ֣ימוּ אֲבוֹתַ֔י אֲשֶׁ֣ר יָכ֔וֹל לְהַצִּ֥יל אֶת־עַמּ֖וֹ מִיָּדִ֑י כִּ֤י יוּכַל֙ אֱלֹ֣הֵיכֶ֔ם לְהַצִּ֥יל אֶתְכֶ֖ם מִיָּדִֽי׃
15 १५ अब हिजकिय्याह तुम को इस रीति से भरमाने अथवा बहकाने न पाए, और तुम उस पर विश्वास न करो, क्योंकि किसी जाति या राज्य का कोई देवता अपनी प्रजा को न तो मेरे हाथ से और न मेरे पुरखाओं के हाथ से बचा सका। यह निश्चय है कि तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।”
וְעַתָּ֡ה אַל־יַשִּׁיא֩ אֶתְכֶ֨ם חִזְקִיָּ֜הוּ וְאַל־יַסִּ֨ית אֶתְכֶ֣ם כָּזֹאת֮ וְאַל־תַּאֲמִ֣ינוּ לוֹ֒ כִּי־לֹ֣א יוּכַ֗ל כָּל־אֱל֙וֹהַ֙ כָּל־גּ֣וֹי וּמַמְלָכָ֔ה לְהַצִּ֥יל עַמּ֛וֹ מִיָּדִ֖י וּמִיַּ֣ד אֲבוֹתָ֑י אַ֚ף כִּ֣י אֱֽלֹהֵיכֶ֔ם לֹא־יַצִּ֥ילוּ אֶתְכֶ֖ם מִיָּדִֽי׃
16 १६ इससे भी अधिक उसके कर्मचारियों ने यहोवा परमेश्वर की, और उसके दास हिजकिय्याह की निन्दा की।
וְעוֹד֙ דִּבְּר֣וּ עֲבָדָ֔יו עַל־יְהוָ֖ה הָאֱלֹהִ֑ים וְעַ֖ל יְחִזְקִיָּ֥הוּ עַבְדּֽוֹ׃
17 १७ फिर उसने ऐसा एक पत्र भेजा, जिसमें इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की निन्दा की ये बातें लिखी थीं: “जैसे देश-देश की जातियों के देवताओं ने अपनी-अपनी प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचाया वैसे ही हिजकिय्याह का देवता भी अपनी प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।”
וּסְפָרִ֣ים כָּתַ֔ב לְחָרֵ֕ף לַיהוָ֖ה אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל וְלֵֽאמֹ֨ר עָלָ֜יו לֵאמֹ֗ר כֵּֽאלֹהֵ֞י גּוֹיֵ֤ הָאֲרָצוֹת֙ אֲשֶׁ֨ר לֹא־הִצִּ֤ילוּ עַמָּם֙ מִיָּדִ֔י כֵּ֣ן לֹֽא־יַצִּ֞יל אֱלֹהֵ֧י יְחִזְקִיָּ֛הוּ עַמּ֖וֹ מִיָּדִֽי׃
18 १८ और उन्होंने ऊँचे शब्द से उन यरूशलेमियों को जो शहरपनाह पर बैठे थे, यहूदी बोली में पुकारा, कि उनको डराकर घबराहट में डाल दें जिससे नगर को ले लें।
וַיִּקְרְא֨וּ בְקוֹל־גָּד֜וֹל יְהוּדִ֗ית עַל־עַ֤ם יְרוּשָׁלִַ֙ם֙ אֲשֶׁ֣ר עַל־הַֽחוֹמָ֔ה לְיָֽרְאָ֖ם וּֽלְבַהֲלָ֑ם לְמַ֖עַן יִלְכְּד֥וּ אֶת־הָעִֽיר׃
19 १९ उन्होंने यरूशलेम के परमेश्वर की ऐसी चर्चा की, कि मानो पृथ्वी के देश-देश के लोगों के देवताओं के बराबर हो, जो मनुष्यों के बनाए हुए हैं।
וַֽיְדַבְּר֔וּ אֶל־אֱלֹהֵ֖י יְרוּשָׁלִָ֑ם כְּעַ֗ל אֱלֹהֵי֙ עַמֵּ֣י הָאָ֔רֶץ מַעֲשֵׂ֖ה יְדֵ֥י הָאָדָֽם׃ ס
20 २० तब इन घटनाओं के कारण राजा हिजकिय्याह और आमोस के पुत्र यशायाह नबी दोनों ने प्रार्थना की और स्वर्ग की ओर दुहाई दी।
וַיִּתְפַּלֵּ֞ל יְחִזְקִיָּ֣הוּ הַמֶּ֗לֶךְ וִֽישַֽׁעְיָ֧הוּ בֶן־אָמ֛וֹץ הַנָּבִ֖יא עַל־זֹ֑את וַֽיִּזְעֲק֖וּ הַשָּׁמָֽיִם׃ פ
21 २१ तब यहोवा ने एक दूत भेज दिया, जिसने अश्शूर के राजा की छावनी में सब शूरवीरों, प्रधानों और सेनापतियों को नष्ट किया। अतः वह लज्जित होकर, अपने देश को लौट गया। और जब वह अपने देवता के भवन में था, तब उसके निज पुत्रों ने वहीं उसे तलवार से मार डाला।
וַיִּשְׁלַ֤ח יְהוָה֙ מַלְאָ֔ךְ וַיַּכְחֵ֞ד כָּל־גִּבּ֥וֹר חַ֙יִל֙ וְנָגִ֣יד וְשָׂ֔ר בְּמַחֲנֵ֖ה מֶ֣לֶךְ אַשּׁ֑וּר וַיָּשָׁב֩ בְּבֹ֨שֶׁת פָּנִ֜ים לְאַרְצ֗וֹ וַיָּבֹא֙ בֵּ֣ית אֱלֹהָ֔יו וּמִֽיצִיאֵ֣י מֵעָ֔יו שָׁ֖ם הִפִּילֻ֥הוּ בֶחָֽרֶב׃
22 २२ अतः यहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासियों को अश्शूर के राजा सन्हेरीब और अपने सब शत्रुओं के हाथ से बचाया, और चारों ओर उनकी अगुआई की।
וַיּוֹשַׁע֩ יְהוָ֨ה אֶת־יְחִזְקִיָּ֜הוּ וְאֵ֣ת ׀ יֹשְׁבֵ֣י יְרוּשָׁלִַ֗ם מִיַּ֛ד סַנְחֵרִ֥יב מֶֽלֶךְ־אַשּׁ֖וּר וּמִיַּד־כֹּ֑ל וַֽיְנַהֲלֵ֖ם מִסָּבִֽיב׃
23 २३ तब बहुत लोग यरूशलेम को यहोवा के लिये भेंट और यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिये अनमोल वस्तुएँ ले आने लगे, और उस समय से वह सब जातियों की दृष्टि में महान ठहरा।
וְ֠רַבִּים מְבִיאִ֨ים מִנְחָ֤ה לַיהוָה֙ לִיר֣וּשָׁלִַ֔ם וּמִ֨גְדָּנ֔וֹת לִֽיחִזְקִיָּ֖הוּ מֶ֣לֶךְ יְהוּדָ֑ה וַיִּנַּשֵּׂ֛א לְעֵינֵ֥י כָל־הַגּוֹיִ֖ם מֵאַֽחֲרֵי־כֵֽן׃ ס
24 २४ उन दिनों हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ, कि वह मरने पर था, तब उसने यहोवा से प्रार्थना की; और उसने उससे बातें करके उसके लिये एक चिन्ह दिया।
בַּיָּמִ֣ים הָהֵ֔ם חָלָ֥ה יְחִזְקִיָּ֖הוּ עַד־לָמ֑וּת וַיִּתְפַּלֵּל֙ אֶל־יְהוָ֔ה וַיֹּ֣אמֶר ל֔וֹ וּמוֹפֵ֖ת נָ֥תַן לֽוֹ׃
25 २५ परन्तु हिजकिय्याह ने उस उपकार का बदला न दिया, क्योंकि उसका मन फूल उठा था। इस कारण उसका कोप उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़का।
וְלֹא־כִגְמֻ֤ל עָלָיו֙ הֵשִׁ֣יב יְחִזְקִיָּ֔הוּ כִּ֥י גָבַ֖הּ לִבּ֑וֹ וַיְהִ֤י עָלָיו֙ קֶ֔צֶף וְעַל־יְהוּדָ֖ה וִירוּשָׁלִָֽם׃
26 २६ तब हिजकिय्याह यरूशलेम के निवासियों समेत अपने मन के फूलने के कारण दीन हो गया, इसलिए यहोवा का क्रोध उन पर हिजकिय्याह के दिनों में न भड़का।
וַיִּכָּנַ֤ע יְחִזְקִיָּ֙הוּ֙ בְּגֹ֣בַהּ לִבּ֔וֹ ה֖וּא וְיֹשְׁבֵ֣י יְרוּשָׁלִָ֑ם וְלֹא־בָ֤א עֲלֵיהֶם֙ קֶ֣צֶף יְהוָ֔ה בִּימֵ֖י יְחִזְקִיָּֽהוּ׃
27 २७ हिजकिय्याह को बहुत ही धन और वैभव मिला; और उसने चाँदी, सोने, मणियों, सुगन्ध-द्रव्य, ढालों और सब प्रकार के मनभावने पात्रों के लिये भण्डार बनवाए।
וַיְהִ֧י לִֽיחִזְקִיָּ֛הוּ עֹ֥שֶׁר וְכָב֖וֹד הַרְבֵּ֣ה מְאֹ֑ד וְאֹֽצָר֣וֹת עָֽשָׂה־ל֠וֹ לְכֶ֨סֶף וּלְזָהָ֜ב וּלְאֶ֣בֶן יְקָרָ֗ה וְלִבְשָׂמִים֙ וּלְמָ֣גִנִּ֔ים וּלְכֹ֖ל כְּלֵ֥י חֶמְדָּֽה׃
28 २८ फिर उसने अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल के लिये भण्डार, और सब भाँति के पशुओं के लिये थान, और भेड़-बकरियों के लिये भेड़शालाएँ बनवाईं।
וּמִ֨סְכְּנ֔וֹת לִתְבוּאַ֥ת דָּגָ֖ן וְתִיר֣וֹשׁ וְיִצְהָ֑ר וְאֻֽרָוֹת֙ לְכָל־בְּהֵמָ֣ה וּבְהֵמָ֔ה וַעֲדָרִ֖ים לָאֲוֵרֽוֹת׃
29 २९ उसने नगर बसाए, और बहुत ही भेड़-बकरियों और गाय-बैलों की सम्पत्ति इकट्ठा कर ली, क्योंकि परमेश्वर ने उसे बहुत सा धन दिया था।
וְעָרִים֙ עָ֣שָׂה ל֔וֹ וּמִקְנֵה־צֹ֥אן וּבָקָ֖ר לָרֹ֑ב כִּ֤י נָֽתַן־לוֹ֙ אֱלֹהִ֔ים רְכ֖וּשׁ רַ֥ב מְאֹֽד׃
30 ३० उसी हिजकिय्याह ने गीहोन नामक नदी के ऊपर के सोते को पाटकर उस नदी को नीचे की ओर दाऊदपुर के पश्चिम की ओर सीधा पहुँचाया, और हिजकिय्याह अपने सब कामों में सफल होता था।
וְה֣וּא יְחִזְקִיָּ֗הוּ סָתַם֙ אֶת־מוֹצָ֞א מֵימֵ֤י גִיחוֹן֙ הָֽעֶלְי֔וֹן וַֽיַּישְּׁרֵ֥ם לְמַֽטָּה־מַּעְרָ֖בָה לְעִ֣יר דָּוִ֑יד וַיַּצְלַ֥ח יְחִזְקִיָּ֖הוּ בְּכָֽל־מַעֲשֵֽׂהוּ׃
31 ३१ तो भी जब बाबेल के हाकिमों ने उसके पास उसके देश में किए हुए अद्भुत कामों के विषय पूछने को दूत भेजे तब परमेश्वर ने उसको इसलिए छोड़ दिया, कि उसको परखकर उसके मन का सारा भेद जान ले।
וְכֵ֞ן בִּמְלִיצֵ֣י ׀ שָׂרֵ֣י בָּבֶ֗ל הַֽמְשַׁלְּחִ֤ים עָלָיו֙ לִדְרֹ֗שׁ הַמּוֹפֵת֙ אֲשֶׁ֣ר הָיָ֣ה בָאָ֔רֶץ עֲזָב֖וֹ הָֽאֱלֹהִ֑ים לְנַ֨סּוֹת֔וֹ לָדַ֖עַת כָּל־בִּלְבָבֽוֹ׃
32 ३२ हिजकिय्याह के और काम, और उसके भक्ति के काम आमोस के पुत्र यशायाह नबी के दर्शन नामक पुस्तक में, और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं।
וְיֶ֛תֶר דִּבְרֵ֥י יְחִזְקִיָּ֖הוּ וַחֲסָדָ֑יו הִנָּ֣ם כְּתוּבִ֗ים בַּחֲז֞וֹן יְשַֽׁעְיָ֤הוּ בֶן־אָמוֹץ֙ הַנָּבִ֔יא עַל־סֵ֥פֶר מַלְכֵי־יְהוּדָ֖ה וְיִשְׂרָאֵֽל׃
33 ३३ अन्त में हिजकिय्याह मरकर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसको दाऊद की सन्तान के कब्रिस्तान की चढ़ाई पर मिट्टी दी गई, और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों ने उसकी मृत्यु पर उसका आदरमान किया। उसका पुत्र मनश्शे उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
וַיִּשְׁכַּ֨ב יְחִזְקִיָּ֜הוּ עִם־אֲבֹתָ֗יו וַֽיִּקְבְּרֻהוּ֮ בְּֽמַעֲלֵה֮ קִבְרֵ֣י בְנֵי־דָוִיד֒ וְכָבוֹד֙ עָֽשׂוּ־ל֣וֹ בְמוֹת֔וֹ כָּל־יְהוּדָ֖ה וְיֹשְׁבֵ֣י יְרוּשָׁלִָ֑ם וַיִּמְלֹ֛ךְ מְנַשֶּׁ֥ה בְנ֖וֹ תַּחְתָּֽיו׃ פ

< 2 इतिहास 32 >