< भजन संहिता 55 >

1 संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद की मसकील गीत रचना परमेश्वर, मेरी प्रार्थना पर ध्यान दीजिए, मेरी गिड़गिड़ाहट को न ठुकराईए;
لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ذَوَاتِ ٱلْأَوْتَارِ». قَصِيدَةٌ لِدَاوُدَ اِصْغَ يَا ٱللهُ إِلَى صَلَاتِي، وَلَا تَتَغَاضَ عَنْ تَضَرُّعِي.١
2 मेरी गिड़गिड़ाहट सुनकर, मुझे उत्तर दीजिए. मेरे विचारों ने मुझे व्याकुल कर दिया है.
ٱسْتَمِعْ لِي وَٱسْتَجِبْ لِي. أَتَحَيَّرُ فِي كُرْبَتِي وَأَضْطَرِبُ٢
3 शत्रुओं की ललकार ने मुझे निराश कर छोड़ा है; उन्हीं के द्वारा मुझ पर कष्ट उण्डेले गए हैं और वे क्रोध में मुझे खरीखोटी सुना रहे हैं.
مِنْ صَوْتِ ٱلْعَدُوِّ، مِنْ قِبَلِ ظُلْمِ ٱلشِّرِّيرِ. لِأَنَّهُمْ يُحِيلُونَ عَلَيَّ إِثْمًا، وَبِغَضَبٍ يَضْطَهِدُونَنِي.٣
4 भीतर ही भीतर मेरा हृदय वेदना में भर रहा है; मुझमें मृत्यु का भय समा गया है.
يَمْخَضُ قَلْبِي فِي دَاخِلِي، وَأَهْوَالُ ٱلْمَوْتِ سَقَطَتْ عَلَيَّ.٤
5 भय और कंपकंपी ने मुझे भयभीत कर लिया है; मैं आतंक से घिर चुका हूं.
خَوْفٌ وَرَعْدَةٌ أَتَيَا عَلَيَّ، وَغَشِيَنِي رُعْبٌ.٥
6 तब मैं विचार करने लगा, “कैसा होता यदि कबूतर समान मेरे पंख होते! और मैं उड़कर दूर शांति में विश्राम कर पाता.
فَقُلْتُ: «لَيْتَ لِي جَنَاحًا كَٱلْحَمَامَةِ، فَأَطِيرَ وَأَسْتَرِيحَ!٦
7 हां, मैं उड़कर दूर चला जाता, और निर्जन प्रदेश में निवास बना लेता.
هَأَنَذَا كُنْتُ أَبْعُدُ هَارِبًا، وَأَبِيتُ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ. سِلَاهْ.٧
8 मैं बवंडर और आंधी से दूर, अपने आश्रय-स्थल को लौटने की शीघ्रता करता.”
كُنْتُ أُسْرِعُ فِي نَجَاتِي مِنَ ٱلرِّيحِ ٱلْعَاصِفَةِ، وَمِنَ ٱلنَّوْءِ».٨
9 प्रभु, दुष्टों के मध्य फूट डाल दीजिए, उनकी भाषा में गड़बड़ी कर दीजिए, यह स्पष्ट ही है कि नगर में हिंसा और कलह फूट पड़े हैं.
أَهْلِكْ يَارَبُّ، فَرِّقْ أَلْسِنَتَهُمْ، لِأَنِّي قَدْ رَأَيْتُ ظُلْمًا وَخِصَامًا فِي ٱلْمَدِينَةِ.٩
10 दिन-रात वे शहरपनाह पर छिप-छिप कर घूमते रहते हैं; नगर में वैमनस्य और अधर्म का साम्राज्य है.
نَهَارًا وَلَيْلًا يُحِيطُونَ بِهَا عَلَى أَسْوَارِهَا، وَإِثْمٌ وَمَشَقَّةٌ فِي وَسَطِهَا.١٠
11 वहां विनाशकारी शक्तियां प्रबल हो रही हैं; गलियों में धमकियां और छल समाप्‍त ही नहीं होते.
مَفَاسِدُ فِي وَسَطِهَا، وَلَا يَبْرَحُ مِنْ سَاحَتِهَا ظُلْمٌ وَغِشٌّ.١١
12 यदि शत्रु मेरी निंदा करता तो यह, मेरे लिए सहनीय है; यदि मेरा विरोधी मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हो तो, मैं उससे छिप सकता हूं.
لِأَنَّهُ لَيْسَ عَدُوٌّ يُعَيِّرُنِي فَأَحْتَمِلَ. لَيْسَ مُبْغِضِي تَعَظَّمَ عَلَيَّ فَأَخْتَبِئَ مِنْهُ.١٢
13 किंतु यहां तो तुम, मेरे साथी, मेरे परम मित्र, मेरे शत्रु हो गए हैं, जो मेरे साथ साथ रहे हैं,
بَلْ أَنْتَ إِنْسَانٌ عَدِيلِي، إِلْفِي وَصَدِيقِي،١٣
14 तुम्हारे ही साथ मैंने संगति के मेल-मिलाप अवसरों का आनंद लिया था, अन्य आराधकों के साथ हम भी साथ साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे.
ٱلَّذِي مَعَهُ كَانَتْ تَحْلُو لَنَا ٱلْعِشْرَةُ. إِلَى بَيْتِ ٱللهِ كُنَّا نَذْهَبُ فِي ٱلْجُمْهُورِ.١٤
15 अब उत्तम वही होगा कि अचानक ही मेरे शत्रुओं पर मृत्यु आ पड़े; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं, क्योंकि बुराई उनके घर में आ बसी है, उनकी आत्मा में भी. (Sheol h7585)
لِيَبْغَتْهُمُ ٱلْمَوْتُ. لِيَنْحَدِرُوا إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ أَحْيَاءً، لِأَنَّ فِي مَسَاكِنِهِمْ، فِي وَسْطِهِمْ شُرُورًا. (Sheol h7585)١٥
16 यहां मैं तो परमेश्वर को ही पुकारूंगा, याहवेह ही मेरा उद्धार करेंगे.
أَمَّا أَنَا فَإِلَى ٱللهِ أَصْرُخُ، وَٱلرَّبُّ يُخَلِّصُنِي.١٦
17 प्रातः, दोपहर और संध्या मैं पीड़ा में कराहता रहूंगा, और वह मेरी पुकार सुनेंगे.
مَسَاءً وَصَبَاحًا وَظُهْرًا أَشْكُو وَأَنُوحُ، فَيَسْمَعُ صَوْتِي.١٧
18 उन्होंने मुझे उस युद्ध से बिना किसी हानि के सुरक्षित निकाल लिया, जो मेरे विरुद्ध किया जा रहा था जबकि मेरे अनेक विरोधी थे.
فَدَى بِسَلَامٍ نَفْسِي مِنْ قِتَالٍ عَلَيَّ، لِأَنَّهُمْ بِكَثْرَةٍ كَانُوا حَوْلِي.١٨
19 सर्वदा के सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर, मेरी विनती सुनकर उन्हें ताड़ना करेंगे. वे ऐसे हैं, जिनका हृदय परिवर्तित नहीं होता; उनमें परमेश्वर का कोई भय नहीं.
يَسْمَعُ ٱللهُ فَيُذِلُّهُمْ، وَٱلْجَالِسُ مُنْذُ ٱلْقِدَمِ. سِلَاهْ. ٱلَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ تَغَيُّرٌ، وَلَا يَخَافُونَ ٱللهَ.١٩
20 मेरा साथी ही अपने मित्रों पर प्रहार कर रहा है; उसने अपनी वाचा भंग कर दी है.
أَلْقَى يَدَيْهِ عَلَى مُسَالِمِيهِ. نَقَضَ عَهْدَهُ.٢٠
21 मक्खन जैसी चिकनी हैं उसकी बातें, फिर भी युद्ध उसके दिल में है; उसके शब्दों में तेल से अधिक कोमलता थी, फिर भी वे नंगी तलवार थे.
أَنْعَمُ مِنَ ٱلزُّبْدَةِ فَمُهُ، وَقَلْبُهُ قِتَالٌ. أَلْيَنُ مِنَ ٱلزَّيْتِ كَلِمَاتُهُ، وَهِيَ سُيُوفٌ مَسْلُولَةٌ.٢١
22 अपने दायित्वों का बोझ याहवेह को सौंप दो, तुम्हारे बल का स्रोत वही हैं; यह हो ही नहीं सकता कि वह किसी धर्मी पुरुष को पतन के लिए शोकित छोड़ दें.
أَلْقِ عَلَى ٱلرَّبِّ هَمَّكَ فَهُوَ يَعُولُكَ. لَا يَدَعُ ٱلصِّدِّيقَ يَتَزَعْزَعُ إِلَى ٱلْأَبَدِ.٢٢
23 किंतु परमेश्वर, आपने दुष्टों के लिए विनाश के गड्ढे को निर्धारित किया है; रक्त पिपासु और कपटी मनुष्य अपनी आधी आयु तक भी पहुंच न पाएंगे. किंतु मेरा भरोसा आप पर अटल बना रहेगा.
وَأَنْتَ يَا ٱللهُ تُحَدِّرُهُمْ إِلَى جُبِّ ٱلْهَلَاكِ. رِجَالُ ٱلدِّمَاءِ وَٱلْغِشِّ لَا يَنْصُفُونَ أَيَّامَهُمْ. أَمَّا أَنَا فَأَتَّكِلُ عَلَيْكَ.٢٣

< भजन संहिता 55 >