< भजन संहिता 130 >
1 आराधना के लिए यात्रियों का गीत. याहवेह, गहराइयों में से मैं आपको पुकार रहा हूं;
“A song of the degrees.” Out of the depths have I called thee, O Lord.
2 हे प्रभु, मेरा स्वर सुन लीजिए, कृपा के लिए मेरी नम्र विनती की ओर आपके कान लगे रहें.
Lord, listen to my voice: let thy ears be attentive to the voice of my supplications.
3 याहवेह, यदि आप अपराधों का लेखा रखने लगें, तो प्रभु, कौन ठहर सकेगा?
If thou, Lord, shouldst treasure up iniquities, O Lord, who would be able to stand?
4 किंतु आप क्षमा शील हैं, तब आप श्रद्धा के योग्य हैं.
But with thee there is forgiveness, in order that thou mayest be feared.
5 मुझे, मेरे प्राणों को, याहवेह की प्रतीक्षा रहती है, उनके वचन पर मैंने आशा रखी है.
I hope for the Lord, my soul doth hope, and for his word do I wait.
6 मुझे प्रभु की प्रतीक्षा है उन रखवालों से भी अधिक, जिन्हें सूर्योदय की प्रतीक्षा रहती है, वस्तुतः उन रखवालों से कहीं अधिक जिन्हें भोर की प्रतीक्षा रहती है.
My soul [waiteth] for the Lord, more than they that watch for the morning expect the morning.
7 इस्राएल, याहवेह पर भरोसा रखो, क्योंकि जहां याहवेह हैं वहां करुणा-प्रेम भी है और वही पूरा छुटकारा देनेवाले हैं.
Let Israel wait for the Lord; for with the Lord there is kindness, and with him is redemption in abundance;
8 स्वयं वही इस्राएल को, उनके अपराधों को क्षमा करेंगे.
And he wilt surely redeem Israel from all his iniquities.