< 1 राजा 8 >

1 तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरुषों को भी जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे, यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सिय्योन से ऊपर ले आएँ।
حِينَئِذٍ جَمَعَ سُلَيْمَانُ جَمِيعَ رُؤَسَاءِ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَكُلَّ رُؤَسَاءِ الأَسْبَاطِ وَالْعَشَائِرِ فِي أُورُشَلِيمَ، لِنَقْلِ تَابُوتِ عَهْدِ الرَّبِّ مِنْ صِهْيَوْنَ مَدِينَةِ دَاوُدَ إِلَى الْهَيْكَلِ.١
2 अतः सब इस्राएली पुरुष एतानीम नामक सातवें महीने के पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए।
فَتَوَافَدَ جَمِيعُ رِجَالِ إِسْرَائِيلَ إِلَى الْمَلِكِ سُلَيْمَانَ فِي عِيدِ الْمَظَالِّ الْوَاقِعِ فِي شَهْرِ أَيْثَانِيمَ (تِشْرِينَ الأَوَّلِ – أُكْتُوبَرَ).٢
3 जब सब इस्राएली पुरनिये आए, तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया।
فَاحْتَشَدَ كُلُّ شُيُوخِ إِسْرَائِيلَ، وَحَمَلَ الْكَهَنَةُ التَّابُوتَ،٣
4 और यहोवा का सन्दूक, और मिलापवाले तम्बू, और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे, उन सभी को याजक और लेवीय लोग ऊपर ले गए।
وَنَقَلَ الْكَهَنَةُ وَاللّاوِيُّونَ تَابُوتَ الرَّبِّ مَعَ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ وَسَائِرِ الأَوَانِي الْمُقَدَّسَةِ الَّتِي فِي الْخَيْمَةِ.٤
5 और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मण्डली, जो उसके पास इकट्ठी हुई थी, वे सब सन्दूक के सामने इतने भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी।
وَكَانَ الْمَلِكُ سُلَيْمَانُ وَكُلُّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ الْمُلْتَفِّينَ حَوْلَهُ أَمَامَ التَّابُوتِ يَذْبَحُونَ مَا لَا يُحْصَى وَلا يُعَدُّ مِنَ الْغَنَمِ وَالْبَقَرِ.٥
6 तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के पवित्रस्थान में, जो परमपवित्र स्थान है, पहुँचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया।
وَأَدْخَلَ الْكَهَنَةُ تَابُوتَ عَهْدِ الرَّبِّ إِلَى مَكَانِهِ فِي مِحْرَابِ الْهَيْكَلِ، فِي قُدْسِ الأَقْدَاسِ، تَحْتَ جَنَاحَيِ الْكَرُوبَيْنِ٦
7 करूब सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढाँके थे।
اللَّذَيْنِ كَانَا بَاسِطَيْنِ أَجْنِحَتَهُمَا فَوْقَ مَقَرِّ التَّابُوتِ، مُظَلِّلَينِ التَّابُوتَ وَعِصِيَّهُ.٧
8 डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिरे उस पवित्रस्थान से जो पवित्रस्थान के सामने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वर्तमान हैं।
وَسَحَبُوا أَطْرَافَ الْعِصِيِّ، فَبَدَتْ رُؤُوسُهَا مِنْ قُدْسِ الأَقْدَاسِ أَمَامَ الْمِحْرَابِ، وَلَمْ يَسْبِقْ أَنْ شُوهِدَتْ خَارِجَةً مِنْ حَلَقَاتِهَا، وَهِيَ مَا بَرِحَتْ هُنَاكَ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ.٨
9 सन्दूक में कुछ नहीं था, उन दो पटियाओं को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बाँधी थी।
وَلَمْ يَكُنْ فِي التَّابُوتِ سِوَى لَوْحَيِ الْحَجَرِ اللَّذَيْنِ وَضَعَهُمَا مُوسَى فِي حُورِيبَ حِينَ عَاهَدَ الرَّبُّ أَبْنَاءَ إِسْرَائِيلَ بَعْدَ خُرُوجِهِمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ.٩
10 १० जब याजक पवित्रस्थान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया।
وَمَا إِنْ خَرَجَ الْكَهَنَةُ مِنْ قُدْسِ الأَقْدَاسِ حَتَّى مَلأَ السَّحَابُ هَيْكَلَ الرَّبِّ،١٠
11 ११ और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
فَلَمْ يَسْتَطِعِ الْكَهَنَةُ الْقِيَامَ بِالْخِدْمَةِ مِنْ جَرَّاءِ السَّحَابِ، لأَنَّ مَجْدَ الرَّبِّ مَلأَ الْهَيْكَلَ.١١
12 १२ तब सुलैमान कहने लगा, “यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूँगा।
عِنْدَئِذٍ هَتَفَ سُلَيْمَانُ: «قَالَ الرَّبُّ إِنَّهُ يَسْكُنُ فِي الضَّبَابِ،١٢
13 १३ सचमुच मैंने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन् ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिसमें तू युगानुयुग बना रहे।”
وَلَكِنِّي قَدْ بَنَيْتُ لَكَ هَيْكَلاً رَائِعاً، مَقَرّاً لِسُكْنَاكَ إِلَى الأَبَدِ».١٣
14 १४ तब राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुँह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही।
وَفِيمَا كَانَتْ كُلُّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ وَاقِفَةً هُنَاكَ، الْتَفَتَ الْمَلِكُ نَحْوَهُمْ وَبَارَكَهُمْ جَمِيعاً،١٤
15 १५ और उसने कहा, “धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा! जिसने अपने मुँह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथ से उसे पूरा किया है,
قَائِلاً: «تَبَارَكَ الرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ الَّذِي حَقَّقَ الْيَوْمَ وَعْدَهُ الَّذِي قَطَعَهُ لأَبِي دَاوُدَ قَائِلاً:١٥
16 १६ ‘जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैंने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना, जिसमें मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैंने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो।’
’مُنْذُ أَنْ أَخْرَجْتُ شَعْبِي إِسْرَائِيلَ مِنْ مِصْرَ لَمْ أَخْتَرْ مَدِينَةً مِنْ مُدُنِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ لِيُبْنَى لِي فِيهَا هَيْكَلٌ، لَكِنِّي اخْتَرْتُ دَاوُدَ قَائِداً لِشَعْبِي.‘١٦
17 १७ मेरे पिता दाऊद की यह इच्छा तो थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए।
وَقَدْ نَوَى دَاوُدُ أَبِي أَنْ يُشَيِّدَ هَيْكَلاً لِلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ.١٧
18 १८ परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, ‘यह जो तेरी इच्छा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी इच्छा करके तूने भला तो किया;
فَقَالَ الرَّبُّ لِدَاوُدَ أَبِي:’لَقَدْ أَحْسَنْتَ إِذْ نَوَيْتَ فِي قَلْبِكَ أَنْ تَبْنِيَ لِي هَيْكَلاً،١٨
19 १९ तो भी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।’
إِلّا أَنَّكَ أَنْتَ لَنْ تَبْنِيَ هَذَا الْهَيْكَلَ، بَلِ ابْنُكَ الْخَارِجُ مِنْ صُلْبِكَ هُوَ يُشَيِّدُهُ لاسْمِي‘.١٩
20 २० यह जो वचन यहोवा ने कहा था, उसे उसने पूरा भी किया है, और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है।
وَأَوْفَى الرَّبُّ بِمَا وَعَدَ بِهِ، فَخَلَفْتُ أَنَا دَاوُدَ أَبِي عَلَى عَرْشِ إِسْرَائِيلَ، كَمَا تَكَلَّمَ الرَّبُّ، وَأَقَمْتُ هَذَا الْهَيْكَلَ لِلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ،٢٠
21 २१ और इसमें मैंने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है, जिसमें यहोवा की वह वाचा है, जो उसने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उनसे बाँधी थी।”
وَهَيَّأْتُ فِيهِ مَكَاناً لِلتَّابُوتِ الَّذِي يَضُمُّ عَهْدَ الرَّبِّ الَّذِي قَطَعَهُ مَعَ آبَائِنَا عِنْدَمَا أَخْرَجَهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ».٢١
22 २२ तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ, और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा!
وَانْتَصَبَ سُلَيْمَانُ أَمَامَ مَذْبَحِ الرَّبِّ، فِي مُوَاجَهَةِ كُلِّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ، وَبَسَطَ يَدَيْهِ إِلَى السَّمَاءِ،٢٢
23 २३ हे इस्राएल के परमेश्वर! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई परमेश्वर है: तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता, और करुणा करता रहता है।
وَقَالَ: «أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ، لَيْسَ نَظِيرٌ لَكَ فِي السَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ وَلا عَلَى الأَرْضِ مِنْ أَسْفَلُ. أَنْتَ يَا مَنْ تُحَافِظُ عَلَى عَهْدِ الرَّحْمَةِ مَعَ عَبِيدِكَ السَّائِرِينَ أَمَامَكَ مِنْ كُلِّ قُلُوبِهِمِ.٢٣
24 २४ जो वचन तूने मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तूने पालन किया है, जैसा तूने अपने मुँह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा कि आज है।
الْيَوْمَ حَقَّقْتَ وَعْدَكَ لأَبِي دَاوُدَ٢٤
25 २५ इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! इस वचन को भी पूरा कर, जो तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, ‘तेरे कुल में, मेरे सामने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी ही चौकसी करें।’
فَالآنَ احْفَظْ لأَبِي دَاوُدَ مَا وَعَدْتَهُ بِهِ، إِنَّهُ إِذَا حَذَا أَوْلادُهُ حَذْوَهُ، وَسَارُوا فِي طَرِيقِكَ، فَسَيَجْلِسُ دَوْماً وَاحِدٌ مِنْهُمْ عَلَى عَرْشِ إِسْرَائِيلَ.٢٥
26 २६ इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिद्ध कर।
وَالآنَ يَا إِلَهَ إِسْرَائِيلَ حَقِّقْ وُعُودَكَ الَّتِي تَعَهَّدْتَ بِها لأَبِي دَاوُدَ.٢٦
27 २७ “क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में कैसे समाएगा।
وَلَكِنْ هَلْ يَسْكُنُ اللهُ حَقّاً عَلَى الأَرْضِ؟ إِنْ كَانَتِ السَّمَاوَاتُ، بَلِ السَّمَاوَاتُ الْعُلَى لَا تَسَعُكَ فَكَيْفَ يَتَّسِعُ لَكَ هَذَا الْهَيْكَلُ الَّذِي بَنَيْتُ؟٢٧
28 २८ तो भी हे मेरे परमेश्वर यहोवा! अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन! जो मैं आज तेरे सामने कर रहा हूँ;
فَأَصْغِ لابْتِهَالِ عَبْدِكَ وَإِلَى تَضَرُّعِهِ أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهِي، وَاسْتَمِعْ إِلَى صَوْتِ الدُّعَاءِ وَالصَّلاةِ الَّتِي يَرْفَعُهَا عَبْدُكَ أَمَامَكَ الْيَوْمَ،٢٨
29 २९ कि तेरी आँख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तूने कहा है, ‘मेरा नाम वहाँ रहेगा,’ रात दिन खुली रहें और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।
حَتَّى لَا تَغْفَلَ عَيْنَاكَ عَنْ هَذَا الْهَيْكَلِ لَيْلاً وَنَهَاراً، هَذَا الْمَوْضِعِ الَّذِي قُلْتَ إِنَّ اسْمَكَ يَكُونُ فِيهِ، فَتَسْمَعُ الصَّلاةَ الَّتِي يَتَضَرَّعُ بِها عَبْدُكَ فِي هَذَا الْمَوْضِعِ.٢٩
30 ३० और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरन् स्वर्ग में से जो तेरा निवास-स्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना।
فَاسْتَمِعْ إِلَى ابْتِهَالِ عَبْدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ الَّذِينَ يُصَلُّونَ فِي هَذَا الْمَكَانِ. اسْتَمِعْ مِنَ السَّمَاءِ مَقَرِّ سُكْنَاكَ، وَمَتَى سَمِعْتَ فَاغْفِرْ.٣٠
31 ३१ “जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के सामने शपथ खाए,
وَإِنْ أَخْطَأَ أَحَدٌ إِلَى صَاحِبِهِ، وَأَوْجَبَ عَلَيْهِ الْيَمِينَ لِيَحْلِفَهُ، وَحَضَرَ لِيَحْلِفَ أَمَامَ مَذْبَحِكَ فِي هَذَا الْهَيْكَلِ،٣١
32 ३२ तब तू स्वर्ग में सुनकर, अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निर्दोष को निर्दोष ठहराकर, उसके धार्मिकता के अनुसार उसको फल देना।
فَاسْتَمِعْ أَنْتَ مِنَ السَّمَاءِ، وَاعْمَلْ، وَاقْضِ بَيْنَ عَبِيدِكَ، إِذْ تَدِينُ الْمُذْنِبَ وَتَجْعَلُ شَرَّهُ يَقَعُ عَلَى رَأْسِهِ، وَتُنْصِفُ الْبَارَّ وَتُعْلِنُ بَرَاءَتَهُ.٣٢
33 ३३ फिर जब तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे,
إِذَا انْهَزَمَ شَعْبُكَ أَمَامَ عَدُوِّهِمْ مِنْ جَرَّاءِ خَطِيئَتِهِمْ، ثُمَّ تَابُوا مُعْتَرِفِينَ بِاسْمِكَ، وَصَلُّوا مُتَضَرِّعِينَ إِلَيْكَ فِي هَذَا الْهَيْكَلِ،٣٣
34 ३४ तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना: और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था।
فَاسْتَجِبْ أَنْتَ مِنَ السَّمَاءِ وَاصْفَحْ عَنْ خَطِيئَةِ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَأَرْجِعْهُمْ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي وَهَبْتَهَا لِآبَائِهِمْ.٣٤
35 ३५ “जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दुःख देता है, और अपने पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना,
إِذَا أُغْلِقَتْ أَبْوَابُ السَّمَاءِ وَانْحَبَسَ الْمَطَرُ لأَنَّ الشَّعْبَ أَخْطَأَ إِلَيْكَ، ثُمَّ صَلُّوا فِي هَذَا الْهَيْكَلِ مُعْتَرِفِينَ بِاسْمِكَ، وَتَابُوا عَنْ خَطِيئَتِهِمْ لأَنَّكَ أَنْزَلْتَ بِهِمِ الْبَلاءَ،٣٥
36 ३६ और अपने दासों, अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिए अपने इस देश पर, जो तूने अपनी प्रजा का भागकर दिया है, पानी बरसा देना।
فَاسْتَجِبْ أَنْتَ مِنَ السَّمَاءِ، وَاصْفَحْ عَنْ خَطِيئَةِ عَبِيدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَعَلِّمْهُمْ سَبِيلَ الْعَيْشِ بِاسْتِقَامَةٍ، وَأَمْطِرْ غَيْثاً عَلَى الأَرْضِ الَّتِي وَهَبْتَهَا مِيرَاثاً لِشَعْبِكَ.٣٦
37 ३७ “जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरूई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति या रोग क्यों न हों,
وَإِنْ أَصَابَتِ الأَرْضَ مَجَاعَةٌ، أَوْ تَفَشَّى فِيهَا وَبَأٌ، أَوِ اعْتَرَتْهَا آفَاتٌ زِرَاعِيَّةٌ، أَوْ جَفَافٌ، أَوْ غَزَاهَا الْجَرَادُ وَالْجُنْدُبُ، أَوْ إِذَا حَاصَرَ الشَّعْبَ عَدُوٌّ فِي أَيَّةِ مَدِينَةٍ مِنْ مُدُنِهِ، أَوْ حَلَّتْ بِهِ كَارِثَةٌ أَوْ مَرَضٌ،٣٧
38 ३८ तब यदि कोई मनुष्य या तेरी प्रजा इस्राएल अपने-अपने मन का दुःख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए;
فَحِينَ يُصَلِّي أَوْ يَتَضَرَّعُ أَيُّ وَاحِدٍ مِنْ كُلِّ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، بَعْدَ أَنْ يُدْرِكَ مَا ارْتَكَبَهُ مِنْ مَعْصِيَةٍ، وَيَبْسُطُ يَدَيْهِ نَحْوَ هَذَا الْهَيْكَلِ،٣٨
39 ३९ तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुनकर क्षमा करना, और ऐसा करना, कि एक-एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना: तू ही तो सब मनुष्यों के मन के भेदों का जाननेवाला है।
فَاسْتَجِبْ أَنْتَ مِنَ السَّمَاءِ مَقَرِّ سُكْنَاكَ، وَاصْفَحْ وَاعْمَلْ، وَاجْزِ كُلَّ إِنْسَانٍ بِمُقْتَضَى طُرُقِهِ، لأَنَّكَ تَعْرِفُ قَلْبَهُ، فَأَنْتَ وَحْدَكَ الْمُطَّلِعُ عَلَى خَفَايَا قُلُوبِ النَّاسِ،٣٩
40 ४० तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें।
لِكَيْ يَتَّقُوكَ كُلَّ الأَيَّامِ الَّتِي يَحْيَوْنَ فِيهَا عَلَى وَجْهِ الأَرْضِ الَّتِي وَهَبْتَهَا لِآبَائِنَا.٤٠
41 ४१ “फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए,
أَمَّا الْغَرِيبُ الَّذِي لَا يَنْتَمِي إِلَى شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَالَّذِي يُقْبِلُ مِنْ أَرْضٍ بَعِيدَةٍ مِنْ أَجْلِ اسْمِكَ،٤١
42 ४२ वह तो तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिए जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करे,
لأَنَّ الْغُرَبَاءَ يَسْمَعُونَ بِاسْمِكَ الْعَظِيمِ، وَبِمَا أَجْرَتْهُ يَدُكَ الْقَوِيَّةُ وَذِرَاعُكَ الْمُقْتَدِرَةُ، فَيَحْضُرُونَ وَيُصَلُّونَ فِي هَذَا الْهَيْكَلِ،٤٢
43 ४३ तब तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैंने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।
فَاسْتَجِبْ أَنْتَ مِنَ السَّمَاءِ مَقَرِّ سُكْنَاكَ، وَافْعَلْ كُلَّ مَا يُنَاشِدُكَ بِهِ الْغَرِيبُ، فَيُدْعَى بِاسْمِكَ بَيْنَ كُلِّ أُمَمِ الأَرْضِ، فَيَخَافُوكَ كَمَا يَخَافُكَ شَعْبُكَ إِسْرَائِيلُ، وَيُدْرِكُوا أَنَّ اسْمَكَ قَدْ دُعِيَ عَلَى هَذَا الْهَيْكَلِ الَّذِي بَنَيْتُهُ.٤٣
44 ४४ “जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे, वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें,
وَإذَا خَرَجَ شَعْبُكَ لِمُحَارَبَةِ عَدُوٍّ، فِي أَيِّ مَكَانٍ تُرْسِلُهُمْ إِلَيْهِ، وَصَلُّوا إِلَى الرَّبِّ مُتَوَجِّهِينَ نَحْوَ الْمَدِينَةِ الَّتِي اخْتَرْتَهَا وَالْهَيْكَلِ الَّذِي بَنَيْتُهُ لاسْمِكَ،٤٤
45 ४५ तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय
فَاسْتَجِبْ مِنَ السَّمَاءِ صَلاتَهُمْ وَتَضَرُّعَهُمْ، وَانْصُرْ قَضِيَّتَهُمْ.٤٥
46 ४६ “निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है: यदि ये भी तेरे विरुद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्दी बनाकर अपने देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएँ,
وَإذَا أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، إِذْ لَيْسَ إِنْسَانٌ لَا يَأْثَمُ، وَغَضِبْتَ عَلَيْهِمْ وَأَسْلَمْتَهُمْ لِلْعَدُوِّ فَسَبَاهُمْ آسِرُوهُمْ إِلَى دِيَارِ الْعَدُوِّ، بَعِيدَةً كَانَتْ أَوْ قَرِيبَةً.٤٦
47 ४७ और यदि वे बँधुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्दी बनानेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, ‘हमने पाप किया, और कुटिलता और दुष्टता की है;’
فَإِنْ تَابُوا فِي أَرْضِ سَبْيِهِمْ وَرَجَعُوا مُتَضَرِّعِينَ إِلَيْكَ قَائِلِينَ: قَدْ أَخْطَأْنَا وَانْحَرَفْنَا وَأَذْنَبْنَا،٤٧
48 ४८ और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्दी करके ले गए हों, अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्थना करें,
وَتَابُوا حَقّاً مِنْ كُلِّ قُلُوبِهِمْ وَنُفُوسِهِمْ وَهُمْ أَسْرَى فِي دِيَارِ أَعْدَائِهِمْ، مُتَوَجِّهِينَ نَحْوَ أَرْضِهِمِ الَّتِي وَهَبْتَهَا لِآبَائِهِمْ، نَحْوَ الْمَدِينَةِ الَّتِي اخْتَرْتَهَا وَالْهَيْكَلِ الَّذِي شَيَّدْتُهُ لاِسْمِكَ،٤٨
49 ४९ तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना,
فَاسْتَجِبْ صَلاتَهُمْ وَتَضَرُّعَهُمْ مِنَ السَّمَاءِ مَقَرِّ سُكْنَاكَ، وَانْصُرْ قَضِيَّتَهُمْ،٤٩
50 ५० और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे, सब को क्षमा करके, उनके बन्दी करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें।
وَاصْفَحْ عَنْ خَطَايَا شَعْبِكَ وَعَنْ جَمِيعِ ذُنُوبِهِمِ الَّتِي ارْتَكَبُوهَا فِي حَقِّكَ، وَاجْعَلْ آسِرِيهِمْ يُبْدُونَ نَحْوَهُمْ رَحْمَةً،٥٠
51 ५१ क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है।
لأَنَّهُمْ شَعْبُكَ وَمِيرَاثُكَ الَّذِينَ أَخْرَجْتَهُمْ مِنْ مِصْرَ، مِنْ وَسَطِ أَتُونِ صَهْرِ الْحَدِيدِ.٥١
52 ५२ इसलिए तेरी आँखें तेरे दास की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब-तब तू उनकी सुन ले;
لِتَكُنْ عَيْنَاكَ مَفْتُوحَتَيْنِ مُلْتَفِتَتَيْنِ نَحْوَ تَضَرُّعِ عَبْدِكَ وَابْتِهَالِ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، فَتُصْغِيَ إِلَيْهِمْ كُلَّمَا اسْتَغَاثُوا بِكَ،٥٢
53 ५३ क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार, जो तूने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था, तूने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है।”
لأَنَّكَ أَنْتَ أَفْرَزْتَهُمْ لَكَ مِيرَاثاً بَيْنَ جَمِيعِ شُعُوبِ الأَرْضِ، كَمَا تَكَلَّمْتَ عَلَى لِسَانِ عَبْدِكَ مُوسَى عِنْدَمَا أَخْرَجْتَ آبَاءَنَا مِنْ مِصْرَ يَا سَيِّدِي الرَّبَّ».٥٣
54 ५४ जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था, यहोवा की वेदी के सामने से उठा,
وَعِنْدَمَا انْتَهَى سُلَيْمَانُ مِنَ الصَّلاةِ إِلَى الرَّبِّ وَالتَّضَرُّعِ إِلَيْهِ، نَهَضَ مِنْ أَمَامِ الْمَذْبَحِ حَيْثُ كَانَ جَاثِياً عَلَى رُكْبَتَيْهِ وَبَاسِطاً يَدَيْهِ نَحْوَ السَّمَاءِ.٥٤
55 ५५ और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊँचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया,
وَوَقَفَ وَبَارَكَ الشَّعْبَ كُلَّهُ بِصَوْتٍ عَالٍ قَائِلاً:٥٥
56 ५६ “धन्य है यहोवा, जिसने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं, उनमें से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।
«تَبَارَكَ الرَّبُّ الَّذِي مَنَحَ رَاحَةً لِشَعْبِهِ إِسْرَائِيلَ بِمُقْتَضَى وَعْدِهِ، وَلَمْ يُخْلِفْ كَلِمَةً وَاحِدَةً مِنْ وُعُودِهِ الصَّالِحَةِ الَّتِي نَطَقَ بِها عَلَى لِسَانِ عَبْدِهِ مُوسَى.٥٦
57 ५७ हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हमको त्याग न दे और न हमको छोड़ दे।
لِيَكُنِ الرَّبُّ إِلَهُنَا مَعَنَا كَمَا كَانَ مَعَ آبَائِنَا، فَلا يَتْرُكَنَا وَلا يَنْبِذَنَا،٥٧
58 ५८ वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें, और उसकी आज्ञाएँ और विधियाँ और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था, नित माना करें।
بَلْ لِيَجْتَذِبْ قُلُوبَنَا إِلَيْهِ لِنَسْلُكَ فِي سُبُلِهِ وَنُطِيعَ وَصَايَاهُ وَفَرَائِضَهُ وَأَحْكَامَهُ الَّتِي أَمَرَ بِها آبَاءَنَا،٥٨
59 ५९ और मेरी ये बातें जिनकी मैंने यहोवा के सामने विनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसी प्रतिदिन आवश्यकता हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे,
وَلْتَكُنْ كَلِمَاتِي الَّتِي تَضَرَّعْتُ بِها مَاثِلَةً دَائِماً أَمَامَ الرَّبِّ لَيْلَ نَهَارَ لِيُسْعِفَ عَبْدَهُ فِي قَضَاءِ شُؤُونِهِ، وَيُعِينَ شَعْبَهُ إِسْرَائِيلَ فِي قَضَاءِ أُمُورِ حَيَاتِهِمْ يَوْماً بَعْدَ يَوْمٍ،٥٩
60 ६० और इससे पृथ्वी की सब जातियाँ यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं।
فَتَعْلَمَ كُلُّ أُمَمِ الأَرْضِ أَنَّ الرَّبَّ هُوَ اللهُ وَلَيْسَ أَحَدٌ سِوَاهُ.٦٠
61 ६१ तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज के समान उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते रहो।”
فَلْيَكُنْ قَلْبُكُمْ مُفْعَماً بِالْوَلاءِ الصَّادِقِ لِلرَّبِّ إِلَهِنَا، إِذْ تَسْلُكُونَ بِمُوْجِبِ فَرَائِضِهِ وَتُطِيعُونَ وَصَايَاهُ كَمَا فَعَلْتُمُ الْيَوْمَ».٦١
62 ६२ तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा।
ثُمَّ ذَبَحَ الْمَلِكُ وَسَائِرُ إِسْرَائِيلَ مَعَهُ ذَبَائِحَ أَمَامَ الرَّبِّ،٦٢
63 ६३ और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, वे बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
وَقَرَّبَ سُلَيْمَانُ مِنْ ذَبَائِحِ السَّلامِ لِلرَّبِّ اثْنَيْنِ وَعِشْرِينَ أَلْفاً مِنَ الْبَقَرِ، وَمِئَةَ أَلْفٍ وَعِشْرِينَ أَلْفاً مِنَ الْغَنَمِ. وَهَكَذَا دَشَّنَ الْمَلِكُ وَجَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ هَيْكَلَ الرَّبِّ.٦٣
64 ६४ उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के मध्य भी एक स्थान पवित्र किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के सामने थी, वह उनके लिये छोटी थी।
وَقَدَّسَ الْمَلِكُ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ الْفِنَاءَ الَّذِي يَقَعُ أَمَامَ الْهَيْكَلِ، بِأَنْ قَرَّبَ هُنَاكَ الْمُحْرَقَاتِ وَالتَّقْدِمَاتِ وَشَحْمَ ذَبَائِحِ السَّلامِ، لأَنَّ مَذْبَحَ النُّحَاسِ الْقَائِمَ أَمَامَ الرَّبِّ كَانَ أَصْغَرَ مِنْ أَنْ يَسَعَ الْمُحْرَقَاتِ وَالتَّقْدِمَاتِ وَشَحْمَ ذَبَائِحِ السَّلامِ.٦٤
65 ६५ अतः सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात के प्रवेश-द्वार से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इकट्ठी हुई थी, दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने पर्व को माना।
وَاحْتَفَلَ سُلَيْمَانُ بِالْعِيدِ فِي ذَلِكَ الْوَقْتِ مَعَ سَائِرِ إِسْرَائِيلَ وَجُمْهُورٍ كَبِيرٍ تَوَافَدَ مِنْ مَدْخَلِ حَمَاةَ إِلَى وَادِي مِصْرَ، وَاسْتَمَرَّ الاحْتِفَالُ أَمَامَ الرَّبِّ أرْبَعَةَ عَشَرَ يَوْماً٦٥
66 ६६ फिर आठवें दिन उसने प्रजा के लोगों को विदा किया। और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने-अपने डेरे को चले गए।
وَفِي الْيَوْمِ الخَامِسِ عَشَرَ بَعْدَ الْعِيدِ، صَرَفَ سُلَيْمَانُ الشَّعْبَ، فَبَارَكُوهُ وَتَوَجَّهُوا إِلَى مَنَازِلِهِمْ بِقُلُوبٍ يَغْمُرُهَا الْفَرَحُ وَالْغِبْطَةُ مِنْ أَجْلِ كُلِّ الْخَيْرَاتِ الَّتِي أَبْدَاهَا الرَّبُّ نَحْوَ دَاوُدَ عَبْدِهِ، وَنَحْوَ شَعْبِهِ إِسْرَائِيلَ.٦٦

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