< भजन संहिता 129 >
1 आराधना के लिए यात्रियों का गीत. “मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,” इस्राएल राष्ट्र यही कहे;
Un cántico para los peregrinos que van a Jerusalén. Muchos enemigos me han atacado desde que era joven. Que todo Israel diga:
2 “मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं, किंतु वे मुझ पर प्रबल न हो सके हैं.
Muchos enemigos me han atacado desde que era joven, pero nunca me vencieron.
3 हल चलानेवालों ने मेरे पीठ पर हल चलाया है, और लम्बी-लम्बी हल रेखाएं खींच दी हैं.
Me golpearon en la espalda, dejando largos surcos como si hubiera sido golpeado por un granjero.
4 किंतु याहवेह युक्त है; उन्हीं ने मुझे दुष्टों के बंधनों से मुक्त किया है.”
Pero el Señor hace lo correcto: me liberado de las ataduras de los impíos.
5 वे सभी, जिन्हें ज़ियोन से बैर है, लज्जित हो लौट जाएं.
Que todos los que odian Sión sean derrotados y humillados.
6 उनकी नियति भी वही हो, जो घर की छत पर उग आई घास की होती है, वह विकसित होने के पूर्व ही मुरझा जाती है;
Que sean como la grama que crece en los techos y se marchita antes de que pueda ser cosechada,
7 किसी के हाथों में कुछ भी नहीं आता, और न उसकी पुलियां बांधी जा सकती हैं.
y que no es suficiente para que un segador la sostenga, ni suficiente para que el cosechador llene sus brazos.
8 आते जाते पुरुष यह कभी न कह पाएं, “तुम पर याहवेह की कृपादृष्टि हो; हम याहवेह के नाम में तुम्हारे लिए मंगल कामना करते हैं.”
Que al pasar nadie les diga, “La bendición del Señor esté sobre ti, te bendecimos en el nombre del Señor”.