< 1 कुरिन्थियों 8 >

1 अब मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है।
وَأَمَّا فِيمَا يَتَعَلَّقُ بِالذَّبَائِحِ الْمُقَدَّمَةِ لِلأَصْنَامِ، فَنَعْلَمُ أَنَّ الْمَعْرِفَةَ لِجَمِيعِنَا. غَيْرَ أَنَّ الْمَعْرِفَةَ تَنْفُخُ تَكَبُّراً، وَلَكِنَّ الْمَحَبَّةَ تَبْنِي. فَمَنْ ظَنَّ أَنَّهُ يَعْرِفُ شَيْئاً،١
2 यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूँ, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
فَهُوَ لَا يَعْرِفُ شَيْئاً بَعْدُ حَقَّ الْمَعْرِفَةِ.٢
3 परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहचानता है।
أَمَّا الَّذِي يُحِبُّ اللهَ، فَإِنَّ اللهَ يَعْرِفُهُ.٣
4 अतः मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
فَفِيمَا يَخُصُّ الأَكْلَ مِنْ ذَبَائِحِ الأَصْنَامِ، نَحْنُ نَعْلَمُ أَنَّ الصَّنَمَ لَيْسَ بِإِلهٍ مَوْجُودٍ فِي الْكَوْنِ، وَأَنَّهُ لَا وُجُودَ إِلّا لإِلهٍ وَاحِدٍ.٤
5 यद्यपि आकाश में और पृथ्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु हैं)।
حَتَّى لَوْ كَانَتِ الآلِهَةُ الْمَزْعُومَةُ مَوْجُودَةً فِي السَّمَاءِ أَوْ عَلَى الأَرْضِ وَمَا أَكْثَرَ تِلْكَ الآلِهَةَ وَالأَرْبَابَ!٥
6 तो भी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है: अर्थात् पिता जिसकी ओर से सब वस्तुएँ हैं, और हम उसी के लिये हैं, और एक ही प्रभु है, अर्थात् यीशु मसीह जिसके द्वारा सब वस्तुएँ हुईं, और हम भी उसी के द्वारा हैं।
فَلَيْسَ عِنْدَنَا نَحْنُ إِلّا إِلهٌ وَاحِدٌ هُوَ الآبُ الَّذِي مِنْهُ كُلُّ شَيْءٍ، وَنَحْنُ لَهُ؛ وَرَبٌّ وَاحِدٌ هُوَ يَسُوعُ الْمَسِيحُ الَّذِي بِهِ كُلُّ شَيْءٍ وَنَحْنُ بِهِ.٦
7 परन्तु सब को यह ज्ञान नहीं; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतों के सामने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उनका विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
عَلَى أَنَّ هذِهِ الْحَقِيقَةَ لَا يَعْرِفُهَا الْجَمِيعُ: فَبَعْضُهُمْ قَدْ تَعَوَّدُوا الظَّنَّ بِأَنَّ الأَصْنَامَ مَوْجُودَةٌ فِعْلاً، وَمَازَالُوا يَأْكُلُونَ مِنْ تِلْكَ الذَّبَائِحِ كَأَنَّهَا فِعْلاً مُقَدَّمَةٌ لَهَا، فَيَتَدَنَّسُ ضَمِيرُهُمْ بِسَبَبِ ضَعْفِهِ.٧
8 भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुँचाता, यदि हम न खाएँ, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएँ, तो कुछ लाभ नहीं।
إِلّا أَنَّ الطَّعَامَ لَا يُقَرِّبُنَا إِلَى اللهِ، فَإِنَّنَا إِنْ أَكَلْنَا مِنْهُ لَا يَعْلُو مَقَامُنَا، وَإِنْ لَمْ نَأْكُلْ مِنْهُ لَا يَصْغُرُ شَأْنُنَا!٨
9 परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए।
وَلكِنْ خُذُوا حِذْرَكُمْ لِكَيْ لَا يَكُونَ حَقُّكُمْ هَذَا فَخّاً يَسْقُطُ فِيهِ الضُّعَفَاءُ.٩
10 १० क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के सामने बलि की हुई वस्तु के खाने का साहस न हो जाएगा।
فَيَا صَاحِبَ الْمَعْرِفَةِ، إِنْ رَآكَ أَحَدٌ جَالِساً إِلَى الطَّعَامِ فِي هَيْكَلٍ لِلأَصْنَامِ، أَفَلا يَتَقَوَّى ضَمِيرُهُ، هُوَ الضَّعِيفُ، لِيَأْكُلَ مِنْ ذَبَائِحِ الأَصْنَامِ،١٠
11 ११ इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिसके लिये मसीह मरा नाश हो जाएगा।
وَبِذَلِكَ يَتَدَمَّرُ ذَلِكَ الضَّعِيفُ، وَهُوَ أَخٌ لَكَ مَاتَ الْمَسِيحُ مِنْ أَجْلِهِ، بِسَبَبِ مَعْرِفَتِكَ!١١
12 १२ तो भाइयों का अपराध करने से और उनके निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो।
فَإِذْ تُخْطِئُونَ هكَذَا إِلَى الإِخْوَةِ فَتَجْرَحُونَ ضَمَائِرَهُمُ الضَّعِيفَةَ، إِنَّمَا تُخْطِئُونَ إِلَى الْمَسِيحِ.١٢
13 १३ इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाएँ, तो मैं कभी किसी रीति से माँस न खाऊँगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूँ। (aiōn g165)
لِذَا، إِنْ كَانَ بَعْضُ الطَّعَامِ فَخّاً يَسْقُطُ فِيهِ أَخِي، فَلَنْ آكُلَ لَحْماً أَبَداً، لِكَيْ لَا أُسْقِطَ أَخِي! (aiōn g165)١٣

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