< भजन संहिता 120 >
1 आराधना के लिए यात्रियों का गीत. मैंने अपनी पीड़ा में याहवेह को पुकारा, और उन्होंने मेरी सुन ली.
Un cántico para los peregrinos que van a Jerusalén. Clamé al Señor en medio de todas mis tribulaciones, y Él me contestó.
2 याहवेह, मेरी रक्षा कीजिए, झूठ बोलनेवाले होंठों से, और छली जीभ से!
¡Señor, por favor sálvame de los mentirosos y de los engañadores!
3 तुम्हारे साथ परमेश्वर क्या करेंगे, और उसके भी अतिरिक्त और क्या करेंगे, ओ छली जीभ?
¿Qué hará el Señor con ustedes, mentirosos? ¿Cómo los castigará?
4 वह तुझे योद्धा के तीक्ष्ण बाणों से दंड देंगे, वह तुझे वृक्ष की लकड़ी के प्रज्वलित कोयलों से दंड देंगे.
Con la espada afilada de un guerrero y carbones encendidos de un enebro.
5 धिक्कार है मुझ पर, जो मैं मेशेख देश में जा निवास करूं, जो मैं केदार देश के मण्डपों में जा रहूं!
¡Ay de mí! Que soy extranjero en Meséc, que he acampado entre las tiendas de Cedar.
6 बहुत समय मैंने उनके साथ व्यतीत की है, जिन्हें शांति से घृणा हैं.
He vivido por mucho tiempo entre los pueblos que odian la paz.
7 मैं खड़ा शांति प्रिय पुरुष; किंतु जब मैं कुछ कहता हूं, वे युद्ध पर उतारू हो जाते हैं.
Quiero paz, pero cuando hablo de paz, ellos quieren guerra.