< भजन संहिता 142 >
1 दावीद की मसकील रचना इस समय वह कन्दरा में थे. एक अभ्यर्थना मैं अपना स्वर उठाकर याहवेह से प्रार्थना कर रहा हूं; अपने शब्दों के द्वारा में याहवेह से कृपा का अनुरोध कर रहा हूं.
Eine Betrachtung Davids, als er in der Höhle war. Ein Gebet.
2 मैं उनके सामने अपने संकट को उंडेल रहा हूं; मैंने अपने कष्ट उनके सामने रख दिए हैं.
Laut schrei ich zu Jahwe, / Laut fleh ich zu Jahwe.
3 जब मैं पूर्णतः टूट चुका हूं, आपके सामने मेरी नियति स्पष्ट रहती है. वह पथ जिस पर मैं चल रहा हूं उन्होंने उसी पर फंदे बिछा दिए हैं.
Vor ihm ergieß ich meine Klage, / Ihm mach ich meine Bedrängnis kund.
4 दायीं ओर दृष्टि कीजिए और देखिए किसी को भी मेरा ध्यान नहीं है; कोई भी आश्रय अब शेष नहीं रह गया है, किसी को भी मेरे प्राणों की हितचिंता नहीं है.
Ist mein Geist in mir verzagt: / Du kennst doch meinen Lebenspfad. / Auf dem Wege, den ich gehen will, / Hat man mir heimlich ein Netz gespannt.
5 याहवेह, मैं आपको ही पुकार रहा हूं; मैं विचार करता रहता हूं, “मेरा आश्रय आप हैं, जीवितों के लोक में मेरा अंश.”
Schau ich zur Rechten und blicke aus: / Niemand ist da, der mich kennen will. / Jede Zuflucht ist mir genommen, / Niemand frage nach mir.
6 मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए, क्योंकि मैं अब थक चुका हूं; मुझे उनसे छुड़ा लीजिए, जो मुझे दुःखित कर रहे हैं, वे मुझसे कहीं अधिक बलवान हैं.
Ich habe zu dir, o Jahwe, geschrien, / Ich habe gesagt: "Meine Zuflucht bist du, / Mein Teil in der Lebendigen Land!"
7 मुझे इस कारावास से छुड़ा दीजिए, कि मैं आपकी महिमा के प्रति मुक्त कण्ठ से आभार व्यक्त कर सकूं. तब मेरी संगति धर्मियों के संग हो सकेगी क्योंकि मेरे प्रति यह आपका स्तुत्य उपकार होगा.
O merke doch auf mein lautes Flehn, / Denn ich bin elend und matt! / Von meinen Verfolgern errette mich, / Denn sie sind stärker als ich! Führe mich aus dem Kerker, / Daß ich deinen Namen preise! / Glück wünschend werden mich Fromme umringen, / Wenn du mir wohlgetan.