< 1 कुरिन्थियों 12 >
1 १ हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मिक वरदानों के विषय में अज्ञात रहो।
ⲁ̅ⲉⲧⲃⲉⲛⲉⲡⲛⲉⲩⲙⲁⲧⲓⲕⲟⲛ ⲇⲉ ⲛⲉⲥⲛⲏⲩ ⲛ̅ϯⲟⲩⲱϣ ⲁⲛ ⲉⲧⲣⲉⲧⲛ̅ⲣ̅ⲁⲧⲥⲟⲟⲩⲛ
2 २ तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूँगी मूरतों के पीछे जैसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे।
ⲃ̅ⲧⲉⲧⲛ̅ⲥⲟⲟⲩⲛ ⲅⲁⲣ ϫⲉ ⲛⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲟ ⲛ̅ϩⲉⲑⲛⲟⲥ ⲡⲉ. ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲃⲏⲕ ⲉⲣⲁⲧⲟⲩ ⲛ̅ⲛ̅ⲉⲓⲇⲱⲗⲟⲛ ⲉⲧⲉⲙⲉⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲑⲉ ⲉⲛⲧⲁⲩⲛ̅ⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ϩⲓⲱⲱⲥ·
3 ३ इसलिए मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि जो कोई परमेश्वर की आत्मा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु श्रापित है; और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है।
ⲅ̅ⲉⲧⲃⲉⲡⲁⲓ̈ ϯⲧⲁⲙⲟ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲙⲉⲣⲉⲗⲁⲁⲩ ⲉϥϣⲁϫⲉ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲟⲩⲁⲛⲁⲑⲉⲙⲁ ⲡⲉ ⲓ̅ⲥ̅. ⲁⲩⲱ ⲙⲛ̅ϣϭⲟⲙ ⲛ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲉϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲡⲉ ⲓ̅ⲥ̅ ⲉⲓⲙⲏⲧⲉⲓ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲉϥⲟⲩⲁⲁⲃ.
4 ४ वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है।
ⲇ̅ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲇⲉ ⲛ̅ϩⲙⲟⲧ ⲉⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ.
5 ५ और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है।
ⲉ̅ⲁⲩⲱ ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲛ̅ⲇⲓⲁⲕⲟⲛⲓⲁ ⲉⲡⲓϫⲟⲉⲓⲥ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ.
6 ६ और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲛ̅ⲉⲛⲉⲣⲅⲏⲙⲁ ⲉⲡⲓⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉⲧⲉⲛⲉⲣⲅⲓ ⲙ̅ⲡⲧⲏⲣϥ̅ ϩⲙ̅ⲡⲧⲏⲣϥ̅.
7 ७ किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।
ⲍ̅ⲥⲉϯ ⲇⲉ ⲙ̅ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ϩⲙ̅ⲡⲟⲩⲱⲛϩ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲙ̅ⲡⲉⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲉⲧⲛⲟϥⲣⲉ.
8 ८ क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें।
ⲏ̅ⲟⲩⲁ ⲙⲉⲛ ϩⲓⲧⲙ̅ⲡⲉⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ϣⲁⲩϯ ⲛⲁϥ ⲛ̅ⲟⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲥⲟⲫⲓⲁ. ⲕⲉⲧ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲥⲟⲟⲩⲛ ⲕⲁⲧⲁⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
9 ९ और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है।
ⲑ̅ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ϩⲙ̅ⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲛ̅ϩⲉⲛϩⲙⲟⲧ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ ⲕⲁⲧⲁⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
10 १० फिर किसी को सामर्थ्य के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना।
ⲓ̅ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ϩⲉⲛⲉⲛⲉⲣⲅⲏⲙⲁ ⲛ̅ϭⲟⲙ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲓⲁ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲇⲓⲁⲕⲣⲓⲥⲓⲥ ⲙ̅ⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ϩⲉⲛⲅⲉⲛⲟⲥ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩϩⲉⲣⲙⲏⲛⲓⲁ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ.
11 ११ परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बाँट देता है।
ⲓ̅ⲁ̅ⲛⲁⲓ̈ ⲇⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉⲧⲉⲛⲉⲣⲅⲓ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲉϥⲡⲱϣ ⲉϫⲙ̅ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧϥ̅ⲟⲩⲁϣⲥ̅.
12 १२ क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है।
ⲓ̅ⲃ̅ⲛ̅ⲑⲉ ⲅⲁⲣ ⲉⲟⲩⲁ ⲡⲉ ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲟⲩⲛ̅ⲧϥ̅ϩⲁϩ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ. ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲇⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ϩⲁϩ ⲛⲉ. ⲟⲩⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ. ⲧⲁⲓ̈ ⲧⲉ ⲑⲉ ⲙ̅ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅.
13 १३ क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या यूनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।
ⲓ̅ⲅ̅ⲕⲁⲓⲅⲁⲣ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲁⲛⲟⲛ ⲧⲏⲣⲛ̅ ⲛ̅ⲧⲁⲛⲃⲁⲡⲧⲓⲍⲉ ⲉⲩⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ. ⲉⲓⲧⲉ ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈. ⲉⲓⲧⲉ ⲟⲩⲉⲓ̈ⲉⲛⲓⲛ. ⲉⲓⲧⲉ ϩⲙ̅ϩⲁⲗ. ⲉⲓⲧⲉ ⲣⲙ̅ϩⲉ. ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲁⲩⲧⲥⲟⲛ ⲧⲏⲣⲛ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
14 १४ इसलिए कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं।
ⲓ̅ⲇ̅ⲕⲁⲓⲅⲁⲣ ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲁⲛ ⲡⲉ. ⲁⲗⲗⲁ ϩⲁϩ ⲛⲉ.
15 १५ यदि पाँव कहे: कि मैं हाथ नहीं, इसलिए देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
ⲓ̅ⲉ̅ⲉⲣϣⲁⲛⲧⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲛⲅ̅ⲧϭⲓϫ ⲁⲛ. ⲁⲛⲅ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲟⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲟⲩⲧⲟ ⲛ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲉ.
16 १६ और यदि कान कहे, “मैं आँख नहीं, इसलिए देह का नहीं,” तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
ⲓ̅ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲉⲣϣⲁⲛⲡⲙⲁⲁϫⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲛⲅ̅ⲡⲃⲁⲗ ⲁⲛ. ⲁⲛⲅ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲟⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲟⲩⲧⲟ ⲛ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲡⲉ.
17 १७ यदि सारी देह आँख ही होती तो सुनना कहाँ से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूँघना कहाँ होता?
ⲓ̅ⲍ̅ⲉϣϫⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲡⲉ ⲡⲃⲁⲗ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡⲙⲁⲁϫⲉ. ⲉϣϫⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲡⲉ ⲡⲙⲁⲁϫⲉ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡϣⲁ.
18 १८ परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार एक-एक करके देह में रखा है।
ⲓ̅ⲏ̅ⲧⲉⲛⲟⲩ ⲇⲉ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲥⲙⲛ̅ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧϥ̅ⲟⲩⲁϣⲥ̅.
19 १९ यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहाँ होती?
ⲓ̅ⲑ̅ⲉϣϫⲉⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲛⲉ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡⲥⲱⲙⲁ.
20 २० परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
ⲕ̅ⲧⲉⲛⲟⲩ ⲇⲉ ϩⲁϩ ⲙⲉⲛ ⲛⲉ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ. ⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲡⲉ ⲡⲥⲱⲙⲁ.
21 २१ आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तेरा प्रयोजन नहीं,” और न सिर पाँवों से कह सकता है, “मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।”
ⲕ̅ⲁ̅ⲙⲛ̅ϭⲟⲙ ⲇⲉ ⲙ̅ⲡⲃⲁⲗ ⲉϫⲟⲟⲥ ⲛ̅ⲧϭⲓϫ ϫⲉ ⲛ̅ϯⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲙ̅ⲙⲟ ⲁⲛ. ⲏ̅ ⲟⲛ ⲧⲁⲡⲉ ⲛ̅ⲛ̅ⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ϫⲉ ⲛ̅ϯⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ⲁⲛ.
22 २२ परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं।
ⲕ̅ⲃ̅ⲁⲗⲗⲁ ⲛ̅ϩⲟⲩⲟ ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲧⲉⲛⲙⲉⲉⲩⲉ ⲉⲣⲟⲟⲩ ϫⲉ ϩⲉⲛϭⲱⲃ ⲛⲉ ϩⲉⲛⲁⲛⲁⲅⲕⲁⲓⲟⲛ ⲛⲉ.
23 २३ और देह के जिन अंगों को हम कम आदरणीय समझते हैं उन्हीं को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं,
ⲕ̅ⲅ̅ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲧⲛ̅ⲙⲉⲉⲩⲉ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ϫⲉ ⲥⲉⲥⲏϣ. ⲧⲛ̅ⲟⲩⲱϩ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲉⲧⲓⲙⲏ ⲉⲛⲁⲓ̈. ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲛϣⲓⲡⲉ ⲟⲩⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲉⲉⲩⲥⲭⲩⲙⲟⲥⲩⲛⲏ.
24 २४ फिर भी हमारे शोभायमान अंगों को इसका प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो।
ⲕ̅ⲇ̅ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲧⲛⲉⲥⲱⲟⲩ ⲛ̅ⲥⲉⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲁⲛ. ⲁⲗⲗⲁ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲥⲩⲛⲕⲉⲣⲁ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲁϥϯ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲟ ⲙ̅ⲡⲉⲧϣⲁⲁⲧ.
25 २५ ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
ⲕ̅ⲉ̅ϫⲉⲕⲁⲁⲥ ⲉⲛⲛⲉⲡⲱⲣϫ̅ ϣⲱⲡⲉ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲁⲗⲗⲁ ⲉⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ϥⲓⲣⲟⲟⲩϣ ϩⲁⲛⲉⲩⲉⲣⲏⲩ.
26 २६ इसलिए यदि एक अंग दुःख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं।
ⲕ̅ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲉϣⲱⲡⲉ ⲟⲩⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ϣⲱⲛⲉ ϣⲁⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ ϣⲱⲛⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲉⲓⲧⲁ ⲟⲩⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ϫⲓⲉⲟⲟⲩ ϣⲁⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲣⲁϣⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ·
27 २७ इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग-अलग उसके अंग हो।
ⲕ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲱⲧⲛ̅ ⲇⲉ ⲛⲧⲉⲧⲛ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅. ⲁⲩⲱ ⲛⲉϥⲙⲉⲗⲟⲥ ⲉⲕⲙⲉⲣⲟⲩⲥ·
28 २८ और परमेश्वर ने कलीसिया में अलग-अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलनेवाले।
ⲕ̅ⲏ̅ϩⲟⲓ̈ⲛⲉ ⲙⲉⲛ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲕⲁⲁⲩ ϩⲛ̅ⲧⲉⲕⲕⲗⲏⲥⲓⲁ. ⲛ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ⲛ̅ⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ. ⲡⲙⲉϩⲥⲛⲁⲩ ⲛⲉⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ. ⲡⲙⲉϩϣⲟⲙⲛⲧ̅ ⲛ̅ⲥⲁϩ. ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲥⲱⲥ ϩⲉⲛϭⲟⲙ. ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲥⲱⲥ ϩⲉⲛⲭⲁⲣⲓⲥⲙⲁ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ. ⲟⲩϯⲧⲟⲟⲧⲟⲩ. ϩⲉⲛⲣ̅ϩⲙ̅ⲙⲉ. ϩⲉⲛⲅⲉⲛⲟⲥ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ.
29 २९ क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब उपदेशक हैं? क्या सब सामर्थ्य के काम करनेवाले हैं?
ⲕ̅ⲑ̅ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲥⲁϩ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ϭⲟⲙ ⲧⲏⲣⲟⲩ.
30 ३० क्या सब को चंगा करने का वरदान मिला है? क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं?
ⲗ̅ⲙⲏ ⲟⲩⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲛ̅ϩⲉⲛϩⲙⲟⲧ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁϣⲁϫⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ϩⲛ̅ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁϩⲉⲣⲙⲏⲛⲉⲩⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ.
31 ३१ क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सबसे उत्तम मार्ग बताता हूँ।
ⲗ̅ⲁ̅ⲕⲱϩ ⲇⲉ ⲉⲛⲉⲭⲁⲣⲓⲥⲙⲁ ⲛⲟϭ ⲁⲩⲱ ⲉⲧⲉⲓ ⲡⲉϩⲟⲩⲟ ϯⲛⲁⲧⲥⲁⲃⲱⲧⲛ̅ ⲉⲧⲉϩⲓⲏ.