< भजन संहिता 92 >
1 एक स्तोत्र. एक गीत. शब्बाथ दिन के लिए निर्धारित. भला है याहवेह के प्रति धन्यवाद, सर्वोच्च परमेश्वर, आपकी महिमा का गुणगान करना उपयुक्त है.
Ein Lied, ein Gesang, für den Sabbattag. Gar köstlich ist's, dem Herrn zu danken und Deinem Namen, Höchster, Lob zu singen,
2 दस तारों के आसोर, नेबेल तथा किन्नोर की संगत पर प्रातःकाल ही आपके करुणा-प्रेम की उद्घोषणा करना तथा रात्रि में आपकी सच्चाई का वर्णन करना अच्छा है.
des Morgens Deine Huld zu künden und in den Nächten Deine Treue
zum Psalter mit zehn Saiten und zur Harfe, zum Saitenspiele auf der Zither.
4 याहवेह, आपने मुझे अपने कार्यों के उल्लास से तृप्त कर दिया है; आपके कार्यों के लिए मैं हर्षोल्लास के गीत गाता हूं.
Du, Herr, erfreust mich durch Dein Tun; ich juble über Deiner Hände Werk.
5 याहवेह, कैसे अद्भुत हैं, आपके द्वारा निष्पन्न कार्य! गहन हैं आपके विचार!
Wie groß sind Deine Werke, Herr, und Deine Pläne tief!
6 अज्ञानी के लिए असंभव है इनका अनुभव करना, निर्बुद्धि के लिए ये बातें निरर्थक हैं.
Der Törichte bemerkt es nimmer; der Tor beachtet's nicht.
7 यद्यपि दुष्ट घास के समान अंकुरित तो होते हैं और समस्त दुष्ट उन्नति भी करते हैं, किंतु उनकी नियति अनंत विनाश ही है.
Wenn Frevler blühn, so ist's wie mit dem Gras. Die Übeltäter sprossen alle nur, damit sie ewig untergehen.
8 किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सर्वोच्च ही हैं.
Du aber bist der Höchste, Herr, in Ewigkeit.
9 निश्चयतः आपके शत्रु, याहवेह, आपके शत्रु नाश हो जाएंगे; समस्त दुष्ट बिखरा दिए जाएंगे.
Denn Deine Feinde kommen um, Herr, Deine Feinde; die Übeltäter werden allesamt zerstreut.
10 किंतु मेरी शक्ति को आपने वन्य सांड़ समान ऊंचा कर दिया है; आपने मुझ पर नया नया तेल उंडेल दिया है.
Dem wilden Stiere gleich wächst meine Kraft; gleichwie von Öl, so ist mein Alter frisch.
11 स्वयं मैंने अपनी ही आंखों से अपने शत्रुओं का पतन देखा है; स्वयं मैंने अपने कानों से अपने दुष्ट शत्रुओं के कोलाहल को सुना है.
Mein Auge sieht mit Lust auf meine Gegner; mit Freuden hört mein Ohr von meiner Widersacher Niederlagen.
12 धर्मी खजूर वृक्ष समान फलते जाएंगे, उनका विकास लबानोन के देवदार के समान होगा;
Der Fromme sproßt wie eine Palme, und wächst wie eine Zeder auf dem Libanon,
13 याहवेह के आवास में लगाए वे परमेश्वर के आंगन में समृद्ध होते जाएंगे!
ins Haus des Herrn verpflanzt und in den Höfen unseres Gottes grünend,
14 वृद्धावस्था में भी वे फलदार बने रहेंगे, उनकी नवीनता और उनकी कान्ति वैसी ही बनी रहेगी,
sie tragen noch im Alter Früchte, beständig grün und markig bleibend,
15 कि वे यह घोषणा कर सकें कि, “याहवेह सीधे हैं; वह मेरे लिए चट्टान हैं, उनमें कहीं भी, किसी भी दुष्टता की छाया तक नहीं है.”
zur Kunde, daß der Herr gerecht, daß er mein Hort ist ohne Tadel.